गुलाबी तौलिया – गीता वाधवानी

पालम गांव के अस्पताल के एक बिस्तर पर पड़ी नैना, जिसने कल ही एक लड़की को जन्म दिया था, उसे उसकी सास माया आग्नेय नेत्रों से घूर रही थी। ” कहा कहां था ना पहला बच्चा लड़का ही होना चाहिए, हमारे खानदान का वारिस, हमारे यहां न जाने कितनी पीढियों से पहली संतान पुत्र के रूप में जन्म लेती आई है ,

इस कलमुही ने लड़की पैदा करके रख दी। मुझे तो अपने बेटे की संतान लग ही नहीं रही, जरूर इसने कहीं मुंह काला किया है। अब तू इसे लेकर चली जा मायके, या इसे खत्म कर दे, हमें ना तू चाहिए और ना तेरी बेटी। ” 

 नैना जो अब तक चुप थी, उसने कहा-” मां जी, आप कैसे लांछन मुझ पर लगा रही हैं। बेटा और बेटी पैदा होना तो भगवान के हाथ में है और आजकल तो कोई इनमें फर्क भी नहीं करता। आप कैसी घटिया बातें कर रही हैं।” 

 चुप कर बेशर्म, अगर घर आना हो तो इससे छुटकारा पाकर आना। ऐसा कहकर माया चली गई। 

 नैना का पति मां के आगे कुछ बोल नहीं पाता था। नैना को पता था कि उसकी सास उसके मायके की गरीबी का फायदा उठा रही है। वे बेचारे दोनों को कहां से पाल सकते थे। 

 रात के अंधेरे में नैना ने बिटिया को उठाया और निकल पड़ी पैदल दूर बहुत दूर, न जाने कहां चलती जा रही थी। 

 जब उसे लगा कि वह बहुत दूर निकल आई है तो उसने शहर की ओर जाने वाली सड़क पर बीच रास्ते में बिटिया को गुलाबी तौलिए में लपेटकर लिटा दिया और उसके गले में काले धागे में दुर्गा माता की चांदी की लॉकेट पहना दी। बस यही तो उसके मायके वाले दे पाए थे उसकी शादी में। उसके बाद वह स्वयं पास के एक खेत में छुपकर बैठ गई। सुबह होने वाली थी। 

       कुछ देर बाद शहर की तरफ जाती हुई एक मोटरसाइकिल वहां रुकी। उसे पर एक औरत एक और एक आदमी बैठे थे। उन्होंने बाइक रोक कर बच्ची को गोद में उठाया और आवाज लगाई, कोई है यहां, सड़क पर यह किसका बच्चा है? ” 

 कोई जवाब न मिलने पर उसे औरत ने जिसका नाम सुमन था, उसने अपने पति जतिन से कहा, ” हम गुरुजी से संतान के बारे में ही बात करने जा रहे थे, क्यों ना हम इसे अपने पास रख ले। ” 

        जतिन -” ऐसे कैसे हम अपने पास रख सकते हैं, न जाने किसका बच्चा है, कहीं हम फंस ना जाए। ” 

 सुमन-” कुछ नहीं होगा, प्लीज आप मान जाइए, वैसे भी तो हम अपने गांव से शिफ्ट होकर जनकपुरी में बसने वाले हैं, बस घर पूरा बनकर तैयार होने की देर है,   सिर्फ 15 -20 दिनों की तो बात है, किसी को यह बच्चा नहीं चाहिए था , तभी तो उन्होंने सड़क के बीच में रखा होगा, अगर बेटा होता तो कोई नहीं रखता। ” 

       नैना खेत में छुपकर सब कुछ सुन रही थी लेकिन कुछ कुछ बातें उसे ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी। जतिन ने कहा -” अच्छा ठीक है सुमन। ”  

 नैना ने सुमन शब्द ठीक से सुना था। 

 उसे इस बात की तसल्ली थी कि कम से कम मेरी बेटी जीवित तो रहेगी। उसकी आंखों में उसकी मासूम छवि बस गई थी, गुलाबी तौलिए में लिपटी, जिसके कोने पर उसने अपने हाथों से कढ़ाई करके” ज” लिखा था, उसने सोचा था अगर बेटा हुआ तो जय नाम रखेगी और बेटी हुई तो नैना की ज्योति। 

       सुमन और जतिन बच्ची को लेकर वापस गांव वाली सड़क पर चले गए और नैना जल्दी-जल्दी घर की तरफ चल पड़ी क्योंकि उसे पता था कि उसे लेने अस्पताल कोई नहीं आएगा। घर जाकर उसने कह दिया की लड़की मर गई। उसे पता था कि अब कोई कुछ नहीं पूछेगा। उनके लिए तो बला टली। 

      और उधर सुमन और जतिन बच्ची को पाकर बेहद खुश थे, उनके जीवन में खुशियों की बहार आ गई थी। उन्होंने बच्ची का नाम रखा था खुशी। थोड़े दिनों बाद में जनकपुरी में रहने लगे। बरस पर बरस व्यतीत होते गए और खुशी यूपीएससी की परीक्षा पास करके आई ए एस अधिकारी बन गई थी। कुछ साल बाद उसकी पदोन्नति हुई और वह डी एम बन गई। 

 इतनी कम आयु में उसकी पदोन्नति हुई, यह जानकर  चैनल वाले उसका साक्षात्कार लेने आए और यह इंटरव्यू टीवी पर दिखाया गया। उसके समझदार हो जाने पर सुमन और जतिन ने उसे सड़क से उठाकर पालने की पूरी बात बता दी थी। और उसे उसका लॉकेट भी दे दिया था। 

 इंटरव्यू के दौरान खुशी ने अपना लॉकेट दिखाते हुए कहा -” न जाने क्यों मेरे घर वालों ने मुझे सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया था, तब मेरे मम्मी पापा मेरे लिए भगवान बनकर आए और मेरा पालन पोषण किया, तब मेरे गले में यह लॉकेट था, मेरे लिए मेरे मम्मी पापा ही सब कुछ है। ” 

 यह समाचार नैना,उसके पति और उसकी सास ने भी देखा था। खुशी को कलेक्टर बना हुआ देखकर, नैना ने डरते डरते अपनी सास को बताया कि यह मेरी बेटी है। मैंने उसे मारा नहीं था। उसकी सास माया को पोतों की चाहत थी, दो पोते हुए, लेकिन नाम बदनाम कर दिया। कभी चोरी चकारी करते पकड़े जाते, लड़ाई झगड़ा करते । 

 अपनी पोती को कलेक्टर बन देखकर, माया, नैना से कहने लगी” बहु यह तो तूने बहुत अच्छा काम किया, मेरी तो मत मारी गई थी, चलो अब उठो तुम दोनों हम अपनी बेटी को वापस लेकर आते हैं। खुशी से मिलने का मन नैना का भी था लेकिन वह सास की लालच को समझ रही थी। उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। उसने मना कर दिया। 

 लेकिन माया नहीं मानी। वे लोग खुशी का पता लगाते लगाते उसके घर पहुंच गए। माया खुशी से कहने लगी-” तू हमारी पोती है, घर वापस चल, तू बहू से कहीं खो गई थी। ” 

 सुमन और जतिन ने कहा-” हम आपकी बात कैसे मान सकते हैं कि यही सच है, कलेक्टर बना सुनकर तो कोई भी ऐसा कह सकता है। ” 

    तब नैना ने गुलाबी तो लिए वाली बात बताई। और यह भी बताया कि सुबह होने वाली थी आप दोनों आए,शहर की तरफ जा रहे थे लेकिन बच्ची को उठाकर वापस गांव की तरफ चले गए। सुमन को सब कुछ सच लग रहा था। उन्होंने पूछा कि आपने बच्ची को ऐसे सड़क पर क्यों रखा था। 

 नैना-” मेरी सास ने मेरे चरित्र पर उंगली उठाते हुए कहा था कि यह बच्ची हमारी नहीं है और इसे खत्म कर दो, मैं चाहती थी कि यह जीवित रहे। ” 

     सुमन और जतिन को सारी बातें सच लगी लेकिन उन्होंने खुशी पर कोई दबाव नहीं डाला और सारा फैसला उस पर छोड़ दिया। 

 खुशी ने कहा-” पहले आपने मुझे नाजायज कहकर मारना चाहा, मैं आपको बोझ लग रही थी, आपको पोतों की इच्छा थी, और जब आपको पोते हुए और वह बिगड़े हुए निकले, तब आपको मेरी याद आई, मान लीजिए अगर दोनों सुधरे हुए निकलते, तब तो शायद आपको मेरी याद आती ही नहीं और अब आप आई है मुझ पर अधिकार जताने, क्योंकि मैं कलेक्टर बन चुकी हूं, आपका अब मुझ पर अधिकार कैसा? मैं तो शायद सड़क पर ही मर जाती, अगर मम्मी पापा ने उठाकर मुझे पाला ना होता। मेरे लिए तो यही भगवान है और मैं हमेशा इन्हीं के साथ रहूंगी,आप लोग यहां से जा सकते हैं। ” 

 सुमन ने खुशी को ऐसी भावपूर्ण नजरों से देखा कि मैं समझ गई की मम्मी क्या कहना चाहती है। क्योंकि सुमन नैना के बारे में सोच रही थी। 

 तब खुशी ने कहा-” अगर मेरे मम्मी पापा चाहेंगे, तो मैं कभी अपने पैदा करने वाली मां से मिलने आ जाऊंगी, बस इससे ज्यादा मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकती। ” 

 नैना तो यह सुनकर इतनी खुश हो गई कि मानो उसे कोई खोया हुआ खजाना मिल गया हो। खुशी को ढेरों आशीर्वाद देती और सुमन और जतिन को धन्यवाद देती हुई,वह वहां से चली गई। 

 स्वरचित,अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

# अधिकार कैसा

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