पॉश इलाक़े में आज भीड़ कुछ ज़्यादा थी। विशाल और तन्वी की “वेडिंग एनिवर्सरी पार्टी” थी — इंस्टाग्राम पर क्या जोड़ी है और ट्रेंड कर रहे थे। हर कोई उनकी मुस्कुराती तस्वीरें शेयर कर रहा था।
तन्वी लाल रंग की डिजाइनर ड्रेस में कैमरे की ओर मुस्कुरा रही थी, और विशाल उसके कंधे पर हाथ रखे हुए, जैसे किसी फ़िल्म का सीन दोहरा रहा हो। हर फ़ोटो में मुस्कान, हर वीडियो में रोमांस — लेकिन असलियत कैमरे के फ्लैश बंद होते ही मिट जाती थी।
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तन्वी और विशाल की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों कॉर्पोरेट वर्ल्ड के चमकदार नाम थे — तन्वी एक फैशन ब्रांड की मार्केटिंग हेड और विशाल एक टेक स्टार्टअप का फाउंडर। उनकी जोड़ी सोशल मीडिया पर ‘परफेक्ट’ लगती थी — हवाई यात्राएँ, ब्रांडेड कपड़े, और प्यार से भरे कैप्शन।
पर हकीकत में, वो एक-दूसरे से बहुत दूर जा चुके थे।
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“तुम्हें पता है, विशाल?” तन्वी ने पार्टी के बाद गिलास टेबल पर रखते हुए कहा, “आज भी तुमने एक बार भी ये नहीं पूछा कि मैं कैसी हूँ।”
विशाल ने मोबाइल से नज़र नहीं हटाई, “तन्वी, तुम्हारी तबीयत तो ठीक लग रही है। और वैसे भी, आज सेलिब्रेशन का दिन है, शिकायत का नहीं।”
तन्वी की आँखों में थकान झलक रही थी, “सेलिब्रेशन? किस चीज़ का? हम तो बस दिखावा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग हमें ‘आदर्श जोड़ा’ कहते हैं, लेकिन असल में हम तो साथ रहकर भी अकेले हैं।”
विशाल ने झुंझलाते हुए जवाब दिया, “तन्वी, आजकल सब यही करते हैं। हर किसी की ज़िंदगी इंस्टाग्राम पर परफेक्ट लगती है। ये ज़रूरी नहीं कि सबकुछ असली भी हो। बस दिखता अच्छा होना चाहिए।”
तन्वी मुस्कुरा दी, लेकिन वो मुस्कान दर्द से भरी थी — “तो क्या हमारे रिश्ते में भी अब बस ‘दिखना’ ही बचा है?”
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कभी तन्वी उसके साथ छोटी-छोटी बातों में हँसती थी। बारिश में कॉफी पीना, लंबी ड्राइव्स, साथ फिल्में देखना — सब अब यादों में था। अब उनके बीच बस मीटिंग्स, ईमेल्स और पोस्ट की प्लानिंग रह गई थी।
उनके बीच का संवाद “कैसे हो?” से बदलकर “पोस्ट कर दी?” तक सीमित हो गया था।
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एक शाम तन्वी ऑफिस से लौटी तो देखा, विशाल अपने लैपटॉप में बिज़नेस प्रेजेंटेशन बना रहा था। उसने धीरे से कहा, “विशाल, हम दोनों आखिरी बार सच में कब साथ बैठे थे? बिना फोन, बिना कैमरा, बस… बात करने के लिए?”
विशाल ने जवाब नहीं दिया। तन्वी ने गहरी साँस ली, “तुम्हें पता है, हमारे रिश्ते की तस्वीरें अब भी बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन वो तस्वीरें सिर्फ स्क्रीन पर हैं… असल में नहीं।”
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अगले दिन तन्वी ने सोशल मीडिया पर अपनी और विशाल की पुरानी मुस्कुराती तस्वीर पोस्ट की — लेकिन इस बार कैप्शन था:
> “कभी-कभी जो सबसे खूबसूरत दिखता है, वो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ होता है।”
लोगों ने कमेंट किए — कमेंट भी ऐसे थे कि सब फूले नहीं समा रहे थे , परफेक्ट कप्पल ऐसा कप्पल हमने देखा नहीं
किसी ने ये नहीं समझा कि वो कैप्शन दरअसल एक अलविदा था।
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कुछ हफ्तों बाद तन्वी ने एक छोटे फ्लैट में शिफ्ट कर लिया। अब उसके पास न कोई पार्टी थी, न फ़ोटो शूट। बस शांति थी। वो अपनी खिड़की से सूरज ढलते हुए देखती, और सोचती —
“शायद सच्चा प्यार वो नहीं होता जो दुनिया को दिखे, बल्कि वो जो तुम्हें अंदर से सुकून दे।”
विशाल अब भी अपने बिज़नेस और शो-ऑफ में व्यस्त था। कभी-कभी वह तन्वी की पुरानी पोस्ट्स देखता और सोचता, “कहीं कुछ तो रह गया।” लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।
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एक दिन तन्वी को किसी इवेंट में बुलाया गया — “सक्सेसफुल वूमेन कॉन्फ़्रेंस” में। मंच पर उसने कहा,
> “हमने रिश्तों को भी ब्रांड बना दिया है। हम कैमरे के सामने मुस्कुराते हैं और भीतर चुपचाप टूटते हैं। दिखावे की इस दुनिया में सच्चे एहसास धीरे-धीरे मर रहे हैं। अगर कोई आपको वाकई चाहता है, तो वो आपको ऑनलाइन नहीं, आपके दिल में समझेगा।”
तालियाँ बजीं, लेकिन तन्वी जानती थी — ये तालियाँ उसकी जीत के लिए नहीं, बल्कि उसकी सच्चाई के साहस के लिए थीं।
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शाम को वो घर लौटी, खिड़की से आसमान देखा। बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी — वही बारिश, जो कभी विशाल के साथ कॉफी पीते हुए उसे बहुत प्यारी लगती थी।
अब भी वो मुस्कुराई, लेकिन इस बार वो मुस्कान असली थी — बिना किसी कैमरे, बिना किसी दिखावे के।
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अंत:
कभी-कभी एक रिश्ता टूटना, किसी इंसान का बिखरना नहीं होता — बल्कि उसका खुद को वापस पाना होता है।
तन्वी अब अकेली थी, मगर झूठे दिखावे से आज़ाद थी।
सुदर्शन सचदेवा