इज़्ज़तदार घराना – सेल्वीन गोहेल

समीर महेरा कम सालों में करोड़ों की संपति के मालिक बन गए थे। वह शहर के इक सब से बड़े इज़्ज़तदार घराने से ताल्लुकात रखते हैं। वह घराना जो प्राण प्रतिष्ठा, अनुशासन, न्याय और वचनो का पालन करने के लिए जाना जाता हैं।

अपनी ऑफिस में काम में व्यस्त थे की, रिसेप्शनिस्ट का फ़ोन आया।

     “सर आपको मिलने कोई महिला आई हैं। वह कह रही हैं, आपसे मिलना बेहद जरूरी हैं। तो क्या करूं अंदर भेज दू?”

     “ठीक है अंदर भेज दो समीरने रिसेप्शनिस्ट से कहा”

     दरवाज़ा खटखटाते हुए महिला बोली “May I come in, sir?”

     “हां अंदर आ जाइए” समीरने कहा।

     काम में व्यस्त समीर महिला को देखकर रुक जाता हैं। वह चेहरा कुछ जान पहचान लगा रहा था।

     “आपने मुझे नहीं पहचाना में निकिता वर्मा” महिलाने कहा।

     समीर सोच में पड़ जाता हैं की, निकिता कॉलेज में कितनी यंग और फिट थी। गुलाब की पंखुड़ियां जैसे होठ, नीली नसीली आंखें, वह घटीला बदन, चहेरे की खूबसूरती किसी चांदनी से कम नहीं थी!

     जब आज़ आंखों के आसपास डाक सर्कल पड़ गए हैं। होठ काले हों गए हैं। गठीला बदन सूख गया हैं। आज़ उसके चहरे को देखकर कोई कह सकता है भला किसी वक्त ईस पर कई लड़के मरते थे।

     “कहा खो गए सर निकिताने समीर से पुछा”

     “कहीं नहीं आओ खुरशी पर बैठो।” समीर ने स्वस्थ हों कर जवाब दिया।

     समीर निकिता के गले में मंगलसूत्र और माथे पर लाल चमकता सिंदूर देखा।

     “निकिता तुम कैसी हो, और ये क्या हाल बना रखा है।”

     निकिताने कहा “ये सब कुछ आपकी वजह से हुआ है।”

     “क्या मेरी वजह से?” गुस्से से समीर पूछता है।

     “मैं यह सब चर्चा करने नहीं आई हूं।” निकितने कहा।

     समीर Pion को बुलाकर चाय नाश्ता मंगवाता हैं मगर निकिता मना कर देती हैं।

     “मुझे चाय नाश्ता कुछ नहीं करना हैं।”

     समीर Pion को वापिस भेज देता हैं।

     “आप जिंदगी में बहुत सफल हो गए हों। आपकी सफ़लता के चर्चे अकसर अखबारों में पढ़ती हूं। आपने अब तक शादी नहीं की? ईतनी अच्छी पर्सनालिटी हैं की कोई भी लड़की आपको मिल सकती हैं। तो फिर अब तक क्यो अकेले रहें हों?”

     “शादी के लिए रिश्ते और लड़किया तो बहुत आई मगर मुझे तुम्हारी जैसी कोई नहीं मिली। में तुझे ढूंढता रहा शहर के कोने कोने में मगर तुम चली गई थी कहा?”

     फिर से बात वही पर आ जाती हैं।

     “समीर जी मैने आपको सच्चे दिल से प्यार किया था। मुझे लगा था की आप मुझसे शादी करके अपना जीवनसाथी बनाओगे, मगर यह भ्रम रिया की बर्थडे पार्टी में टूट गया। मैने आपकी और आपके दोस्तों की बाते सुन ली थीं। आप लोग बाते कर रहे थे की, यह नशीली दवा ड्रिंक में मिलाकर निकिता को पिला देते हैं। जब वह नशे में चक्चूर हों जाएगी फिर हम उसका मज़ा लूटेंगे।”

     “मैने आपको ड्रिंक में नशीली दवा मिलाते हुए अपनी आंखों से देखा था। फिर तो में वहा से अपनी इज्ज़त बचाने भाग खड़ी हुई। दो-तीन दिन तक में बीमार रही। यह सब बातें और हमारे संबंध के बारे में मामा-मामी को पता चला गया था। मेरे मामा इज़्ज़तदार थे, वह यह सहन कर नहीं सके। उन्होंने मेरी कॉलेज पढ़ाई लिखाई सब बंध करावा दिए। मेरे माता पिता तो नहीं थे, बचपन से हॉस्टल में रह कर बड़ी हुई थी। फिर मामी की तबियत ठीक नहीं रहती थी ईस लिए मुझे घर में रहने दिया। वह मेरी जज्बातों को, इच्छाओं को, ख्वाहिशो को क्या समझेंगे भला। उन्होंने मेरे शादी किसी मुझसे बड़ी उम्र के आदमी के साथ करा दी। शादी के बाद वह आदमी मुझ पर शराब पीकर बेहिसाब जुल्म करता था। मारता और पिटता था। फिर उस नर्क में जीने की आदत मुझे पड़ गई। आज़ तुम मेरी हालत देख रहे हों इसकी वजह सिर्फ़ तुम हों।”

     निकिता की आंखे भीग जाती हैं। समीर अपना रुमाल निकाल कर निकिता को देता हैं। निकिता थोड़ी देर बाद ठीक होकर यहां आने की वजह बताती हैं।

     “समीर आपका इक रिश्तेदार अस्पताल में आखरी सांस ले रहा हैं। वह आपसे मिलना चाहता हैं। आपको इसी वक्त मेरे साथ अस्पताल में आना होगा।”

     “कोन है वह?” समीरने पुछा।

     “आप सिर्फ़ अस्पताल आ जाइए वहा सब आपको पता चल जाएगा।”

     पांच साल पहले समीर को अपने इज़्ज़तदार घराने पर घमंड था। अपनी अमीरी पर घमंड था। खूबसूरत लड़कीओ को अपनी दौलत के जोर पर ख़रीद कर अय्याशी करना चाहता था। उसकी दौलत और शहर का सब से बड़ा इज़्ज़तदार घराने की वजह से जिसे वह अपने दोस्त समझता था वह उसकी चमचागिरी करते थे। ईक दिन पिता देवेंद्र महेरा को इन सब का पता चला तो, समीर को घर से निकाल दिया। जाहिर कर दीया यह हमारे इज़्ज़तदार घराने से इसका कोई ताल्लुकात नहीं हैं। 

     समीर सड़क पर आ गया था। उसके दोस्तोंने भी धक्के देकर निकाल दिया। अब वह दर दर भटक रहा था। इक गरीब मजदूर की चौल में साल भर रहा। मेहनत मजदूरी की वहा गरीब चौल मे रहे कर वह इन्सानों की कदर करना सीख गया था। लोगो की परेशानियों महेसुस करने लगा था। ऐसे दिनबदिन कठिन तपस्या के बाद उसने यह मुक़ाम हासिल किया था।

     समीर और निकिता अस्पताल पहुंचते है। वह उसे I.C.U. में इक बुजुर्ग के पास ले जाती हैं। समीर सवाल भरी नजरो से निकिता की तरफ़ देखता है। वहां बैठा इक शख्स समीर को बताता है।

      “यह तुम्हारे पिता है। तुम्हारी माता सिलादेवी जी शंकर से प्यार करती थीं। यह शंकर सिर्फ़ अपनी हवस मिटाना चाहता था। जब सच्चाई सामने आई तब शिलादेवी जी टूट चुकी थी इसी हालात में उसकी शादी देवेंद्र के साथ शीलादेवी जी के परिवार वालोंने करवा दी थी। फिर तुम वहा पेड़ा हुए तो उस इज़्ज़तदार घराने ये राज़ सबसे छुपा दिया था। आज़ तुम्हारे पिता आखरी सांस ले रहे हैं तो वह आपसे माफ़ी मांगना चाहते हैं। बड़ी ही बंद किस्मत हैं उनकी पत्नी तुम्हारी दूसरी मां की, ईस हैवान के जुल्म पांच सालों तक चुपचाप सहन करती रहीं।”

     समीरने धीमी आवाज़ से पुछा “कौन हैं वह?”

     उस शख्स उंगली दिखाकर कहा “यह निकिता तुम्हारी सौतेली मां है और उसके पास में खड़ी तुम्हारी सौतेली बहन हैं।”

     समीर की नज़रे झुक गई। जिसे वह अपना इज़्ज़तदार घराना समझकर घमंड करता था, वह तो उसका था ही नहीं। और उसकी पापों की सज़ा की भुगत रही निकिता को किस मुंह से देखें…

स्वरचित 

सेल्वीन गोहेल

रतनपुर (खेडा)

गुजरात

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