दीपावली का पर्व था, जहां सारा जग खुशियां मना रहा था वहीं रोहन बेचारा उदास सा बैठा अपने कमरे में टीवी देख रहा।उसने सोचा था,शादी के बाद की इस पहली दिवाली को वो नेहा संग धूमधाम से मनाएगा पर रमा ने जैसे उसकी खुशियों पर पानी फेर दिया।बेटे की खुशियों को नजरंदाज करते हुए
रमा दीपावली की तैयारियों में लगी हुई थी।उसे तो इस बात का जैसे कोई मलाल ही नहीं था,कि इतने बड़े पर्व पर उसकी बहु उसके बेटे के साथ नहीं है।शाम को जब वो घर के बाहर रंगोली बना रही थी,तो रोहन से रहा नहीं गया वो चिढ़ते हुए रमा से बोला -“मां,ये आप रंगोली क्यों बना रही हो?”
“तुझे पता नहीं दीपावली पर द्वार पर रंगोली बनाना शुभ होता है।घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है।” “वाह मां..वाह,गृहलक्ष्मी को तो आपने घर से जाने के लिए मजबूर कर दिया और लक्ष्मी जी के आगमन की कामना कर रही हो।
“रोहन ताली बजाते हुए व्यंग्यात्मक स्वर में बोला। “हम्म…मैंने किसी को जाने के लिए नहीं बोला,वो अपने आप गई है।”रमा गुस्से से बोली। “मां आप बहु के त्याग व समर्पण को भूल गईं।पापा और आपकी सेवा में कोई कमी ना रहे उस बेचारी ने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी।
आपको कोई दिक्कत ना हो इसलिए बेचारी एक शहर में होकर भी अपने मायके नहीं जाती थी।मगर आपको तो बस इस बात की चिढ़ थी,कि मैंने अपनी मर्जी की लड़की से शादी कैसे कर ली?बेचारी को रोज ताने दे देकर इतना दुखी कर दिया,कि वो घर छोड़कर चली गई।आपने और पापा ने मुझे अपनी भी कसम दे दी कि मैं उसे लेने नहीं जाऊं?
अब आप दोनों पति पत्नी दिवाली मनाओ मुझसे कोई उम्मीद नहीं रखना क्योंकि मैं अपनी लक्ष्मी के बिना कोई त्योहार नहीं मना सकता।”कहकर रोहन अपने कमरे की ओर जा ही रहा था,कि घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई।रोहन ने देखा नेहा अपने माता-पिता के साथ गाड़ी से उतरी उसने दरवाजे पर रंगोली बनाती हुई
रमा के पैर छुए।रमा नेहा को देखकर पहले तो आश्चर्यचकित हो गई फिर उसे और उसके माता-पिता को अंदर आने को कहा।रोहन को देखकर नेहा की आंखों में आंसू आ गए वो उससे लिपटकर रोने लगी।रोहन उसे प्यार से सहलाते हुए बोला – “पगली
आज तो अपनी पहली दिवाली है,आज रोने का दिन नहीं खुश होने का दिन है।मुझे तो मां ने तुमसे ना मिलने की कसम दे दी थी वरना मैं तुम्हें खुद लेने आ जाता।” “रोहन आज हमारा इतना बड़ा दिन था..इसलिए मैं भी तुमसे मिले बिना रह नहीं पाई और मम्मी पापा के संग आ गई।”
“समधन जी हमारी बेटी से कोई गलती हो गई हो तो आज के शुभ दिन उसे माफ कर गले से लगा लीजिए।”नेहा की मां रमा को मिठाई और शगुन का लिफाफा देते हुए बोली। “गलती आपकी बेटी की नहीं बल्कि गलती मेरी थी जो मैंने अपनी लक्ष्मी जैसी बहु की कदर नहीं की
और उसे पराया ही समझती रही।आज बच्चों की आंखों में आंसू देखकर मुझे अपने पर शर्म आ रही है।आप चिंता ना करें आज से मैं आपकी बेटी यानी मेरी गृहलक्षमी को कभी नाराज नहीं होने दूंगी।”कहकर रमा ने नेहा और रोहन को गले से लगा लिया।सारे गिले शिकवे मिट गए और सबने मिलकर खुशी खुशी दीपावली का पर्व मनाया।गृहलक्ष्मी के आगमन के साथ ही
खुशियों का भी आगमन हो गया।रोहन और नेहा को एक साथ खुश देखकर,रमा मन ही मन सोचने लगी…सच, बच्चे अपनी मर्जी से विवाह या कोई काम करते हैं तो माता पिता को चाहिए, कि उनके निर्णय का अपमान ना करके उसका स्वागत करें।यदि उनसे कुछ गलत हो भी गया है
तो उन्हें अपना साथ व स्नेह देकर उसमें सुधार करवाएं नाकि बेवजह हर समय कलह क्लेश करके घर का वातावरण और बच्चों का दाम्पत्य जीवन खराब करें।यदि माता पिता थोड़ा समझदारी से काम लें तो अपना वा बच्चों का जीवन खुशहाल बना सकते हैं।
नेहा के प्रति रमा का बदला हुआ व्यवहार देखकर रोहन बहुत खुश हुआ और यही सोचने लगा..देर आए दुरुस्त आए..!
कमलेश आहूजा