फैसला – गीतू महाजन

“बड़ी टिप टॉप औरत है तेरी सास”, लड़के वालों के जाते ही सुहाना की मां झट से बोली।दरअसल सुहाना के रिश्ते के लिए लड़के वाले उसे देखने आए थे और जाते-जाते रिश्ता भी पक्का कर गए थे।

सुहाना को ना करने की कोई बात भी नहीं थी।दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद एक नामी कॉलेज से एमबीए कर के वह अब मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रही थी।देखने में सुंदर, सलीकेदार और पढ़ी-लिखी नौकरी करने वाली लड़की  को ना भला कोई क्यों करता। 

सुहाना के लिए यह रिश्ता उसके पिता के दोस्त ने ही सुझाया था।वह इस परिवार से पुराने परीचित थे।लड़का आकर्ष भी सुहाना की तरह एम बी ए था और एक मल्टीनेशनल कंपनी में ही काम करता था।आकर्ष की एक बहन थी जो विवाहित थी और  उसके पिता कैलाश जी का अपना बिज़नेस था और मां नमिता  जी दिल्ली के नामी स्कूल में अध्यापिका थी और कुछ देर में रिटायर होने वाली थी।

सुहाना अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। एक बड़ा भाई भाभी थे.. दोनों नौकरी पेशा थे।पिताजी भी नौकरी से अब रिटायर हो चुके थे और सुहाना की मां  गायत्री जी गृहिणी थी।आज सुहाना की भावी सास को देखकर सुहाना के परिवार वाले बहुत प्रभावित थे। सलीकेदार साड़ी बांधे हुए नमिता जी ने घर में प्रवेश करते ही सबके ऊपर अपना प्रभाव छोड़ा था

और उनकी मीठी बोली तो सब का मन मोह गई थी।अपने बच्चों को उन्होंने अच्छे संस्कार दिए थे यह उनके परिवार को देखकर ही पता चल रहा था।सुहाना के माता-पिता इस रिश्ते को लेकर बहुत खुश थे।

देखते ही देखते शादी का दिन नज़दीक आ गया था। गायत्री जी ने पूरी शादी की तैयारी बहुत अच्छी तरह की थी।शालिनी भी अपनी नंद की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी इसलिए उसने भी काफी ज़िम्मेदारियां उठा ली थी।वैसे भी शालिनी और सुहाना का रिश्ता सहेलियों की तरह ही था।

“सुहाना, तू अपने ससुराल में सबका आदर सम्मान करना और जिस तरह तेरी सास ने अपना परिवार संभाल के रखा हुआ है वैसे ही रखना।नमिता जी बहुत ही सुलझे विचारों वाली महिला लगती हैं और मुझे लगता है कि तेरा और उनका रिश्ता सास बहू की तरह नहीं बल्कि मां बेटी की तरह ही रहेगा।

“जी मां,आकर्ष भी यही कहता है कि उसकी मम्मी सेल्फ इंडिपेंडेंट महिला है और उनका पूरे रिश्तेदारी और सोशल सर्कल में उनका बहुत नाम और इज़्ज़त है”। 

“हां बिल्कुल, होनी ही चाहिए ऐसी गरिमामय व्यक्तित्व वाली महिला को कौन नहीं पसंद करेगा भला। तेरे ससुर जी बहुत किस्मत वाले हैं जो नमिता जी उनकी  पत्नी हैं ।

सुहाना की शादी बहुत अच्छे से हो गई थी।शादी की शुरुआती दिन तो घूमने फिरने और रिश्तेदारों के यहां आने-जाने में बीत गए।धीरे-धीरे सुहाना अपनी नौकरी और घर परिवार में व्यस्त हो गई। बीच-बीच में मायके भी चली जाती ।एक ही शहर में होने के वजह से आना जाना लगा रहता।नमिता जी उसके साथ बहुत प्यार से रहती पर इन कुछ महीनो में सुहाना ने ऐसा कुछ  देखा और समझा था जो उसकी समझ से परे था।उसे लगता था कि उसके सास ससुर के बीच में जो रिश्ता है वह दिखावटी है क्योंकि भले ही वह बाहर एक आदर्श कपल के रूप में जाने जाते हो पर असल में उनके रिश्ते में रुखापन सा नज़र आता। ऐसा लगता दोनों नदी के दो किनारे की तरह हों जो साथ-साथ तो है पर आपस में मिलते नहीं ।

कैलाश जी अपने बिजनेस में की वजह से ज़्यादातर टूर पर रहते। नमिता जी अपने स्कूल में व्यस्त रहती पर उसने कभी उन्हें घर में हंसते बोलते नहीं देखा।हां.. बाहर ज़रूर एक दूसरे के साथ हंसते बतियाते।आकर्ष से भी उसने एक दो बार इस मुद्दे पर बात करनी चाही तो उसने यह कहकर टाल दिया, “पापा इतने बिज़ी रहते हैं और मैंने तो कभी कुछ ऐसा नोटिस नहीं किया। तुम कुछ ज़्यादा ही सोचती हो”। 

सुहाना को भी लगता कि शायद वह कुछ ज़्यादा ही इस बात को गंभीर रूप दे रही है पर उसने देखा कि नमिता जी अब अलग कमरे में सोने लग पड़ी हैं।प्रत्यक्ष रूप से तो उसकी हिम्मत नहीं हुई नमिता जी से इस बारे में पूछने की क्योंकि बाहर तो वे दोनों बिल्कुल आदर्श कपल की तरह ही घूमते फिरते सबसे मिलते।यहां तक कि पूरे रिश्तेदारी में उनके जैसे जोड़े की मिसालें दी जाती।

फिर एक दिन ऐसा कुछ हुआ जिसने सुहाना की सोच को सही साबित कर दिया‌।दरअसल सुहाना एक दिन तबीयत खराब होने की वजह से ऑफिस नहीं जा पाई थी और नमिता जी तो सुबह ही स्कूल के लिए निकल गई। नमिता जी दोपहर मैं जब वापिस आई तो उन्हें नहीं पता था कि सुहाना अपने कमरे में ही है। घर में नौकर चाकर थे तो घर का काम तो सुचारू रूप से चल रहा था।

सुहाना ने सुना कि नमिता जी फोन पर किसी से कह रही थी,” तुम तो जानती ही हो कि मेरा और कैलाश का रिश्ता सिर्फ दिखावटी रिश्ता रह चुका है। उनके अफेयर की जो बात तुमने बताई थी वह सब सच है और मैंने पता लगा लिया है उनके उनका अफेयर अपने ही ऑफिस की किसी लड़की के साथ चल रहा है जो की उम्र में उनसे काफी छोटी है। मैं यह बात अपने बच्चों के सामने कर उनकी छवि को खराब नहीं करना चाहती क्योंकि मैं नहीं चाहती कि अपने बच्चों की आंखों में वह गिर जाएं और समाज में भी उनकी बदनामी हो।

यह बात कैलाश ने भी स्वीकार कर ली है मेरे सामने और तभी से मैं अलग कमरे में रह रही हूं। हां.. बस यही चाहती हूं कि यह दिखावटी रिश्ता ऐसे ही चलता रहे।एक न एक दिन जब मुझे ठीक लगेगा मैं अपने परिवार को इस बारे में बता दूंगी हो सकता है कि मैं गलत हूं अपने पति की गलतियों पर पर्दा डालने वाली एक मजबूर औरत लगूं पर जैसा चल रहा है उसमें अगर  बिखराव आ गया तो उसे समेटना भी मेरे लिए आसान नहीं होगा।इसलिए खुद को कुछ समय देना चाहती हूं ताकि इस मुद्दे पर अच्छी तरह से सोच सकूं। 

अभी बच्चे घर पर नहीं है अकेली हूं इसलिए तुमसे बात कर पा रही हूं। जानती हूं तुम मेरी सबसे प्रिय सखी हो और तुम पर ही मुझे पूरा विश्वास है। नौकर को भी घर से बाहर कुछ लेने के लिए भेज दिया है ताकि तुम्हारे साथ आराम से बात कर पाऊं” और उन्होंने यह कहकर फोन रख दिया।

 कुछ ही पलों में उन्होंने  सुहाना को अपने सामने पाया। सुहाना को ऐसे लगा जैसे उसकी सास का रंग एकदम से सफेद पड़ गया हो।पल भर में ही उनका गरिमामय व्यक्तित्व एक आम सी मजबूर महिला का लगने लगा जो कि पति की ज्यादतियों को बर्दाश्त कर रही थी अपने घर परिवार के लिए।

 तभी नमिता जी की आवाज से वह चौंकी ,”सुहाना मुझे लगता है तुम सब जान गई हो बेटा। जीवन में बहुत कुछ दिखावटी होता है।पैसा.. शोहरत.. इज़्ज़त और कई बार रिश्ते भी।तुम मुझे इस वक्त गलत समझ रही होगी.. सोच रही होगी इतनी पढ़ी-लिखी स्कूल की अध्यापिका क्यों डरी हुई बैठी है। क्यों अपने हक के लिए आवाज़ नहीं उठा रही पर शायद मैं कुछ समय चाहती हूं अपने परिवार को बिखरते टूटते देखने की  शायद अभी मुझ में हिम्मत नहीं है.. तुम मेरा साथ दोगी इसमें”।

“हां मम्मी जी, मैं आपके साथ हूं आपका जो फैसला होगा हमें मंज़ूर है और मैं आकर्ष को  इस बारे में अभी कुछ नहीं बताऊंगी”।

” ठीक है बेटा , मुझे थोड़ा समय चाहिए इस बात के निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए”। 

कुछ महीने बीते थे..रात के खाने की मेज़ पर सब बैठे थे।नमिता जी ने अपनी बेटी और दामाद को भी बुला लिया था।सभी अपनी बातों में व्यस्त थे तभी नमिता जी बोली,” आज मैं आप सबको एक फैसला सुनाना चाहती हूं। मैं तुम्हारे पापा से अलग हो रही हूं क्योंकि मुझे लगता है कि अब इस दिखावटी रिश्ते में कुछ नहीं रह गया” और फिर उन्होंने अपनी सारी बात अपने परिवार के समक्ष रखी।उनके दोनों बच्चे हैरान थे कि उनके पिता ऐसा भी कुछ कर सकते हैं।उन्होंने पिता की तरफ देखा तो उनकी नज़रें कुछ झुकी हुई थी पर नमिता जी का चेहरा आत्मविश्वास से भरा था।

 “मैंने  अलग घर ले लिया है और मैं उसी में रहूंगी और तुम सब अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो कहीं भी रह सकते हो मेरे साथ या अपने पिता के साथ”। 

“नहीं नमिता, यह घर तुम्हारा है और तुम इसी घर में रहोगी। अगर कोई इस घर से जाएगा तो मैं.. तुम्हें अलग रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। यह घर तुमसे  ही है अगर तुम चली जाओगी तो यह घर घर नहीं रहेगा।  मैं शर्मिंदा हूं जो कुछ मैंने किया लेकिन मुझे पता है इसकी कोई माफी नहीं पर मैं सच में अपनी गलती के लिए माफी मांगना चाहता हूं और तुम्हारे पास लौटना चाहता हूं पर तुम अपना समय लो और फिलहाल मैं कल ही इस घर को छोड़कर चला जाऊंगा”। 

कैलाश जी थके कदमों से उठे और अपने कमरे की तरफ चल दिए।बच्चों ने आगे बढ़कर मां को गले लगा लिया शायद यही उनका मन के प्रति समर्थन था।

नमिता जी नहीं जानती थी कि आगे क्या होगा पर फिलहाल वह अभी अपने फैसले से संतुष्ट थी शायद इतने सालों की शादी के बाद मिले धोखे के बाद यह फैसला लेना ही उन्हें सही लगा था।

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गीतू महाजन,

नई दिल्ली।

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