सावित्री एक भरे पूरे परिवार का हिस्सा थी पति राघव तीन बेटे विवेक, विनय और मौलिक तीनों बेटों पर सावित्री को बड़ा गर्व था ।वो सबसे यही कहती मेरे बेटे तो राम लक्ष्मण है तीनों एक दूसरे के पूरक है। मैं कौशल्या बच्चे फर्माबदार है ये सोच राघव और सावित्री खुश रहते। सावित्री गाहे बगाहे
आस पास के लोगों को ताने भी देती देखो मेरे बेटों को कैसे मेरी सुनते हैं तुम्हारे बेटों की तरह नहीं।राघव की कपड़ों की दुकान थी जो आज शोरूम में बदल चुकी थी
और तीनों शोरूम पर बेटे बैठते थे पुराने शोरूम पर कभी कभी राघव चला जाता था। सावित्री अब बेटों की शादी करना चाहती थी शहर के करोड़पति खानदानों से लड़कियां देखी गई ।निशि , मिशा और रेवती तीन लड़कियां चुनी गई।बड़ी धूम धाम से शादी हुई ।
सारा शहर आमंत्रित हुआ सब तरफ धूम थी हर किसी की जुबान पर सिर्फ इस शादी के ही चर्चे थे ।राघव जैसे इस शादी का ही इंतजार कर रहे थे। कुछ ही दिनों में उन्हें हार्टअटैक आया और वो गुजर गए।घर में उथलपुथल मच गई और सावित्री अपनी सुध बुध खो बैठी।सारी सत्ता बहुओं के हाथ में चली गई घर में बहुओं का राज था और वो बेटों को भी अपने रंग में रंग चुकी थी
जो बेटे पहले मां मां करते थे वो आज मां को देखना भी नहीं चाहते थे। धीरे धीरे बेटों ने मां को फुसला घर भी अपने नाम कर लिया और उसे बेच कर वो तीनों अपने अपने अपार्टमेंट में शिफ्ट होने वाले थे अब मां का क्या करे और उसे कौन ले जाएगा तीनों बहुओं ने
कहा हम इस फ़सादन को अपने घर लेकर नहीं जाएगी बहुत सुना है कि ये लोगों के घर में आग लगाती थी ना बाबा ना फिर तीनों बेटे बहु ने प्लान बनाया कि मां को हरिद्वार ले जाते है धर्मशाला में रुकेंगे और वही मां को छोड़ कर आ जाएंगे।ऐसा प्लान बना तीनों बेटे मां
को चार धाम यात्रा का कह निकल गए।सबसे पहले हरिद्वार गए वहां पर मां के साथ जिस्में उनके पिताजी ने एक कमरा बनवाने के लिए डोनेशन दी थी।वहां पहुंचते ही कमरा मिल गया चारों ने खाना खाया। सावित्री सबको बता रही थी मेरे तीनों बेटे मुझे
चारधाम की यात्रा पर लाए हैं।रात को सब सोने चले गए।सावित्री के सोने के बाद उसके तकिए के पास एक पैसों का लिफाफा रख वो तीनों वहां से खिसक लिए अगली सुबह जब सावित्री उठी तो वहां कोई नहीं था उसने सोचा बेटे बाहर होंगे वो बाहर तक आई पर कोई नहीं मिला वो वापिस कमरे में आई तो लिफाफा दिखा उसमें नोट थे
और एक खत मा अब आपके साथ हमारा रहना मुश्किल है तो आप पिताजी द्वारा दान किए हुए कक्ष में अपना जीवन यापन करे।सावित्री चक्कर खा कर गिर पड़ी जिन औलादों पर उसे मान था आज उन्होंने उसका मान तो तोड़ा ही जीने की वजह भी छीन ली।वो बहुत देर तक बेहोश पड़ी रही जब होश आया तो वो बिस्तर पर थी और पास में एक लड़की खड़ी थी वो बोली मां आप होश में आ गई अब ठीक है आप ?
मैं काका से बता कर आती हूं।रामप्रसाद जी आए बोले बहन आप ठीक हैं।रामप्रसाद उस धर्मशाला के मैनेजर थे।रामप्रसाद बोले बहन आप आराम करे प्रीति आप के पास ही रहेगी।प्रीति दिन रात सावित्री का ध्यान रखती।सावित्री को तो बेटों का सदमा खाए जा रहा था वो कुछ बोलती नहीं थी बस चुप चाप पड़ी रहती।प्रीति उससे बाते करती पर सावित्री शून्य में निहारती रहती एक दिन प्रीति सावित्री को प्रार्थना सभा में लाई वहां सभी ट्रस्टी
और किस किसने क्या दान दिया उसमें राघव का नाम सुन सावित्री फूट फूट कर रोने लगी वो सिर्फ राघव राघव पुकार रही थी।प्रीति आई उसे संभाला पानी दिया उसको ले गई आज जी भर रोनेंके बाद उसका मन हल्का हुआ उसने प्रीति को सारा वाक्य। सुनाया ।प्रीति बोली मां आप मत रोए मै आपकी बेटी तो नहीं पर बेटी जैसी तो हूँ ना तो आप सब मुझ पर छोड़ दे मै आपको वही सम्मान वापस दिलवाऊंगी।प्रीति सावित्री की
देखभाल भी करती और कुछ समय बाद सावित्री भी धर्म शाला के कामों में भाग लेने लगी ।प्रीति एक बार सावित्री को अपने घर ले गई ।घर क्या महल था ।सेठ दीवानचंद की बेटी थी वो जिनका टिंबर का काम था एक रोड एक्सीडेंट में उनकी और उनकी पत्नी वृंदा की मृत्यु हो गई थी
प्रीति अकेली बिज़नेस भी संभालती थी और खाली वक्त में धर्मशाला भी जाती क्योंकि वो उसके पिता ने ही बनवाई थी।अब सावित्री प्रीति के साथ रहतीं ।प्रीति ने उसे स्मार्ट तरीके से फिर सोसायटी में मूव करने को प्रेरित किया और फिर एक दिन सावित्री अपने पति की दुकान पर शॉपिंग करने पहुंची
सावित्री को देखते ही पुराने नौकर बोले मालकिन आप छोटे बाबू तो बोल रहे थे कि आप चारधाम यात्रा में आप गुजर गई ।हा भैया उनके लिए तो मै उसी दिन गुजर गई थी जिस दिन मेरे पति का देहांत हुआ तभी वहां बड़ा बेटा विवेक आया सावित्री को देख सकपका गया मां आप ।सावित्री बोली कौन मां जिसे तुम छोड़ कर भाग आए थे
विवेक ने दोनों भाइयों को फोन कर बुला लिया मां को देख दोनो सकपका गए बोले मां आप कहा चलीं गई थी मै कही नहीं गई मै वही थी तुम मुझे छोड़ कर भागे थे मेरा भरोसा और विश्वास तोड कर। मै चाहूं तो कोर्ट में चैलेंज कर सकती हूं कि तुमने मेरे साथ धोखा किया है मेरे पति सब मेरे नाम पर कर गए थे
तुमने सब हड़प लिया इसलिए बेटों की कामना करते हैं हम तुमसे अच्छी तो मेरी बेटी है जिससे कोई रिश्ता नहीं होते हुए भी उसने मुझे मान सम्मान दिया और मैं तुम जैसी कृतघ्न नहीं की तुमसे सब हड़प लू आज से तुम भी मेरे लिए मर गए आज से ना मै तुम्हे जानती हूं ना तुम मुझे।
सावित्री बाहर आ गई सारे नौकर तीनों भाइयों को देख रहे थे और वो तीनों शर्म से गड़े जा रहे थे पर अब जो होना था वो हो गया।प्रीति का कन्यादान सावित्री ने किया और अब वो तीनों वही रहते प्रीति सावित्री और आदित्य ।तीनों खुशी खुशी रहते ।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी