सुबह के 8 बजे थे और मीना रसोई में नाश्ते की तैयारी कर रही थी। उसने सुबह पहले अपने बेटे का टिफिन बना कर बेटे को स्कूल भेज दिया था। अब घर के सब लोगों का नाश्ता बना रही थी और साथ में पति का टिफिन भी बना रही थी क्योंकि उसके पति अजय टिफिन ले कर ऑफिस जाते है। लेकिन रसोई में हाथ के साथ उसकी जुबान भी चल रही थी। चूल्हे से ज़्यादा धुआँ शब्दों का उठ रहा था।
“आजकल की बहुएं इतनी देर से उठती है और फिर काम न करने के बहाने ढूंढती है। हमारे ज़माने में तो सूरज निकलने से पहले सब काम निपटा लिया जाता था,” शकुंतला देवी यानी उसकी सास ने भुनभुनाते हुए कहा।
“मांजी आप कुछ देर शांत बैठ जाए तो मैं फटाफट सब काम कर दूंगी। आप सुबह सुबह कलह कर के दिन बिगाड़ देती है!” मीना ने ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए चाय का पानी चढ़ा दिया।
“हां इस घर में सबसे बुरी मैं ही तो हूं। मेरी वजह से ही तो सबका दिन बिगड़ता है।” अब उसकी सास का जोर जोर से रोना पीटना शुरु हो गया था।
मीना के भीतर बहुत कुछ उबल रहा था, पर कुछ देर बड़बड़ाने के बाद उसने अपने होंठों पर ताला लगा दिया।
पिछले सात सालों से इस घर में रहने के बावजूद, वह अब तक सास के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाई थी।
सास हर बात में टोका टाकी करती थी,
कभी सब्जी में नमक ज़्यादा तो कभी सब्ज़ी फीकी। कभी उसके कपड़ो पर टोक देती, कभी साफ सफाई पर। हर बात में छींटाकशी करती थी।
वो कई बार इस टोका टाकी पर झुंझला जाती थी।
शुरुआत में वो सास के तानो पर चुप रह जाती थी लेकिन समय बीतने के साथ वो भी अब उनको जवाब देने लगी थी।
मीना ने कई बार सास से सही ढंग से बात करने की कोशिश की पर हर बार बात का अंत बहस में ही होता था।
उस सुबह भी, रसोई में छोटा-सा झगड़ा बड़ा रूप ले बैठा।
“मैंने तुमको कल ही कह दिया था कि मेरे लिए नाश्ते में मूंग दाल के चिले बनाना फिर पोहा क्यों बना दिया? तुमको पता है न पोहा से मुझे पेट में गैस बनती है!” शकुंतला देवी नाश्ते में पोहा देख कर मीना पर भड़क गई थी।
मीना ने धीरे से जवाब दिया, “मां आज उठने में थोड़ी देर हो गई इसलिए सबका एक जैसा ही नाश्ता बना दिया, सबके लिए पोहा बना दिया।”
“ये तो तुम्हारा रोज का बहाना है। रोज देर से उठती हो और नाश्ते में कुछ भी बना देती हो। इतने साल हो गए लेकिन कभी जल्दी उठ कर ढंग से नाश्ता बना कर नहीं खिलाया!” शकुंतला देवी ने तीखे स्वर में कहा।
उसके बाद मीना भी चिढ़ गई और सास को जवाब दे दिया जिससे बात बढ़ गई।
कुछ देर बाद मीना ने सधे हुए शब्दों से कहा, “ठीक है मांजी!! आप कुछ देर इंतजार करिए, मैं मूंग दाल के चिले बना देती हूं!”
“रहने दो!! अब बनाओगी तो न जाने और कितनी देर लगाओगी। मुझे अपनी दवाइयां लेने में देर हो जाएगी, मैं पोहा ही खा लेती हूं।” उसकी सास ने पोहे की प्लेट अपनी तरफ खिसकाते हुए कहा। वो बहुत देर तक बड़बड़ाते हुए नाश्ता करती रही।
मीना ने कुछ नहीं कहा, पर उसकी चुप्पी ही उसका जवाब थी।
दोनों सास बहु के बीच एक दीवार थी, अदृश्य पर बहुत ऊँची।
मीना का पति अजय दोनों के बीच पिसता रहता। ऑफिस से थका-हारा लौटता, पर घर का माहौल और ज्यादा थका देता।
एक दिन, अजय ऑफिस टूर से शहर से बाहर चल गया। उसके जाने के बाद घर में बस दो ही लोग बचे, सास और बहू।
घर में चुप्पी फैल गई थी। दोनों ही आपस में बात नहीं करती थी। ऐसा लगता था मानो घर ने साँस लेना छोड़ दिया हो। दरों दीवारों पर खामोशी पसर गई थी।
दूसरे दिन सुबह मीना ने देखा, सास नाश्ता करने बाहर नहीं आई और उनकी छींटाकशी की आवाज भी नहीं आ रही थी।
मीना को चिंता हुई तो वो सास के कमरे में गई। वहां सास बेसुध सोई हुई थी। मीना ने उनके माथे पर हाथ रखा तो पाया कि उनका माथा बहुत गरम था। उन्हें बहुत तेज बुखार था।
उसने अपनी सास को आवाज लगाई,
“मांजी आपको बुखार है, आपने बुखार की दवाई ली क्या?”
उसकी सास ने इन्कार में गर्दन हिला दी।
मीना दौड़ कर रसोई में गई और सूप बना कर ले आई साथ में बुखार की गोली भी लाई।
“लीजिए मांजी सूप पी लीजिए और फिर ये गोली ले लीजिए इससे बुखार उतर जाएगा।”
“तुम रहने दो। मैं अपने आप ठीक हो जाऊंगी। ज्यादा परवाह करने का दिखावा मत करो!” उसकी सास बुखार में भी उसे ताना मारने से बाज नहीं आई।
उनका ताना सुन कर मीना के होंठों पर स्निग्ध मुस्कराहट दौड़ गई।
“मांजी आप मुझसे बाद में लड़ाई कर लेना। पहले दवाई ले लीजिए, फिर ठीक हो कर जितना जी चाहे मुझसे लड़ लेना!”
शकुंतला देवी ने पहली बार उसे ध्यान से देखा। उसकी आँखों में सच्ची चिंता थी।
मीना ने उनको सहारा दे कर बैठाया और अपने हाथों से सूप पिला कर बुखार की गोली दी।
गोली दे कर मीना एक कटोरे में बर्फ और थोड़ा ठंडा पानी ले आई साथ में एक कपड़े की पट्टी भी ले आई। वो उस ठंडे पानी में कपड़े की पट्टी को डूबो कर सास के माथे पर रखती रही जिससे कुछ देर बाद उनका बुखार हल्का हो गया।
शकुंतला देवी ने धीरे से आंखे खोल कर मीना को देखा। पहली बार उन्होंने उसकी तरफ ममतामई नजरों से देखा।
शाम को फिर से उनको बुखार चढ़ गया। तब मीना उनको एक रिक्शा में बैठा कर डॉक्टर के पास ले गई। वहां डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कर के कहा,
“वायरल बुखार है, चार पांच दिन में ठीक हो जाएगा।”
वो चार पांच दिन मीना ने अपनी सास को बहुत सम्हाला। समय पर दवाई देना, हल्का भोजन बना कर खिलाना, बुखार होने पर ठंडे पानी की पट्टी माथे पर रखना! रात में भी वो बेटे को ले कर उनके कमरे में ही सोती थी, उनको अकेला नहीं छोड़ती थी।
पांच दिन बाद शकुंतला देवी एकदम स्वस्थ हो गई।
इन पांच दिनों में उनके दिल में मीना के लिए इतने सालों की जो कड़वाहट थी, वो उसकी सेवा देख कर अब मिठास में बदल गई थी।
अब वो मीना के साथ बहुत प्रेम से बात करती थी
उस दिन शाम को मीना ने चाय बनाई और दो कप लेकर शकुंतला देवी के कमरे में आई और एक कप उनको देते हुए बोली,
“थोड़ी फीकी बनाई है, आपको फीकी चाय पसंद है न?”
शकुंतला देवी मुस्करा दीं, शायद महीनों बाद।
“तुम मुझे जैसी भी बना कर पिलाओगी, मुझे अच्छी ही लगेगी। तुम्हारे रूप में मैने मां और बेटी दोनों को पा लिया है। मैं हमेशा तुम्हारे काम में कमियां ही निकालती थी और जलीकटी सुनाती थी। लेकिन फिर भी तुमने मेरी बहुत सेवा की, मुझे माफ कर देना बेटा!” शकुंतला देवी ने पहली बार मीना को “बेटा” कहा था, जिसे सुन कर मीना की आंखों के कोर भीग गए।
“मांजी, गलती मेरी भी है। मैं समझ ही नहीं पाती थी कि आपको कैसे खुश रखूँ! मैं भी आपको हमेशा उल्टा ही जवाब देती थी, मुझे भी आप माफ कर दीजिए।”
कुछ देर कमरे में खामोशी छाई रही। फिर शकुंतला देवी बोलीं,
“मीना, उम्र के साथ कुछ आदतें पक्की हो जाती हैं और समय के साथ बदलाव सहन नहीं होता है। कभी-कभी ये भी समझ नहीं आता कि प्यार कैसे जताएँ।”
मीना की आँखें भर आईं,
“और मैं हर बार इसे ताने समझती रही और आपके साथ झगड़ती रही।”
उस दिन उस घर की दीवारों ने कुछ अलग ही देखा। दो औरतें जो बरसों से एक-दूसरे को समझ नहीं पा रही थीं, पहली बार एक-दूसरे को सुन रही थीं।
रात को अजय ने फोन किया, “घर में सब ठीक है न?”
शकुंतला देवी ने मुस्कराकर कहा, “हाँ बेटा, अब तो सब कुछ ठीक है। तुम्हारी मीना ने मुझे अपनी सेवा से जीत लिया।”
और सच में, उस दिन के बाद उस घर में कलह की जगह हँसी गूंजने लगी।
कभी-कभी सुलह बस कुछ मीठे बोल और सेवा की दूरी पर ही होती है, जरूरत है पहला कदम उठाने की।
रेखा जैन