इतना अभिमान सही नहीं – सीमा सिघी

नित्या तुम दिन भर घर में करती क्या हो। बस थोड़ा बहुत घर का और रसोई का काम बाकी अपने घर की साफ सफाई, बर्तन आदि के काम वो काम वाली बाई करके चली जाती है फिर तो तुम दिन भर बैठी ही रहती हो। 

मैं तो सुबह का निकला शाम को ही घर आ पाता हूं । उसमें भी तुम मुझे कभी किसी चीज के बहाने कभी बच्चों के उलहाने देती रहती हो । देखो मुझे यह सब पसंद नहीं है। 

मैं जब ऑफिस से आता हूं। मैं आराम करना पसंद करता हूं। तुम्हारी यह रोज रोज की किच किच मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। 

कृपया तुम अपनी इन फालतू की बातों में मुझे शामिल न किया करो कहकर राज वहां से जाने लगा। 

राज की कड़वी बातें सुनकर नित्या से रहा नहीं गया और उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े । वह कुछ कहती इसके पहले ही नित्या की सासू मां गरिमा जी बोल उठी। राज यह जो तुम्हें  रोज की किच किच लग रही है उसी से परिवार की हर औरतों को लगभग रोजाना उलझना और सुलझना होता है।

अब यह तुम्हें नहीं तो और किसे कहेगी आखिर तुम उसके पति हो। सात फेरे लिए हैं तुम दोनों ने एक दूजे के साथ। नित्या का इस घर के प्रति जितना फर्ज बनता है । उतना ही तुम्हारा भी बनता है। 

तुम्हें पता है घर किसी एक सदस्य से नहीं बल्कि पूरे परिवार के सदस्यों के मिलजुल कर चलने से ही चलता है क्योंकि इसमें बहुत सारी जिम्मेदारियां होती है । जिसे मिल बांट कर निभानी होती है। 

क्या तुम जानते हो। तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद नित्या के कितने काम होते हैं । चलो आज मैं नित्या के दिन भर की रूटिंग तुमसे साझा करती हूं फिर तुम समझना कि यह दिन भर घर पर करती क्या है ।

यह सुबह उठती है फिर मेरे और तुम्हारे पापा के लिए काढ़ा बनाती है। तुम्हारी चाय फिर बच्चों के और तुम्हारे लिए लंच बॉक्स तैयार करती है और उसके बाद हम सब का नाश्ता तैयार करती है।

 लंच बॉक्स लेकर तुम तो ऑफिस के लिए निकल जाते हो। उसके बाद नित्या का कामवाली बाई आने के पहले ही कपड़े भिगोना बिस्तर उठाना और बच्चों को उनकी बस तक छोड़ना और फिर उसे आते वक्त बाजार से सब्जियां लेते हुए आना होता है।

ये फिर दोपहर के हमारे खाने की तैयारी करती है फिर हमें खिलाकर खुद खाती है और फिर बच्चों को लेके आती है।

उनके कपड़े बदलकर उन्हें खिलाती है । दोपहर में कभी थोड़ा आराम मिला तो मिला वरना कभी नहीं भी मिला। इस बीच हमारे चाय का वक्त हो जाता है।

नित्या चाय का निपटाती है। तब तक बच्चों के तरफ से कुछ हल्का-फुल्का गर्म खाने का आर्डर आ जाता है । उसे पूरा करती है । तब तक तुम आ जाते हो फिर तुम्हारा चाय नाश्ता होता है। नित्या यह सब निपटाती है। 

तब तक तुम्हारा कोई स्पेशल खाने का आर्डर आ जाता है, फिर यह उसे तैयार करने में लग जाती है, फिर हम सबको दूध देकर   बच्चों के स्कूल बैग तैयार करके उनसे रखवाती है और फिर उन्हें दूध देकर सुलाती है। 

तब जाकर उसे बिस्तर नसीब होता है और हां इस बीच पारिवारिक, शारीरिक समस्याओं की उलझने जैसे कभी खुद की अस्वस्थता,कभी काम वाली बाई का न आना, कभी बच्चों को एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में डालना, कभी मेहमानों का आना या कहीं मेहमान बनकर जाना आदि और तुम कहते हो तुम घर पर करती ही क्या हो ।

 आज गरिमा जी इतना कहकर भी रुकी नहीं । वो फिर अपने बेटे राज की ओर देखकर कहने लगी। 

बेशक तुम मेरे बेटे हो,नित्या के पति हो मगर फिर भी तुम नहीं समझ पाए । जो मैं समझ पा रही हूं। राज नित्या तुम्हारी पत्नी होकर इतने अच्छे से इस गृहस्थी को संभाल रही है फिर भी तुम्हारी नजर में इसकी कोई कदर नहीं है । 

सच कहूं तो राज तुम्हारा इतना अभिमान सही नहीं है । जहां तक मैं समझती हूं । गृहस्थी चलाने में पति और पत्नी दोनों की ही बराबर के हिस्सेदारी होती है,जिम्मेदारी होती है ।

जहां एक पति बाहर से धन कमाकर कर लाता है तो वहीं एक पत्नी उसी धन से घर का, परिवार का पालन पोषण करती है। पारिवारिक रिश्तों को संभालती है । यह सब घर पर रहकर एक पत्नी ही कर सकती है। 

अच्छा छोड़ो राज ये बातें। तुम जरा याद करो । तुमने कौन से दिन हमें चाय बना कर पिलाई थी। नहीं न!! मगर नित्या पराए घर से आकर भी हमारी बेटी बनकर अपना झूठा अभिमान छोड़कर तुम्हारी पत्नी बनकर रोज हमें बड़े प्यार से चाय पिला रही है। अपना फर्ज निभा रही है और तुम इसी घर के बेटे होकर भी अपने झूठे और बेमतलब के अभिमान को बढ़ावा दिए जा रहे हो।

 देखो राज मैंने उम्र के इस पड़ाव तक अब तक की जिंदगी में यही अनुभव किया है की एक पति-पत्नी के बीच अभिमान नहीं बल्कि सम्मान को स्थान देना चाहिए कहकर गरिमा जी राज की ओर देखने लगी। 

 राज अपनी मां के मुंह से नित्या की दिनचर्या सुनकर आश्चर्य चकित रह गया क्योंकि उसे तो यह जरा भी अहसास ही नहीं था

की नित्या उसके परिवार को पूरे तन मन से अपना कर खुशी खुशी अपना फर्ज निभा रही है ।

 उसे तो रोज यही लगता था की नित्या घर पर आराम करती है और वह स्वयं दिनभर ऑफिस में काम करता है। आज राज पहली बार नित्या की यह दिनचर्या जानकर अपने अभिमान को त्याग कर बड़े सम्मान के साथ नित्या से इशारे से क्षमा मांगते हुए अपनी मां से कहने लगा। 

मां मुझे आप और नित्या दोनों ही क्षमा कर दीजिए । मां मैं नित्या का गुनहगार हूं। और इसके लिए आज मैं दिल से बार बार आपकी बहू नित्या नहीं,,, आपकी बेटी नित्या से क्षमा मांग रहा हूं कहकर राज नित्या के चेहरे की ओर देखने लगा। 

नित्या ने अपने आंसू पूछते हुए राज को इशारे इशारे में ही क्षमा कर दिया। मगर गरिमा जी मुस्कुराते हुए कहने लगी। मैं तो एक शर्त पर तुम्हें क्षमा करूंगी। 

जब तुम मेरी नित्या को इस इतवार कहीं घुमाने ले जाओ और हां दोनों बच्चों की फिक्र न करना।

 वह हमारे पास ही रहेंगे। राज अपनी मां गरिमा जी की बात सुनकर मुस्कुरा कर कहने लगा।

ठीक है मां आपके इस नालायक बेटे के दिल से अभिमान को विदा करने की खुशी में आने वाला पूरा का पूरा इतवार आपकी बहू और मेरी पत्नी नित्या के नाम कह कर मुस्कुराने लगा।

#इतना अभिमान सही नहीं 

स्वरचित 

सीमा सिघी 

गोलाघाट असम

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