अनु… माँ नहीं मानेंगी, पूरा घंटा हो गया यहाँ खड़े-खड़े । बस चलो … अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा ।
बस एक आख़िरी कोशिश…. मैं यहीं रूकती हूँ तुम अंदर जाकर माँ से मिलकर आओ । क्या पता , तुम्हें देखकर उनका ग़ुस्सा शांत हो जाए , प्लीज़ मना मत करना ।
साहिल जानता था कि माँ एक बार जो ठान लेती हैं फिर दुनिया इधर की उधर हो जाए पर वो अपना निर्णय नहीं बदलती लेकिन अनुष्का ने जिस मासूमियत और आशा के साथ उससे निवेदन किया वह मना नहीं कर पाया था ।
घर के अंदर जाकर देखा कि माँ बिस्तर पर बैठी थी, पिताजी पास ही उन्हें कुछ समझाने के लिए खड़े थे और दोनों भाई- भाभी भी चुपचाप एक कोने में खड़े खुसरफुसर में लगे थे ।
— सागर की माँ, साहिल की बात तो सुनो , ये अचानक शादी क्यों हुई, पूरा मोहल्ला तमाशा देख रहा है । एक घंटे से दरवाज़े पर बहू- बेटा खड़े हैं, उठो , उन्हें आशीर्वाद देकर अंदर ले आओ …. बड़ी बहू, बहुत हो चुका, चलो तुम दोनों अपनी देवरानी को अंदर लाने की तैयारी करो….
ख़बरदार…. अगर मेरी मर्ज़ी के खिलाफ आज कुछ किया तो अपने ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क लूँगी । मैं हरगिज़ ऐसी लड़की को बहू का दर्जा नहीं दूँगी जिसमें ना लाज है ना संस्कार , जो खुद ब्याह कर ले उससे बड़ी बेशर्मी क्या होगी ?
माँ की बात सुनकर साहिल का धैर्य जवाब दे गया और वह कमरे में दाख़िल होते हुए बोला —-
रहने दीजिए पिताजी, आज अगर ज़बरदस्ती आपने हमें अंदर आने की इजाज़त दे भी दी तो क्या फ़ायदा, जब यहाँ किसी के मन में अनुष्का के लिए सम्मान ही नहीं , मेरी बात सुनने के लिए कोई तैयार नहीं…
निकल जा मेरे कमरे से…. तूने तो मेरा दूध भी लजा दिया । यही सिखाया था तुझे कि , किसी भी राह चलती को पकड़कर शादी रचा ली….अरे झूठे, यहाँ से दोस्त की बहन की शादी में जाने का बहाना करके निकलते तुझे शर्म नहीं आई ….
साहिल ने आगे बात नहीं बढ़ाई और उल्टे पाँव दरवाज़े के बाहर लौट गया ।
चलो अनु , आज से हम इन लोगों के लिए मर चुके हैं ।
साहिल के चेहरे को देखकर अनुष्का समझ गई इसलिए बिना कुछ पूछे गाड़ी में बैठ कर चली गई । शाम तक वे दोनों देहरादून से दिल्ली पहुँच गए । इस परेशानी की हालत में कहाँ जाए , यह सोचकर अनुष्का ने अपने मायके जाना ही उचित समझा था । अनुष्का और साहिल की हालत देखकर वहाँ भी सब परेशान थे ।
साहिल के दिमाग़ में बार- बार एक ही बात घूम रही थी कि आख़िर माँ ने क्यों उसकी बात तक नहीं सुनी …. बिना पूरी बात जाने उस पर आरोप लगा दिए , अनुष्का के बारे में उल्टा- सीधा सोच लिया । वह तो सचमुच अपने दोस्त अनुराग की बहन अनुष्का की शादी में शामिल होने दिल्ली आया था
पर फेरों के समय दुल्हे को नशे की हालत में बदतमीज़ी करते देखकर जब अनुष्का ने शादी से साफ़ इंकार कर दिया तो केवल लड़के वालों ने ही नहीं बल्कि लड़की वालों ने भी अनुष्का पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था । वहाँ केवल एक अनुराग ऐसा था जो अपनी बहन के पक्ष में था और बार-बार समझा रहा था कि अगर अनुष्का इस शादी के लिए तैयार नहीं है तो क्यों उसे एक ज़बरदस्ती के बंधन में बाँधने के लिए मजबूर किया जा रहा है,
साहिल ने भी दो- चार बात अपने दोस्त के पक्ष में कह दी थी पर अनुष्का के माता-पिता का मानना था कि हमारा समाज कितने भी बदलाव की बात करता हो पर आज भी दरवाज़े से बारात लौटने पर लड़की में ही कमियाँ निकालेगा । पता नहीं, साहिल में कहाँ से हिम्मत आ गई थी या कुदरत का लेखा था
कि उसने अनुष्का के साथ उसी मंडप में विवाह करने की बात कह दी थी । हालाँकि अनुराग और उसके माता-पिता इस प्रस्ताव को सुनकर भौचक्के रह गए थे पर उन्हें ख़ुशी थी कि कम से कम समाज के युवा इस तरह की पहल कर रहे हैं । साहिल को अपनी माँ से ऐसी उम्मीद हरगिज़ नहीं थी कि वे अनुष्का को स्वीकार नहीं करेंगी क्योंकि माँ हमेशा ऊँचे- ऊँचे आदर्शों की बात करती थी ।
दो दिन ससुराल में रहने के बाद साहिल और अनुष्का देहरादून जाने के लिए तैयार हो गए । साहिल ने अपने एक दोस्त के माध्यम से एक छोटा सा घर किराए पर ले लिया था । संयोग की बात थी कि इतनी जल्दी में जो घर मिला वो साहिल के अपने घर से ज़्यादा दूर नहीं था , केवल दो गलियों का फ़ासला था ।
कई बार ऑफिस आते- जाते वह अपने घर की तरफ़ से बाइक निकालता , कभी-कभी माँ- पिताजी बाहर बरामदे में बैठे दिख जाते थे । इसी तरह एक साल बीत गया । अनुष्का की डिलीवरी नज़दीक आ रही थी । साहिल का मन था कि शायद बच्चे की खबर सुनकर माँ का मन पिघल जाए ।
वह जानता था कि हर रोज़ पिताजी माँ के साथ पार्क में टहलने जाते हैं, काश ! ऐसा हो जाए कि किसी दिन पिताजी अकेले मिल जाए फिर वह उनसे मिलकर माँ को यह ख़ुशख़बरी देने को कहेगा । पर साहिल को ऐसा मौक़ा मिला ही नहीं कि जब पिताजी के साथ माँ न आई हो ।
थकहार कर अनुष्का को डिलीवरी के लिए दिल्ली ही भेजना पड़ा । साहिल जानता था कि घर में उसके यहाँ रहने का सबको पता है लेकिन भाई- भाभियों में से किसी ने भी उसकी तरफ़ कदम नहीं बढ़ाया । पिताजी ने तो उसी समय माँ का विरोध करने की हिम्मत नहीं की थी फिर अब तो बहू – बेटों का राज चलता था ।
जब पूरे तीन महीने के बाद साहिल अनुष्का और बेटे वंश को घर ले आया तब जाकर राहत मिली वरना इन तीन महीनों में भागदौड़ ही रही थी ।
अगले दिन सुबह ऑफिस के लिए जाते समय बाइक घर के सामने से निकाली तो घर के बाहर बरामदे में काफ़ी लोग बैठे दिखाई दिए । साहिल का मन धड़क उठा , उसने बाइक रोकी और आज बेरोकटोक अंदर पहुँच गया ।
बड़े भाई के मुंडे सिर को देखकर समझ गया कि पिताजी दुनिया से जा चुके हैं और तेरहवीं भी एक दिन पहले हो चुकी थी । उसके मन को गहरी ठेस पहुँची….. क्या वह पड़ोसियों की श्रेणी में भी नहीं आता , ख़ैर, हिम्मत करके वह माँ के कमरे की तरफ़ बढ़ा लेकिन दरवाज़े के ठीक सामने बैठी माँ ने भाई को आवाज़ लगाकर कहा —-
सागर , कम से कम पड़ोस के मर्दों को तो बाहर ही बिठा लो । तेरह दिन बाद तो आँसू सूख चुके हैं ।
और माँ की आवाज़ सुनते ही साहिल के बढ़ते कदमों को बड़े भाई ने यह कहते हुए रोक लिया —-
अरे यार , माँ की हालत तो देख ….. ये लाड़ फिर किसी दिन दिखा लेना ।
साहिल ने बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं और आंसुओं पर क़ाबू किया । उसने अपनी बाइक उठाई और ऑफिस न जाकर वापस घर लौट गया । उसे अचानक आया देख अनुष्का कुछ पूछती , उससे पहले ही वह अनुष्का के कंधे पर सिर रखकर जी भरकर रोया और बाद में पत्नी को सारी बात बताई ।
सॉरी साहिल, मेरे ही कारण तुम अपने घरवालों से अलग हो गए पर क्या करुँ…. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा । मैं खुद माँ जी के पास जाना चाहती हूँ पर ……
तुम ख़ुद को क्यों दोष देती हो अनु , ये सब क़िस्मत की बात है।
इस घटना को छह महीने ही बीते थे कि एक दिन अनुष्का ने साहिल से कहा —-
सुनो … वो नीचे वाली आँटी आज माँ जी की गली में किसी के यहाँ गई थी । वहाँ उन्हें पता चला कि दोनों भाइयों ने घर की दोनों मंज़िलों पर अपना- अपना क़ब्ज़ा कर लिया है । यहाँ तक कि शुरू में तो कुछ दिन दोनों भाभियाँ एक- एक टाइम का खाना माँ जी को देती थी पर अब तो उनके कमरे में ही एक पुरानी मेज़ पर उनका गैस चूल्हा रख दिया है । और …..
और …. क्या ….
और …. ये भी कह रही थी कि अगले महीने माँ जी हमेशा के लिए वृंदावन जाने वाली हैं ।
उनकी ऐसी की तैसी….. अब मैं बताऊँगा उन्हें । बड़े आए माँ को उनके घर से निकाल कर वृंदावन भेजने वाले । अभी मेरे साथ चलो ।
साहिल ने उसी समय अनुष्का और वंश को बाइक पर बिठाया और माँ के पास जा पहुँचा । उन्हें बरामदे में देखकर नीचे के हिस्से में रहने वाली बड़ी भाभी बोली —-
कितनी बार माँ यहाँ आने से मना कर चुकी फिर भी कितने ढीठ है…. माँ तो इस समय सो गई होगी ।
मैंने तो आपसे कुछ नहीं पूछा भाभी…..
जैसे ही साहिल ने माँ के कमरे का दरवाज़ा खोला , अंदर से अजीब सी बू आई —-
माँ……
कौन साहिल….. आ गई तुझे अपनी माँ की याद? निर्मोही…. बाप के जाने के बाद भी ना देखा कि माँ किस हाल में होगी …..
इतना कहकर माँ रोने लगी । उसके आँसुओं से साहिल की क़मीज़ का पूरा कंधा भीग गया ।
तभी वंश को माँ की गोद में देते हुए अनुष्का बोली—-
माँ जी, असली गुनहगार तो मैं हूँ । वक़्त और क़िस्मत की मारी , आपके बेटे ने तो अच्छाई की थी पर न जाने क्यों इन्हें सजा मिली । मैं आज आपको लिए बग़ैर हरगिज़ नहीं जाऊँगी । हमें
बस आपका आशीर्वाद चाहिए ।
बहू- बेटे के शब्दों को सुनकर माँ की आवाज़ में न जाने कहाँ से ताक़त आ गई । वह कमरे से बाहर निकल कर शेरनी की तरह गरजकर बोली —-
देखती हूँ कि इस घर के दो हिस्से कैसे होंगे? घर मेरा है और साहिल आज ही अपने घर में आएगा । जिसे मेरे साथ रहने में दिक़्क़त हो वह अपना इंतज़ाम कर सकता है ।
इतना सुनते ही बड़ी भाभी बोली —-
भला किसी को क्या दिक़्क़त होगी …. आपने ही तो साहिल को घर में घुसने से मना किया था ….
हाँ…. मैंने ही किया था और आज मैं ही अपने बहू- बेटे को घर में आने की इजाज़त दे रही हूँ । और सब सुन लो …. यह घर मेरे हिसाब से चलेगा ।
और सचमुच माँ जब तक जीवित रही , घर में उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता तक नहीं हिला । अनुष्का और माँ का रिश्ता ऐसा बन गया था कि बिना कहे दोनों एक दूसरे के मन की बात समझ जाती थी, अक्सर अनुष्का ने अपने कानों से माँ को कहते सुना था कि—
किसी को दोष देने से पहले उसकी बात ज़रूर सुननी चाहिए वरना असलियत सामने आने पर बहुत पछतावा होता है ।
करुणा मलिक