प्लीज विराज…. आप यहां से चले जाइए…..
आइंदा अकेले मेरे घर ना आया करें….
जब भी यहां आएं …..एकता भाभी को साथ में लेकर आइएगा….
ताकि हमारे रिश्ते अपनेपन से भरे हुए मजबूत हों…..उसमें ” दिखावटी रिश्ता ” जैसी कोई बातें ना हो….
और हम दोनों परिवारों के इस कोमल , मुलायम , संवेदनशील रिश्तों पर …” खरोंच ” ना लगे…!
हाथ जोड़कर विनती भरे स्वर में सुनंदा ने एक सांस में कहकर दरवाजा बंद कर लिया…!
और हाथों से चेहरा ढक कर फफक पड़ी थी सुनंदा…… और सोचने लगी थी…
ठीक ही तो कहा था एकता ने… आखिर क्यों विराज के आने से मुझे अच्छा लगता है……कहीं धीरे-धीरे भावनात्मक लगाव तो नहीं हो रहा….
अरे नहीं… नहीं…. कुछ बातें मुझे पहले ही समझ में आ जानी चाहिए थीं ….थैंक्स एकता भाभी…. कहकर सुनंदा ने पूरे आत्मविश्वास से ये निर्णय लिया था….!
आईए जानते हैं इसके पीछे की कहानी…..
कहां रह गए थे विराज….. इतनी देर लगा दी….. कब से आपका इंतजार कर रही हूं……..मैंने फोन भी किया था…. पर आपने रिसीव नहीं किया…. झल्लाहट भरे स्वर में एकता ने कहा..
अरे , वो ऑफिस से लौटते समय सुनंदा भाभी के घर चला गया था ….न जाने क्यों , जब से अविरल की अचानक हादसे में मौत हुई है…. सुनंदा भाभी का चेहरा सामने घूम जाता है… कितना संघर्ष कर रही हैं … एक छोटी सी बच्ची के साथ …..मैंने सोचा एक बार पूछ लूं …कुछ काम हो तो…..!
अच्छा तो इसलिए देर हुई ….अनमने ढंग से एकता ने कहा और चल पड़ी रसोई की ओर…….
पानी लेकर जैसे ही एकता ट्रे विराज की ओर बढ़ाई …विराज ने फिर से अविरल की मौत वाले हादसे की बात छेड़ दी …और कहा….
उस दिन…. बाप रे…. कैसा मंजर था… जब मैंने सुनंदा भाभी को फोन किया और कहा……
सुनंदा भाभी वो खदान में एक्सीडेंट हो गया है…….अविरल …..
बीच में ही बात काट कर सुनंदा भाभी ने कहा था …..आप चिंता ना करें विराज….अविरल की तबीयत ठीक नहीं लग रही है …तो वो आज ड्यूटी नहीं करेंगे….. वो तो सिर्फ मैनेजर साहब को इन्फॉर्म करने गए हैं …बेचारी सुनंदा भाभी ….
तब कहां मालूम था कि अविरल मैनेजर साहब के साथ कुछ दिखाने और बताने को खदान के अंदर चला गया था और उसी समय ये हादसा हो गया….
ओह…. एक लंबी सांस ली थी विराज ने…..एकता ने भी सिर्फ इतना ही कहा…. हां विराज … वो बेहद दर्दनाक हादसा था ….खैर जो होना था वो तो हो ही गया ….समय खुद में बहुत बड़ा मरहम है ….!
अच्छा ये बताओ ….सुनंदा भाभी ने क्या कहा ….कुछ काम बताया क्या आपको…?
नहीं एकता …उन्होंने कुछ नहीं कहा… थोड़ी सी औपचारिकता ही पूरी कि मैंने…
दरअसल विराज और अविरल दोनों एक ही संस्थान में काम करते थे…. दोनों परिवारों की दोस्ती भी अच्छी थी…. एक दूसरे के घर आना-जाना लगा रहता था….
अचानक हुई हादसे के बाद एकता और विराज समय – समय पर सुनंदा का हाल खबर लेकर जितनी सहायता हो सकती थी किया करते थे…।
अविरल के परिवार के लोगों ने भी जितना हो सका सहयोग किया… पर वो चाहते थे कि अब सुनंदा गांव जाकर रहे…..शहर में अकेले रहना उन लोगों के नजर में उचित नहीं था…. पर सुनंदा अपनी बच्ची के भविष्य को लेकर चिंतित थी और अनुकंपा नियुक्ति पाकर बिटिया के भविष्य बनाने का संकल्प कर चुकी थी…..
बस इसी विरोधाभास के कारण एक समय के बाद सास ससुर ने भी हाथ खींच लिए और गांव लौट गए…!
धीरे-धीरे समय बीतता गया… सब कुछ सामान्य हो गया था…. सुनंदा की नौकरी भी लग गई थी ….बिटिया की पढ़ाई और अपनी नौकरी के बीच सुनंदा काफी संघर्ष कर रही थी…!
व्यस्तताओं के कारण एकता और विराज भी अब कभी-कभी ही सुनंदा के घर जा पाते थे …हालांकि कभी-कभी ऑफिस से लौटते वक्त विराज हाल खबर लेने सुनंदा के घर चले जाते थे…. जब भी विराज सुनंदा के घर से लौटने पर बताते कि आज सुनंदा के घर गया था ..कहीं ना कहीं एकता के चेहरे पर नाखुशी स्पष्ट दिखाई देती थी ….इसीलिए एक दो बार तो विराज ने सुनंदा के घर जाने वाली बात एकता को बताई भी नहीं थी…
एक दिन विराज ऑफिस से थोड़ी देर से लौटे और आते ही कहा…. सॉरी सॉरी एकता ….आज फिर देर हो गई…. थोड़ा सुनंदा भाभी से बातें करने लगा था ….और कुमकुम ( सुनंदा की बेटी ) भी कहने लगी अंकल थोड़ी देर बैठिए ना ….बस इसीलिए देर हो गई…
आगे विराज कुछ और कहता …एकता बिना कुछ बोले चेहरे से नाराजगी प्रकट करते हुए रसोई में चली गई…
विराज को समझते देर न लगी कि मेरे सुनंदा के घर जाने से एकता नाखुश है विराज ने एकता का हाथ पकड़ कर सोफे पर बैठाते हुए कहा ….
नाराज हो….?
सोचिए विराज …. जिस घर में आप पहले मेरे बिना कभी अकेले नहीं जाते थे….अविरल के न रहने के बाद बार-बार अकेले उनके घर जाना उचित है …?
अरे लोग क्या कहेंगे ….कभी सोचा है
सहानुभूति की भी कुछ सीमाएं होती हैं…..
तीखे स्वर में बोलते हुए एकता सोफे से उठने लगी ….तभी विराज बैठने के आग्रह के बाद बड़े धीरे और संयम से बोले……लोगों की छोड़ो एकता …
क्या तुम्हें भी मेरा अकेले सुनंदा के घर जाना पसंद नहीं है…?
नहीं …बिल्कुल भी नहीं …. सपाट से उत्तर दिया था एकता ने….
अनापेक्षित उत्तर से विराज समझ चुका था …..लोगों की आड़ में एकता ने अपने मन की बात कह दी है….चलो ठीक है एकता ….आगे से मैं ध्यान रखूंगा ….कहकर बातों को यहीं विराम लगा दिया गया…!
बात आई गई… खत्म हो गई…
एक दिन बाजार में अचानक एकता की मुलाकात सुनंदा से हो गई… सुनंदा ने शिकायती भरे लहजे में कहा… क्या बात है भाभी… आजकल तो आप मुझे बिल्कुल ही भूल गई हैं …मेरा हाल खबर भी नहीं पूछतीं..।
थोड़े रूखे अंदाज में एकता ने कहा… ऐसा नहीं है …विराज तो आपका हाल खबर लेते ही रहते हैं…तो मुझे पता चल ही जाता है…!
एकता द्वारा बोले गए एक-एक शब्दों का अभिप्राय सुनंदा को बखूबी समझ में आ रही थी…!
उसने हां वो तो है… बस इतना ही कह कर हाथ जोड़ नमस्ते का अभिवादन कर दोनों आगे बढ़ चुके थे…।
कहीं ना कहीं एकता को मन ही मन ऐसा भी लग रहा था ऐसा व्यवहार कर मैंने गलती तो नहीं की… ?
पर कहते हैं ना जिसके चलते व्यवहार अनुचित लगता है… उससे भी चिढ़ सी हो जाती है चाहे उसकी कोई गलती हो या ना हो….!
बस फिर क्या था उसके बाद माहौल को समझते हुए और पारिवारिक शांति के लिए विराज ने भी कभी अकेले सुनंदा के घर न जाने का फैसला ले लिया था…!
पहले की भांति प्रतिदिन विराज का समय से घर लौटना …कभी देर ना होना ….सुनंदा भाभी के घर न जाना… कहीं ना कहीं एकता को ऐसा लग रहा था …कहीं गुनहगार मैं तो नहीं…?
एक दिन शाम को बिना कुछ कहे एकता तैयार होने लगी और विराज से बोली…. चलिए विराज तैयार हो जाइए सुनंदा के घर जाना है…. विराज आश्चर्य से एकता की ओर देखने लगे …
हां विराज ….सुनंदा के घर हम दोनों जा रहे हैं,….आप अकेले नहीं….काफी दिन हो गए हैं ….और दोनों मुस्कुराते हुए निकल पड़े… सुनंदा का हाल खबर लेने के साथ…एक रिश्ते को मजबूती देने जिसमें कोई दिखावटी पन ना हो…..!
(स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना )
संध्या त्रिपाठी
साप्ताहिक विषय : # दिखावटी रिश्ता