घर में हँसी नहीं थी बस चिंता चिल्लाहट और अशांति थी।
और चिंता चिता समान होती है। धीरे-धीरे जीविन को जला डालती है एक सुबह भोर का उजाला मुर्गे की बाँग सब सामान्य भोलू खेत जाने को उठा पर उसने अपने सीने पर हाथ रख लिया साँस तेज़ होने लगी कपकपी कदम डगमगाए और हाय हाय करते हुए भोलू गिर पड़ा गाँव का वैद्य फिर ऑटो से अस्पताल सब कुछ हुआ पर उसे बचा न सके।
गाँव का भोलू सिंह सीधा-सादा कम बोलने वाला पर मन से सोना। माता पिता छोटा भाई भाभी सब मिलकर रहते थे। घर में सुबह की शुरुआत होती थी गायों के रंभाने और मां के चूल्हे की लकड़ियों से जलने की आवाज़ से। दूसरी तरफ उसकी पत्नी रुचि जिसे शहर की हवा में रहने की आदत थी। कॉलेज-शहर का वातावरण बड़े कपड़े, फास्ट फूड, आधुनिक सोच और मेरी लाइफ मेरी चॉइस वाली दुनिया।
उन दोनों की शादी रिश्ता देखकर परिवार ने करवा दी। किसी ने ये न देखा कि उनकी आदतें सोच रहनसहन पहनावा पसन्द सबकुछ ज़मीन आसमान सी अलग थीं।
शादी के शुरुआती महीने तक तो सब शांत रहा पर फिर एक दिन सुबह-सुबह भाभी ने प्यार से कहा रुचि बहू आज दूध गर्म कर देना मैं बर्तन धो लूँगी। रुचि फोन पर स्क्रॉल करती बोली अरे आप कर लीजिए ना मुझे सुबह-सुबह ये देहाती काम नहीं होते। भाभी चुप रह गईं मगर भोलाराम ने धीरे से कहा अरे सीख जावेगी तू
फिक्र मत कर। रुचि सुन रही थी बोली देखिए आपको पता है न मुझे ये सब नहीं आता मैंने घर में कभी बर्तन-चूल्हा नहीं किया। आप ही करते जाओ या परिवार वाले।घर में पहली बार एक पतली सी दरार पड़ गई। समय बीतता गया जहाँ गांव में मिल-जुलकर एक थाली में बैठकर रोटियों की खुशबू के साथ हँसी बिखरती है वहीं रुचि को यह सब बैकवर्ड सोच लगता।
जब कोई मेहमान आता तो वह बिना चेहरे पर गर्मजोशी लाए बस चार बातें बोलकर चुप बैठ जाती। लोग कहते बहू को गाँव रास नहीं आ रहा। पर भोलू कहता समय लागेगा रे नई दुनिया है उसकी पर रुचि की आवाज़ अक्सर पूरे घर में गूंजती आप लोग इतने संकीर्ण क्यों हो? थोड़ा मॉडर्न बनो। मैं कोई गाँव की औरत नहीं हूँ
जो दिनभर घर में पिसूं। भाभी अपने आँचल से आँखें चुपके से पोंछ लेतीं। माँ बस आह भरतीं और कहती हे राम के भाग्य जगा है। भोलाराम हर काम में रुचि का हाथ बँटाता चाय बनानी हो कपड़े धोने हों बाज़ार जाना हो या पशुओं का काम। मगर इसके बदले उसे क्या मिलता सिर्फ चुप्पी ताने और अपमान। एक दिन वो खेत से थका-हारा लौटा रुचि गुस्से में थी। कितनी बार कहा था मेरे लिए शहर से वो फेसवॉश मँगवा दो भूल गए हमेशा बस अपने घरवालों को देखते रहते हो।
भोलाराम ने धीरे से कहा अरे भूल गया बहुरा मैं कल ले आवूँगा। रुचि चिल्लाई बस तुम में कोई समझ नहीं! सबके सामने मेरी इज्जत खराब करा देते हो। नही जरूरत मुझे किसी चीज की तुम अपने घरवालों को देखो। भोलू मौन रहा क्योंकि उसका मौन ही उसकी ढाल था। पर वही मौन उसकी अंदरूनी चीख भी था। दो बच्चे बड़ी बेटी पायल और बेटा चंदन इन्होंने अपने जीवन की सबसे सुहानी उम्र चिल्लाहटों में खो दी।पायल अपनी कॉपी बंद करके कहती पापा आज फिर पढ़ाई नहीं हो पाई। भोलाराम उसके बाल सहलाकर बस इतना कहता कोई बात नहीं बिटिया, कल कर लेवांगे पर अंदर से वह टूट रहा था। रुचि कोई बात हो या न हो बात-बात पर पति को आड़े हाथ ले लेती तुम मर्द लोग बस बाहर घूमते हो काम हम करते है बड़ा आया घर की इज्जत हर शब्द भोलू के दिल में तेज़ चाकू की धार की तरह धँसता था।रात को सब सो जाते पर भोलाराम जागता रहता छत को ताकता मन ही मन सोचता हे भगवान काश सब ठीक कर पाता। मेरी गलती कहाँ है। आखिर ऐसा क्या करूँ की कलह खत्म हो जाए मगर उसे कोई जवाब नही सूझता था।
घर में हँसी नहीं थी बस चिंता चिल्लाहट और अशांति थी।
और चिंता चिता समान होती है। धीरे-धीरे जीवित को जला डालती है एक सुबह भोर का उजाला मुर्गे की बाँग सब सामान्य भोलू खेत जाने को उठा पर उसने अपने सीने पर हाथ रख लिया साँस तेज़ होने लगी कपकपी कदम डगमगाए और हाय हाय करते हुए भोलू गिर पड़ा गाँव का वैद्य फिर ऑटो से अस्पताल सब कुछ हुआ पर कुछ नहीं बचा सके। डॉक्टर ने रुचि के काँपते हाथ पर हाथ रखकर कहा दिल का दौरा था बहुत तनाव में था ये आदमी अब हर तरफ सिर्फ स्नाटे को चीरती हुई चीखें थीं घरवालों की की सुबकियाँ गूंज रही थीं। जब भोलाराम की देह को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था। रुचि फफक कर गिर पड़ी। उसके हाथों पैरों बालों में मिट्टी लग गई। मगर वह रोते-रोते यही दोहरा रही थी मैंने क्या कर दिया वो तो मेरे लिए सब करता था मैंने कभी उसका दिल नहीं देखा। अब उसे समझ आ रहा था
जो चुप रहता है वो कमज़ोर नहीं होता वो अंदर से सबसे मजबूत होता है। पर जब वह टूटता है तो सारि दुनिया मिलकर उसे जोड़ नही सकती। कुछ महीनों बाद वही चाय की दुकान वही नीम का पेड़ और गांव के कुछ बूढ़े खड़े थे। एक बूढ़ा बोला देखो रे बोल्या था ना आदमी की कद उसकी रकम, घर, और कपड़े से नही उसके धैर्य से जानी है। दूसरा बोला
और औरत का असली गहना उसकी बोली होती है बोली मीठी हो तो घर स्वर्ग कड़वी हो तो घर राख हो जाता है।
रुचि अब बच्चों के साथ उसी गाँव में रहती थी। सुबह उठकर वही चूल्हा जलाती वही बर्तन धोती पर उसके हर काम में पछतावा था। कभी नीम के नीचे बैठकर फुसफुसाती कितना अच्छा था वो काश काश थोड़ा समझ लेती काश मैं अपनी जिद्द में न रहती। नीम के पत्ते हवा में सरसराते जैसे कह रहे हों जो खो जाता है उसका मूल्य उसके जाने के बाद पता चलता है पर तब तक देर हो चुकी होती है।रिश्ते जिद्द से नही धैर्य एक दूसरे के सम्मान उसकी सोच दूसरे की पसंद न पसंद का सामंजस्य बिठाकर चलते हैं। घर में बोलने की आज़ादी होनी चाहिए लेकिन जुबान की आग किसी की जिंदगी भी जला सकती है और सबसे ख़तर्नाक बीमारी है लगातार मानसिक चोट जिसका इलाज अगर समय से न हो तो इंसान साँसें लेता है पर जीना छोड़ देता है। जो है उसमें सन्तुष्ट रहने की कोशिश करो और सोचो जो तुम्हारे पास है उसे पाने के लिए लाखों लोग रोज भगवान से प्रार्थना करते हैं मगर उन्हें वो भी नसीब नही है। इसलिए खुद को खुशकिस्मत समझो कि कम से कम जैसा भी है सर पे छत पेट मे रोटी और हाथ पैर तो सलामत हैं।
के आर अमित
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश