जया सुबह- सुबह ससुर रामचरन जी को किचन में देखकर बोली -बाबू जी मुझे अभी टिफिन बनाना है, आप बाद में गरम पानी करना। वे बोले अच्छा बेटा तू अपने बाथरूम से ही गरम पानी लाकर दे दे। तब जया बोली- बाबू जी अभी बच्चों और आपके बेटे को गरम पानी चाहिए है ,आप को इतनी जल्दी क्या है नहाने की!!
तब वे बोले- जया बहू तू तो जानती है कि मैं नहाकर ही चाय पीता हूँ,फिर पूजा करके चालीसा करता हूं।
बाबू जी वैसे भी ठंड है ,आप ऐसे ही चाय पी लो।
तब बेटा रंजन भड़भड़ी में बोला – आज मेरी मीटिंग है, मुझे टिफिन दे दो।
पापा आप बच्चों की पैरेंट्स मीटिंग में चले जाना। हम नहीं जा पाएंगे। क्योंकि जया अकेले जाती नहीं है। इसी कारण आप ही
चले जाना। अब वे जैसे ही तैयार होकर जाने लगते हैं,तभी जया बोली- बाबू जी आप बच्चों भी फीस दो महीने की जमा कर देना। तभी टीचर पैरेंट्स को टेस्ट कापी और रिजल्ट दिखाते हैं।इतने में वे बोले –
जया बहू कितनी फीस है?
तो जया बोली- दोनों की साढ़े चार हजार है, आप बाबू जी जरूर जमा कर देना नहीं तो ,प्रति दिन के पचास रुपये बढ़ते हैं।
ठीक है मैं फीस जमा कर दूंगा। जब फीस के पैसे बहू जया से मांगे तो जया कहने लगी, बाबू जी अभी तो आप के पास होंगे। उसी से दे देना।
ऐसा उसका रोज ही रहता है। बेटा बहू कभी बिजली जमा करने कहते,,कभी सब्जी,,कभी दूध लाने कहते। इस तरह उनकी पेंशन के तीस हजार कब खत्म हो जाते पता नहीं चलता…..
उनके हर महीने पेंशन के पैसे महीने खत्म होने के पहले खत्म होने लगते।
वो सोचते चलो मेरे बच्चों पर भी खर्च हो रहा है। क्या हुआ रुपये नहीं बच रहे तो!!!
फिर ठंड तेज होने से वो बेटे रंजन से बोले – बेटा मेरे कमरे के बाथरूम में गीजर फिट करा दो।
अरे बाबूजी आपके कमरे में गीजर लगाने की क्या जरूरत है ,फिर बिल भी तो ज्यादा आएगा। आपको क्या…..आपको तो बोल बस देना है। परेशानी तो हमें होगी। बिल बढ़ने लगेगा। फिर कमरे में रुम हीटर भी……. चलता है
तब वो बोले – बेटा पिछले साल पता है कि सर्दी की वजह से मुझे निमोनिया हो गया था। तुम लोग का क्या है, तुम लोग अपना देखते हो। तब वह बोल पड़ा बाबू जी आप हमारे बाथरूम से नहाया करो ,किसने मना किया है। तब वह बोले- सबकी अपनी- अपनी प्रायवेसी होती है, मुझे सही नहीं लगता है कि तुम्हारे कमरे के बाथरूम में नहाऊं। ना ही बहू मेरे लिए बाल्टी गरम पानी की रोज मेरे बाथरूम में रखेगी। ना ही मैं चाहता हूं,इसलिए मैं चाहता हूं मेरे बाथरूम में गीजर लगे। आ
इतना सुनकर बेटा बोला – देखता हूं, बाबू जी क्या कर सकता हूं।
फिर अगले संडे आया तो पिकनिक का प्लान बन गया, पति पत्नी दोस्तों की फैमिली के साथ पिकनिक घूम आए, और गीजर के लिए कहते- कहते ऐसे दस दिन हो गये।
अब बिजली का बिल जमा करना था।तो फिर बाबू जी को फिर बिजली का बिल थमा दिया गया।
इस पर वो कुछ ना बोले।
अगले दिन अपने कमरे के बाथरूम में गीजर उन्होंने स्वयं से लगवाया। वही जया बहू कुछ नहीं बोल पाई।
अगले दिन जब बिजली का बिल ना जमा करने पर रंजन के मोबाइल पर मैसेज देखकर उसे पता चला कि बिजली का बिल जमा नहीं हुआ। तो उसने सोचा घर जाकर बाबूजी से पूछूंगा।जैसे ही वह आफिस से लौटा और तुरंत वह उनके कमरे में पहुँच कर तमतमाये हुए बोला- क्या बाबू जी आपने बिजली का बिल जमा नहीं किया ,आपको नहीं करना था तो बोल देते। तभी पैरेंट्स रामचरन जी ने कहा- बेटा आजकल आनलाइन सब बिल जमा हो जाते हैं ,तो मैं वहां जाकर क्यों जमा करुं ,तू ही जमा कर दिया कर।
वाह पिता जी, वाह….क्या बात कही है। जैसे मैं नहीं कर सकता हूं। वह ताली बजाकर व्यंग्यात्मक लहजे में बोला ।
तब जया बहू भी आ गयी, वह भी आश्चर्य से बोलने लगी क्या !!बिल जमा नहीं हुआ।
बिल जमा करने की कल आखिरी तारीख थी।
अब देखना लेट करने पर एक्सट्रा पैसे लगेंगे वो अलग….
ये सुनकर उनसे भी ना रहा गया। तो तुम लोग हम पर निर्भर क्यों हो। तुम लोग भरो ना…फीस और बिल हम ही हर बार क्यों भरे?
क्या कह रहे हैं? बाबू जी ये घर आपका भी है ,,अगर आप बिल फीस वगैरह भर देते तो कौन सी बड़ी बात है।
तो फिर वे बोले- बेटा ये सोचकर ही मैं इतने समय से सब करते आ रहा हूँ। एक बार नहीं भरा तो तुम इतना सुना रहो। मैं क्या -क्या करु, कभी सब्जी, कभी फल ,कभी ये ,कभी वो,,ये सब करते करते मेरे हाथ में कुछ भी नहीं बचता। मेरी पेंशन तक नहीं बचती। इमरजेंसी के लिए कुछ बचत जरुरी है , हाँ मैंने गीजर लगवाया है। ताकि मुझे परेशान ना होना पड़े।
अब मैनें तय कर लिया , अपने लिए बचत किया करुंगा। अब से अपनी सुविधा का ख्याल रखूंगा व अपने शौक भी पूरे करुंगा। तुम लोग के भरोसे क्यों रहूं।
इतने दिन से कह तो रहा हूं, गीजर लगवा दो पर तुमने सुना…. नहीं….क्या तुमने मेरे बारे में सोचा?? क्या मैं तुम लोग के भरोसे रहूं?
नहीं ना….
क्या बाबू जी आपको ये सब करना अच्छा लगता है। कल के दिन बच्चे ऐसा देखेंगे तो क्या सीखेंगे ये आपने सोचा। रंजन बोल पड़ा।वाह बेटा….वाह !
अपनी करनी पर न सोचा कि बच्चे देखेंगे तो क्या सोचेंगे।
तभी जया कहती बाबू जी इसलिए आपने बिल ना भरकर अपने लिए गीजर लगवा लिया।
तब वे बोले – हां जया बहू जो किया अपने लिए किया, तुम लोग स्वार्थी हो सकते हो तो मैं क्यों नहीं? तुम लोग को पिता का बुढ़ापा दिखाई देता नहीं तो हम क्या करे। तुम्हारे पिता तुम्हारे आगे मोहताज बने रहे…. बस अब और नहीं…
तो सवाल करते हुए रंजन बोला – बाबू जी क्या आप अपनी पेंशन के पैसों को खर्च नहीं करेंगे।
तब वो बोले बेटा मेरी पेंशन पर अधिकार कैसा??? मेरी मेहनत की नौकरी के कारण आज ये पेंशन है,तुम लोग तो हो, तुम अच्छा खासा कमा रहे हो। फिर मेरी क्या जरूरत…..! घर खर्च तुम लोग संभालो… इतना सुनकर रंजन बोला-
क्या मैं ही फर्ज निभाऊं ,और आप ! !आप मजे करे? तो वो बोले-बेटा जब कोई मजबूरियां ना समझे तो घी निकालने के लिए उंगली टेढ़ी ही करना पड़ती है।वही किया है, इतने दिन से क्या हो रहा था। यही ना ….अब करो बिजली का बिल जमा….अगर जमा नहीं किया तो तुम्हें भी गरम पानी गीजर का ना मिलेगा। इतना सुनते ही रंजन ने बिना देर किए ही आन लाइन ही बिजली का बिल भरा।
उसे भी एहसास हुआ कि वो कहीं ना कहीं वह गलत ही था।
अब उसने हिसाब लगाया तो समझ आया ये घर तो बाबू जी के पैसों से चल रहा है। बाबूजी तो कितना कुछ खर्च करते आए हैं।
इधर दो तीन दिन सब्जी ,दूध ,फल वगैरह राम चरन जी नहीं लाए तो जया को एहसास हुआ कि दो दिन में ही हजार रुपये कैसे खत्म हो गये पता ही नहीं चला।
अब जया और रंजन को समझ आ गया,बाबूजी अपनी जगह ठीक ही है। वो अपने पैसे बचाएंगे तो एन मौके पर काम ही आएंगे।
इस तरह रंजन ने पिता को मजबूर नहीं किया कि वो घर खर्च में अपनी पेंशन खत्म करे।
अब रंजन आन लाइन ही फीस जमा करता। जब भी बाबूजी को लाने कुछ कहता तो जया से कहता बाबूजी को पैसे दे दिया करना।
हमें उनकी पेंशन से क्या लेना देना। जितना देना होगा वो स्वयं देंगे। जब भी खास मौका होता तो स्वयं से देते।
पिता का फर्ज पूरा करते। पिता का अपना रुतबा होता है। ये उन्होंने दिखा दिया।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया