दिखावटी रिश्ता – सीमा सिंघी

दफ्तर में बहुत कम लोग रह गए थे,अधिकतर केबिन खाली हो चुके थे। यादवी ने भी यह सब देखकर अपनी फाइलें समेटी और उठ खड़ी हुई।

 जैसे ही केबिन से निकलने को हुई अचानक उसके बॉस रवि आ गए । जिन्हें देखकर यादवी ठहर गई। रवि फिर यादवी की तरफ देखते हुए बोल पड़े। क्या बात है यादवी? 

देख रहा हूं इन दिनों तुम ऑफिस में देर तक काम करने लगी हो।  क्या कोई मजबूरी है या फिर कोई और बात ? अगर मुझे कहना चाहो तो कह सकती हो। बॉस की बात सुनकर यादवी इतना ही बोल पाई।

 नहीं सर ऐसी कोई मजबूरी नहीं है, बस इन दिनों काम थोड़ा ज्यादा बढ़ गया है, तो उसे ही निपटाने में थोड़ी देर हो जाती है। बस अभी निकलती हूं कह कर यादवी जाने लगी। 

मगर रवि फिर कहने लगे। कौन सा नया काम यहां ऑफिस में तो उतनी ही फ़ाइलें तुम्हें दी जाती है। जितनी तुम रोज निपटाते आई हो। देखो मैं फिर कहता हूं, शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं क्योंकि इन दिनों मैं देख रहा हूं। तुम ऑफिस आती भी जल्दी हो और जाती भी लेट से हो । तुम्हें देखकर लगता है, तुम्हें अब घर जाने की कोई जल्दी नहीं है।

 जबकि कुछ दिन पहले तक तुम बड़ी खुश रहती थी मगर मैं नहीं जानता इस बीच तुम्हारे साथ क्या हुआ या क्या हो रहा है या क्या हो चुका है। जिसकी वजह से तुम ऑफिस में भी तनाव में रहती हो। देखो यादवी उस तनाव की वजह तुम निसंकोच होकर मुझसे कह सकती हो क्योंकि जहां तक मैं समझता हूं किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए उसे सांझा करना जरूरी होता है।  मैं यह सारी बातें तुमसे तुम्हारे बॉस होने के नाते नहीं बल्कि तुम्हारा मित्र बनकर तुमसे पूछ रहा हूं। 

 रवि के मुंह से इतने सहानुभूति के शब्द सुनकर यादवी थोड़ी सहज हुई और फिर कहने लगी। 

सर हमारे घर पर हम कुल चार सदस्य हैं। जिसमें एक भाई पिता और मां है । मैं पहले मां की संतान हूं। शुरुआती दिनों में तो सब ठीक ही रहा, मगर जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई। मेरी मां की नजरों में मैं बोझ बनती गई और इसी के चलते मुझे उनके प्यार से भी सदा वंचित रहना पड़ा, फिर भी यहां तक तो ठीक था। मगर  अब तो मेरे पिता भी मुझे अपना बोझ समझने लगे। 

अब घर का हाल यह है कि वह तीनों अपना बोझ उतारने के लिए मुझे मुझसे पंद्रह वर्षीय ज्यादा उम्र के उस विवाहित इंसान के साथ मेरा गठबंधन करने को तैयार हो गए हैं। जिसकी पत्नी कुछ दिन पहले गुजर चुकी है। मैं यह समझ नहीं पा रही हूं कि अब किधर जाऊं, कहां जाऊं ।

मगर इतना जरूर जानती हूं कि मुझे यह विवाह किसी हाल में भी मंजूर नहीं है। सच कहूं तो हमारा रिश्ता अब सिर्फ दिखावटी रिश्ता बनकर रह गया कहते कहते यादवी की आंखे भीग गई।

यादवी की ऐसी बातें सुनकर रवि का दिल भर आया क्योंकि जब से यादवी उसकी ऑफिस में काम करने लगी थी। उसी दिन से रवि उसे मन ही मन पसंद करने लगा था, मगर कभी कुछ कहा नहीं। 

आज उसने ठान लिया कि वह अभी अपने मन की बात अब यादवी से कह कर रहेगा और फिर वो तुरंत यादवी से बोल उठा। यादवी सबसे पहले तुम मुझे सर कहना छोड़कर सिर्फ रवि बुला सकती हो और फिर चलो मेरे साथ सबसे पहले हम चाय पियेंगे कहकर रवि दफ्तर के ही केबिन की ओर चल पड़ा और पीछे-पीछे यादवी भी क्योंकि इस वक्त यादवी को भी एक कप चाय की बड़ी जरूरत थी इसीलिए उसने भी तुरंत अपनी स्वीकृति दे दी और जाकर दफ्तर के केबिन में बैठ गए।

चाय पीते पीते ही रवि बोल उठा । सुनो यादवी मैं तुम्हें अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहता हूं। क्या तुम्हें स्वीकार है और हां अपने माता-पिता भाई की बातें सब भूल जाओ।

तुम्हारे पिताजी से मैं बात करूंगा मगर सबसे पहले मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो।

यादवी रवि की बात सुनते ही एकाएक शर्मा गई क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उसके रवि सर उसे पसंद कर सकते हैं क्योंकि वह तो एक बहुत ही साधारण घर से थी और उसके रवि सर पूरी ऑफिस के मालिक। 

एकाएक उसे अपनी जिंदगी बदलती हुई नजर आई। उसने ऊपर वाले को मन ही मन धन्यवाद दिया और फिर वो इतना ही बोल पाई। जी सर। यादवी की बात सुनते ही रवि खुशी के मारे तुरंत बोल उठा अरे फिर सर… नहीं यादवी सिर्फ रवि और मैं तुम्हें इतना यकीन दिलाना चाहता हूं ।

 हमारा रिश्ता कभी दिखावटी रिश्ता नहीं होगा बल्कि एक सम्माननीय और प्रेम भरा रिश्ता होगा कहकर रवि बड़े सम्मान की नजरों से यादवी को देखने लगा। 

जी रवि हमारा रिश्ता दिखावटी रिश्ता नहीं होकर एक सच्चा रिश्ता होगा । जिसमें मैं पूरी तरह समर्पित रहूंगी कहकर यादवी ने अपनी नजरें झुकाली और मन ही मन ऊपर वाले को फिर धन्यवाद देने लगी क्योंकि आज उसके रवि सर के चलते अपने पुराने दिखावटी रिश्ते से उसका दामन जो छूटने वाला था।

स्वरचित 

सीमा सिंघी

गोलाघाट असम

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