अभी ठीक से नींद खुली भी ना थी कि तेज तेज आवाजों ने सुरभि को जगा दिया।
थकावट इतनी थी कि पोर पोर लहक़ रहा था।आंखों की पलकें तो खुल कर भी खुलने में असमर्थ थीं।बोझिल माथा दर्द के बोझ कराह रहा था।
शादी की धूमधाम अभी खत्म भी कहां हुई है।फिर भी शादी समारोह तो हो ही गया।अब तो दूर वाले रिश्तेदारों के जाने की तैयारियां विदा विदाई चल रही है जिसमें कोई तनाव नहीं है।
निश्चिंत हो बहुत दिनों के बाद तो सुरभि रात में ठीक से सो पाई थी इसीलिए अभी इतनी सुबह उठने की ना हिम्मत हो रही थी ना ही दिल।लेकिन आती हुई अटपट आवाजों ने उसे उठने पर मजबूर कर दिया।
हमारी शगुन की साड़ी कहां है। लगता है बहू के मायके से आई ही नहीं कहां है बताओ अभी तक दर्शन ना हुए फुआ सास का मद्धिम स्वर पूरे घर की दीवारों को गुंजाने के लिए पर्याप्त था।
अब इस उम्र में भी साड़ी की लड़ाई कर रही हो जीजी चाची ने प्याज की भजिया हरी चटनी के साथ खाते हुए हंसी की।
बात साड़ी की ना है छोटी बात तो मान की है ।मान के तो चावल भी सिर आंखों पर फुआ अटल थीं अपनी नाराजगी पर।उनके हाथ जल्दी जल्दी अपना सूटकेस समेटने में लगे होने का दिखावा कर रहे थे जबकि नजरें सुरभि और नई बहू के संभावित पदचापों की आहट तलाश रहीं थीं।
हम तो अब एक मिनट ना रुकेंगे यहां।शादी हो गई बहू आ गई हमारी ड्यूटी खत्म अब हम चले भैया…. विनायक के पिता को सुनाते हुए उनकी आवाज में गुस्सा कम क्षोभ ज्यादा था।
बुजुर्ग तो मान और प्रेम का भूखा होता है शायद।
ठीक कहे हो जीजी हम भी अपनी गठरी बांध ले रहे…चाची भी अचानक संजीदा हो गईं थीं।
बड़े बेटे विनायक की शादी का व्यस्त माहौल अब शिथिल हो चला था।बड़ी मुश्किल से तो वह शादी के लिए माना।
मां मुझे ये शादी वादी के झंझट में ना ही घसीटो आप।आप भी चैन से रहो और मुझे भी चैन से रहने दो शादी ब्याह से जीवन कलह पूर्ण हो जाता है। देखना अपने घर में ये सब शादी की रस्म रिवाजों लेन देन को लेकर कितनी किच किच होगी विनायक का हर बार का यही कारण यही तर्क उन्हें पहले पहल तो मजाक बाजी की बात लगता था लेकिन समय बीतने के साथ एक मां होने के नाते उन्हें उसकी शादी के प्रति नकारात्मक रवैए से चिंता सताने लगी।
आज कल युवा शादी को बंधन मानते हैं।सभी अपनी निजी स्वतंत्रता और सुख को प्राथमिकता देते हैं ।इसके अलावा एक बड़ा कारण यह भी है कि रिश्तों के ताने बाने सुलझाने में ये असमर्थ और अनिच्छुक हो गए हैं।लड़का हो या लड़की अपना कैरियर अपनी जिंदगी से अलग किसी के साथ बंध उन्हें अपनी मनमर्जी से जीने के हक में रुकावट प्रतीत होते हैं विनायक के पिता यही चिंता जाहिर करते रहते हैं।
लेकिन शादी तो अनिवार्य है अकेला जीवन कितना भयानक होता है सुरभि हमेशा यही कहती और नीति जैसी सुयोग्य सुशील लड़की ढूंढ उसने विनायक को विवाह के लिए राजी कर लिया था।
” मां तुम अपने पसंद की लड़की ले आओ फिर तुम ही समझ लेना कहता विनायक सहमत हो गया था।अब वह प्रसन्न थी।
विनायक कोर्ट मैरिज या मंदिर में शादी के पक्ष में था ताकि रिश्तेदारों की किचाइन से दूर रहे।
मां ज्यादा रिश्तेदारों को मत बुलाना क्यों पापा ठीक है ना समर्थन चाहा था उसने लेकिन उसके पापा की भाव भंगिमा असहमति की मुद्रा में ही थी।
शादी ब्याह ही तो ऐसे अवसर होते हैं कि नाते रिश्तेदारों को न्योता दिया जाए मेल मुलाकात होती है।विवाह की रस्में ऐसी बनाई ही गईं हैं जो बिना बुआ मामा चाचा आदि के निभाई ही नहीं जा सकतीं सुरभि ने तुरत तर्क देने शुरू कर दिए।
लेकिन मां ……विनायक ने भी विरोधी तर्क देने चाहे थे लेकिन सुरभि ने उसे डपट दिया था।
चुप कर रिश्तों की समझ पैदा कर।हर रिश्ता अनमोल होता है ।शादी करने जा रहा है एक नया रिश्ता जोड़ने जा रहा है जिसके साथ ना जाने कितने रिश्तों का ताना बाना बुना हुआ होगा। रिश्तों का मान रखना मर्यादा रखना सीख जा ….सब रिश्तेदार तुझे और बहू को आशीष देने आ रहे हैं किच किच कलह करने नहीं समझा।
देख लेना मां कुछ हुआ तो मुझसे मत कहना मै कहे देता हूं भुन भुन करता वह बाहर निकल गया था।
आज कल की बहुएं और समधियाना ..!!मजाक बना रखा है।शादी में देखा था मंडप में बैठा नहीं जा रहा था ना दूल्हा से ना दुल्हन से।ऐसी जल्दबाजी मचा रहे थे पंडित से जल्दी मंत्र पढ़िए कई सारी रस्में तो हुई ही नहीं और जो हुई वे भी उस तरह नहीं हुई जिस तरह से होनी चाहिए थी बैठक हॉल से आवाजों का सुर ऊंचा हो गया था।
हां जीजी ठीक कह रही हो।दुल्हन की मां तो ऐसे सज धज के घूम रही थी मानो बेटी की नहीं बेटे की शादी कर रही हो ।लड़के वालों को कोई महत्व ही नहीं दिया।देखा था रात में हम लोगों के खाने से पहले खुद अपनी थाली लगा खाने लग गई थी।हद है …..काकी भी दाहिने घुटने पर गर्म तेल मालिश लगवाती वहीं आकर बैठ गईं।
कुछ भी कहो हमारे विनायक के मुकाबले बहू कुछ भी नहीं है। ठगा गए ये लोग।आजकल लड़की वाले बड़े चंट हो गए हैं।रस्म रिवाज तो कोई मानता ही नहीं।ये तो हमारे घर का बरसों का रिवाज है बुआ काकी चाची सबकी साड़ी और नेग आता रहा है ।आज हमारे जाने का दिन आ गया ब्याह बीत गया लेकिन अभी तक ठन ठन… फुआ तो आग ही उगल रही थीं।
शादी ब्याह तो अच्छे से निबट गया ।हाथी निकल गया पूंछ बाकी है ।अब जाते जाते ये फ़ुआ लोगों को आज फुर्सत से मौका मिल गया है ।अभी विनायक और नई बहू ने सुन लिया तो मुश्किल हो जाएगी सोचती सुरभि तेजी से बिस्तर से उतर बैठक की ओर जाने लगी।
नीति का कमरा तो बगल में ही है सुनेगी तो क्या सोचेगी।आजकल की लड़कियां पलट के जवाब देने को तैयार रहती हैं।मायके की बुराई कैसे सुन लेगी। कहीं ऐसी कोई अनहोनी ना हो जाए कि विनायक की शादी का सब नाम धरने लग जाएं सुरभि भीतर से डर गई।
सुनो वो दिल्ली वाली फुआ और अमरोही वाली काकी ने तो हंगामा कर रखा है सुबह से कलह कर रहे हैं विनायक के पिता ने तेजी से आते हुए चिंतित स्वर में कहा।
विनायक ठीक कह रहा था इतने ज्यादा रिश्तेदारों को नहीं बुलाना था।कलह मचा के जायेंगे ये हमारे परिवार में।नीति क्या सोचेगी ।अभी तो नई नई आई है ।परिवार को समझने का मौका ही नहीं मिला और ये लोग खुराफात लेकर बैठ गए।हम लोग इतना लेना देना सब कर रहे हैं फिर भी नई बहू से संबंधित बुराई करने से बाज नहीं आ रहे।जाओ सुरभि अब तुम्ही सुनो और संभालो उन्हें भी और अपनी बहू बेटे को भी।
मां …..सुनिए तब तक नीति की आवाज सुन कर सुरभि झटके से खड़ी हो गई।देख तो सामने नई बहू नीति सर पर पल्लू डाले खड़ी थी।
बेटा तुम कैसे।आओ यहां मेरे पास बैठो।इन सबकी बातें सुन कर तुम्हे बुरा लग रहा है क्या सुरभि अपने घर में कलह की आशंका से उद्विग्न हो गई।
नहीं मां मै ये लाई थी आपको दिखाने नीति ने धीरे से हाथ में पकड़े पैकेट सुरभि के सामने रख दिए।
ये क्या है आशंकित हो सुरभि ने पूछा।
मां ये साड़ियां हैं।अगर आपको पसंद हों तो आप फुआ जी काकी जी और चाची जी लोगों को नेग लगा कर दे दीजिए नीति ने बहुत कोमलता से कहा।उसकी आवाज में ना आक्रोश और ना ही असम्मान का पुट महसूस हुआ सुरभि को।
लेकिन क्यों बेटा।तुम दिल से मत लगाओ इन लोगों की बातों को। मैं अभी समझा बुझा कर शांत कर दूंगी सुरभि ने जल्दी से उठते हुए कहा।
नहीं मां मुझे बुरा नहीं लग रहा है।ये तो अच्छी बात है ये सब अपने ही लोग हैं।हमारे घर न्योते पर आए हैं हमें आशीर्वाद देने।कुछ अपेक्षाएं तो होंगी ही होनी ही चाहिए।मेरी मां का ध्यान नहीं गया होगा इस नेगचार पर। हमें ध्यान रखना चाहिए मां ये सब नई साड़ियां हैं सुरभि ने आहिस्ता से कहा।
लेकिन ये सब तो तुम्हारी हैं तुम्हारे लिए हैं बेटा।तुम्हारी मां ने इतने शौक से तुम्हारे लिए खरीदा है …. सुरभि ने अचरज से टोका ।इन्हें रखो तुम।मेरे पास कई साड़ियां हैं उनमें से मै दे दूंगी कह दूंगी तुम्हारे घर से आई हैं सुरभि ने साड़ियों का पैकेट नीति को वापिस करते हुए प्रेम से समझाया।
नहीं मां आखिर ये बुआ काकी चाची भी तो मेरे हैं।इनके स्नेह के सामने इन साड़ियों का क्या मोल।मेरी मां बहुत खुश होंगी जब उन्हें ये पता लगेगा ।साड़ियां तो आनी जानी हैं मां असली मोल तो इन बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद का है इनका मन रखने का है नीति ने बहुत भावुकता से कहा तो सुरभि की आंखे भर आईं।
आज मैं निश्चिंत हो गई बेटा ।तुझ जैसी बहू पाकर जिसे रिश्तों की इतनी समझ है रिश्तेदारों के प्रति इतना सम्मान है विनायक की समझ इतनी उदार नहीं है।चल हम दोनों मिलकर सबको संभालते हैं कहती सुरभि ने आगे बढ़ नीति का हाथ पकड़ लिया।
चल बेटा तू अपने हाथों से दे देना। नेगचार और विदाई के लिफाफे उठाते हुए सुरभि ने उसका हाथ पकड़ते हुए बैठक की ओर बढ़ते हुए कहा।
फुआ काकी और चाची जी क्यों नाराज हो रही हैं।आपकी इस नातिन बहू के मायके से आप सबके लिए साड़ी और नेगचार आया है।नीति की मां ने मुझे बहुत सम्मान के साथ ये सब सौंप दिया था और आप लोगों को देने के लिए पूछा था।गलती मेरी थी मैंने सोचा था जाने वाले दिन मैं आप लोगों को दूंगी। लीजिए नीति की मां की तरफ से आज नीति ही आप लोगों को भेंट कर रही है इसे अपना आशीष दीजिए स्नेह दीजिए और खुश होकर जाइए सुरभि ने बैठक में आते हुए कहा और नीति ने तुरंत सबके पैर छूते हुए भेंट दे दी।
जुग जुग जियो बहू रानी दूधो नहाओ पूतों फलों मायका ससुराल सब चमकता रहे हम काहे नाराज होने लगे फुआ जी ने तुरंत आगे बढ़कर नीति के सिर पर हाथ रखते हुए कहा तो काकी भी दुखते हुए घुटनों पर हाथ रख खड़ी हो गई सुखी रह बेटा बस हम तो इसी मान के भूखे हैं ।
विनायक अपने पिता के साथ खड़ा उलझते रिश्तों को सुलझता देख रहा था और इन मोह भरे पारिवारिक रिश्तों और रस्मों की स्नेहिल गर्माहट महसूस कर रहा था।
लतिका श्रीवास्तव
कलह#साप्ताहिक शब्द कहानी