एक जोड़ी बूढ़ी आंखें और बूढ़े कान – शुभ्रा बैनर्जी

“अरे बहू !सुना तुमने।तुम्हारी बड़ी ननद के बेटे की शादी पक्की हो गई है।जय मां दुर्गा।कब से इन बूढ़ी आंखों में नवासे की दुल्हन देखने का सपना संजोए बैठी थी।

तुम्हें भी चलना होगा पहले से।इकलौती मामी हो।अब बाबू(बेटा)तो है नहीं,तुम्हें ही मामा-मामी दोनों का दायित्व निभाना है।और सुनो,क्या कह रही थी प्रीति,मुझे आकर ले जाएगी,बीस दिन पहले।अब भला बताओ,मैं क्या करूंगी इतने दिन पहले जाकर?”

” अरे!!!!क्यों नहीं जाएंगी आप पहले?घर के पहले बच्चे की शादी है,दादी को तो हर तैयारी में आगे रहना पड़ेगा‌ ना!तुम्हारा लाड़ला भी तो है सुदीप(नवासा)। “मधु भी बहुत खुश‌ हुई सास के मुंह से इतनी बड़ी खुशखबरी सुनकर।ब्याह की उम्र निकली जा रही थी।पिछले पांच सालों से हर बार बेटी का फोन आने पर एक ही बात दोहरातीं थीं मां कि अब बहू ले आ।

उधर बेटी खिसिया कर तमतमा जाती और कहती”देखो ना भाभी,इनको और कोई काम है नहीं क्या,जो मेरे बेटे के पीछे हांथ धोकर पड़ी रहतीं हैं।अरे बाजार से कोई सामान तो नहीं खरीदना है ना,कि पैसे दो और ले आओ।आजकल की लड़कियों के जो नखरे हैं, तुम्हें तो पता ही है।एक नंबर की झूठी होती हैं ये।बस पैसों के लिए करेंगी शादी।

कोई सेवा-वेवा नहीं करने वाली सास-ससुर की।ऊपर से मेरा बेटा तो गाय है गाय।कैसे बांध दूं किसी के भी साथ? तुम समझाया करो ना मां को, कि हमेशा वही बात करके मेरा दिमाग ना खराब किया करे।”अपनी मां के बारे में जब प्रीति जहर उगलती तो, मधु को बहुत गुस्सा आता था।

आखिर मां है वह।अपने बच्चों के बच्चों की शादी तो ब्याज है सुख का।पिछली बार लगभग तीन साल पहले आई थी प्रीति अपने पति और बेटे के साथ।तब मधु ने भी शादी की बात को लेकर सुदीप को छेड़ा था।सुदीप तब चार -पांच साल का रहा होगा जब, मधु उसकी मामी बनकर आई थी।सीधा बच्चा था सुदीप।मधु के हाथों से खुश होकर खाता था दाल -चांवल।

शादी की बात सुनते ही बोला था वह”शादी तो होगी ही मामी।तुम बताओ,कितने दिन पहले आओगी।हर फंक्शन में तुम्हें नंबर वन सजना है।मेरी बगल में तुम ही बैठोगी।” मधु को सुदीप के मनुहार पर बहुत प्यार आता। धमाचौकड़ी करने में तो उस्ताद थी वह,पर अब मां की देखभाल करना पहली प्राथमिकता थी उसके लिए।

नाश्ते से पहले इंसुलिन,दिन में फल,डिनर के पहले इंसुलिन।इसी लेखा-जोखा में उलझकर पूरा दिन निकल जाता था।बाहर काम से भी जाना हो तो उनके टाइम टेबिल के हिसाब से ही जाती थी मधु।बिना किसी पूर्व नियोजित सोच के उसने सुदीप से सहज होकर ही कहा था”मैं तो आना चाहती हूं पहले से,पर अब दादी को साथ में लेकर जाना

और फिर तीन दिन बाद वापस लेकर आने से डर लगता है आजकल।सफ़र में कब यूरिन लग जाए भरोसा नहीं। उम्र हो गई है तेरी नानी की।वो अपने तरफ से जितना करना है करती हैं।

प्लेट डली हुई पैर में अब पहले जैसी ताकत नहीं है रे।बिचारी अपना काम खुद कर लेती है,यही बहुत है।देख बाबू, नानी को अगर तुम लोग कुछ दिन पहले ले जाओ, तो वापसी में, मैं, बेटा फ्लाइट में ले जाएंगे उन्हें।थोड़ा आराम मिलेगा।उन्हें भी और मुझे भी। ट्रेन में एक मिनट शांति से बैठ नहीं पातीं।तेरे सामने चुप रहे़गीं।”

बात आई-गई हो गई थी।अब फिर नए सिरे से शादी की बातें शुरू कर दिए।अब मधु को समझ में आया कि मां क्या कह रहीं‌ थीं?पिछली बार सादगी से मधु ने अपने मन की बात कही थी।ओह!!!!!तो इसलिए मां को ले चलने की बात कही उसने।इधर मां से पूछा तो सकुचाते हुए कहा उन्होंने “,पिछले साल की बहुत सारी कोरी साड़ियां बिन पहने ही नई -नई रखीं हैं।अब नया कुछ मत खरीदना मेरे लिए।उसके घर जाकर तो डिसिप्लिन में रहना पड़ेगा।सुनो बहू,एक सफेद साड़ी पड़ी है बहुत दिनों से।तुम एक बनारसी पाड़ खरीद लेना।मैं सिल लूंगी।”

मां के चेहरे  की चमक उनकी व्याकुलता उजागर कर ही दे रही थी। नहीं -नहीं, इस बार  ना-नुकुर नहीं करने दूंगी बेटे को।इतने सालों(लगभग पिछले बारह सालों से कहीं निकल ही नहीं पाईं मां।

शाम को ही प्रीति का फोन आया मां के पास।मधु काम में व्यस्त थी,तो ध्यान नहीं दी।चाय का कप देने जब मां के कमरे में पहुंची,तो आंसू पोंछ रही थीं।मधु का उनसे कोई खून का रिश्ता नहीं था,पर मधु उनकी सांसों की टुक-टुक भी सुनकर समझ सकती है।पूछा ही लिया” क्या हुआ,मां।रो रही थी क्यों तुम ? बहू से लिपटकर धार-धार रोने लगी,और कहा”हमें कहीं नहीं जाना है।तुम हो आना बेटा बच्चों के साथ।बाई मेरा खाना वगैरह बना देगी।रात को भी बुला लिया करूंगी।” 

अब मधु कुछ-कुछ समझ पा रही थी।बेटे ने तो मन बड़ा करके कह दिया था कि,जल्दी आकर ले जाएंगे।पऱतु  अब मां-बेटे में विचार -विमर्श हुआ होगा।मन से अपनी ही मां को बेटे की शादी में ले जाने की ताकत नहीं जुटा पा रही थी अब प्रीति।पहले से वादा कर चुका है खुद का ही बेटा।

अब मधु इस मामले में ज्यादा सवाल –जवाब करना नहीं चाहती थी।जो होगा देखा जायेगा।शाम को ही प्रीति का फोन आया”तुम ही समझाओ ना मां को,जब भी मैं बोलती हूं, आधी बात समझ ही नहीं पातीं हैं।उनका टाइम टेबिल मैनेज करना मेरे बस का नहीं।हर बात में टोका -टोकी करेंगीं।ससुराल पक्ष के लोग भी तो आएंगे।मैं अगर उनको समय नहीं दे पाएंगी,तो बुरा नहीं लगेगा उन्हें।”मधु अवाक नहीं हुई ये सब सुनकर।प्रीति कभी भी प्रेम से बात नहीं करती किसी से।तभी प्रीति ने एक आइडिया देते हुए कहा”देखो भाभी,तुम मां से कहना कि यहां रहने की व्यवस्था नहीं है,सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।तुम लोगों के साथ आएगी,तो कम से कम मैं निश्चिंत हो पाऊंगी।” “” “,

मधु सुन्न तब पड़ गई जब पलटकर देखा सामने मां जी खड़ी हुई हैंननद भाभी की पूरी बातचीत सुन ली थी उन्होंने।आंख पोंछते हुए निकल गई।यह बात वो किसी  से बता भी तो नहीं सकती थी मधु को उनकी पीड़ा अच्छे से समझ आती थी।अगले दिन मां ने ही फोन पर खुद ही बात कर बता दिया,कि इतनी भयानक ठंडी में मैं नहीं आ पाऊंगी।भाभी और बच्चे आ जाएंगे।”शायद प्रीति यही सुनना चाह रही थी।

अब जब फोन आता प्रीति का तो मां को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती।ना  ही कभी अपने से कोई अच्छी बात करती।बेटे की शादी की तैयारियां दिखा रही थीं।इधर सुदीप पूछ ही लेता” मामी, हम लोग आएंगे नानी को ले जाने।तुम उनका बैग पैक करके रखना।”,बेटे की जिद देखकर अगले दिन प्रीति ने फरमान जारी कर दिया मां पर ” सुदीप जब भी आकर ले जाने की जिद करें,तुम मना कर दिया करो।वो तो ना समझ है़।तुमने हमारी जिंदगी बेकार कर दी, ग्रैजुएट होते ही शादी कर दी। इतने बड़े परिवार में ब्याह दिया।कुछ सोचा ही नहीं मेरे भविष्य के बारे में।तुम्हारी किस्मत अच्छी थी कि तुम्हारी इस बुढ़ापे में सेवा कर रही  है।हमारी तो किस्मत ऐसी नहीं।”और भी जाने क्या बकती 

होगी,खाली घर में।एक दिन दोपहर को घर पर मधु की अनुपस्थिति में फोन कर ऊटपटांग बातें फिर शुरू कर दी प्रीति  ने।प्रीति के लिए मां सबसे अच्छा टारगेट था,बातें सुनाने के लिए।कभी -कभी घर में घुसते ही मां डरी -सहमी सी दिखती।तब अंदाजा हो जाता था।एक दिन मधु ने ही खिसियाकर कहा उनसे”क्यों सुनती रहतीं हैं बेटी की बकवास?जवाब देते नहीं बनता आपसे।एक बार फोन काट देंगीं,फिर नहीं करेंगी फोन।” 

पचासी साल की मां ने बड़े सहज होकर कहा” बहू,कितनी भी जली कटी सुनाए,उसकी आवाज तो सुन लेती हूं।कितना तरसते हैं मेरे कान,उसकी आवाज सुनने को।अब इन बूढ़ी आंखों को भी ट्रेनिंग दे रहीं हूं,नाती की दुल्हनिया देखना बचा है।मैं पहले‌ जाकर डांस करूंगी,बारात में।”

मधु के सभी तर्क विलुप्त हो जाते।अभी तो शादी में समय है।मां ने क्रोशिया निकाल लिया है।नाती के ड्रेसिंगरूम में सजावट के लिए नई डिजाइन बनाना शुरु कर चुकी थीं वह।हर आने -जाने वाले को चाव से बतातीं”प्रीति लेकर जाएगी मुझे पहले।मैं सब तैयारी कर चुकी हैं वे।

मधु को पूरा यकीन था कि वो नहीं आएगी,पर मां का इंतज़ार शाश्वत था।दो चार दिन फोन ना आने पर ,पास में फोन रखी रहतीं।इस जीवन में यह भी कैसा बदलता मंजर है।सबसे ज्यादा समर्पण का रिश्ता खून का होता है।मां झूठे भ्रम में इंतजार करेगी अनंत तक।नाती और बेटी अंत तक आएंगे नहीं।अच्छा है इस दिखावटी रिश्ते से रिश्ता ना रखें वह ज्यादा अच्छा।

अगले दिन मां को आवाज़ लगाई मधु ने”आपके पास  बिना प्रैस की साड़ी जो -जो हैं,निकाल दीजिएगा।क्या -क्या ले जाना है पहले बता देना।अभी धूप ताप लो यहां,वहां फ्लैट में धूप नहीं मिलेगी।आती हूं मां”, मधु बाहर निकल आई घर से।इस मां को इसी दिखावटी रिश्ते की खुशी में कुछ दिन और खुश रहने दिया जाना गलत नहीं।

शुभ्रा बैनर्जी 

#दिखावटी रिश्ते

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