दिखावटी रिश्ते – मंजू ओमर 

मम्मा आप कितनी अच्छी हो, मम्मा आप कितनी होशियार हो हर काम में, मम्मा आप कितना अच्छा खाना बनाती हो । बिना प्याज लहसुन के कैसे इतनी अच्छी सब्जी बना लेती हो।ये कहने वाली काव्या आज पति आयुष से कह रही थी की मैं तुम्हारी मम्मी की शक्ल नहीं देखना चाहतीं।

उनकी छाया भी मैं अपने बच्चे पर नहीं पड़ने देना चाहती ।और खाना , खाना क्या कच्चा पक्का बनाती है ,यार बिना प्याज लहसुन के भला कोई सब्जी बनती है क्या।और काव्या के पापा शादी जब पक्की हो रही थी तब तब कह रहे थे आज से हम दोनों भाई साहब हमेशा एक दूसरे के सुख दख मैं साथ रहेंगे ।

मेरी बेटी आपके घर की बहू बनकर जा रही है देखना बेटीकी तरह आप दोनों का ख्याल रखेगी ।आज से हम दोनों ऐसे पक्के रिश्तेदार बन गए कि इसके आगे  सारे रिश्ते बेकार हैं ।ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करके काव्या और उसके परिवारवालों  ने रिश्ते निभाने की बात करी थी।

                   काव्या और आयुष की शादी की बात चली। यह रिश्ता आयुष के  पापा रविंद्र जी के दोस्त राजेन्द्र जी ने   बताया था। जब लड़की को रविंद्र जी उनकी पत्नी मीना और आयुष ने देखा  तो  लड़की पसंद आ गई थीं  लड़की अच्छी थी और संस्कारों में भी अच्छी दिख रहीं थीं। यहां रविंद्र जी का बिजनेस चलता था।एक बेटा और एक बेटी थे ।

वही काव्या के  पापा यूनिवर्सिटी में लैब चलाते थे उनके दो बेटियां और एक बेटा  था सरकारी क्वार्टर में रहते थे तनख्वाह बहुत अच्छी नहीं थी पर ठीक-ठाक घर का  गुजारा हो जाता था। यहां रविंद्र जी की आर्थिक स्थिति अच्छी थी ,और खुद का दो मं जिला मकान था अच्छी कॉलोनी में।

                लड़की पसंद आ गई थी  उनकी स्थितिको देखते हुए रविंद्र जी ने   कोई मांग जांच नहीं रखी थी ।अपनी खुशी से जो लड़की को देना चाहते हैं वह दे सकते हैं।  रविंद्र जी का बेटा भी इंजीनियर था और पुणे में नौकरी करता था।रविंद्र जी की बेटी एमबीए करके हैदराबाद में नौकरी करती थी।

             शादी हो गई ससुराल आते ही काव्या के तो तेवर ही बदल गए । मीना जी ने काव्या से कहा की  बेटा  हम यहां समाज के बीच मे  रहते है यहां पर जींस मत पहनना,  बाकी जब पुणे जाना तो अपना पहनना कोई दिक्कत नहीं है।वो उस समय तो कुछ न बोली लेकिन सभी रिश्ते दारों के जाने के बाद एक दिन सभी लोग बाहर डिनर पर जा रहे थे

तो काव्या जिसं पहनकर आ गई। मीना जी ने देखा तो टोका बेटा मैंने मना भी किया था कि जिसं मत पहनना फिर भी तुमने पहन ली जाओ बदलो। काव्या आयुष से बोली

अब अपनी मर्जी से कपड़े भी नहीं पहन सकती क्या। कोई आजादी नहीं है तुम्हारे घर में।आयुष बोला अब ऐसी बात नहीं है जब तक यहां हो तब-तक मत पहनो जब पुणे जाएंगे तो पहनना वहां पर।बस इतनी सी बात है । काव्या भुनभुनाती हुई कमरे में चली गई।

           एक हफ्ता रहकर दोनों फिर पुणे चले गए।जब फिर से तीन महीने बाद आना हुआ।सब लोग खाना खाने बैठे तो तो खाने की प्लेट देखकर काव्या बोली ये कैसी सब्जी बनी है न कोई तेल न मसाला मैं तो ऐसी सब्जी नहीं खाती । जबतक कि उसमें खूब मसाला और प्याज लहसुन न पडा हो।

मीना आश्चर्य से बोली अरे बेटा शादी के पहले जब तुमने दो बार मेरे हाथ का खाना खाया था तो कह रही थी कि बहुत अच्छी सब्जी है मम्मा, मुझे भी सिखा देना ऐसी सब्जी बनाना।

अब क्या हो गया।अरे वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था। मीना सोचने लगी कितना दिखावटी पना था। मम्मा मम्मा कहते मुंह नहीं थकता था अब सीधे मुंह बात ही नहीं करती ।अब तो जब आती बस ऐसे ही व्यवहार करती ।

           और काव्या के पापा भी कहते थे कि हम लोग सबसे खास रिश्ते दार है और कभी एक फोन तक नहीं करते।शायद ये सब दिखावा है शादी हो जाने तक ही था। अच्छा घर और अच्छा लड़का मिल रहा था तो इसलिए उस समय तक अच्छे बने रहने को मजबूर थे सब लोग।

           अब सालभर बाद काव्या प्रेगनेंट हो गई तो डिलिवरी कराने आयुष काव्या को यहीं घर ले आया। क्योंकि पुणे में सबकुछ अकेले मैनेज करना थोड़ा मुश्किल था। यहां पर काव्या के मम्मी का घर भी नजदीक था और मीना तो थी ही तो सबकुछ अच्छे से मैनेज हो जाएगा।

           डिलीवरी के दो महीने पहले आयुष काव्या को लेकर घर आ गया।अब दो महीने तक मीना ने खूब अच्छे से ख्याल रखा। कोई काम न करने देती थी सबकुछ समय समय पर हाजिर हो जाता था। बढ़िया गर्म गर्म खाना नाश्ता सबकुछ मिलता था।एक नौकरानी भी 

लगा दी थी काव्या का काम करने के लिए। सबकुछ अच्छे से चल रहा था।दो महीने का समय अच्छे से बीत गया। डिलीवरी का समय आ गया तो एक बेटे ने जन्म लिया। अस्पताल से घर आ गई काव्या ।घर आ जाने से जच्चा बच्चे के साथ काम थोड़ा ज्यादा बढ़ गया।जो नौकर काव्या के लिए लगा रखा था उससे कुछ अपना काम भी करा लेती मीना।तो एक दिन काव्या भड़क गई कि नौकरानी मेरे काम के लिए लगाई है कि अपने काम करवाने को।अरे बेटा काम थोड़ा बढ़ गया है तो थोड़ी मदद ले ली तो क्या हो गया बाकी तो मैं कर ही रही हूं न ।और तुम्हारा काम भी तो कर रही है न।

          अस्पताल से आने के बाद तीसरे दिन काव्या ने खूब हंगामा कर दिया कि आयुष मुझे मेरी मां के पास छोड़ आओ।मैं यहां नहीं रहूंगी। तुम्हारी मम्मी को खाना बनाने नहीं आता कच्चा पक्का दलिया बना कर दें रही है , बिल्कुल गाढ़ी दाल बना देती है ।और रात भर सोती रहती है बच्चे को नहीं संभालती बच्चा रोता रहता है। कैसी बात कर रही हो काव्या देखती तो हो मम्मी दिनभर काम करती रहती है ।

थक गई होगी तो आंख लग गई  होगी।और अगर बच्चा रो रहा है तो भूखा होगा तो दूध तो तुम्हीं पिलाओगी न । नहीं अब मैं यहां नहीं रहना चाहती।तुम्हारी मम्मी की सूरत भी नहीं देखना चाहती ।अरे , अरे क्या हो गया काव्या, अभी डिलीवरी के पहले तो इतना सबकुछ करती रही थी मम्मी अब तुम्हें परेशानी हो गई है। नहीं मुझे नहीं रहना यहां मुझे मम्मी के घर छोड़ आओ।

         आयुष ने आकर मम्मी से कहा काव्या अपनी मम्मी के घर जाना चाहती है । मीना जी ने कहा नहीं अभी जबतक सवा महीने नहीं हो जाता तब-तक जच्चा-बच्चा बाहर नहीं जाते। लेकिन जब काव्या ने देखा कि आयुष नहीं जा रहा है तो उसने भाई को फोन करके बुला लिया और मीना जी को बिना बताएं ही मायके चली गई। काव्या के इस व्यवहार से मीना और रविंद्र जी काफी नाराज़ थे। सोचने लगे रविन्द्र जी कि कैसा दिखावटी रिश्ता है पहले कुछ और था और अब कुछ और है।

         यहां मीना जी ने मेवे और गुड वगैरह सब मंगवा रखें थे ,आयुष से कहकर वो सब सामान काव्या ने वही मंगवा लिया ।अब मायके गई है तो मां नहीं खिला पा रही है क्या मेवा मसाला। मम्मा मम्मा कहने वाली अब मेरी सूरत ही नहीं देखना चाहती। डिलीवरी के छै महीने हो गए काव्या मायके में बैठीं रहीं ।और यहां एक और घटना हो गई ।

मीना की बेटी हैदराबाद से आई हुई थी और उस समय करोना चल रहा था ।लाक डाउन लग जाने से वो वापस जा नहीं पाई और यहां बेटी करोना संक्रमित हो गई । बहुत कोशिश की गई लेकिन बेटी को बचाया नहीं जा सका ।पांच दिन की बिमारी में उसका देहांत हो गया।

         अब उसके अंतिम संस्कार में काव्या के पापा अपने दो छोटे भाई को लेकर आए थे । करोना का समय था तो रविन्द्र जी के कोई रिश्तेदार बाहर से नहीं आ पाए थे । बेटी के चले जाने से दोनों पति-पत्नी बहुत दुखी थे । काव्या के व्यवहार से भी दुखी थे । फिर एक दिन रविन्द्र जी ने कहा बड़ी बड़ी बाते करते थे काव्या के पापा एक दिन उनको बुला कर बेटी की करतूत बताई जाए ।तो उनको बुलाया और काव्या की शिकायत की उसके इस तरह के रवैए की ।

तो काव्या के पापा बोले अब भाई साहब बेटी को आप लोगों से परेशानी है तो ऐसा व्यवहार तो करेगी ही। रविंद्र जी बोले अरे क्या परेशानी है और फिर थोड़ी बहुत ऊच नीच तो हर घर में होती ही है। लेकिन उसका ये मतलब तो नहीं कि आयुष की मम्मी को उल्टा सीधा बोले और मायके जाकर बैठ जाएं।

         काव्या के पापा बोले अब भाई साहब हम लोग तो अपनी तरफ से अच्छे से रिश्ता निभा रहे हैं ,अब देखिए न जब आपकी बेटी मरी थी तो आपके कोई रिश्तेदार हैं नहीं आए और हम अपने दोनों छोटे भाई को लेकर आ गए थे रिश्ता निभाने। सुनकर रविन्द्र जी और मीना जी भौचक्के रह गए कि बेटी के अंतिम संस्कार में आ गए

तो उसका एहसान जता रहे हैं ।और कह रहे हैं आपकी बेटी मरी थी कैसी भाषा  का इस्तेमाल कर रहे हैं।अरे भाई किसी ने न्योता दिया था कि आप को हमारे घर आए । जैसे और रिश्तेदार नहीं आए थे आप भी न आते किसी ने बुलाया थोड़े ही था।

         मीना और रविंद्र जी सोचने लगे कैसे दिखावे के रिश्ते दार है ।कहते थे हम लोग खास रिश्ते दार है।ये है दिखावटी रिश्ते दार जो बेटी की मौत पर आए तो उसको बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं। रविंद्र जी ने मीना से कहा बहुत ग़लत जगह रिश्ता जुड़ गया है।जब शादी पक्की हो रही थी तो मुंह से शहद टपक रहा था बाप बेटी सब कितना अच्छा बनने की कोशिश कर रहे थे।और ज्यादा नहीं बस कुछ ही दिनों में सबके असली चेहरे सामने आ गए।

बस रिश्ता करने के लिए ही अच्छे बने थे। कभी कभी इंसान इस तरह से धोखा खा जाता हे। जिसका पछतावा सारी उम्र भर रहता है। ऐसे दिखावटी रिश्ते से ईश्वर सबको बचाए ।अब मीना और रविंद्र जी के बहू से रिश्ते अच्छे नहीं हैं बस नाम भर के ही रह गए हैं । क्या करें मजबूरी है । कुछ रिश्ते मजबूरी में भी निभाने पड़ते हैं ।मंच के रहे ऐसे दिखावटी रिश्ते से ।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

14 नवम्बर 

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