भाई दूज के दिन सभी बहने भगवान से अपने भाई की लंबी उम्र और उसकी प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करती है।और भाई को तिलक लगाकर बजरी और मिठाई खिलाने के लिए उसकी राह देखती है, कब भाई उससे मिलने आए और वह उसे तिलक लगाकर आशीर्वाद दे। सुमन भी अपने भाई की लंबी उम्र की ईश्वर से कामना कर रही थी
पर आज भाई को तिलक लगाना उसके भाग्य मे नहीं था। आज पांच वर्ष से वह अपने भाई से नहीं मिली है।भाई से नहीं मिल पाने के कारण मन आठ आठ आँसू रोता है पर उसने घर की सुख शांति के लिए उस भाई से नहीं मिलने का फैसला किया है जिस भाई को उसने पाल पोषकर दुनिया मे जीने के काबिल बनाया है।
उसके पिता नें उसके जन्म के वक़्त यह कह कर उसका नाम सुमन दिया था कि यह हमारे जीवन मे अपने नाम के अनुरूप फूलो के समान खुशबू बिखेर देगी। उसके जन्म के बाद घर मे सभी बहुत खुश थे क्योंकि उसका जन्म उसके माता पिता की शादी के दस वर्ष बाद हुआ था।
दादा दादी तो उसे पलकों पर ही बिठा कर रखते थे।सुमन के पिता दिल्ली मे एक प्राइवेट कम्पनी मे काम करते थे। दादाजी सरकारी नौकरी मे थे और रिटायरमेंट के बाद गाँव के समीप के शहर मे घर बनाकर रहते थे।सुमन के जन्म के बाद दादा दादी भी अपने घर मे किरायेदार रखकर उनलोगो के साथ ही दिल्ली रहने चले आए थे।
घर बड़ा था इसलिए उन्होंने दो कमरे अपने इस्तेमाल के लिए रख रखा था। वर्ष मे दो बार कुलदेवी की पूजा के लिए जब गाँव जाना होता था तो वे एक दो दिन आते जाते घर पर रुक कर घर और किरायेदार का हालचाल ले लेते थे।समय बहुत ही अच्छा बीत रहा था,
पांच वर्ष के उपरांत उसके भाई का जन्म हुआ तो दादी नें हँसते हुए कहा लो सुमन की रक्षा के लिए माली भी आ गया। पर भाई उसकी रक्षा करनें लायक होता उसके पहले ही उन पर ऐसी विपत्ति आ गई जिससे कारण सुमन को ही भाई की देखभाल करनी पड़ी। सुमन बारह वर्ष की थी
और भाई रोहन सात वर्ष का, उनदोनो के स्कूल मे वार्षिकोत्सव का समारोह था, स्कूल मे नाच,गाना, नाटक आदि का कार्यक्रम था जिसमे इन दोनो नें भी भाग लिया था। उनके कार्यक्रम को देखने के लिए उनके दादाजी, माँ और पापा स्कूल जा रहे थे, दादी भी जाने वाली थी पर अचानक से उन्हें थोड़ा पेट मे दर्द सा अनुभव हुआ तो उन्होंने जाने से मना कर दिया।
उनलोगो नें भी जाने के लिए ज्यादा दबाव नहीं दिया और कहा कि आप दवा खाकर आराम कीजिए। हम जल्द ही जैसे बच्चो का कार्यक्रम खत्म होगा आ जाएंगे। पर उनका कहा हुआ वादा पूरा नहीं हुआ स्कूल जाने के पहले ही उनकी रिक्शा का एक गाड़ी से टक्कर हो गया और घटना स्थल पर ही उनलोगो की मृत्यु हो गई।
बच्चो की तो जैसे दुनिया ही तबाह हो गई।दादी एकदम सदमे मे चली गई पर उनके रहने के कारण उनके पति का पेंशन उन्हें मिलने लगा जिसके कारण आर्थिक तंगी बहुत ज्यादा नहीं हुई। जैसे तैसे समय बीतने लगा। सुमन तो जैसे असमय ही बहुत बड़ी हो गई।
उसने भाई का सारा काम संभाल लिया उसे माँ की कमी महसूस नहीं होने देती थी पर खुद उसे बहुत ही उनकी कमी खलती थी पर अब क्या ही किया जा सकता थी। दादी भी बस जिन्दा ही थी। पेंशन से ज्यादा उनका बच्चो के जीवन मे कुछ योगदान नहीं था। छोटी सी बच्ची भाई को संभालती,दादी को भी देखती साथ ही अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही थी।
इसी तरह पांच वर्ष बीत गया और सुमन नें बारहवीं पास कर लिया। दादी की तबियत अब ज्यादा ही खराब रहने लगा तथा दादी के पेंशन और किराया के पैसे से घर चलाना मुश्किल होने लगा। भाई का स्कूल फीस,दादी का दवाईयो का खर्च, राशन पानी इन सभी को संभालते हुए दिल्ली जैसे बड़े शहर मे रहना जब मुश्किल हो गया तो सुमन नें अपने शहर मे जाने का फैसला किया और वह दादी और भाई के साथ घर आ गई।
और उसने एक अच्छे स्कूल मे भाई का नाम लिखवा दिया। उसके दादाजी नें जो दो कमरे खाली रखे थे वे उसी मे रहने लगे। एक कमरा मे खाना बनाते दूसरे मे सोते थे। छोटा शहर होने के कारण सुरक्षा की भी उतनी समस्या नहीं थी और सबसे ज्यादा फायदा यह हुआ कि सुमन की पढ़ाई दिल्ली मे होने के कारण उसकी अंग्रेजी अच्छी थी
और उसने साइंस विषय से बारहवीं पास किया था तो आस पड़ोस के लोगो नें अपने बच्चो को अंग्रेजी और मैथ सीखने के लिए उसके पास भेजनें लगे जिससे उसकी अब अतिरिक्त आय होने लगी। उसने मैथ से स्नातक करने के लिए कॉलेज मे नाम लिखवा लिया।भाई को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने के लिए वह कृत संकल्प थी।
उसने कठिन परिस्थितियों मे भी अपनी और अपने भाई की शिक्षा को जारी रखा। वह दिनरात बच्चो को ट्यूशन देती। कुछ दिनों बाद दादी भी शोक मे घुटते घुटते अपने अंतिम यात्रा पर चली गई पर अब पैसो की उतनी तंगी नहीं थी क्योंकि उसका ट्यूशन क्लास भी अच्छा चल रहा था।
उसने स्वयं मैथ से पीएचडी कर लिया और एक कॉलेज मे व्याख्याता के पद पर काम करने लगी।भाई भी इसकी देखरेख मे अच्छा कर रहा था। उसने भी इंजिनियरिंग के साथ M BA की डिग्री प्राप्त कर ली। इन सब के होते होते सुमन की आयु तीस वर्ष के करीब पहुंच गई पर उसे इसका मलाल नही था।
पर जिन रिश्तेदारों को उनकी तकलीफ मे उनसे कोई मतलब नहीं था अब वे लोग उसके भाई पर यह कह कर सुमन की शादी कर देने का दबाव बनाने लगे कि छोटे हो तो क्या भाई तो हो और अब कमाने लगे हो तो अब तुम्हारी बहन की शादी की जिम्मेदारी तुम्हारी बनती है।
तुम उसके लिए लड़का देखो।थोड़ी खोजबीन के बाद रिश्तेदारों की मदद से एक व्याख्याता से रोहन नें सुमन की शादी तय कर दी। रोहन के कहने के बावजूद भी सुमन नें माँ और दादी के गहनो को यह कहते हुए नहीं लिए कि यह बहू का होता है. तेरी शादी मे बहू को चढ़ाऊंगी।
बहुत कहने पर उसने थोड़े गहने लिए और कुछ साड़ी कपड़े दोनों भाई बहन नें मिल जुलकर खरीदे। शादी हो गई सुमन अपने घर चली आई। कुछ दिनों बाद सुमन नें सोचा की मेरी शादी के बाद भाई अकेला पड़ गया है तो क्यों ना उसकी भी शादी कर दूँ।
आखिर भाई जॉब कर ही रहा है।भाई नें मना किया पर उसने कहा नहीं तुम अकेले रहते हो मुझे तुम्हारी चिंता रहती है तब वह भी कुछ नही कह सका और उसकी शादी हो गई। कुछ दिनों बाद सुमन को एक बेटी हुई। उसके जन्म की पार्टी मे सुमन ने रोहन की बहू से कहा तुम कब खुशखबरी सुना रही हो,
अब तुम दोनों भी बच्चा प्लान कर लो।बहू नें कहा जब बच्चा पालने की हैसियत हो जाएगी तब कर लेंगे दीदी। हैसियत!बच्चा पालने की हैसियत नहीं है रोहन की? सुमन नें आश्चर्य से पूछा। इतने आश्चर्य से क्यों देख रही है अभी तो आपके कर्ज ही चूका रहे है जब चूक जाएगी तो प्लान कर लेंगे, बहू नें जबाब दिया।
मेरे कर्ज! मैंने कब कर्ज लिया। सुमन एकदम आश्चर्यचकित थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि रोहन की बहू क्या कह रही है। जीजाजी से पूछियेगा रोहन की बहू नें कहा। अभी कुछ और पूछताछ करती तभी रोहन आया और अपनी पत्नी से घर चलने को कहा।
सुमन नें सोचा अभी रोहन से पूछना सही नहीं होगा पहले अपने पति से ही पूछती हूँ फिर बाद मे रोहन की खबर लुंगी। दूसरे दिन जब सभी रिश्तेदार चले गए तो सुमन नें अपने पति से पूछा आपके और रोहन के बीच कुछ बात है क्या? नहीं तो, तुम किस संदर्भ मे पूछ रही हो खुल कर बोलोगी तब तो मुझे कुछ समझ आएगा, पति नें कहा।
पैसो के संदर्भ मे, सुमन नें पूछा। पैसे नहीं तो, साफ साफ बोलो पति नें कहा।अच्छा है रोहन से ही पूछती हूँ,कहकर वह रोहन को कॉल करने लगी तब उसके पति नें कहा रोहन को कॉल नहीं करो,वह कुछ नहीं बताएगा। मै ही बताता हूँ। शादी के वक़्त रोहन के पास दहेज देने के लिए पैसे नहीं थे क्योंकि थोड़े दिन पहले ही उसकी नौकरी लगी थी।
तुम्हारे पैसे भी घर खर्च और उसकी पढाई के कारण खर्च हो जाते है ऐसा कहकर उसने दहेज देने मे अपनी असर्मथता दिखाई थी। तब दोनों पक्षों के लोगो नें उससे कहा कि यह कहकर तुम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हो। तुम्हारी दीदी नें तुम्हारे लिए इतना किया है
और अब अपने वक़्त तुम जिम्मेदारी से भाग रहे हो।तब यह तय हुआ कि दहेज के बीस लाख वह एकबार मे नहीं देकर धीरे धीरे सुविधा अनुसार देगा।यह सुनकर सुमन एकदम क्रोधित हो गई और अपने पति को इसके लिए सुनाने लगी।उसकी आवाज सुनकर उसके सास ससुर आ गए और पूछा क्या हुआ है?
बहू गुस्सा क्यों हो रही हो? सुमन नें कहा यह आपलोगो नें मेरे और मेरे भाई के साथ अच्छा नहीं किया। मै अब आपको उससे पैसे नहीं लेने दूंगी।उसके ससुर नें कहा सभी भाई दहेज देते है, उसने दिया तो कौन सा नया काम कर दिया। तुमने तो उसके लिए इतना कुछ किया है।
इसके बदले वह अपनी कमाई मे से कुछ भाग तुम्हे नहीं दे सकता है?नहीं, नहीं दे सकता है। मैंने जो भी किया वह अपना फर्ज निभाया है एहसान नहीं किया है। बात भाई या बहन का नहीं है, बात है बड़े और छोटे होने का। यदि मै छोटी होती तो वह भी मेरे लिए वह सब कुछ करता जो मैंने उसके लिए किया है।
इस बात पर सास और ससुर नें सुमन को बहुत ही ज्यादा सुनाया। फिर भी सुमन पैसे लेने के लिए तैयार नहीं हुई। इन सब झगड़े मे सुमन की बातें उसके ससुर जी को नागवार गुजरी और उन्होंने इसे अपने आन का मुद्दा बना लिया और कह दिया कि पैसे तो नहीं लेंगे पर तुम्हे अपने भाई से अपना रिश्ता खत्म करना होगा या घर छोड़कर जाना होगा।
सुमन नें घर छोड़ने का फैसला किया।बात रोहन तक पहुंची तो उसने बहुत कोशिश किया की सुमन के ससुर जी बाकी बचे पैसे लेले और बात को यही खत्म करे। पर वे पैसे लेने के लिए तैयार नहीं हुए। रोहन नें भांजी के भविष्य का वास्ता देकर सुमन को घर नहीं छोड़ने पर राजी कर लिया और वहाँ से चला आया।
आज इस घटना को बीते पांच वर्ष के करीब हो गया है। दोनों भाई बहन एक ही शहर मे रहते हुए भी एक दूसरे से नहीं मिलते है। दो वर्ष पूर्व देवर की जब शादी हुई तो इन्होने रोहन को निमंत्रण नहीं दिया था।एक ही शहर मे होने के कारण सुमन के घर की बातें तो रोहन के पास पहुंच ही जाती थी इसलिए जब उसकी ननद का विवाह तय हुआ
तो रोहन नें सोचा कि इतने दिन हो गए है अब शायद दीदी के ससुर जी का गुस्सा शांत हो गया होगा पर इस बार भी इनलोगो नें रोहन को निमंत्रण नहीं दिया। दोनों भाई के रिश्ते सुधरने की मन की आशा इस घटना के बाद समाप्त हो गई थी आज जब भाई दूज के दिन सुमन अपने पुराने दिनों को याद करके आँखो को मुंद कर ईश्वर से अपने भाई की सलामती की प्रार्थना करते हुए आँसू बहा रही थी तभी उसके जीवन मे नाटकीय परिवर्तन हुआ।
उसे अपने भाई की आवाज सुनाई दी उसने पहले अपना भ्रम सोचकर उस पर ध्यान नहीं दिया पर जब फिर सुनाई दिया तो उसने आँखे खोली तो सामने उसका भाई खड़ा था और उसके पति कह रहे थे ऐसे ही देखती रहोगी या अपने भाई को बजरी भी खिलाओगी?
यह यहाँ कैसे आया पापा जी देखेंगे तो बहुत गुस्सा होंगे। बिल्कुल गुस्सा नहीं होऊंगा। मैंने ही इसे बुलाया है ससुर जी की आवाज आई।आपने! हाँ बहू मैंने, ससुर जी नें कहा। कल जब तुम्हारी ननद को बिदा कराने उसके ससुराल गया था तो उसके ससुर नें यह कहकर विदा करने से मना कर दिया की आपनें बारात का स्वागत सही से नहीं किया था
इसलिए अब यह भूल जाइये कि आपकी एक बेटी है।वह फिर कभी आपके यहाँ नही जाएगी। तब जाकर मुझे तुम्हारे और रोहन के दुख का अहसास हुआ और आज आते ही मैंने सबसे पहले रोहन को तुमसे मिलने के लिए बुला लिया।
विषय —मैंने अपना फर्ज निभाया
लतिका पल्लवी