शादी का घर था। घर मेहमानों से भरा हुआ था और सब तरफ गहमा गहमी थी।
मनोहर जी की छोटी बेटी नेहा की शादी थी।
मनोहर जी के कमरे में वो स्वयं, उनकी बीवी प्रतिभा जी, और बेटा मनोज मौजूद थे। तीनों के चेहरे पर तनाव पसरा था। माथे से पसीना टपक रहा था। तीनों बेचैनी से हाथ मल रहे थे।
“अब क्या होगा, शाम को बारात आने वाली है और गहनों का इंतजाम नहीं हुआ तो बेटी को क्या दे कर विदा करेंगे?” प्रतिभा जी चिंताग्रस्त हो कर बोली।
“कुछ समझ नहीं आ रहा है। सेठ जी भी ऐन मौके पर रुपए देने से पलट गए। अब पैसों का इंतजाम कहां से करूं?” मनोहर जी बेचैनी से हाथ मल रहे थे।
” मेरे कुछ गहने तो मैने मालती की शादी में बेच दिए थे, उनसे उसको देने के गहने बनवा लिए थे। अब ज्यादा कुछ बचे नहीं है।” प्रतिभा जी के चेहरे पर आने वाले पल को सोच सोच कर हवाइयां उड़ रही थी।
“मैने भी अपने ऑफिस से एडवांस ले रखा है,,अब और ज्यादा एडवांस नहीं उठा सकता हूं।” मनोज ने भी मजबूरी जताई।
दरअसल मनोहर जी ने नेहा को शादी में देने के लिए गहने सुनार से बनवा लिए थे। गांव के एक सेठ ने उनको कर्जा देने का वादा किया था। लेकिन अब सेठ जी ने अंतिम समय में कर्जा देने से मना कर दिया क्योंकि उनको भी अचानक पैसों की जरूरत आन पड़ी थी।
सुनार ने भी इतनी बड़ी रकम पर उधार रख कर गहने देने से मना कर दिया था।
दो दिन से मनोहर जी और मनोज ने कई लोगों से कर्ज के लिए बात की लेकिन कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं था।
अब उसी चिंता में तीनों सर जोड़े बैठे थे और कोई रास्ता उन्हें सूझ नहीं रहा था। बाहर ढोलक की थाप भी उन्हें सुहा नहीं रही थी।
तभी उनकी बहु यानि मनोज की बीवी सिया, चाय ले कर कमरे में आई। सबको तनाव में देख कर उसने पूछा,
“क्या हुआ, आप सब इतनी चिंता में क्यों है?”
प्रतिभा जी ने झुंझला कर व्यंग्य किया,
“तुम अपना काम देखो। शादी का घर है बहुत काम है, बाहर जा कर देखो किसी को कोई चीज की जरूरत तो नहीं है !” सुन कर अपमान से सिया का चेहरा उतर गया। उसकी आंखे भर गई।
उसकी शादी को दो साल हो गए थे। वो थोड़े सांवले रंग की थी और उसकी सास प्रतिभा और दोनों ननदें मालती और नेहा गोरे रंग की। इसलिए उसकी सास और ननद हमेशा उसका उपहास करती रहती थी। किसी के भी सामने उसके ऊपर कटाक्ष कर देती थी। लेकिन वो हमेशा खामोश रहती।
क्योंकि उसका पति मनोज उसे बहुत प्यार करता था। वो उसे ही समझाता कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा और वो उसी समय का इंतजार कर रही थी।
लेकिन आज फिर उसकी सास ने सबके सामने उसका अपमान किया था। ऐसा लगा किसी ने उसका दिल चीर दिया हो। वो खून के घूंट पी कर रह गई।
वो चाय के कप रख कर भरी आंखे लिए वापस जाने के लिए मुड़ गई, तभी मनोहर जी ने उसे रोक लिया।
“सिया इस घर की बहु है। प्रतिभा तुम इसे पसंद नहीं करती क्योंकि ये दबे हुए रंग की है, लेकिन फिर भी सच्चाई यही है कि ये इस घर की बहु है और इसे सब कुछ जानने का हक है!”
मनोहर जी ने दिया को सारी परेशानी बता दी। सब सुन कर सिया तुरंत अपने कमरे में गई। वापस लौटी तो उसके हाथ में एक डिब्बा था जिसे उसने प्रतिभा जी के हाथ में थमा दिया।
“मां!! ये मेरे गहने है। आप इसे दे कर सिया के गहने ले आए। किस्मत में होगा तो मेरे गहने पुनः बन जाएंगे। लेकिन अभी समय की मांग को देखते हुए आप मेरे गहने दे कर सिया के गहने ले आइए। बेटी हंसी खुशी इज्जत के साथ विदा हो जाए और हमारे घर की इज्जत भी रह जाए, यही इस वक्त सबसे जरूरी है।”
सिया की बात सुन कर प्रतिभा जी दंग रह गई। वो कभी सिया को देखती तो कभी अपने हाथ में रखे डिब्बे को। उनकी आंखे डबडबा आई। वो रुंधे हुए स्वर में बोली,
“सिया मैने हमेशा तुम्हारा अपमान किया क्योंकि तुम थोड़े सांवले रंग की हो। मैने और मेरी बेटियां ने हमेशा तुम्हारा मजाक उड़ाया फिर भी आज तुम सब कुछ भूल कर इस घर की और हमारी इज्जत, और नेहा के लिए अपने गहने देने को तैयार हो गई। सच में तुम संस्कार से धनी हो!”
सिया हल्के से मुस्कराई और धीमे किन्तु सहज शब्दों में बोली,
“मां!! मैंने इस घर और घर के सदस्यों के प्रति अपना फर्ज निभाया है। आपको जैसा उचित लगा वैसा आपने किया और मुझे जैसा उचित लगा वैसा मैं कर रही हूं!”
सिया की बात सुन कर उसके सास ससुर ने आशीर्वाद हेतु अपने हाथ उसके सिर पर रख दिए।
दोस्तों!! सिया ने सही किया न? उसने मौके की नज़ाकत को समझते हुए अपने गहनों को घर की इज्जत हेतु दे कर घर के सभी सदस्यों के दिल में स्वयं के लिए प्यार और इज्ज़त के साथ जगह बना ली थी।
रेखा जैन