ऑंख भर आना – डाॅ संजु झा

जबसे नीरा ने बेटे की विदेश जाने की बात सुनी है,तब से उसके दिल में  तरह-तरह के ख्याल आने लगें हैं और रह-रहकर उसकी ऑंखें भर जातीं हैं।जिंदगी में बहुत कुछ पा लेने की  होड़ में आज के युवा अपने वतन छोड़कर विदेश जाने से नहीं हिचकते नहीं हैं। मोटी सैलरी ,

एशो-आराम की जिन्दगी की चाहत में सात समंदर पार अपना ठिकाना बनाने‌ लगें हैं।नीरा के मन में अंतर्द्वंद्व की स्थिति  बनी हुई है।बेटे की परेशानी देखकर ईश्वर से प्रार्थना करती हुई कहती -“भगवान जब बेटे ने उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका जाने की ठान ही ली है,तो उसकी इच्छा पूरी करो।”

फिर मन में ख्याल आता है कि कहीं बेटा अमय  खुद ही विदेश जाने से इंकार कर दें!

 पिछले छः महीने से उसका बेटा अमय विदेश  जाने की तैयारियों में जी-जान से जुटा हुआ था।नीरा उसे परेशान देखकर कहती -“बेटा! एक तो कई तरह की परीक्षाऍं

पास करो,उसके बाद इतने सारे पैसों का इंतजाम करो, फिर तरह-तरह की औपचारिकताऍं पूरी करो,तब फिर वीजा का इंतजार!ऐसा भला परदेस जाने का क्या फायदा?अपना देश भी तो तरक्की कर रहा है, युवाओं में विदेश जाने की न जाने कौन-सी ललक बढ़  गई है?”

अमय -“माॅं! अमेरिका की अर्थ-व्यवस्था सबसे मजबूत है।वह सुपर पॉवर है। वहाॅं की शिक्षा-व्यवस्था काफी मजबूत है। वहाॅं युवाओं के सपनों को नई उड़ान मिलती है। फिर क्यों न अमेरिका ठोक-बजाकर गुणवान युवाओं को बुलाऍं,जो उसके देश के विकास में योगदान करेंगे!”

नीरा -“बस कर बेटा! बहुत अमेरिका का गुणगान हो चुका है।कभी मन में सोचा है कि तुम्हारे बिना हम कैसे रहेंगे?”

अमय की बहन रिया -“देखो भाई!माॅं इमोशनल कार्ड खेल रही है।भावुकता में बह मत जाना। मैं तो खुशी -खुशी तुम्हारे वगैर रह लूॅंगी।तुम्हारा प्यार भी  मुझे मिलेगा।” कहते-कहते उसकी ऑंखें भी नम हो उठीं।

अमय के पिता रोहन जी ने माहौल को हल्का करते हुए कहा -“अरे!अभी तो उसका वीजा भी नहीं हुआ है।कहते हैं कि अमेरिका का वीजा मिलना बहुत मुश्किल है और तुमलोग अभी से भावुक हो उठे।”

नीरा मन पर काबू पाने की लाख कोशिशें करती है,पर बार-बार ऑंखें भर ही आतीं हैं।पिछले कुछ समय से वह बेटे की पसन्द का ही खाना बनाती है।बेटी रिया चुहल करती हुई कहती हैं -“माॅं! कभी-कभी मेरी और पापा की पसन्द का भी ख्याल रख लिया करो।”

नीरा -“तुम और तुम्हारे पापा तो कहीं नहीं जा रहो हो? फिर तुमलोगों की ही पसन्द का खाना बनेगा!”

रिया -“मैं भी भाई की तरह पढ़ने अमेरिका फुर्र हो जाऊॅंगी, फिर तुम दोनों एक-दूसरे की पसन्द का ख्याल रखना।”

रीना बेटी के गले लगकर रो उठती है।

रोहन जी भी छिपकर अपनी ऑंखों में आऍं ऑंसू को पोंछकर कहते हैं -“रीना !केवल इमोशनल होने से ही पेट नहीं भरेगा।खाना तो लगवाओ।”

अमय की जुदाई की बात से सभी अंदर -ही-अंदर मर्माहत  हैं।सभी चुप-चाप खाना खाने लगतें हैं।

रीना रसोई समेटकर बिस्तर पर आकर लेट जाती है।उसे उदास देखकर रोहन जी  धीरज बढ़ाते हुए कहते हैं -“रीना!जब बच्चे बड़े हो जाते हैं,तो उनकी सोच,उनकी दुनियाॅं उनके माता-पिता से अलग हो जाती है। माता-पिता अपनी इच्छा उन पर थोप नहीं सकते हैं।बेटे के सपने पूरे करने में मददगार बनो।उसके पैरों में भावुकता की डोर मत बाॅंधो।”

रीना ऑंसू पोंछती हुई कहती हैं -“अगर मैं माॅं न होती,तो आपकी तरह ही सोचती!”

रोहन जी -“अच्छा!अब सो जाओ।कल अमय के लिए बहुत सारी तैयारियाॅं भी करनी है।वीजा के लिए भी जाना है!”

कुछ देर बाद रोहन जी नींद  की आगोश में समा गए, परन्तु नीरा की ऑंखों से नींद गायब हो चुकी थी। बार-बार अमय का बचपन उसकी ऑंखों के समक्ष आकर खड़ा हो जाता है।बचपन में अमय आए दिन बीमार रहता है।एक बार डायरिया होने पर उसकी हालत इतनी नाज़ुक हो गई थी

कि डॉक्टर भी घबड़ा उठे थे।जिस तरह बीमार होने पर अमय उसे एक पल के लिए नहीं छोड़ता था,तो वह भी कहाॅं उसे अपने से पल भर भी दूर करती! बड़े होने पर भी उसका लगाव माॅं से ही ज्यादा ही है। बड़े होने पर भी घर में माॅं!माॅं की शोर मचाए रहता है ।

उसे पढ़ाई छोड़कर और किसी बात की फ़िक्र नहीं रहती है।इतना बड़ा हो गया है फिर भी उसके खाने से लेकर कपड़े की देख-भाल वही करती है।

सात समंदर पार उसके जिगर का टुकड़ा भला कैसे रह पाएगा! बीमार होने पर कैसे अपनी देख-भाल कर पाएगा?परदेस में कहाॅं उसे अपनों का अपनापन मिलेगा?यही सब सोचकर रीना भावुक हो उठी।उसकी ऑंखों से ऑंसुओं की धार अनवरत बहने लगी।पुत्र-वियोग की कल्पना से उसका मन जल बिन  मछली के समान छटपटाने लगा।उसके आहत मन पर कुछ देर  बाद निंद्रा देवी ने कब्जा कर लिया।

अगले दिन अमय को पिता के साथ वीजा ऑफिस जाना था।रीना का एक मन कहता था कि उसे वीजा मिल जाऍं, परन्तु मन के किसी कोने में स्वार्थ हावी होकर सोचता कि वीजा न मिलने पर बेटा तो पास में रहेगा। तुरंत उसका स्वार्थी मन‌ उसे धिक्कारते हुए कहता -” कैसी माॅं है तू,जो अपने स्वार्थ की खातिर बच्चे के सपनों को तोड़ना चाहती है!”

फिर नीरा हाथ जोड़कर ईश्वर से बेटे का सपना पूरा करने की दुआ माॅंगने लगती है।

अगले दिन वीजा दफ्तर से लौटने पर पति और पुत्र का उदास चेहरा देखकर नीरा का कलेजा धक से रह गया।उसने मन-ही-मन खुद को धिक्कारते हुए कहा -“मैं ही स्वार्थवश पुत्र मोह के कारण बेटे का भला नहीं चाहती थी।इसी कारण इतनी मेहनत के बाद भी अमय को  अमेरिका का वीजा नहीं मिला!”

यह सोचकर उसकी ऑंखों से टप-टप ऑंसू गिरने लगें।नीरा की हालत देखकर दोनों पिता-पुत्र ने उसे गले लगकर वीजा दिखाते हुए कहा -“सरप्राइज! अमेरिका का भी वीजा मिल गया है!”

नीरा ने अविश्वासभरी नजरों से पति की ओर देखा।

रोहन जी ने नम ऑंखों से कहा -“नीरा! बेटे की विदाई की तैयारी करो।अब केवल बेटियाॅं ही नहीं,बेटे भी घर से विदा होते हैं!”

बहुत देर तक नीरा बेटे का हाथ पकड़कर बैठी रही।अमय भी माॅं को देखकर भावुक हो उठा।उसने सांत्वना देते हुए कहा -“माॅं! पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं स्वदेश लौट आऊॅंगा।”

नीरा समझ रही थी कि बेटा उसे झूठी तसल्ली दे रहा है।उसके जितने परिचित बच्चे विदेश गए हैं, अधिकांशतः पढ़ -लिखकर वहीं बस गए हैं।

एक सप्ताह बाद अमय को विदेश जाना तय हुआ था।नीरा अपने दिल को पत्थर बनाकर तैयारियाॅं शुरू कर देती है, परन्तु उसकी ऑंखें बिन मौसम बरसात की भाॅंति बरस ही पड़तीं हैं।

देखते -देखते अमय के विदेश जाने का दिन आ पहुॅंचा।सुबह से ही घर में हलचल मची हुई थी।नीरा बेटे की पसन्द का खाना  और पकवान बनाने में व्यस्त थी। माॅं को देखकर अमय की ऑंखें भी बार-बार नम हो उठतीं हैं। उन्हें छुपाते हुए कहता है -“माॅं!इतनी मेहनत क्यों करती हो? विदेश में भी सबकुछ मिलता है!”

नीरा -” बेटा! मैं जानती हूॅं कि तू बहुत बड़ा हो गया है, परन्तु माॅं के हाथों का खाना तो फिर वापस आने पर ही मिलेगा न!”

एक बार फिर से दोनों माॅं -बेटे गले मिलकर सुबक उठते हैं।रिया और रोहन जी जुदाई की कल्पना से तड़प उठते हैं।सभी मिलकर अमय को  दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट छोड़ने जाते हैं ।बेटे को विदा करने समय नीरा उसे अपने आगोश में समेट लेना चाहती है, परन्तु उसे एहसास हो चुका है कि बेटे की बाॅंहों का दायरा उसकी आगोश से काफी विस्तृत हो चला है। अमय को विदा करते समय नीरा,रोहन जी और रिया की ऑंखों में वियोग का समंदर छलछला उठा। एयरपोर्ट के अंदर प्रवेश ‌करते समय अमय को ऐसा महसूस हुआ,मानो उसका कलेजा छिटककर माॅं के पास ही चला गया हो। ऑंसू पोंछते हुए वह अंदर प्रवेश कर गया।नीरा,रोहन जी और रिया बाहर शीशे से  अमय के ओछल होने तक देखते रहें।

अमय के सुखद भविष्य की कामना करते हुए तीनों नम ऑंखों से घर लौट आऍं।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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