बहुत कुछ होते हुए भी पैसा ही सब कुछ नहीं – विमला गुगलानी

नई बहू नवेली का ससुराल में पहला कदम मानों खुशियों की बरसात। सास दिव्या पहले से ही आरती की थाली सजाए खड़ी थी,फूलों का कालीन ,और न जाने कितने प्रकार की रस्मों के साथ नई बहू का गृह प्रवेश।

सब रिश्तेदार ऐसी सुंदर और अमीर घर की  लड़की को दिव्या की बहू बनने पर जहां उसे बधाई दे रहे थे, वहीं अंदर से कुछ को जलन भी हो रही थी। जिस आलीशान फ्लैट में ये सब हो रहा था वो भी तो विहान को दहेज में मिला था।

      विहान के पुराने समय के बने हुए घर में  जहां का पलास्टर कई जगहों से उखड़ा पड़ा था, पंखों से घर्र घर्र की आवाज के इलावा  और भी क्या सब कुछ ही पुराने जमाने का था,

नवेली ने विहान को साफ साफ कह दिया था कि वो उस घर में रहना तो दूर की बात उसे देख तक नहीं सकती। इस बेमेल की शादी पर नवेली के माता पिता भी राजी नहीं थे, नवेली का भाई अखिल तो अड़ ही गया, लेकिन इकलौती बेटी की जिद के आगे सब हार गए।

       वो तो विहान को घर दामाद बनाने को तैयार थे लेकिन अपनी मां और छोटे भाई आयान को छोड़ने के इलावा विहान हर बात के लिए तैयार था। पति की मौत के समय विहान और आयान दस और सात बरस के थे। मायके , ससुराल से कुछ ज्यादा मदद नहीं मिली, दिव्या ने टयूशनें पढ़ा कर,

लोगों के कपड़े सिलकर और पति की नाममात्र की पेंशन से घर भी चलाया और दोनों बेटों को उच्च शिक्षित किया। अभी साल पहले ही विहान की नौकरी लगी और वहीं पर नवेली से मुलाकात और शादी। 

     सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि दिव्या को कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला। आयान का तो एम. बी. ए. का आखरी साल चल रहा था, मकान अपना था, लेकिन खर्चे इतने थे कि उसकी मुरम्मत कभी हो ही नहीं पाई। प्लाट तो बड़ा था लेकिन दो तीन कमरे ही बने थे, इससे पहले कि जिंदगी में खुशहाली आती दिव्या के पति अतुल की एक्टीडैंट में मौत हो गई। सब सपने अधूरे रह गए। 

    ग्रेजुऐशन के बाद दिव्या की जल्दी ही शादी हो गई और फिर विहान और आयान का जन्म। सब अरमान मिट्टी में मिल गए। अब उसका लक्ष्य दोनों बेटों को उच्च शिक्षित करना ही था। जब नवेली का रिश्ता आया तो उसके मां बाप ने सब साफ साफ कह दिया कि उनकी नाजों पली  बेटी इस घर में नहीं रह सकती। 

     नया सुसज्जित फ्लैट , गाड़ी, सब सुख सुविधाएं दहेज में मिली। डोली भी नए घर में आई। एक दो महीने निकल गए। नया जोड़ा हनीमून से आकर वापिस काम पर जाने लगा। दिव्या पहले तो इतने अमीर घर में रिश्ता करने से हिचकिचा रही थी लेकिन अब उसे लगने लगा कि उसके अच्छे दिन आ गए हैं।

     लेकिन जल्दी ही उसका यह वहम दूर हो गया। विहान तो जैसे नवेली के हाथों की कठपुतली बन कर रह गया।लेकिन जल्दी ही नवेली की मनमानियों से वो भी तंग आ गया। वो अपने आगे किसी को कुछ समझती नहीं थी। हर समय मां बाप के पैसे का रौब।

दिव्या भी बहू के व्यवहार से आहत थी, अब विहान को अपनी गल्ती महसूस हो रही थी। किसी के अहसान तले दबने से तो अच्छा है, आदमी कम में ही गुजारा कर ले। 

      नवेली  का घर में होना न होना बराबर था। अब आयान भी काफी अच्छी नौकरी पर लग गया। उसने अपना पुराना घर ठीक करवाया परंतु अभी वो विहान के साथ ही रह रहे थे।

जब तक विहान चुप था सब ठीक रहा लेकिन जब सहन शक्ति खत्म हो गई तो रोज ही उसकी और नवेली की लड़ाई होती। इसी बीच वो एक बच्ची की मां बन चुकी थी। 

     विहान की बेरूखी से तंग आकर वो मायके चली गई। उसने सोचा था कि वो उसे मनाने आएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बेटी के जन्म के बाद नवेली ने नौकरी भी छोड़ दी थी।वहां मायके में भी अब भाई भाभी का राज था। दो साल बीत गए।नवेली को अब समझ आ गया था कि पैसा बहुत कुछ होते हुए भी सब कुछ नहीं। ससुराल अब किस मुंह से जाए। विहान तो उसका फोन भी नहीं उठाता था।बेटी स्कूल जाने लगी थी, विहान उसको दो बार वहीं मिलने आया। 

  आयान की मौसी ने उसके लिए  पढ़ी लिखी , सस्कारीं मिडिल क्लास लड़की का रिश्ता सुझाया। नीति बैंक में कार्यरत थी।सादे से समारोह में शादी होनी निश्चित हुई। नवेली को इस शादी की भनक पड़ चुकी थी। उसे उम्मीद थी कि अब उसे विहान लेने आएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। फ्लैट को ताला लगाकर सब अपने पुराने घर में चले गए थे। 

            शादी की तैयारियां शुरू हो चुकी थी। बारात जाने का समय होने वाला था, रस्में चल रही थी, उनके ये रिवाज था कि भाभी देवर की आंखों में उस समय काजल लगाती है, इस रस्म के लिए मासी की बहू ने हाथ उठाया ही था कि तभी नवेली की आवाज आई,” रूको, आयान की अपनी भाभी ये रस्म करेगी और उसने बिना किसी की और देखे आयान की आखों में काजल की लकीर खींच दी। 

      सब हैरान, लेकिन कुछ कहने सुनने का समय नहीं था। सब गिले शिकवे समाप्त हो गए। पैसे से ज्यादा व्यवहार से कीमत पड़ती है। कुछ समय के लिए पैसों से आंखों पर पट्टी पड़ जाती है, लेकिन वो हमेशा के लिए नहीं रहती। बहुत कुछ होते हुए भी पैसा सब कुछ नहीं है।माता पिता की आर्थिक स्थिति नहीं, बहू का व्यवहार उसे ससुराल में मान सम्मान दिलवाता है। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

वाक्य- माता पिता की आर्थिक स्थिति तय करती है ससुराल में सम्मान-

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