अनोखा बंटवारा – अर्चना खण्डेलवाल

रितु आज मॉं और बाबूजी आ रहे हैं, उनकी पसंद का खाना बनाकर रख लेना, तीन बजे तक वो स्टेशन पहुंचेंगे, मैं तो ऑफिस में रहूंगा, तुम कैब से जाकर उन्हें ले आना।

अरे! वो कोई छोटे बच्चे हैं, जो स्वयं नहीं आ सकते हैं, मैं उस वक्त बंटी को लेने जाऊंगी या उनको, रितु ने मुंह बिचकाते हुए कहा।

अपनी पत्नी की आदतों की उपेक्षा करते हुए रोहन ने फिर कहा, बंटी तो अपने आप आ जायेगा, उसके पास घर की एक चाबी भी तो रहती है, तुम मॉं और बाबूजी को ले आना।

अच्छा, वो बुजुर्ग है अपने आप भी तो आ सकते हैं, बंटी तो अभी छोटा है, घर आते ही वो मुझे नहीं पायेगा तो परेशान हो जाएगा।

जब तुम किटी की सहेलियों के साथ मूवी जाती हो, तब भी तो उसे चाबी देकर जाती हो, तब तो तुम्हारा बेटा छोटा नहीं रहता है, आज छोटा हो गया।

रोहन की बातें सुनकर रितु झेंप गई, वो आगे कुछ ना कह सकी, रोहन को लंच बॉक्स दिया, रोहन के जाने के बाद सारा काम किया, और दोपहर के खाने की तैयारियां कर दी, फिर जल्दी से स्टेशन पहुंच गई।

गिरीश जी और कमला जी बाहर खड़े ही थे, बहू को देखकर उनका चेहरा खिल गया, रितु ने बेमन से पांव छूकर आशीर्वाद लिया, उसे अपने सास-ससुर का आना जरा भी सुहाता नहीं था, इससे उसकी स्वतंत्रता में विध्न पड़ता था, वो अपनी इच्छानुसार ही काम कभी करती तो कभी नहीं करती थी, और कभी भी कहीं घूमने और मूवी देखने चली जाती थी, लेकिन अब वो इन लोगों के आने के बाद बंध सी जायेगी।

कैब बुक करा ली, लेकिन दिमाग और दिल में असंख्य विचारधाराओं के बवंडर उठ रहे थे, रितु का मन उसी में हिलोरें का रहा था, और वो ये निश्चित नहीं कर पा रही थी कि वो अपने सास-ससुर के साथ में कैसे रहेगी?

कुछ ही देर बाद घर आ गया, रितु ने पेमेंट करना चाहा तो कमला जी ने रोक दिया, मुझे बता कितने देने है, बेटी से पैसा खर्च थोड़ी कराऊंगी, मेरे पास खुले रूपये है, और उन्होंने रितु को कुछ कहने का मौका नहीं दिया, रूपये सीधे रितु के हाथ में रख दिये ताकि वो कैब वाले का पेमेंट कर दें।

दोपहर में खाना खाकर वो लोग आराम करने लगे, रात को रोहन ऑफिस से जल्दी आ गया, अपने मॉं बाबूजी को प्रणाम करके उनसे अच्छे से मिला, और बहुत सी बातें की, तब तक रितु ने खाने की तैयारी कर ली। बंटी भी दादा-दादी के आने से बहुत खुश था,वो दोनों उसके साथ खेल रहे थे और कहानियां भी सुना रहे थे।

थोड़ी देर बाद सबने खाना खाया और रितु अपना काम समेटकर कमरे में जाकर मोबाइल पर काम करने लगी, तभी बंटी आता है,  आपको बाहर कमरे में बुला रहे हैं।

रितु ने जाकर देखा, उसके सास-ससुर और रोहन सोफे पर बैठकर बातें कर रहे थे, आओ रितु तुम्हारा ही इंतज़ार था, हम दोनों को जरूरी बात करनी थी, और उसमें घर की बहू होने के नाते तुम्हारा भी होना बहुत जरूरी है।

रितु चौंक गई, आखिर ऐसी क्या बात है, जो उसके आने का इंतजार किया जा रहा था।

मम्मी जी, ऐसी क्या बात है? वो उत्सुकता से बोली।

कमला जी कुछ देर रूककर बोली, रोहन  तेरे बाबूजी 

और मैं अब गांव छोड़ रहे हैं।

अरे! तो हमेशा के लिए मेरे यहां पर आने की तैयारी है, ओहह! मैं तो इन लोगों के साथ कुछ दिनों में ही दुखी हो जाती हूं, हमेशा के लिए कैसे रहूंगी? इनका पुराना ड्रेसिंग सेंस, गांव वाली बोली, गांव का खान-पान, मेरे लाइफ स्टाइल से तो बिल्कुल मेल नहीं खाता है, वो मन ही मन बुदबुदा रही थी।

रितु…रितु…..रोहन ने उसे हिलाया, क्या बुदबुदा रही हो? 

वो….कुछ नहीं, मैं कुछ सोच रही थी, आप बोलो, वो कमला जी की तरफ मुंह करके बोली।

हम गांव छोड़कर हरिद्वार में आश्रम में रहने की सोच रहे हैं, हमने वहां बात भी कर ली है, तुम लोगों की अपनी जिंदगी है शहर में, हमारा यहां मन नहीं लगेगा, 

गांव में इतनी जमीन जायदाद है, उसका हम बंटवारा करना चाहते हैं।

हमारी अब उम्र हो गई है, क्या पता किस समय ईश्वर का बुलावा आ जाएगा, दोनों में से कोई एक भी पहले गया तो हम अकेले कैसे रह पायेंगे? यहां पर मन लगेगा नहीं, इसलिए हमारे जीते जी सब बंट जाएं तो अच्छा रहेगा।

बंटवारा….ये सुनते ही रितु का दिमाग ठनका, रोहन अकेले बेटे हैं, ये दूसरा बंटवारा लेने वाला कौन आ गया?

रोहन तुरन्त बोला, हमें बस आपका आशीर्वाद चाहिए, ये जायदाद आप रखिए, आपके काम आयेगी।

हां…. हां…ऐसा ही मैं भी बोलने वाली थी, रितु अनमनी होकर बोली।

कमला जी आगे बोली, मेरे एक ही बेटा है, और हमेशा बेटी की कमी रही है, मैं मेरे बेटी होती तो उसे भी अपनी जायदाद में कुछ हिस्सा जरूर देती, मैंने तो रितु को ही अपनी बेटी माना है, जायदाद में आधा हिस्सा रोहन के नाम और आधा रितु के नाम पर होगा।

ये सुनते ही वे दोनों चौंक जाते हैं, रोहन कहता है, मॉं हम पति-पत्नी अलग तो नहीं है, एक ही बात है, आप चाहें तो सारी जायदाद रितु के नाम भी कर सकते हों।

नहीं बेटा,  गिरीश जी बोले, हमारे लिए तुम दोनों बराबर ही हो, तो हिस्सा भी बराबर होगा, किसी एक का हक छीना नहीं जायेगा।

रितु ने अपने माता-पिता को बचपन में खो दिया था, ये अपने चाचा के घर पली थी, चाचा ने जैसे-तैसे बस शादी कर दी, उनके अपने बच्चे हैं तो चाचा की हर चीज पर उनके बच्चों का हक होगा। रितु के नाम पर तो कुछ नहीं है। इसके नाम पर इसकी अपनी जायदाद होगी तो ये आत्मसम्मान से जी सकेंगी, और हमने सिर्फ कहने के लिए इसे बेटी नहीं कहा है, मन से माना है तो हमारा भी फर्ज है कि हम अपनी बेटी का ध्यान रखें।

ये सुनते ही रितु का मन ग्लानि से भर गया, ये सच है उसके सास-ससुर ने उसे हमेशा बेटी ही समझा और उतना ही प्यार दिया, लेकिन वो हमेशा इन लोगों से जुड़ नहीं पाई, बाहर से सही व्यवहार किया, लेकिन मन ही मन उन्हें इनका आना कभी पसंद नहीं था।

रितु के मन का मैल धुल गया और वो सच्चे मन से बोली, मॉं -बाबूजी हमें बस आपका आशीर्वाद चाहिए और कुछ नहीं चाहिए। 

 रितु ये हमारा आशीर्वाद है, इसे तुम्हें लेना ही होगा, और ये कहकर उन्होंने कागजात रोहन और रितु को दे दिए, रितु का मन उनके प्रति सच्ची श्रद्धा से भर गया।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल ✍️ 

#हमें बस आपका आशीर्वाद चाहिए

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