पड़ोसी धर्म – दिक्षा_बागदरे

प्रिया का मन आज बहुत ही अशांत है।

करे भी क्या, आए दिन की बेवजह की बातों से बहुत परेशान हो गई है। 

प्रिया एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में रहती है। 

प्रिया का स्वभाव सबसे मिलजुल कर रहना, हंसना-बोलना रहा है। 

मगर अब लगने लगा है कि लोगों से दूरी बनाकर रखने में ही भलाई है। मन में सवाल उठने लगा है पड़ोसी धर्म निभाना क्या बुरी बात है???

मल्टी में रहने वाली रितु का आए दिन वजह बेवजह उसके घर आना। 

आए दिन इसकी बुराई, उसकी बुराई करना। 

जब भी मल्टी में कोई आवश्यक कार्य हो उसमें भले ही उसका कोई सहयोग नहीं रहता, लेकिन जब भी कहीं कुछ भी बुरा हो चाहे किसी के घर लड़ाई हो हर किसी के घर की पूछताछ रितु को करनी ही होती है। 

मल्टी में कोई भी कार्यक्रम हो तब तो एक तरफ चुपचाप खड़ी रहेगी। कार्यक्रम खत्म होते ही मौका देखकर उसमें मीन मेख निकालना, कार्य करने वालों की बुराई करना यह उसका प्रिय शगल है। एक महत्वपूर्ण बात एक जगह पर किसी की बातें सुनना और दूसरी जगह पर जाकर चुगलियां करना उसका महत्वपूर्ण कार्य है।

 अपने पैसे का उसे बहुत घमंड है। सबके सामने हमेशा अच्छा बना रहना और पीठ पीछे बुराइयां करना यही बस इसका प्रमुख कार्य है।

प्रिया तो बिना काम के किसी के घर भी जाना पसंद नहीं करती। हां कहीं कोई कार्यक्रम हो कुछ विशेष अवसर हो तो वह जरूर जाती है और बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। 

प्रिया रितु को पहले भी कई बार समझा चुकी थी की देखिए मुझे यहां-वहां की बातों में कोई रुचि नहीं है और आपको अगर मल्टी में किसी से भी, कोई भी कोई शिकायत है तो आप स्वयं बात करिए या जो ग्रुप मल्टी का बना हुआ है उसमें डालिए लेकिन हंस कर कह देती थी मैं तो व्हाट्सएप देखती ही नहीं, मैं तो यह नहीं वह नहीं। असलियत तो यह थी कि उसे मुंह से तो बहुत बातें बनाना आता था लेकिन मैसेज टाइप कर कर डालना आता ही नहीं था। यूं तो अपने आप को बहुत पढ़ा-लिखा बताती थी परन्तु खाना बनाने के अलावा खुद के घर के भी कोई अन्य कार्य वह स्वयं नहीं करती थी। घर बाहर के अन्य कार्यों के लिए वह पूरी तरह से अपने पति पर ही निर्भर थी। 

शायद इसीलिए उसके पास यहां-वहां की फालतू बातों के लिए बहुत समय होता था।

जब भी मौका मिले वह यह भी नहीं देखती की कोई आराम कर रहा है या कोई अपना कुछ काम कर रहा है। घंटों खड़ी बतियाती रहेगी। उम्र लगभग 45 की है पर इतनी समझ नहीं है कि कोई अपने काम में व्यस्त है तो अगर हम किसी आवश्यक काम से आए हैं तो काम की बात करें और तुरंत चले जाएं। बेचारा सामने वाला भले ही कहता रहे कि मैं यह काम कर रहा हूं वह खड़ी ही रहेगी अंततः व्यक्ति को अपना काम छोड़कर उसकी बात सुनते ही पड़ती है। उसने कभी यह भी नहीं सोचा कि उसके घर तो कोई कभी जाता ही नहीं है।

रितु हाउसवाइफ है और प्रिया भी हाउसवाइफ है। रितु को यहां-वहां की बातचीत में ज्यादा इंटरेस्ट है और प्रिया को हमेशा कुछ रुचिकर करना ही अच्छा लगता है। 

प्रिया हमेशा से दूसरों की सहायता करना, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन करना आदि कार्यों में विशेष रुचि लेती है। प्रिया को अपने लेखन कार्य में भी बहुत रूचि है और वह अपने आप को इस प्रकार के अच्छे कार्यों में व्यस्त रखना ही पसंद करती है। प्रिया अपने घर से ऑनलाइन व्यापार भी करती है। 

रितु को किसी के भले से तो कोई मतलब नहीं पर इसने ऐसा किया, उसने वैसा किया आपको पता है इस तरह की बातों में ही मजा आता है। 

आज भी रितु किसी काम के बहाने से प्रिया के पास आई और फिर यहां- वहां की बातें करने लगी। 

आज तो उसने हद ही कर दी कि वह प्रिया से कहने लगी की “आपको तो दूसरों के फटे में टांग अढ़ाने का शौक है।” हम तो हमारे मैटर खुद ही सॉल्व कर लेते हैं हमें किसी की जरूरत नहीं। 

जबकि आए दिन रितु के किसी न किसी से वाद-विवाद होते रहते हैं। हर समय रितु प्रिया के पास आकर ही सब की शिकायतें करती रहती है और प्रिया हमेशा ही उसे अच्छी सलाह देती है ताकि कोई भी वाद-विवाद बढ़े नहीं। आए दिन मल्टी में झगड़ों के बाद उसकी किसी न किसी से बातचीत बंद रहती है। 

दो-तीन बार तो प्रिया ने ही उसकी बातचीत शुरू करवाई है। 

लोग इतने एहसान फरामोश और स्वार्थी हो गए हैं कि उन्हें किसी का अच्छा दिखाई नहीं देता। हर किसी के प्रति जलन, द्वेष  की भावना उनके खुद के मन में होती है इसीलिए निरंतर दूसरों की बुराइयां ही करते रहते हैं और इस तरह की नकारात्मक बातें कर कर दूसरों के जीवन में भी नकारात्मकता भरते हैं।

पिछले कई दिनों में रितु ने ऐसे कई बातें प्रिया से की जिसकी वजह से प्रिया और उसके हस्बैंड के बीच में बहुत ज्यादा झगड़े हो गए थे। प्रिया मानसिक तौर पर बहुत ज्यादा त्रस्त हो चुकी थी।

पानी सर से गुजर चुका था। प्रिया की सहन करने की शक्ति खत्म हो चुकी थी। सबसे बड़ी सोचने की बात यह थी, की क्या किसी के सुख-दुख में उसका साथ देना आगे बढ़कर मदद करना किसी के “फटे में टांग अड़ाना होता है” ?? क्या ऐसे लोगों को झेलते रहना भी “पड़ोसी धर्म” का हिस्सा है???

अंततः प्रिया ने उससे आज कह ही दिया कि “मैंने अपना फ़र्ज़ निभाया है”। जो मेरे संस्कार है उन्हें मैं आप जैसे लोगों के लिए छोड़ नहीं सकती। “पड़ोसी धर्म” निभाना “किसी के फटे में टांग अढ़ाना नहीं होता”। 

इस तरह की बातें मुझे आपसे नहीं करनी है, आगे से आप कृपया मेरे घर मत आइएगा “आप अपने घर सुखी रहिए और मुझे अपने घर सुखी रहने दीजिए”।

#मैंने अपना फ़र्ज़ निभाया है

स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

#दिक्षा_बागदरे

#मैंने अपना फ़र्ज़ निभाया है 

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