आखिर कब तक? – परमा दत्त झा

गोविंद सिर झुकाकर बैठा था जबकि मां बहन भाई सभी सबाल की बौछार कर रहे थे।

खासकर छोटे भाई की पत्नी (बहुरिया)का रोकर बुरा हाल था।

हुआ यह कि छोटी बहन रानी का विवाह एक एन आर आई लड़के से ठीक किया।लड़का स्वजातीय है और अमेरिका की किसी प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता है। करीब तीस साल से ज्यादा समय से वे सब वहां हैं।

सो पिछले दिनों अठारह अक्टूबर को विवाह हुआ और बीस को वे सब चले गये।छः माह के अंदर बीजा पासपोर्ट बनवाकर शिकागो बुलाने की बात हुई।

भाईजी,इसका मैट्रिक,आई ए की मार्कशीट में अलग जानकारी है ,वोटर लिस्ट में अलग इसलिए साथ नहीं ले जा पा रहा हूं।

ये सब भी अफसोस कर रहे थे और भारी मन से रानी ने अपने पति ,सास और श्वसुर को बिदा किया।

बेटी हमारी करोड़पति हो गई है,उतने बड़े कंपनी की मालकिन है।-जब मां ,चाची सब कहते तो यह खुशी से हवा में उड़ने लगती।

गोविंद भी अपनी क्षमता से अधिक खर्च कर चुका था। पूरे चालीस लाख का खर्च हुआ था।वे सब नूर ए सभा होटल में पांच दिन रहे थे।

फिर तो सभी खुश थे,मगर यह दस दिन में भेद खुल गया। हुआ यह कि जो भी जेवर चढाये थे वे सब नकली थे।

अब इसके चाचा और भाई का दिमाग ठनका-पता चला कि जेवर ही नहीं सारे कागजात गलत हैं कारण होटल में जो आई डी यानि परिचय पत्र दिया था उसमें 64-बी , पांडेय कालोनी कानपुर लिखा था।

अब गोविंद को समझ आ गया कि वे ठगी के शिकार हो गये हैं। पत्नी ,चाची और सबसे ज्यादा छोटी(भावहु)उचक रही थी।उसी के कहने पर कानपुर सच में लड़का देखने की बात तय हुई। हमलोगों का काम भोपाल में हैं,वे टूटी फूटी हिंदी बोले।

फिर तो तीनों लोग नूर ए सभा में आये , एक हफ्ते के अंदर सारा कुछ ठीक हुआ और फिर शादी (चट मंगनी पट ब्याह)हुई।बस पासपोर्ट बनवाने के नाम पर पांच लाख अलग दिए।

अभी शादी नहीं करना कारण उतना पैसा नहीं है।

अरे आप हां कह दें,सारा इंतजाम हो जाएगा।

फिर क्या करें,यह सोच नहीं पा 

रहा था।

झटपट में गांव की जमीन बेची और यहां का घर गिरवी रख कर पूरे पैसे का इंतजाम किया।आज शादी के दिन किसी तरह शादी करवा दी और लड़की होटल में गयी।

वे लोग घड़ियाली आंसू बहाने लगे।अब बहू कैसे जायगा , बहुत समस्या है।

ये सब भी साथ मेहनत कर रहे थे। फिर दिल्ली में वे लोगों को छोड़ भी आये।होटल का पांच लाख का बिल भी गोविंद ने भरा।

रानी बहुत दुखी मन से अपने पति को बिदा कर दी।वापस आ गये।मगर अभी परसो–

गोविंद के दफ्तर में काम करने वाला राकेश मंडल बोला कि ये लोग दिल्ली के डाबरी में रहते हैं।

लड़का आटो चालक है।

अरे ऐसा कैसे हो सकता है -इतना बड़ा फरेब।

ऐसा करो फोन नंबर पर बात करो हम ट्रेकर से ट्रेस करवाते हैं कि कहां से बात हो रही है।

फिर स्पीकर पर फोन रखकर रानी से बात करवायी गयी।झट लोकेशन दिल्ली जनकपुर का बता रहा था। मगर रानी के बोलने से उनको शक हो गया और सीम बंद कर दिया।

इतना पक्का हो गया कि वे सब फ्राड हैं।इस शादी में गोविंद बुरी तरह ढगे गये हैं।

सो एन आर आई लड़का का ख्वाब अधूरा रह गया।जोश , चुपचाप काम करो,इतने कम में इतना काबिल लड़का कहां मिलेगा जैसी बातें उन्हें डुबो चुकी थी।

इधर चाची और बाकी लोग रानी को कोस रहे थे बेचारी की किस्मत खराब है।सच में आंखों में पट्टी बंधी थी। पूरे पैंतीस लाख का खर्च वह भी गोविंद जैसे एक गरीब आदमी के लिए -तोडने को काफी था।

“अरे भाई होकर बिन बाप की बेटी के लिए इसने इतना किया,मगर किस्मत थोड़ी न खरीदी जा सकती हैं। दूसरी बात दो रात उसके बिता कर आई है-सो जूठन -चाची सुना कर कह रही थी और पूरी तरह काम खराब हो रहा था।

आज समझ में आ गया कि समाज के लोग कैसे होते हैं, गोविंद को सगे रिश्तेदारों ने चूना लगाया ।बस पांच लाख का कमीशन मुंह बंद किये था और चाची ने अपनी भतीजी बिना बाप की अनाथ लड़की को बर्बाद कर दिया।

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

error: Content is protected !!