स्वार्थ खत्म दुर्व्यवहार शुरू – रोनिता 

काजल… आज सीमा चाची के यहां सतसंग है तो मुझे हाथ बटाने थोड़ा पहले ही जाना होगा, तो पीछे से जब विमला आएगी तो उससे याद से ऊपर वाला कमरा अच्छे से साफ करवा लेना, विभा जी ने अपनी बहू काजल से कहा.. 

काजल:  मम्मी जी! अचानक ऊपर वाले कमरे की सफाई? वह कमरा तो बंद ही रहता है ना? महीने दो महीने में सफाई करवाई जाती है और पिछले हफ्ते ही तो हुई थी सफाई? फिर आज क्यों? 

विभा जी:  हां तुझे बताना भूल गई थी, प्रिया आ रही है, तो कम से कम 6 महीने तो रहेगी ही, तो फिर कितने दिन इसके उसके कमरे में घूमती रहेगी, वह वाले कमरे में बाथरूम भी है, तो वह आराम से अपनी बच्ची के साथ वहां रह सकती है और ऊपर होने की वजह से उसे धूप भी अच्छी मिलेगी, जब तब किसी के भी आ जाने से उसके आराम में खलल भी नहीं पड़ेगी।

काजल:  अच्छा प्रिया आ रही है? पर मम्मी जी आपको तो इन्होंने उसे यहां लाने से मना किया था ना? अस्पताल में जो भी कुछ हुआ और बच्ची की छठियारी में भी, उसके बाद भी आप? 

विभा जी:  तो तू क्या चाहती है अपने बेटे के चक्कर में अपनी बेटी की तकलीफों को नज़र अंदाज कर दूं? सुन जिस तरह अजय मेरा बेटा है प्रिया भी मेरी बेटी है, उसका पूरा हक बनता है इस घर पर आने का और जितनी मर्जी उतना रहने का, तू होती कौन है मेरी बेटी के बारे में बोलने वाली? 

काजल:  अच्छा मम्मी जी! फिर तो मैं भी किसी की बेटी हूं ना? यह बात आपको क्यों याद नहीं रहती? 

विभा जी:  जानती थी तू यह बात ज़रूर निकालेगी, सुन बहु, ज्यादा घर तोड़ू बातें करके समय बर्बाद ना कर, ना तो मैं अभी इतनी बेबस हुई हूं जो तुम्हारे इशारों पर चलूं, और ना ही मैं किसी से डरती हूं, मेरी बेटी को अभी आराम और सेवा की ज़रूरत है तो इसलिए उसे यहां बुला रही हूं और तू क्यों इतना भड़क रही है? तुझे तो नहीं कहा है ना प्रिया की सेवा कर या फिर उसके लिए कुछ कर? तू जा अपना काम कर। 

काजल और कुछ नहीं कहती, बात अजय तक पहुंच जाती है तो अजय अपनी मां से कहता है, मां सुना हैं, प्रिया यहां आ रही है वह भी 6 महीनो के लिए? 

विभा जी: अच्छा तो बहू ने कान भर ही दिए तेरे? हां आ रही है तो बता? क्या दिक्कत है? जब मुझे कोई दिक्कत नहीं है फिर ना जाने तुम लोगों को इतनी दिक्कत क्यों हो रही है? अजय! काजल तो पराई है पर तू तो प्रिया का सगा भाई है ना? तुझे अपनी बहन की तकलीफ नहीं दिखाई देती क्या? ऑपरेशन से बच्चा हुआ है और उसके ससुराल वालों को तो तू अच्छे से जानता है? तो ऐसे में मैं नहीं समझेगी उसकी तकलीफ तो और कौन समझेगा? 

अजय:  मां उसके ससुराल वालों को अच्छे से जानता हूं तभी तो कह रहा हूं! आप अपना अपमान भूल सकती हैं मैं नहीं भूल सकता। प्रिया की पूरी प्रेगनेंसी के खर्चे, झमेले हमने संभाले और अंत में हुआ क्या? सुना दिया ना कि हमारी वजह से ऑपरेशन कराना पड़ा, हम प्रिया की देखभाल सही से नहीं कर पाए, हमने कंजूसी की और प्रिया भी उस वक़्त खामोश थी, चुपचाप खड़ी हमारी बेइज्जती को सुन रही थी। और ऑपरेशन से बच्चा तो काजल का भी हुआ था, तब तो आपने उससे कोई सहानुभूति नहीं जताई थी?  

विभा जी:   बस बस अजय अब पुरानी बातों को पकड़ कर पूरी जिंदगी तो नहीं चल सकते ना? तुम दोनों पति-पत्नी को इसी बात का दिक्कत है ना कि मैं काजल के जचकी के समय उसकी कोई मदद नहीं की थी, इसलिए तुम लोगों को अभी प्रिया के समय भी जलन हो रही है, गुस्से में निकल जाती है कभी-कभी ऐसी बातें और प्रिया क्यों भला कुछ बोलती? ससुराल में रहना है उसे, वह कैसे कुछ बोलती समझ ना इस बात को? अब सारी बहुएं काजल की तरह मुंह फट थोड़े ही ना होती है, प्रिया को यह संस्कार मैंनें ही तो दिए हैं। 

अजय:   और जो छठियारी में हुआ? हमारे दिए हुए एक-एक सामान का अपमान किया उन्होंने, मां, आप वह सब कैसे भूल गई? आप फिर प्रिया को यहां लाकर रखेंगी और अगर थोड़ा भी कुछ इधर-उधर हुआ, फिर से वही सब फसाद, मां अभी वक्त है सोच लीजिए एक बार। 

विभा जी:  अजय! तू चाहे लाख कोशिश कर ले मुझे भड़काने की पर मैंने जो ठान लिया है वही करूंगी बस! 

अजय समझ चुका था भैंस के आगे बीन बजाने का कोई फायदा नहीं और उसने काजल को समझा दिया था, कि प्रिया और उसकी बच्ची से दूर रहे, प्रिया आ जाती है, विभा जी ने उसे ऊपर वाले कमरे में सजा दिया और फिर लग गई उसकी सेवा में, अजय के पिताजी का बहुत बड़ा किराने का दुकान था, जिसको अब अजय संभालता था और कई सारे घर दुकाने भी थी, जिसको किराए पर लगाया गया था, तो उसके पैसे विभा जी अपने पास रखती थी और इसी बात का उन्हें घमंड भी था, तो वह अपनी मर्जी की मालकिन भी थी। घर की साफ-सफाई के लिए विमला थी, खाना काजल बनाती थी, पर जब से प्रिया घर में आई थी, इसकी फरमाइशे  विभी जी खुद पूरी करती थी और कई दफा ऊपर नीचे भी करती थी। काजल अजय से इस बारे में कहती है कि ऐसे तो मम्मी जी की तबीयत बिगड़ जाएगी। इतनी ठंड भी है। प्रिया की बच्ची की सारे गुदड़ी, लंगोट मम्मी जी ही धोती है। इस पर अजय कहता है अब क्या कर सकते हैं? तुम्हें अपना सोच कर बुरा लगता होगा ना की मां ने तुम्हारे डिलीवरी के वक्त कितना कठोर व्यवहार किया था? और जबकि तुम्हारी मां भी नहीं, उस वक्त मां को तुम्हारा ज़रा ख्याल नहीं था। अब ऐसे ही सासे अपनी लिए गड्ढे खोदती है। 

काजल: जाने दीजिए क्या हुआ जो उस वक्त मम्मी जी मेरे साथ नहीं थी? आप तो थे ना? आपने भी तो रातें जागी है मेरे साथ, मैं तो खुद को भाग्यशाली समझती हूं जो इतना समझदार और जिम्मेदार पति मिला, अब यह भी तो मम्मी जी के ही संस्कार है जो आपमें है? आज उनकी बेटी को ऐसा जीवनसाथी नहीं मिला तभी तो वह इतनी परेशान है, मुझे तो उन पर तरस आता है 

अजय:  यह तो तुम्हारे भी अच्छे संस्कार ही है जो अपने साथ भेदभाव होता देख भी, सामने वाले की मजबूरी देख पा रही हो! पर हर वक्त महान बनना ज़रूरी नहीं, वरना इसका फायदा और इस्तेमाल दोनों ही कर लिया जाता है, अगले दिन काजल विभा जी से कहती है, मम्मी जी मुझे अपने मायके जाना है, पापा बीमार है और छोटी बहन अकेले सब कुछ संभाल नहीं पा रही तो, शाम को निकल रही हूं, इन्होंने तैयारी करने को बोला है।

विभा जी:  हां जब अजय बोल ही चुका है तो मुझे बताने की क्या ज़रूरत है? यह सब दिखावा न भी करोगी तो चलेगा? 

फिर काजल चली जाती है, इधर विभा जी बेटी की सेवा में लीन अपनी तबीयत बिगाड़ लेती है, अब ऐसी हालत में अजय रसोई संभालता है और मां की देखभाल भी करता है, पर प्रिया की ऐसी सेवा नहीं हो पा रही थी, जैसे पहले हो रही थी। दो-तीन दिन बीते ही थे कि प्रिया का पति रौनक उसे लेने आ जाता है और आते ही सास की तबीयत पूछने की जगह, उन पर बरस पड़ता है और कहता है, क्या हुआ बड़े ही शान से बेटी और नातिन को ले आई थी

 आपने तो खुद बिस्तर पकड़ लिया, और प्रिया को ऐसे ही छोड़ दिया? सच ही कहती थी प्रिया, आप लोग उसे उसका हिस्सा देना नहीं चाहते, तभी आपका बेटा बहू उसके यहां आने से खुश नहीं है। पर मैं भी इतनी आसानी से सब कुछ छोड़ने वाला नहीं, इतने में वहां अजय आ जाता है और सारी बातें सुन लेता है और वह उसे कहता है, तुम ले जाओ अपनी पत्नी और बच्ची को, यह मां है मेरी तुम लोगों की खरीदी हुई कोई दाई नहीं, और बात रही हिस्से की तो मैं दे दूंगा प्रिया का हिस्सा, तुम्हें क्या बोलूं? जब अपना सिक्का ही खोटा हो। 

विभा जी:  चुप कर अजय! कोई हिस्सा नहीं है प्रिया का इस घर में, शादी में जितना दिया है वही काफी है, मुझे माफ कर दे, तेरे इतना समझाने के बावजूद मैंने तेरी एक ना सुनी और उसी की वजह से आज दामाद तक अपमानित कर रहा है और प्रिया, अब तक मेरी सेवा लेने में उसे कोई दिक्कत नहीं थी, पर जैसे ही मैंनें बिस्तर पकड़ा, वैसे ही पति को फोन कर मेरी बेइज्जती करवाने बुला लिया, मां की सेवा तो दूर, अपने लिए सेवा को भी भूल गई और एक काजल है, मेरी बेटी से ज्यादा मेरा ख्याल रखती है, पर मैंने कभी उसे बेटी नहीं माना। पर अब और नहीं, मेरी सारी जायदाद मेरे बेटे बहू और पोते का है, तभी ऊपर से प्रिया उतरते हुए कहती है, वाह मां! सारा कुछ बेटे का? यह मैं होने नहीं दूंगी, सोचा था प्यार से आप दे ही दोगी, पर अब कोर्ट कचहरी करनी पड़ेगी, लगता है, चलिए जी, अब इनको कानूनी भाषा में ही समझाएंगे।

विभा जी:  हां हां जा और आज से तेरा मायका है यह भी भूल जाना! हमेशा बेटा बहू गलत नहीं होते, कभी-कभी बेटियां भी गलत होती है, यह बात अच्छे से समझा दिया है आज तूने और तुझे जितना एड़ी चोटी का जोर लगाना है लगा ले, मैं भी देखती हूं कौन सा कानून तूझ जैसी स्वार्थी बेटी के पक्ष में अपना फैसला सुनाता हैं? 

दोस्तों… मेरी कहानी में दो बेटियों का किरदार दर्शाया है मैंने, एक वह बेटी जो सास को मां मानकर उनसे रिश्ते अच्छे बनाना चाहती है और दूसरी वह, बेटी जो मां से रिश्ता सिर्फ स्वार्थ के लिए चलाना चाहती है, आजकल के ज़माने में आपको सिर्फ बुरे बेटे ही नहीं, बेटियां भी दिख जाएगी, जो जब तक स्वार्थ है मां के साथ है, जैसे ही स्वार्थ खत्म, मां से दुर्व्यवहार शुरू, आप सब की राय क्या है इस बारे में? ज़रूर बताइएगा🙏🏻🙏🏻 

धन्यवाद 

रोनिता 

#मैं भी तो एक बेटी हूं

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