मैं भी तो एक बेटी ही हूं – मधु वशिष्ठ

निशा का घर दूर मैसूर में था और नीता आगरा की ही थी। क्योंकि कॉलेज की 5 दिन की छुट्टियां थीं तो दिल्ली का लगभग सारा हॉस्टल ही खाली हो रहा था। निशा का मैसूर तक आना और जाना 5 दिनों में तो संभव ना होता इसलिए उसने भी नीता के साथ उसके घर ही छुट्टियां मनाने का फैसला लिया। यूं भी आगरे का ताजमहल देखने की उसकी बहुत इच्छा थी।

नीता के साथ निशा का भी घर में काफी स्वागत हुआ। उनके घर आने की खुशी में नीता की मम्मी ने बहुत से पकवान भी बनाए थे। नीता की भाभी भी लगभग उन्हीं की ही उम्र की थी वह भी उनके साथ बात करने को उत्सुक तो थी लेकिन उसका ज्यादातर समय रसोई में ही कट रहा था थोड़ी थोड़ी देर में उनके लिए चाय पकोड़े और ऐसा ही खाने के लिए वह कुछ ना कुछ लाए जा रही थी। नीता की मम्मी थोड़ी थोड़ी देर में खाने के कुछ भेजती ही रहती थी। सुबह सवेरे नीता और निशा ने ताजमहल जाने का प्रोग्राम बनाया।

यूं ही बातें करते करते दोनों सखियां देर से ही सोईं और सवेरे वह दोनों देर से उठी थी ,तब तक मम्मी और भाभी रसोई का सारा काम निपटाने में लगी थी। उठते ही माताजी ने दोनों को चाय नाश्ता करने के लिए कहा जो कि डाइनिंग टेबल पर सजा हुआ था। नाश्ते में भटूरे छोले और मूंग की दाल का हलवा बना हुआ था। खाना खाते खाते निशा देख रही थी कि रात में भी भाभी ने बहुत देर से खाना खाया था और अब तक भी जाने कुछ खाया या नहीं। कल शाम को जब भाभी ने उनको पकौड़े खिलाने के बाद शायद प्लेटें अंदर रखते हुए दो पकोड़े खा लिए होंगे क्योंकि नीता की माता जी की आवाजें आ रही थी जब वह बहू को कह रही थी यूं ही बनाते बनाते खाना खाती रहती हो , हर समय तुम्हारा मुंह चलता रहता है? थोड़ा रुक कर और एक दफा बैठ कर खाओ।

निशा ने भाभी से कहा कि आप भी हमारे साथ ही बैठ कर खाना खा लीजिए लेकिन नीता की मम्मी ने साफ मना कर दिया कि घर का यह नियम है कि बहुएं खाना बनाते बनाते बीच में छोड़कर कुछ नहीं खा सकती। यह सुनकर निशा भी उठ गई और बोली आंटी आप क्या सोचती हैं ऐसे हमसे खाना खाया जाएगा क्या? भाभी भी तो हम दोनों की हम उम्र ही हैं, यदि उठते ही हमें भूख लगती है तो क्या भाभी को नहीं लगती होगी? इतने अच्छे खाने की महक क्या भाभी को खाने के लिए दावत नहीं देती होगी? भाभी क्या हमेशा से भाभी ही रही होंगी, उनके मन में नहीं आता होगा कि मैं भी तो एक बेटी  हूं। ऐसा है आज हम दोनों भी भाभी के खाना बनाकर डाइनिंग टेबल पर आने तक रुक जाते हैं और सब साथ ही खाना खाएंगे। वैसे भी मेरे लिए मेरी माता जी और नीता के विवाह के लिए आप भी लड़के तो देख ही रही हो, कहीं ससुराल में जाकर हमें भी भाभी की तरह इंतजार करना पड़े इसलिए भूखे मरने की आदत तो हम भी डाल ही लें।

बात बेशक हंसते-हंसते कही गई थी, लेकिन नीता की मम्मी को शायद बहुत गहरे तक लगी थी क्योंकि तभी उन्होंने भाभी को भी उन दोनों के साथ बैठकर खाना खाने के लिए कहा और आगे के दोनों दिन जब तक यह घर पर रही सुबह सवेरे डाइनिंग टेबल पर खाना लगने के पश्चात तीनों इकट्ठे ही खाना खाती थीं।

पाठक,गण बहु हो या बेटी, भूख तो सबको बराबर ही लगती है ना? आपका क्या ख्याल है कमेंट्स द्वारा सूचित करें।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा

मैं भी तो एक बेटी हूं, विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी।

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