अधिकार कैसा? – रेखा जैन

“अंकिता तुम्हारा भी अधिकार है। तुम भी अपनी इच्छा बोल सकती हो कि तुमको किसके साथ रहना है? ये तुम्हारा हक है!”

“ये कैसा अधिकार जो ये चयन करने में काम आए की मुझे मम्मी के साथ रहना या पापा के? मुझे तो दोनों के साथ रहना है। और अगर उन दोनों को मेरी परवाह होती तो तलाक़ ही क्यों लेते?” अंकिता की आवाज में आक्रोश था।

अंकिता एक 16 वर्षीय किशोरी है। जिसके मम्मी पापा दोनों अच्छी जॉब करते है। उसका एक छोटा भाई भी है, 10 साल का, अक्षांश।

अंकिता के मम्मी पापा बहुत पढ़े लिखे सरकारी नौकरी में उच्च पदस्थ है। समाज में उनकी काफी इज्जत है।

उसके पापा विवेक और मम्मी सोनाली की लव मैरिज है। शादी के शुरुआत के कुछ सालों तक उनकी जिंदगी में सब ठीक था। लेकिन समय गुजरने के साथ उनमें आपस में झगड़े बढ़ने लगे।

हर पार्टी में दोनों “परफेक्ट कपल” कहलाते थे। लोग उन दोनों की जोड़ी को देख कर रश्क किया करते थे।

लेकिन उनकी निजी जिंदगी में सच्चाई इस सबसे हट कर है। छोटी छोटी बातों में दोनों एक दूसरे से झगड़े पर उतर जाते है। दोनों में से कोई भी झुकना नहीं चाहता है।  

दोनों को ही अपनी पढ़ाई, नौकरी, और पद का गुमान है।  

अंकिता की मम्मी सोचती है,

“हर बार मैं ही क्यों झुकूं। कौनसा मैं इनके पैसे का खाती हूं। मैं खुद कमाती हूं और अपने पैसों का खाती हूं फिर क्यों इनका रौब सहन करूं?”

इनके घर में रोज पूजा के मधुर स्वर नहीं गूंजते है बल्कि दोनों की तकरार से दिन की शुरुआत होती है। 

इंसान घर आता है सुकून पाने के लिए लेकिन ये दोनों घर आते है दिन भर की भड़ास एक दूसरे पर उतारने के लिए। कई बार तो दोनों की लड़ाई हाथापाई पर उतर जाती है।

इनके झगड़ों की वजह से दोनों बच्चे भी सहमे सहमे से रहते है। उनके मम्मी पापा के पास अपने बच्चों के साथ दो पल गुजारने का समय नहीं है।

बच्चे आया के भरोसे पल रहे है। रविवार के दिन तो दोनों बच्चे सोचते है,

“रविवार को भी ऑफिस होना चाहिए जिससे ये दोनों घर पर ही नहीं रहे और कम से कम झगड़ेंगे!”

एक दिन छोटी सी बात पर उन दोनो झगड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गया तो उसके पापा उसकी मम्मी को धक्का दे कर ऑफिस चले गए।

उसकी मम्मी उठी, अपने आंसू पोंछे, बच्चो को आया के भरोसे छोड़ कर ऑफिस निकल गई। उस दिन उसकी मम्मी की आंखों में एक निर्णय लेने की चमक थी। उनके कदमों में एक अलग ही स्थिरता थी। 

उनके चेहरे के हाव भाव देख कर दोनों बच्चे किसी अंजाने भय से भयभीत हो गए थे।

शाम को जब उसके पापा विवेक घर आए तो उसकी मम्मी सोनाली सामने सोफे पर बैठ गई। वो अपनी उंगलियों को मोड रही थी।

“कुछ कहना चाहती हो?” विवेक ने ध्यान से उसके हाव भाव देख कर पूछा।

“हां!! हमारे नित्य के झगड़ों से मैं बहुत परेशान हो गई हूं! और इन झगड़ों से छुटकारा पा कर सुकून से जीना चाहती हूं!”

“तो मैं कौनसा इन झगड़ों से खुश हूं? मैं भी अपनी जिंदगी में सुकून चाहता हूं!”

“इसलिए मैं तुमसे तलाक़ चाहती हूं!” सोनाली ने बात साफ की।

“क्या?” विवेक ये सुन कर भौचक्का रह गया।

दरवाजे के पीछे छुपे दोनों बच्चे भी सहम गए।

“तलाक़! तो फिर बच्चों का क्या होगा?”

“वो भी मैंने सोच लिया है। अक्षांश अभी छोटा है, उसे मेरी जरूरत है इसलिए मैं उसे अपने साथ रखूंगी और अंकिता को आप रख लेना!” सोनाली ने फैसला सुना दिया।

दोनों बच्चों ने कस कर एक दूसरे के हाथ पकड़ लिए जिससे उनको कोई जुदा ना कर पाए।

“ठीक है! जब तुमने फैसला ले ही लिया है तो मुझे क्या आपत्ति है। मैं भी अब चैन से रह सकूंगा।”

“हां फिर तुम अपनी कलीग के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए आजाद हो जाओगे!” सोनाली कड़वाहट से बोली।

“तलाक़ के बाद ये सब बातें तुम्हे सोचने की जरूरत नहीं है कि मैं किसके साथ कहां जाता हूं! और जैसा तुमने सोचा है वैसा ही होगा अक्षांश तुम्हारे साथ और अंकिता मेरे साथ रहेगी!”

“दीदी किसी ने हम दोनों से नहीं पूछा कि हम किसके साथ रहना चाहते है! दीदी मैं तो आपके और मम्मी पापा तीनों के साथ रहना चाहता हूं! मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा!” नन्हे से अक्षांश ने अंकिता से लिपटते हुए कहा। तब अंकिता ने उसे दुलार कर सुला दिया।

कुछ दिनों बाद विवेक और सोनाली का तलाक़ का केस चला तो अदालत में जज साहब ने अंकिता से पूछा,

“अंकिता तुम्हारा भी अधिकार है। तुम भी अपनी मर्जी बोल सकती हो कि तुमको किसके साथ रहना है? ये तुम्हारा हक है!”

तब अंकिता ने जवाब दिया,

“ये कैसा अधिकार है जो ये चयन करने में काम आए की मुझे मम्मी के साथ रहना या पापा के? मुझे तो दोनों के साथ रहना है। और अगर उन दोनों को मेरी परवाह होती तो तलाक़ ही क्यों लेते? एक दूसरे के साथ सामंजस्य बैठा कर हंसी खुशी जीवन जी सकते है न! मुझे ये समझ नहीं आता कि जिन आदमी औरत में अहंकार ज्यादा होता है, जो एक दूसरे के सामने झुकना नहीं चाहते,,वो बच्चे पैदा ही क्यों करते है? और बच्चे हो जाने के बाद वो उन बच्चों की जिंदगी के बारे में ना सोच कर स्वयं के ही अहंकार में डूबे रहते है और तलाक़ ले कर बच्चों को उनके हाल पर छोड़ देते है। जब वो बच्चों की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते है तो बच्चे पैदा ही क्यों करते है?” अंकिता की आवाज में आक्रोश था।

अंकिता की बात ने अदालत में मौजूद हर शख्स के दिल को झकझोर दिया। सोनाली और विवेक की नजरें अपराधबोध से झुक गई।  

दोनों ने एक दूसरे को देखा, नजरों ही नजरों में गिले शिकवे हुए और दोनों उठ कर अंकिता के पास आ गए और जज साहब से कहा,

“जज साहब हमें तलाक़ नहीं चाहिए। हम हमारे बच्चों को माता पिता चुनने का अधिकार नहीं देना चाहते बल्कि जीवन में सिर उठा कर जीने का अधिकार देना चाहते है।”

और उन्होंने अपने दोनों बच्चों को गले से लगा लिया। ये देख कर अदालत में मौजूद हर व्यक्ति के होंठो पर मुस्कान थिरक गई थी।

रेखा जैन

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