राशि का गजानन बाबू से कोई खास परिचय नहीं था कभी आमने सामने की उसकी उनसे भेंट भी नहीं हुई थी केवल एक बार उन्हें दूर से देखा भर था घर के धुले
पैजामें कुरते में जिसकी सफेदी में हल्के पीलेपन की झलक दिखाई दे रही थी एक शख्स दूर अकेला खड़ा था राशि की मामी ने बताया कि वो गजानन बाबू हैं उसने परिचय हेतुउनके पास जाने की तत्परता दिखाई तो पास बैठी रमा नेउसे वापस बैठा दिया अभी रहने दो जीजी बाद में मिलवा दूंगी।
ननिहाल के एक शादी समारोह में राशि गई थी वहीं रमा भी सपरिवार आई थी रमा याने राशि की ममेरी बहन और गजानन बाबू रमा के पति । उसी समारोह में राशि ने महसूस किया कि गजानन बाबू वहां होकर भी वहां नहीं थे बिल्कुल एक अन नोटिस्ड कैरेक्टर की तरह ।
वजह बिल्कुल साफ थी। गजानन बाबू और रमा के व्यक्तित्व का विरोधाभास। जहां गजानन बाबू का पहनावा सीधा सरल वहां रमा एकदम विपरीत सलीकेदार साड़ी दमकते चेहरे पर बड़ी सी गोल बिंदी करीने से बांधे गए बालों का जूड़ा एकदम टिपटाॅप। कोई नहीं कह सकता था कि गांव की आंगन वाड़ी में काम करने वाली महिला है रमा।
रमा अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी पहचान बनाने में सफल रही थी इसीलिए राशि उसे पसंद करती थी और निरंतर उससे संपर्क बनाए रखती थी
राशि के चार मामा थे रमा उसके दूसरे नंबर के मामाजी की सबसे छोटी बेटी थी।।
मां के साथ जब कभी पहले ननिहाल जाती थीतो उसे इन्हीं मामाजी के यहां रहना सबसे अच्छा लगता था। स्टेट हाई वे के किनारे ही राशि के ननिहाल का गांव था
चारोंमामाजी खेतिहर किसान थे सबके हिस्से हो गए थे और बहुत बड़े परिसर में चारों मामाजियों के अलग अलग घर थे राशि की मां उनकी इकलौती बहन थी इसलिए जब भी राशि मां के साथ जाती वहां उनकी खूब पूछ परख होती थी। उसके तीन मामाजियों के यहां तो दो दो संताने ही थीं पर इन मामाजी का परिवार काफी बड़ा था सात बेटियां और तीन बेटे।
दो बेटियां बड़ी फिर तीन बेटों के बीच में चार बेटियांऔर उसके बाद सबसे छोटी बेटी रमा।
दो बहनों तथा दो भाइयों राम भैया तथा श्याम भैया का विवाह तो राशि के मामाजी के जीवन काल में ही हो गया था परन्तु पांच बहनों के विवाह की जिम्मेदारी सीधे सीधे राम भैया पर आ गई थीऔर उन्होंने भरसक इस जिम्मेदारी को निभाने का प्रयास भी किया क्योंकि श्याम
भैया तो पहले ही अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में नौकरी का बहाना बनाकर शिफ्ट हो गए थे। राम भैया की पत्नी सुधा भाभी भी बहुत अच्छी थी। इसी घटना क्रम के बीच उनके यहां भी तीन संतान का जन्म हो चुका था भैया काफी पढ़े लिखे थे अंग्रेजी में एम.ए.थे परन्तु परिवार की जिम्मेदारी के कारण वहीं पास के कस्बे के एक प्राइवेट हायर सेकेंड री स्कूल में अंग्रेजी के व्याख्याता बन गए थे ट्यूशन भी कर लेते थे
सुधा भाभी भी शिशु मंदिर मेंनौकरी करने लगी थीं। राम भैया शिक्षा का महत्व समझ ते थे इसलिए सभी भाई बहनों को पढ़ाने का उन्होंनें यथा स॔भव प्रयत्न किया भाई तो पढ़ गए पर कोई भी बहन हायर सेकेंड री से ज्यादा नहीं पढ़ पाई। बहनों के विवाह भी उन्होंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार अच्छे ही किए पर चौथी बहन के विवाह के बाद उन्होंने हाथ खड़े कर दिए मां से कहा
अब रमा के विवाह की जिम्मेदारी मैं नहीं उठा पाऊंगा। राशि की मामी याने रमा की मां के पास बोलने को कुछ नहीं था दूसरा बेटा तो पहले ही अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुका था तो उन्होंने अपने तीसरे बेटे रवि को ये जिम्मेदारी सौंपी
रवि की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी वह नौकरी के लिए प्रयास रत था वैसे एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाने जाता था वहां से कुछ आमदनी होजाती थी।
किसान परिवार होने के कारण अनाज आदि की व्यवस्था होने से काफी सहारा हो जाता था।मां ने जब रवि पर रमा के विवाह की जिम्मेदारी रवि को सौंपी तो पहले उसने पढ़े लिखे नौकरीपेशा नवयुवकों पर अपना ध्यान केंद्रित किया पर शीघ्र ही उसे अपनी गलती पता चल गई क्योंकि न रमा अधिक पढ़ी लिखी थी न उनकी अधिक दहेज देनेकी स्थिति थी।उन दिनों जबकि यह बात हैलड़कियों के लिए पैसे वाला पढ़ा लिखा वर मिलना आकाश कुसुम तोड़ने जैसा था।अब रवि ने अपनी खोज का रूख गांव की ओर मोड़ दिया तभी किसी ने उसे गजानन बाबू का पता दिया वहां उनके गांव जाकर रवि ने पता लगाया कि गजानन बाबू चार भाइयों में सबसे छोटे हैं तीनों भाई खेती करते हैं सब की घर गृहस्थी अलग अलग है माता पिताछोटे बेटे गजानन के साथ ही रहते हैं उनका मन खेती में नहींलगता इसलिए पिता ने घर में ही किराने की दुकान उसे खुलवा दी है अधिक पढ़े लिखे न होने के कारण कोई नौकरी करना भी संभव नहीं था। रवि को लगा कि रमा के लिए उपयुक्त वर की खोज पूरी हो गई है । रमा को देखते ही पसंद कर लिया गया रमा ने भी कोई विरोध नहीं किया क्योकि वह घर की परिस्थिति से पूरी तरह से वाकिफ थी।
और आनन फानन में रमा का विवाह गजानन बाबू से हो गया। तब तक राशि का विवाह भी हो चुका था उसके पति एक बिजनेस मेन थे कुछ पारिवारिक उलझनों के कारण राशि रमा की शादी में नहीं जा पाई थी।
कभी कभी ननिहाल केशादी समारोहों में ही राशि का मिलना रमा से हो पाता था बाद में मां नहीं रहीं तो राशि का भी एक प्रकार से ननिहाल जानाबंद ही हो गया। समय बीतता गया पर राशि और रमा का एक दूसरे सेजुड़ाव हमेशा बना रहा पहले पत्र फिर लैंडलाइन फोन और बाद में मोबाइल कभी कभी मिलना भी हो जाता था। राशि रमा के संघर्ष पूर्ण जीवन की गवाह थीउसने किस प्रकार घर संभाला उसी गांव की आंगनवाड़ी में नौकरी की बेटे को अच्छी शिक्षा देने का हर संभव प्रयास किया इसमे सफल भी हुई गजानन बाबू का सहयोग केवल कुछ आर्थिक मदद तक सीमित रहा खेती के कारण यह संभव हो सका ।
रमा और आयुष की महत्वाकांक्षा एवं कड़ी मेहनत के कारण ही आयुष एक डॉक्टर बन सका। बाद में बेटे की पसंद की एक डेंटिस्ट डॉक्टर नंदिता से रमा ने उसका विवाह भी कर दिया । अब तो आयुष और नंदिता की जिन्दगी में उनका बेटा प्रिंस भी आ गया था रमा ने अब अपनी आंगनवाड़ी की नौकरी भी छोड़ दी थी और प्रिंस को संभालने के लिए स्थाई रूप से अहमदाबाद में ही रहने लगी थी। राशि के भी बेटे बेटी दोनों का विवाह हो चुका था इंजीनियर बेटे बहू यू.के.में तथा बेटी दामाद नोएडा में थे ।राशि के पति बिजनेस में व्यस्त रहते थे इसलिए राशि का समय किटीपार्टी बागवानी में तथा कुछ सामाजिक संस्थाओं के काम में भी वह स्वयं को व्यस्त रखती थी। रमा और राशि में तो मोबाइल पर लगभग रोज ही बात होती थी ।रमा हर दिन स्टेटस पर अपने परिवार के फोटोज डालती थी कभी बेटे की कभी बहू की कभी खुद की और पोते की तो रोज ही। राशि कभी कभी गजानन बाबू केभी हालचाल पूछ लेती थी पर रमा सफाई से बात टाल देती थी कहती थी जीजी उनका मन बस उनकी दुकान में ही लगता है उसे छोड़कर कहीं भी जाना नहीं चाहते हैं।माता पिता भी साथ छोड़गए अब अकेले ही गांव में रहना चाहते है
ऐसे ही एक दिन जब राशि मोबाइल पर रमा के भेजे हुए फोटो देख रही थीतो बगीचे में झूले पर रमा के बा जू में सूट बूट में बैठे एक शख्स को देखकर चौंक गई।
जूम करके देखा तो कुछ पहचाना सा चेहरा दिखा अरे ये तो गजानन बाबू हैं ये तो बिल्कुल ही बदल गए हैं पहले की छवि की तुलना से एकदम विपरीत। तुरंत रमा को फोन लगाया और इस बदलाव का कारण पूछा रमा का जवाब था जीजी आयुष और नंदिता इस बार गांव जाकर इनको यहीं ले आए नंदिता के सामने इनकी एक नहीं चली उसने तो इनका पूरा कलेवर ही बदल दिया जो इतने सालों में मैं नहीं कर पाई नंदिता ने कर दिखाया। राशि ने फोन बंद किया और सोचने लगी प्यार अधिकार और सम्मान से क्या नहीं हो सकता बस किसी से भी बात मनवाने के लिए प्रयास सार्थक तथा उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध ता होना चाहिए । राशि ने मन ही मन नंदिता का आभार व्यक्त किया जिसने एक कुंठाग्रस्त व्यक्तित्व को अपनी ही कैद से बाहर निकालकर परिवार के साथ सहज और सम्मान पूर्वक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
लेखिका : मधुलता पारे