” मां मैं सोच रहा हूं एक घर खरीद लूं।” संदीप ऑफिस से आते ही अपनी मां जया जी से बोला।
” पर बेटा ये घर है तो सही फिर दूसरे घर की क्या जरूरत है?” जया जी हैरानी से बोली।
” वो मां बात ऐसी है की शालिनी ( संदीप की पत्नी ) को ये घर अब छोटा लगता है बच्चे बड़े हो रहे हैं अब उन्हें स्पेस चाहिए इस घर में ये संभव नहीं !” संदीप ने समझाया।
” बरखुरदार ये क्यों नहीं बोलते अब तुम्हे अलग रहना है। घर छोटे होने का बहाना क्यों बना रहे हो छोटा घर ऊपरी मंजिल बनवा कर बड़ा करवाया जा सकता है पर जब दिल छोटा पड़ जाए उसका कुछ नही किया जा सकता और तुम्हारे छोटे दिल में तुम्हारे मां बाप के लिए अब जगह नही है !” तभी वहां संदीप के पिता रत्नेश जी आकार बोले।
” नही पापा वो….ये…!” संदीप नजर चुराते हुए हकलाने लगा।
” क्या…संदीप तुम अलग होना चाहते हो पर हमने तो तुम्हे या बहू को कभी कुछ नहीं कहा फिर क्या दिक्कत है तुम्हे यहां क्यों हमसे दूर रहना चाहते हो ?” जया जी हैरान परेशान हो बोली।
” जया ये क्या जवाब देगा छोड़ो तुम इसे वैसे भी जब दिलों में दूरी आ गई तो घर की दूरी कोई मायने रखती भी नही हम दोनो एक दूसरे के लिए है काफी है!” रत्नेश जी ने पत्नी को समझाया पर मां का दिल अपनी औलाद से दूर रहने के एहसास से ही सिहर रहा था।
” हां तो क्या गलत कर रहे हम एक घर ही तो ले रहे है अपने नाम से आप ये घर हमारे नाम कर दीजिए हम नहीं जायेंगे !” तभी वहां शालिनी आकर बोली।
” घर तुम लोगों के नाम करके अपना आखिरी सहारा अपने बुढ़ापे की लाठी भी काट डालूं इतना बेवकूफ तो मैं हूं नही। मेरे बाद जो है संदीप तुम्हारा और तुम्हारी बहन का है पर जीतेजी किसी का नहीं !” रत्नेश जी ने दो टूक कहा जिससे शालिनी जल भुन गई। घर हथियाने का आखिरी दाव भी बेकार गया। शालिनी यही तो नही चाहती कि बूढ़े बुढ़िया के मरने के बाद घर के हिस्से हो। इसलिए वो उनके जीतेजी अपने नाम करवाना चाहती थी पर इन्हे तो साथ रहने से ज्यादा घर प्यारा है। शालिनी सोचने लगी।
उधर जया जी सोच रही थी खटपट रहती है घर में पर ये उन्हें सामान्य लगी थी लेकिन वो ये नहीं जानती थी उनके बच्चे तो घर हथियाने के मंसूबे बनाए हुए हैं।
रत्नेश जी अलग बैठे सोच रहे थे अच्छा है बुढ़ापे में सिर पर छत तो है वरना ये हमारा सुपूत तो हमे सड़कों की खाक छानने को छोड़ देता।
शालिनी और संदीप गुस्से में वहां से चलते बने।
” मम्मी क्या हम सच में नया घर ले रहे है ? हम दादा दादी से अलग रहेंगे अब ? ” अंदर आने पर उनके सौलह वर्षीय बेटे आर्यन ने पूछा। दादाजी का लाडला आर्यन उनसे दूर जाने की सोच दुखी था।
” हां बेटा अब तो वैसे भी लेना पड़ेगा !” शालिनी बेड पर बैठते हुए बोली।
” मम्मी ..पापा आप ना ऐसा करो वो घर अभी से मेरे नाम पर ले लो !” आर्यन कुछ सोचते हुए बोला।
” नहीं बेटा बच्चों के नाम पर नहीं मां बाप के नाम पर घर लिए जाते है तुम इन सबमें मत पड़ो जाओ पढ़ाई करो।” संदीप उसे समझाता हुआ बोला।
” नहीं पापा जब मां बाप को बुढ़ापे में बच्चों के नाम घर करना ही है तो अभी क्यों नहीं कल को मैं भी आपसे घर अपने नाम करवाने को घर मे कलह करूँ मेरी बीवी इस अंकिता ( आर्यन की छोटी बहन) का घर में आना पसंद ना करे उससे अच्छा ये सब अभी डिसाइड हो जाना चाहिए घर मेरे नाम होगा तो कोई कलह नही होगी। ना मैं आपको छोड़ कर जाऊंगा !” आर्यन ज़िद करता हुआ बोला।
आर्यन की बात सुन संदीप और शालिनी सिहर गए वो अपने मां बाप के रूप में अपना भविष्य देखने लगे …ये क्या हुआ हमसे अपने लिए गड्ढा खुद से खोदने लगे …क्या होगा कल को आर्यन भी हमारे साथ ऐसा करेगा तो ..? क्या हम सह पाएंगे । क्या कल को अंकिता अपने मायके आने को भी तरसेगी ?….दोनो सोच रहे थे।
” नही नही ऐसा कभी नहीं होगा !” अचानक संदीप चिल्ला कर बोला।
” हां संदीप घर मां बाप के नाम पर ही अच्छे लगते हैं और बाद में सभी बच्चो का बराबर हक होता है उसपर हमसे गलती हुई जो लालच में अंधे हो गए थे !” शालिनी संदीप के पास आ बोली।
संदीप उठकर माता पिता के कमरे में पहुंचा पीछे पीछे शालिनी भी चल दी।
” अब क्या करने आए हो यहां एक बार बोल दिया घर अकेले तुम्हे नही मिलेगा मतलब नहीं मिलेगा !” रत्नेश जी उन दोनो को देख गुस्से मे बोले।
” हमे माफ़ कर दो मां पापा हम लालची बन गए थे पर अब हमे घर नही चाहिए आप चाहो तो पूरा घर संध्या ( संदीप की बहन) के नाम कर दो हमे बस आपका आशीर्वाद और स्नेह की छाया चाहिए ।” संदीप पापा के कदमों में झुकते हुए बोला।
” संदीप रिश्तों में दूरियां जो आई हैं तो अब घरों का भी दूर हो जाना भला। वरना तो सारी उम्र कलह रहेगा जो मैं इस घर मे नही चाहती !” जया जी अपना दुख छिपाते हुए कठोर शब्दों में बोली।
” मांजी दूरियां भरी भी तो जा सकती हैं क्या मां बाप बच्चों की गलती माफ नही करते । और अब कोई कलह नही होगा संध्या इस घर मे पूरे हक से आएगी !” शालिनी सास के पास बैठ उनका हाथ पकड़ बोली।
” अब शायद ये संभव नहीं !” रत्नेश जी कठोरता से उठते हुए बोले।
” ठीक है दादाजी आप चाहते हैं कि मम्मी पापा की गलती की सजा हमे मिले और हम आपके प्यार से दूर हो जाएं तो यही सही पर एक बात जान लो आप मैं भी अब आपकी बात मान पढ़ाई पर ध्यान नहीं दूंगा मुझे नही बनना अब इंजीनियर !” तभी आर्यन वहां आ रोते हुए बोला साथ में अंकिता भी थी।
अब मां बाप बच्चों से गुस्सा हो सकते पर दादी दादा पोती पोतियों से कैसे ..? आखिर मूल से प्यारा ब्याज जो होता है।
” ना मेरे बच्चे रोना नहीं ना अपना सपना खोना तेरे दादाजी तो तुझे इंजीनियर बनता देखने के लिए ही जी रहे हैं !” रत्नेश जी पोते के आंसू से आहत हो उसे गले लगाते बोले। अंकिता भी दादी से लिपट गई।
” तो हम साथ रहेंगे ना दादाजी आपने पापा मम्मी को माफ कर दिया ना !” आर्यन दादा के गले लगे बोला।
” हां मेरे बच्चे !” दादाजी बोले और संदीप को भी गले लगा लिया।
आज आर्यन की समझदारी ने सब कलह मिटा दूरियों को नजदीकियों में बदल दिया था साथ ही अपने मम्मी पापा को एक सीख भी दे दी थी।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#कलह