सर्वगुण संपन्न भाभी – हेमलता गुप्ता

क्लास ख़त्म होते ही कॉलेज की घंटी बजी तो सब लड़कियाँ अपने-अपने ग्रुप में फुसफुसाते हुए बाहर निकलने लगीं। कैम्पस के बीचोंबीच लगे पुराने पीपल के पेड़ के नीचे रिया अपनी दो सहेलियों—साक्षी और मान्या—के साथ खड़ी थी। तीनों के हाथ में किताबें थीं, पर बात किसी और ही विषय पर चल रही थी।

“अच्छा रिया, वो तेरी नई भाभी कैसी है?” साक्षी ने आंख दबाकर पूछा, “उस दिन शादी में तो बस दूर से ही देखा था, लाल साड़ी में कितनी ग्रेसफुल लग रही थी। मम्मी तो आज भी उनकी ही तारीफ़ करती रहती हैं—‘देखो रिया की भाभी कितनी सलीकेदार है…’ तू खुद बता, सच में उतनी ही परफेक्ट है क्या?”

रिया ने होंठ भिंचे और चुटकी लेते हुए बोली,
“अरे, बस दिखावा है सब। दो महीने हुए हैं आए, अभी सबको अच्छा ही लगेगा न! असली रंग तो बाद में दिखता है। घर के काम में भी बस ठीक-ठाक है, और पढ़ाई-वढ़ाई… वो तो बस कहने के लिए। एमबीए कर लिया तो क्या, दिमाग तो कोई ख़ास चलता नहीं उनका।”

मान्या ने हैरानी से पूछा,
“पर शादी में तो सब कह रहे थे कि तेरी भाभी कॉर्पोरेट में अच्छी पोस्ट पर हैं, और साथ में घर भी कितना अच्छे से संभालती हैं।”

रिया ने हल्की हँसी के साथ बाल झटकते हुए कहा,
“अरे, ये सब लोग तो ज़रा-सा सज-धज कर बात कर लो तो आसमान पर चढ़ा देते हैं। असलियत तो मुझे पता है न। दो रोटियाँ टाइम पर न बनें, तो मम्मी मेरे पास ही दौड़कर आती हैं: ‘रिया, ज़रा आकर देख ले…’
और रही पढ़ाई की बात—तो तुम दोनों भूल रही हो कि हमारे कॉलेज की टॉपर कौन है?
कितने साल से फर्स्ट आई हूँ मैं? भाभी जितना पढ़ी-लिखी होंगी, उससे ज़्यादा तो मैं प्रैक्टिकल हूँ।”

साक्षी ने हँसते हुए कहा,
“अच्छा बहन, तू तो सुपरवुमन है, ये तो हम मानते ही हैं। पर सच बोलना, थोड़ा-बहुत तो जलन तो नहीं हो रही? सब लोग बस भाभी–भाभी करते हैं, तेरे नाम की तारीफ़ घट गई होगी न?”

रिया ने तुरंत झटके से कहा,
“ज़रा भी नहीं। मुझे क्या फ़र्क पड़ता है किसी की तारीफ़ से? बस मुझे ग़लत बातें पसंद नहीं, इसीलिए बोल देती हूँ। तुम लोग चाहो तो आकर खुद देख लो असली रूप उनकी, सारा भेद खुल जाएगा।”

तीनों हँसते-बतियाते कॉलेज के गेट तक आए और फिर अपनी-अपनी बस की ओर बढ़ गए, पर रिया के मन में हल्की-सी टीस उठी।
जब से आरती भाभी इस घर में आई थीं, घर का माहौल सचमुच बदल गया था।
पापा औऱ मम्मी के चेहरे पर एक नया सुकून था।
सूरज में हल्की परछाईं की तरह जहाँ पहले रिया ही घर की ‘सबसे समझदार’ बेटी मानी जाती थी, अब हर बात पर आरती का उदाहरण दिया जाने लगा था—

“देख रिया, आरती कैसे बिना कहे सब समझ जाती है।”
“आरती बहू कितने अच्छे से बात करती है सब से, कुछ सीख ले उससे…”

रिया यह सब सुनती तो मुस्कुरा देती, पर भीतर कहीं न कहीं उसे लगता जैसे कोई उसकी जगह धीरे-धीरे ले रहा है।

उस शाम जब वह घर पहुँची तो ड्राइंग रूम में हल्की-सी खुशबू तैर रही थी—चाय और इलायची की मिश्रित खुशबू।
आरती भाभी सोफ़े पर बैठी थीं, गोद में मम्मी के पुराने एल्बम, बगल में पापा।
तीनों हँसते-हँसते पुरानी तस्वीरों की बातें कर रहे थे।

“आ गई रिया?” आरती ने मुस्कुराकर कहा, “आओ, देखो तुम्हारे बचपन की फोटो निकाल रखी हैं मम्मी ने। तुम तो छोटी–सी गुड़िया लग रही हो यहाँ।”

रिया ने बैग सोफ़े पर पटकते हुए कहा,
“दिनभर कॉलेज में गुड़िया–गुड़िया बनकर नहीं घूमती मैं, भाभी। फोटो तो बाद में देख लूँगी, पहले थोड़ा रेस्ट करना है।”

मम्मी ने रिया की तरफ़ देखा,
“अरे, भाभी कितने प्यार से बुला रही है, दो मिनट बैठ भी नहीं सकती क्या?”

रिया ने आँखें तरेरते हुए कहा,
“मम्मी, मैं छोटा बच्चा नहीं हूँ कि तस्वीरें दिखाकर मुझे बहलाया जाए। दिनभर थकान रहती है, आप लोग समझा करो ज़रा।”

वातावरण एक पल को शांत पड़ गया।
आरती ने बात बदलते हुए प्यार से कहा,
“ठीक है, तुम रेस्ट कर लो। बाद में साथ में चाय पीते हैं। तुम्हारे लिए अदरक वाली चाय रख देती हूँ।”

रिया बिना कुछ बोले अपने कमरे में चली गई।
दोपहर की चाय उसने अकेले ही पी, और शाम तक पढ़ाई का बहाना करके कमरे से बाहर नहीं निकली।

अगले रविवार को मम्मी ने कहा,
“रिया बेटा, कल संध्या को तुम्हारी बुआ जी का फोन आया था। उनकी बेटी यानी तुम्हारी मीनल दीदी शहर आई है ट्रेनिंग के सिलसिले में। परसों का छुट्टी का दिन निकालकर यहाँ आएगी।
तू और आरती मिलकर कोई अच्छा–सा स्नैक्स प्लान कर लेना।”

रिया चौंक पड़ी,
“मीनल दीदी आएंगी? वाह! कॉलेज के टाइम की कितनी फेवरेट दीदी थीं वो। मैं सब तैयार रखूँगी, मम्मी, आप चिंता न करें।”

आरती मुस्कुरा कर बोली,
“बहुत अच्छा, मैं भी हेल्प करूँगी। मीनल दीदी से मेरी मुलाकात तो बस शादी में ही हुई थी, ठीक से कभी बैठकर बात नहीं हुई। अच्छा लगेगा सब साथ बैठकर।”

रिया के होंठों पर हल्की–सी मुस्कान आई, पर मन में वहीं पुरानी टीस—
“फिर भाभी के गुणों का गुणगान होगा, मीनल दीदी भी वही कहेंगी जो सब कहते हैं।”

मीनल दीदी ने अगले दिन आने का समय मेसेज कर दिया था।
सुबह से ही घर में हलचल थी।
मम्मी किचन में थीं, आरती ने फटाफट लिस्ट बनाई—
“रिया, तू प्लीज़ मार्केट से ताज़ा ब्रेड ले आना। मैं तब तक पास्ता सॉस और टिक्की का आलू तैयार कर लूँगी। मीनल दीदी को नर्म–नर्म टिक्की ज़रूर पसंद आएगी।”

रिया ने हल्का सा नाक सिकोड़ा,
“सब कुछ तुम ही कर लो न, भाभी। मैं जाऊँगी तो देर हो जाएगी, वैसे भी मेरा प्रोजेक्ट बाकी है।”

“कोई बात नहीं,” आरती ने सहजता से जवाब दिया, “मैं पापा के साथ चली जाऊँगी। तुम प्रोजेक्ट कर लो आराम से।”

रिया को लगा, मानों उसकी अनुपस्थिति का किसी को फर्क ही नहीं पड़ता।
वह किताब खोलकर बैठी तो रही, पर ध्यान बार-बार किचन की तरफ़ चला जाता, जहाँ से हँसी, बर्तनों की खनखनाहट और मसालों की खुशबू आ रही थी।

दोपहर बाद दरवाज़े की घंटी बजी।
रिया भागकर बाहर आई तो देखा—दरवाज़े पर मीनल दीदी के साथ दो और लड़कियाँ खड़ी थीं।
एक ने जींस और कुर्ता पहना था, दूसरी ने साधारण–सा सलवार–सूट।

“अरे, ये तो तुम्हारी कॉलेज वाली दोस्त रिद्धि है न?” मम्मी ने पहचानकर कहा, “और ये…?”

“मौसमी,” रिद्धि ने हँसते हुए कहा, “हम तीनों साथ training कर रहे हैं। सोचा, छुट्टी है, तो भाभी के यहाँ साथ में घूम आएँ। वैसे भी रिद्धि तो कई बार आपके घर की तारीफ़ कर चुकी है।”

रिया ने थोड़ी हकबकाहट के साथ मुस्कुराया,
“हाँ, हाँ, आइए न, अंदर आइए सब।”

आरती किचन से ही निकल आई, एप्रन बाँधे, हाथ में चम्मच।
“नमस्ते दीदी! नमस्ते आप दोनों को भी। आओ न, इतने दिनों बाद आए हो, घर खाली–खाली लग रहा था तुम्हारे बिना, रिया के सिवा सब नए-नए हैं मेरे लिए।”

रिद्धि ने मुस्कुरा कर कहा,
“भाभी, आपने शादी में बस एक बार नमस्ते किया था मुझसे। आज तो लग रहा है जैसे हम पुराने दोस्त हों। कितना खुलकर बात करती हैं आप!”

आरती ने सामने फर्श पर दरी बिछवाई, सोफ़े पर कुशन ठीक किए, और सबको बैठने का इशारा किया।
कुछ ही मिनटों में चाय–कॉफ़ी, फ्रूट जूस, मिक्स पास्ता और आलू टिक्की टेबल पर सज गए।

मौसमी ने पहली बाइट लेते ही कहा,
“वाह भाभी! ये पास्ता तो होटल वाला से भी टेस्टी है। सच में, रिद्धि झूठ नहीं बोल रही थी, उसने कहा था उसकी दोस्त की भाभी बहुत कमाल की हैं।”

रिया के कानों में ये शब्द चुभने लगे।
उसे याद आया कि उसने कितनी बार रिद्धि से casually कह दिया था—

“भाभी बस ठीक ही हैं, तुम लोगों को तो दूर से देख कर सब परफेक्ट लगते हैं न…”

रिद्धि ने चाय का कप हाथ में लेकर कहा,
“भाभी, रिया ने कभी ठीक से बताया ही नहीं आपके बारे में। बस इतना सुनाया था कि आप बहुत busy रहती हैं, ऑफिस और घर दोनों संभालती हैं। पर इतना सलीका, इतनी विनम्रता… honestly, थोड़ी उम्मीद से ज़्यादा ही मिला है आज।”

आरती हल्का सा हँसती हुई बोली,
“अरे नहीं, मैं भी दूसरों की तरह ही हूँ। बस मम्मी जी ने दिए हुए संस्कार हैं, वही निभाने की कोशिश करती रहती हूँ।
वैसे रिया ने मुझे college में उसके notes दिखाए थे, बहुत अच्छे हैं—टॉपर वाली clarity है उनमें। मैं तो सोचती हूँ, मुझसे भी ज़्यादा तेज है ये।”

रिया के लिए ये सुनना अजीब था।
वो तो हमेशा सोचती थी कि भाभी उसके हर गुण से जलती होंगी, पर यहाँ तो भाभी खुद उसके बारे में तारीफ़ कर रही थीं।

कुछ देर बातें पढ़ाई–लिखाई पर चलीं।
फिर रिद्धि ने casually पूछा,
“वैसे भाभी, आप किस stream से हैं? MBA किस यूनिवर्सिटी से किया है आपने?”

आरती ने सहज भाव से जवाब दिया,
“दिल्ली यूनिवर्सिटी से MBA फ़ाइनेंस। गोल्ड मेडल मिला था, बस किस्मत अच्छी थी।
फिर पाँच साल एक multinational कंपनी में काम किया। शादी के बाद सोचा, थोड़ा गैप ले लूँ, घर वालों को भी समय दे दूँ। आगे चलकर अगर ज़रूरत पड़ी तो part-time consulting कर लूँगी।”

रिया ने भीतर ही भीतर सोचा,
“गोल्ड मेडल…? पाँच साल का corporate experience…? ये सब तो मुझे कभी detail में नहीं बताया गया। बस सुना था कि अच्छी नौकरी में थीं।”

मीनल दीदी ने ताली बजाकर कहा,
“बहुत बढ़िया! हम तो सोच रहे थे, रिया घर में सबसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी है, पर भाभी तो उससे भी दो कदम आगे निकलीं। रिया, तू तो हमारी फ़ेवरेट थी ही, अब तेरी भाभी भी official crush बन गईं।”

सबके ठहाके गूँज उठे। रिया ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर भीतर हलचल मची हुई थी।
साक्षी और मान्या के साथ की गई बातें याद आ गईं—
“बस ठीक-ठाक है… कुछ ख़ास नहीं…”

कितनी सहजता से उसने अपनी भाभी के बारे में आधी–अधूरी बातें बढ़ा–चढ़ाकर कह दी थीं।

कुछ देर बाद, जब सब लोग खाने में मशगूल थे, मम्मी ने कह दिया,
“अरे रिया, तू ही तो कहती थी कि तेरी भाभी अच्छी कुक हैं। आज तो देख, सब उनकी तारीफ़ कर रहे हैं। बहू, तूने तो सच में मेरे घर की इज़्ज़त बढ़ा दी।”

रिया को लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर सचमुच घड़ा पानी उलट दिया हो।
ज़मीन फट जाए और वह उसमें समा जाए—ऐसा एहसास होने लगा उसे।
जिस भाभी के बारे में उसने अपने दोस्तों के सामने आधे सच–आधे झूठ से एक छवि बनाई थी, आज वही भाभी अपने व्यवहार, ज्ञान और सादगी से सबका दिल जीत रही थीं।
और सच्चाई ये थी कि सारी जलन, सारी कड़वाहट, सारी तुलना… सिर्फ़ उसके अपने मन की थी, भाभी के व्यवहार में तो ऐसी कोई बात थी ही नहीं।

शाम होते-होते मीनल दीदी और उनकी दोनों सहेलियाँ जाने को उठीं।
आरती ने डब्बे में कुछ टिक्की और मिठाई पैक कर दी,
“रास्ते में भूख लगे तो काम आ जाएगी। ट्रेनिंग में भी बाँट देना, याद रहेगा कि किसी घर में आकर प्यार से खिलाया गया था।”

मौसमी ने भावुक होकर कहा,
“भाभी, सच में, आज पहली बार किसी दोस्त के घर ऐसा लगा कि हम अपने ही घर में हैं। वरना ज्यादातर जगह formalities ज़्यादा मिलती हैं, अपनापन कम। आपसे मिलकर… अच्छा लगा, बहुत।”

दरवाज़े तक छोड़ने आई रिया के कंधे पर रिद्धि ने हाथ रखकर धीरे से कहा,
“रिया, एक बात कहूँ, बुरा न मानना?
तूने शायद अपनी भाभी को ज़रा कम आँका है। या यूँ कहूँ, उनको छोटा दिखाकर खुद को बड़ा साबित करना चाहा है।
पर आज का पूरा दिन देखकर… सच बोलूँ तो—तेरी सोच पर हमें बहुत disappointment हुई।
कभी–कभी हम जलन में दूसरों की छवि बिगाड़कर खुद को अच्छा समझने लगते हैं, पर सच्चाई जब सामने आती है न, तो अपना ही चेहरा आईने में अजीब लगने लगता है।
ज़रा सोच, तू टॉपर है, पढ़ी-लिखी है, फिर भी अगर तेरी सोच इतनी छोटी हो जाए, तो बाकी लोगों से क्या उम्मीद करेंगे हम?”

रिया कुछ जवाब नहीं दे पाई।
बस इतना बोली,
“रिद्धि… मैं… सच में… मुझे लगा…”

रिद्धि ने हल्की–सी सख्ती से कहा,
“अब ‘लगा’ से काम नहीं चलेगा, रिया।
तुझे अपनी भाभी पर नहीं, खुद पर काम करने की ज़रूरत है।
कल अगर कोई और लड़की तेरी इसी तरह से पीठ पीछे character sketch बनाए तो… कैसा लगेगा?”

“घड़ा पानी पड़ना” मुहावरा किताबों में उसने कई बार पढ़ा था,
पर आज पहली बार उसका सही मतलब महसूस किया—
जैसे किसी ने सबके सामने उसकी झूठी शान पर, उसके borrowed attitude पर, उसके अंदर की कड़वाहट पर सच का भरा घड़ा एक साथ उंडेल दिया हो।

दरवाज़ा बंद होते ही रिया की आँखें भर आईं।
वह चुपके से छत पर चली गई।
शहर की लाइटें दूर–दूर तक चमक रही थीं, हवा भी हल्की–सी ठंडी थी, पर उसके भीतर अजीब–सी गर्मी थी—शर्म की, ग्लानि की, और स्वीकार की।

पीपल के पास लगे कुर्सी पर बैठकर उसने लंबे समय बाद अपने आप से ईमानदारी से बात की।
“मान ले रिया, तू जलती है भाभी से।
उनकी सादगी से, उनकी डिग्री से, सबकी तारीफ़ से, मम्मी–पापा के प्यार से।
पर यह भी तो देख, क्या उन्होंने कभी तेरा स्थान छीनने की कोशिश की?
कभी तुझे छोटा दिखाया?
कभी तेरी पढ़ाई या काम को कम आँका?
नहीं।
सब बातें सिर्फ़ तेरे मन में थीं।”

कुछ देर बाद उसने गहरी साँस ली, आँखों के आँसू पोंछे, और नीचे आ गई।
किचन में आरती बर्तन समेट रही थीं।

“भाभी…” रिया ने धीमे स्वर में पुकारा।

आरती ने मुस्कुरा कर पीछे मुड़कर देखा,
“हाँ रिया, कुछ मदद करनी है क्या? रहने दो, तुम थक गई होगी। मैं कर लूँगी।”

रिया कुछ क्षण चुप रही, फिर अचानक आगे बढ़कर भाभी के गले लग गई।
आरती हड़बड़ा गईं,
“अरे, क्या हुआ? सब ठीक तो है?”

रिया की आवाज़ रुँध गई,
“भाभी… मुझे माफ़ कर दीजिए।
मैंने… आपके बारे में दूसरों से… दोस्तों से… बहुत गलत बातें कही हैं।
मैं… आपकी डिग्री से, आपके behavior से, सब से… बस जलती रही।
मुझे लगा कि आप घर में आकर मेरी जगह ले लेंगी।
पर आज समझ में आया है कि मेरी सोच ही गंदी थी… आप तो… आप तो सच में इस घर की रोशनी हैं।
आपके बारे में सुनकर जो भी लोगों ने कहा, सब सच निकला… और मैंने बस… अपने अहंकार में आँखें बंद कर ली थीं।”

आरती ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“रीया, पगली! इतना क्यों सोच रही हो?
इंसान गलतियाँ करता है, यही तो इंसानियत है।
जरूरी ये है कि वो गलती मान ले।
तुमने आज जो शब्द बोले न, वो मेरे लिए किसी मेडल से कम नहीं हैं।
तुम मेरे नज़र से कभी कम नहीं थीं, न हो।
मैं तुमसे बड़ी हूँ उम्र में, पर घर में तेरी जगह अलग है।
तू अपनी पढ़ाई में टॉपर है, मैं तेरी लाइफ़ के नोट्स में थोड़ी मदद कर दूँगी बस।”

रिया ने रोते–हँसते हुए कहा,
“भाभी, आज घड़ा पानी मेरे ऊपर ही पड़ना चाहिए था, सच में।
जो गलती किताबों में मुहावरे की तरह पढ़ी, वही आज जिंदगी में जी ली मैंने।
अब से… मैं वादा करती हूँ, आपकी बुराई नहीं, आपकी अच्छाई से सीखने की कोशिश करूँगी।”

आरती ने मुस्कुराते हुए आगे बढ़कर उसे फिर से गले लगा लिया,
“चल, अब इतना heavy मत हो। कल से तेरा और मेरा नया समझौता—तू मुझे अकाउंट्स सिखाएगी, मैं तुझे किचन के कुछ नए एक्सपेरिमेंट सिखाऊँगी।
और हाँ… अपने दोस्तों के सामने मेरी जितनी बुराई की है, अब उतनी ही तारीफ़ भी कर देना थोड़ा–थोड़ा करके।”

दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
बाहर बरामदे में मम्मी-पापा भी ये दृश्य देखकर मुस्कुरा उठे।
मम्मी ने पापा से धीमे स्वर में कहा,
“देखा, हमने तो बस बहू में बेटी ढूँढी थी… आज बेटी ने बहू में अपनी बड़ी बहन ढूँढ ली।”

पापा ने संतोष की साँस ली,
“घर तब ही घर लगता है, जब उसमें मान–अभिमान के साथ–साथ स्वीकार और परिवर्तन भी हो। आज हमारी रिया सचमुच बड़ी हो गई है।”

रिया ने उस रात डायरी में छोटा–सा नोट लिखा—

“आज मुझे समझ में आया कि किसी और की चादर खींचकर अपना बिस्तर बड़ा नहीं हो जाता।
जलन से कभी अपना कद नहीं बढ़ता, उल्टा खुद ही छोटा दिखने लगते हैं।
घड़ा पानी मेरे अभिमान, मेरी तुलना और मेरी छोटी सोच पर पड़ा है।
शुक्र है, वक्त रहते गिरा… वरना देर हो जाती।”

उस दिन के बाद से रिया और आरती के रिश्ते में जो खटास थी, वह धीरे-धीरे मिठास में बदलने लगी।
अब जब साक्षी या मान्या भाभी के बारे में पूछतीं, तो रिया मुस्कुराकर गर्व से कहती—

“मेरी भाभी?
वो तो मेरी लाइफ़ की अनऑफिशियल लाइफ़ कोच हैं।
उनसे मिलोगी, तो खुद समझ जाओगी कि मैंने पहले उनके बारे में कितना कम समझा था।”

और सच में, अब जब भी रिया “घड़ा पानी पड़ जाना” मुहावरा किसी किताब में पढ़ती, तो उसे मुस्कुरा कर अपनी ही कहानी याद आ जाती—
एक ऐसी कहानी, जिसमें शर्म ने उसे तोड़ा नहीं, बल्कि नया बनाने की शुरुआत कर दी।

लेखिका : हेमलता गुप्ता 

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