मैंने अपना फर्ज़ निभाया है और मैं किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं हूं। मुझे नहीं लगता तुम्हें भी इस विषय में कुछ अधिक सोचना चाहिए मानसी ने अपने पति मनन को
झिड़कते हुए कहा। 88 वर्ष की माताजी की मृत्यु के बाद आज 13वीं की क्रिया रसम का समापन हुआ और मनन और मानसी अपने कमरे में कुर्सी पर बैठकर अपनी बातें सांझा करके माताजी को याद कर रहे थे।
आइए आपको इस परिवार से मिलवाऊं। वर्मा जी जो कि हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज थे और उनका पुत्र मनन जो कि सी.ए.था, दिल्ली की एक पौश कॉलोनी में उनका बहुत बड़ा घर था जिसमें कि मनन घर में ही एकाउंट्स का ऑफिस खोले हुए था। वर्मा जी की पत्नी यानि मनन की माताजी वह भी कॉलेज की रिटायर्ड प्रोफेसर थी।
वर्मा जी की मृत्यु के बाद घर में मनन मानसी और उनके दोनों बच्चे जो कि बेंगलुरु के कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहे थे। इनका घर बेहद संपन्न और खुशहाल था। 15 वर्ष पहले वर्मा जी की मृत्यु के बाद माता जी की तबीयत भी काफी खराब हो गई थी मनन और मानसी जब उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए तो उनको हार्ट प्रॉब्लम बताते हुए डॉक्टरों ने सर्जरी करके पेसमेकर लगा दिया था।
माताजी अपने परिवार में ठीक होकर आने के बाद मानसी के साथ खुश ही रहती थी परंतु शुगर बीपी इत्यादि तो बढ़ते घटते रहते ही थे। घर इत्यादि सब कुछ माताजी के ही नाम था और माता जी की अपनी पेंशन भी आती थी। वह अपना समय पार्क में घूमते हुए बच्चों को नेक सलाह देते हुए ही बिताती थी।
पिछले दो सालों से उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी थी वह बेहद कमजोर भी हो गई थी अभी पिछले साल ही शायद उनकी शुगर लो हो गई थी और उनके बेहोश होने पर मनन ने उन्हें समीपवर्ती बड़े अस्पताल में ही दाखिल करवा दिया था।
जी हां उन्हें मेडिकल बिल की चिंता नहीं थी परंतु आईसीयू में जब माता जी को रखा गया तो वह अपने लोगों को न पाकर बहुत परेशान हो गई थी और क्योंकि आईसीयू में मनन और मानसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा था तो माताजी बेहद बेचैन हो उठती थी। मिलने के समय पर जब मनन और मानसी उनसे मिलने जाते तो वह एक ही बात की रट लगाई हुई थी मुझे कुछ भी नहीं है
अगर मुझे कुछ हो तो इतना कर दो कि मैं घर में ही मरूं मुझे यहां से निकाल लो लेकिन डॉक्टर एक के बाद एक टेस्ट बढ़ा कर करे जा रहे थे। कुछ दिन उन्हें कमरे में भी शिफ्ट कर गया 15 दिन बाद जब वह घर आई तो वह अस्पताल के नाम से ही घबरा गई थी। मनन मानसी को पैसों की वजह से इतनी परेशानी नहीं हुई क्योंकि मेडिक्लेम सरकारी और प्राइवेट दोनों ही थे।
परन्तु माता जी कमजोर हालत में भी वह रह कर मानसी से कहती थी कि मुझे अगर मरना भी हो तो घर में ही मरने देना मुझे बिना वजह अस्पताल में मत लेकर के जाना वहां मेरे को ऐसा चूहा मत बनाना कि लोग मुझ पर टेस्ट करते रहें। इसके विपरीत डॉक्टर ने कह दिया था कि माता जी का पेसमेकर बदलवाने का टाइम आ गया है और जल्दी ही उनका पेसमेकर बदलने के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाए।
माताजी अस्पताल से आने के बाद किसी भी डॉक्टर के पास अस्पताल जाने के नाम से ही डरने लगी थी। मनन की इच्छा थी कि माता जी को दोबारा से अस्पताल में भर्ती करवा कर उनका पेसमेकर बदलवा दिया जाए लेकिन मानसी ने अब माता जी की साइड लेते हुए उन्हें अस्पताल में ले जाने से बिल्कुल मना कर दिया।
केवल जरूरी दवाएं योग और देसी इलाज करवाते हुए वह माताजी को खुश रखने की सारी चेष्टा करती थी। बच्चे भी जब हॉस्टल से आते तो वह भी अपनी दादी के पास ही बैठे रहते थे। उनकी मृत्यु से 2 दिन पहले माता जी की आवाज भी बंद हो गई थी
और मनन ने जब उन्हें अस्पताल में ले जाने के लिए कहा तो मानसी ने अपनी सासू मां का हाथ पकड़ लिया भले ही सासू मां की आवाज नहीं निकल रही थी लेकिन उन्होंने भी मानसी का हाथ कस के पकड़ लिया था और उनकी आंखें भीग रही थी। मानसी ने कहा माता जी कहीं नहीं जाएंगे तुम बच्चों को बुला लो और यहां ही कोई डॉक्टर को बुला लो। डॉक्टर वैद्य इत्यादि ने भी अपना अपना इलाज तो कर परंतु उनके चेहरे से ही निश्चित था
कि अब यह ज्यादा दिन नहीं रहेंगी। दोनों दिन मानसी अपनी सासू मां के पास उनका हाथ पकड़ कर ही बैठी रही बच्चों को भी जब हॉस्टल से बुलवाया गया तो वह भी माता जी के पास बैठकर धार्मिक पुस्तक पढ़ते रहे। मनन अपनी माता जी को अस्पताल में जाना चाहता था
और जब उसने निश्चित कर ही लिया था कि मैं माता जी को अस्पताल लेकर ही जाऊंगा उसके कुछ समय बाद ही माताजी की मृत्यु हो गई। पूरे 13 दिन तक बिना वजह सरपंच बनकर सब अपनी अपनी राय दे रहे थे कि तुम्हें माता जी को बड़े अस्पताल लेकर जाना चाहिए था वगैरा वगैरा।
13वीं होने के बाद जब मनन ने भी मानसी को कहा कि अगर हम माताजी को बड़े अस्पताल ले जाते तो शायद वह बच जाती तो मानसी ने कहा मैंने अपना फर्ज पूरा किया है, मैंने सेवा में कहीं कोई कमी नहीं करी है, माता जी का हाल अस्पताल से आने के बाद ही ज्यादा खराब हुआ मैं उनको उनके अंत समय में उनके बच्चों से दूर उन्हें अंजान डॉक्टर के पास प्रयोग के लिए नहीं छोड़ सकती थी।
मैंने महसूस किया है वह अंत समय भी बच्चों को सामने देखकर और मेरा हाथ पकड़ कर दुनिया छोड़कर जाते हुए भी वह बेहद संतुष्ट थी मैं भी संतुष्ट हूं क्योंकि मैंने अपना फर्ज निभाया है। जब तुम उन्हें अस्पताल ले जाने की बात कर रहे थे तो उनके चेहरे का दुगना हुआ दर्द मुझे दिख रहा था।
पाठकगण जैसा कि लोगों ने कहा कि उन्हें अस्पताल ले जाना चाहिए था या कि जैसा मानसी का ख्याल है वह सही है कृपया आप कमेंट द्वारा बताएं यह सही हुआ या गलत।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा