दिखावटी रिश्ता – रेखा जैन

“अवनि मैंने सब्जी और दाल बना दी है। तुम रोटियां बना कर मम्मी पापा जी को खाना दे देना और सबकी रोटियां बना कर रख देना। मैं जरा मार्केट जा कर आती हूं। तुमने वो उस दिन साड़ी दिलाई थी न उसका ब्लाउज सिलने डाल आती हूं, बहुत दिन हो गए साड़ी ला कर रखी है।” मीनाक्षी ने अपनी देवरानी अवनि से कहा। 

अवनि जो अभी मशीन में धोने के कपड़े डाल रही थी, मीनाक्षी की बात सुन कर सिर्फ गर्दन हिला दी। 

मीनाक्षी ने अवनि की प्रतिक्रिया देख कर एक गहरी ठंडी सांस भरी और घर से निकल गई।

अवनि और मीनाक्षी दोनों देवरानी जेठानी है। अवनि के आने से पहले मीनाक्षी ने इस घर को संभाल रखा था। वो लता जी की बड़ी बहु है जिसके ब्याह को 10 साल हो गए है। मीनाक्षी के आने के बाद लता और मीनाक्षी दोनों मिलजुल कर सब काम निबटा देती थी। जहां लता जी मीनाक्षी को बिल्कुल बेटी की तरह प्यार करती थी तो वहीं मीनाक्षी भी उनको मां की तरह ही मान कर आदर सम्मान देती थी। लेकिन कुछ सालों से लता जी घुटनों के दर्द की वजह से ज्यादा काम नहीं कर पाती थी और मीनाक्षी ने ही पूरे घर को संभाल रखा था। उसके एक बेटा है, अविनाश, जो 8 साल का है। मीनाक्षी घर के सभी सदस्यों का बहुत ख्याल रखती थी।

साल भर पहले ही उसके देवर की शादी हुई थी और प्यारी सी अवनि उसकी देवरानी बन कर इस घर में आई। 

 शुरुआत में अवनि और मीनाक्षी दोनों में बड़ा प्रेम था, दोनों में बहुत सामंजस्य था। दोनों बहनों की तरह रहती थी, मिलजुल कर काम करती थी। लेकिन अब पता नहीं क्यों अवनि के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गया था। वो मीनाक्षी से कटी कटी सी रहने लगी। मीनाक्षी कुछ पूछती या बात करती तो सही जवाब नहीं देती या फिर जवाब देती ही नहीं 

 एक दो बार मीनाक्षी ने इसका कारण पूछा, लेकिन उसने कुछ बताया नहीं, तब से मीनाक्षी ने भी चुप्पी साध ली। 

अब उन दोनों के रिश्तों में पहले वाली उष्णता नहीं थी, एक अनजाना ठंडापन पसर गया था।

जिस घर में पहले दोनों देवरानी जेठानी जो बहने और दोस्त भी थी, उनकी हंसी और ठहाकों से घर गूंजता था अब खामोशी पसर गई थी। ऐसा नहीं था कि घर के बाकी सदस्य इस बात से अंजान थे। उनकी सास लता जी भी अवनि के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से बड़ी परेशान थीं। वो सब देख समझ रही थी।

अवनि के व्यवहार में आए उस परिवर्तन से घर के माहौल में एक अनदेखा सा खिंचाव महसूस होता था। जहां हमेशा कहकहे गूंजते थे, वहां अब खामोशी का राज हो गया था।

अवनि जब शादी कर के आई तो वो एम ए कर रही थी। पढ़ाई के दो साल बाकी थे। 

 मीनाक्षी ने सबके सामने कहा था,

“अवनि मेरी छोटी बहन जैसी है। वो ससुराल आ कर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी और उसमें मैं उसका पूरा सहयोग दूंगी।”

लेकिन ससुराल आ कर जब भी अवनि पढ़ने बैठती, मीनाक्षी किसी न किसी बहाने से उसे आवाज लगा देती,

“अवनि जरा अविनाश को होमवर्क करवा दो न।”

मीनाक्षी का बेटा अविनाश 8 साल का है और तीसरी कक्षा में पढ़ता है। अवनि अक्सर उसे होमवर्क करवा देती है और पढ़ा देती है।

“अवनि मेरे साथ शॉपिंग पर चलो, तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है।”

या फिर, “अवनि मम्मी जी के घुटनों में मालिश कर दो, मैं खाना बना रही हूं!”

मीनाक्षी ऐसे कामों के बहाने से अवनि को पढ़ाई से उठाती कि अवनि को वो काम का बोझ भी न लगे और वो पढ़ भी न सके। शुरू शुरू में अवनि को मीनाक्षी के बहाने समझ नहीं आते थे। 

लेकिन जब परीक्षा के समय उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई तब वो समझ गई थी कि मीनाक्षी उसे पढ़ने नहीं देती है।

और मीनाक्षी सबके सामने कहती फिरती,

“मैं तो अवनि को पढ़ने का पूरा मौका देती हूं, मेरी छोटी बहन जैसी है। वो पढ़ेगी तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे ही होगी।”

अवनि उनकी बातें सुन कर मन ही मन मुस्करा देती थी।

आज फिर यही हुआ। अवनि की कल एग्जाम है और उसने सुबह ही मीनाक्षी को बोल दिया था,

“भाभी मैं सुबह में नाश्ता बना देती हूं। लंच आप देख लेना। मेरी कल एग्जाम है इसलिए पूरा दिन मैं फ्री हो कर अपनी पढ़ाई करना चाहती हूं।”

“हां हां! तुम अपनी एग्जाम की तैयारी कर लो। लंच की फिक्र मत करो। मैं सब सम्भाल लूंगी।” मीनाक्षी ने उसे आश्वस्त किया।

लेकिन आदतन मीनाक्षी ने आज फिर अवनि को काम पर लगा दिया। रोटी बनाना और उसके बाद रसोई साफ करना, कपड़े सुखाना, आदि।  

अवनि कुछ नहीं बोली। उसने चुपचाप सब काम निपटा दिया। लता जी जो सब सुन रही थी और उनको मालूम था कल अवनि की एग्जाम है, तो उन्होंने रसोई साफ कर दी और अवनि को कामों में मदद कर दी।

कुछ दिनों बाद घर में कुछ मेहमान आए और मीनाक्षी ने फिर अपने गुणगान शुरू कर दिए,

“मैं तो अवनि को अपनी छोटी बहन मानती हूं। वो पढ़ती है तो उसे बिल्कुल काम नहीं कराती हूं, उसे पढ़ने का समय देती हूं जिससे वो मन लगा कर पढ़ाई कर सके। सारा काम मैं संभाल लेती हूं।”

अवनि ये सब सुन कर गौर से मीनाक्षी को देखने लगी। उसकी अजीब नगरों की भाषा मीनाक्षी समझ नहीं पाई और बातों में लग गई।

मेहमानों के जाने के बाद अवनि मीनाक्षी के कमरे में आई और सीधा मीनाक्षी से बोली,

“भाभी ये दिखावटी रिश्ता मत निभाइए।”

उसकी बात सुन कर मीनाक्षी उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी। अवनि ने आगे कहा,

“आपको क्या लगता है कि मैं कुछ समझती नहीं हूं! मैं सब जानती हूं कि जब भी मैं पढ़ाई करने बैठती हूं, आप मुझे किसी न किसी काम में उलझा देती है और काम भी ऐसे होते है जो काम जैसे लगते ही नहीं है लेकिन मेरा समय उसमें नष्ट हो जाता है। आप इतनी मीठी बोली से मुझे उलझाती है कि मैं मना भी नहीं कर सकती हूं।

क्यों करती है आप ऐसा? और अगर मेरी पढ़ाई से आपको दिक्कत है तो आप साफ बता दीजिए लेकिन ये डबल गेम क्यों खेलती है और दूसरों के सामने मेरे साथ दिखावटी रिश्ता क्यों बनाती है?” बोलते हुए अवनि की आवाज रूंध गई।

अवनि की बात सुन कर मीनाक्षी का चेहरा फ़क्क पड़ गया, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो। फिर वो आगे बढ़ी और अवनि का हाथ पकड़ कर बोली,

“सच कहा अवनि तुमने, मैं नहीं चाहती थी कि तुम आगे पढ़ो क्योंकि जब मैं ब्याह कर इस घर में आई तब मेरा ग्रेजुएशन का आखिरी साल चल रहा था। मम्मी जी और पापा जी ने कहा था कि वो मुझे ससुराल में मेरी पढ़ाई पूरी करवा देंगे। लेकिन शादी के बाद घर गृहस्थी और बच्चों के चक्कर में मैं अपनी पढ़ाई पूरी ही नहीं कर पाई। और अब तुमको पढ़ते देख कर मुझे तुमसे जलन होने लगी थी इसलिए तुम्हे पढ़ाई में हमेशा किसी न किसी तरह से व्यवधान डालती रहती थी। लेकिन अब मैं तुम्हे अपनी पढ़ाई पूरी करने में पूरा सहयोग करूंगी, वादा है मेरा।”

अवनि मुस्करा कर मीनाक्षी के गले लग गई।

दरवाजे पर खड़ी उनकी सास अपनी दोनों बहुओं के बीच पुनः प्रेम देख कर खुश हो गई। उस दिन उस घर की दीवारें भी बहुत समय बाद मुस्करा उठी।

रेखा जैन

अहमदाबाद

“ये मेरी बोनस कहानी प्रतियोगिता

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