कलह – मधु वशिष्ठ

रामेश्वर दास जी के तीन पुत्रियां और एक छोटा पुत्र था। उनकी दो बेटियों की शादी हो चुकी थी और अपनी तीसरी बेटी कला की शादी अपने दफ्तर के स्टोर पर काम करने वाले राघव से कर दी थी। रामेश्वर दास जी गवर्नमेंट में हेड क्लर्क थे। ज्यादातर दफ्तर के सामने वाली दुकान के मालिक से ने ही राघव के बारे में बताया था वह बहुत अच्छा लड़का है। जांच पड़ताल करने पर पता चला की राघव के पिता किसी प्राइवेट कंपनी में सुपरवाइजर पद से रिटायर हो चुके हैं। राघव का एक छोटा भाई और बहन भी थी। उनका एक दो मंजिला  घर भी था जिसमें कि ऊपर का हिस्सा उन्होंने किराए पर दे रखा था। छोटा भाई कॉलेज में पढ़ रहा था और बहन 12वीं क्लास में थी। घर में आय का साधन घर का किराया और राघव की तनख्वाह ही थी।

      राघव ने शादी करते समय रामेश्वर दास जी को स्पष्ट रूप में बता दिया था कि  जब तक बहन की शादी नहीं हो जाती तब तक वह घर से अलग भी नहीं हो सकता , पापा ने हम लोगों के लिए दो मंजिला घर भी बना रखा है। राघव के पिता ने भी स्पष्ट तौर से रामेश्वर दास जी को कह दिया था कि हमें दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए , हमें तो  घरेलू और संस्कारी लड़की की आवश्यकता है। 

        राघव की मम्मी भी राघव  सुलझे हुई विचारों की थी राघव का छोटा भाई भी अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ ट्यूशन भी पढ़ाता था। राघव की बहन भी घर के हर काम में पूर्ण रुप से सहयोग करती थी।  राघव अक्सर इतवार को भी ओवरटाइम कर लिया करता था इसके अलावा वह और अच्छी नौकरियों के लिए भी पढ़ाई करता ही रहता था। कला भी उस घर में बेहद प्यार पाकर बहुत ज्यादा खुश थी।

        मां राघव को  उसके खर्च के लिए उसीकी तनख्वाह के ₹5000 महीना दे दिया करती थी।  इसी पैसों में से बचत करके राघव ने कला के लिए एक स्मार्टफोन और उसकी मनपसंद दो महंगी ड्रेस भी दिलवाई थी। क

 कला को सावन में अपने मायके जाना था

          मायके में उसकी दोनों बड़ी बहने  भी आईं हुई थी और अगले इतवार को उसकी सहेली की शादी भी थी। मायके में भी कला का अधिकांश समय अपनी सहेली के साथ ही कट रहा था। उसकी शादी में  सहेली शानू ने भारी  पायल दी थी। तभी दोनों बड़ी बहनों ने कहा तुम्हारी सहेली ने तुम्हें इतनी भारी पायल दी है तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है कि तुम भी उसे कुछ महंगा ही उपहार दो। कला के पास भी इतने पैसे तो नहीं थे। राघव ने उसको मोबाइल और दो महंगे सूट भी दिलवाए थे तो अब तो उसके पास भी पैसे नहीं होंगे। 

 बहनों से पैसे उधार लेना अच्छा तो नहीं लगेगा, ऐसा ही कुछ सोचते हुए कला ने राघव जी को फोन किया कि मेरी तबीयत खराब है और मुझे डॉक्टर को दिखाना है। इलाज में कम से कम  ₹5000 तो लग ही जाएंगे आप मम्मी से लेकर मुझे ₹5000 दे जाओ।

             राघव को कला की तबीयत के बारे में बहुत चिंता हुई और उसने जब मम्मी से इस बारे में बात करी तो राघव की मम्मी ने हैरान होते हुए कहा कि अगर वास्तव में कला की तबीयत  तबीयत खराब है तो उसे यहां ले आओ अपने ई.एस.आई अस्पताल में ही उसे दिखा देना‌।  बात की गंभीरता को समझते हुए राघव ने फोन स्पीकर पर करके मम्मी और कला की बात करवाई। कला ने सासू मां से भी वही कहा कि मेरी तबीयत खराब है और मुझे ₹5000 भिजवा दो। डॉक्टर को दिखाना है। राघव की मम्मी ने कहा अगर तुम्हारी तबीयत ज्यादा खराब है तो कल मैं राघव को  तुमको लेने को भेज दूंगी।  कला को बहुत गुस्सा आया और वह गुस्से में ही बोली मेरे आदमी की सारी कमाई तो आप रख लेती हो ।क्या जरूरत पड़ने पर मैं डॉक्टर को दिखाने के लिए भी ₹5000 की हकदार नहीं हूं। कोई जरूरत नहीं है, अपने बेटे को यहां भेजने की। ऐसा कहकर कला ने फोन काट दिया। राघव को उम्मीद भी नहीं थी कि कला उसकी मम्मी से इस तरह से भी बात करेगी। उसके बाद कला ने उसका फोन भी नहीं उठाया।

       राघव को भी कला का ऐसा व्यवहार बहुत बुरा लगा । मां ने भी कह दिया अब से तुम्हें अपनी तनख्वाह मुझे देने की जरूरत नहीं है अपना इंतजाम अलग ही कर लो। मुझे घर में कोई कलह नहीं चाहिए अब राघव मां को समझाए या कला को,?किसी तरह से मां को समझा-बुझाकर उसने इस बात के लिए मना लिया था कि कल मैं कला के घर जाऊंगा और  उसकी बीमारी के बारे में जानकर आऊंगा।

             दूसरे दिन बहनों के सामने जब कला ने अपने माता पिता को यह बतलाया कि उसकी सासु मां ने उसकी बीमारी के नाम पर भी  उसको पैसे देने से मना कर दिया और उसके पति के सारे पैसे मां ही रख लेती है। बस एक बार किसी के बारे में विचार बदलो तो ढूंढ ढूंढ कर उनकी बुराइयां भी मिलने लगी और साथ में घर में उसकी मां और बहनों की सहानुभूति भी।  बस फिर क्या था अपने अपने तरीके से सब उसके साथ शोक व्यक्त कर रहे थे।

       दूसरे  दिन दुकान से सीधा राघव जब ससुराल आ गया और कला ने उससे पैसे मांगे तो राघव ने उसे देखते हुए कहा तुम तो बिल्कुल सही लग रही हो। हां, ठीक हूं, तो क्या मुझे पैसों की जरूरत नहीं पढ़ सकती। कला ने चिल्लाकर कहा? ठीक है कोई कारण तो बताओ? घर में किसी ने भी राघव से सीधे मुंह ना बोला तो वहां उसने ना कुछ खाया और ना ही किसी ने उससे कुछ पूछा। दूसरे दिन जब वह सुबह घर से जाने के लिए निकला तो कला ने तो उसके साथ जाने से साफ इंकार कर दिया और कोई भी देखने भी नहीं आया।

      अपनी सहेली की शादी में तो कला ने अपनी तरफ से अपनी दूसरी नई पायल उसको उपहार स्वरूप दे दी थी लेकिन अब तक उन दोनों घरों के बीच कड़वाहट इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि दोनों के मिलने की कोई सूरत ही नहीं दिखाई दे रही थी।

       अब तीज के बाद जब सारी सहेलियां अपने-अपने घर वापिस जा रही थी तो कला को अपना सासू मां से किया हुआ व्यवहार तो याद आ रहा था पर अपने मन को उसने यही कहकर समझा लिया कि वास्तव में यह लोग इतने बुरे हैं कि  जरूरत पड़ने पर भी पैसे नहीं दे सकते लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था। राघव की रह-रहकर याद आती थी।

       यही हाल राघव जी का भी था बहुत गुस्सा था कला के ऊपर लेकिन फिर मन में यह भी तो आ रहा था कि  कला पहली बार पैसे मांग ही तो रही थी तो हो सकता है कारण बताना ना चाह रही हो ,मैं उधार लेकर भी उसे पैसे दे सकता था तब मुझे  पता भी चल जाता कि वह पैसे  कहां खर्च करती ? 

       दोनों के घर पर एक दूसरे के प्रति एक दूसरे के मन में बेहद जहर भरा जा रहा था। 

    इस महीने तनख्वाह मिलते ही राघव ने कला को फोन करा  तो वह जैसे फोन का इंतजार ही कर रही थी, राघवजी ने कला को फोन करके कहा मैं तुम्हारे घर तो नहीं आऊंगा वही पार्क में जहां हम मिलते हैं आ जाओ और अपने ₹5000 ले जाओ। उसकी वजह से ही तो तुम संबंध तोड़ रही थी, अब मैं ही तुमसे कोई संबंध नहीं रखूंगा। ऐसा कह तो दिया था लेकिन कला के आने के लिए हां बोलने के बाद बहुत बेचैनी से राघव कला का इंतजार कर रहा था।

           पार्क में जब दोनों मिले -गुस्सा तो मानो कला के आंसुओं के साथ बह चुका था। दोनों पार्क में बहुत देर तक बैठे रहे, बातें करते रहे। जब राघव ने पैसे देने की कोशिश की तो कला ने बताया कि अब उसे पैसों की जरूरत नहीं है मैं तो सिर्फ अपनी सहेली को पायल देने के लिए लेना चाहती थी। बेवकूफ! तूने मुझे पहले बताया क्यों नहीं? ऐसा बता देती तो कोई भी बात बढ़ती ही क्यों? मैं किसी से भी उधार लाकर दे देता। ना इधर घर में ना उधर घर में किसी को भी कुछ भी पता नहीं चलता। मेरे होते हुए मेरी पत्नी किसी के भी सामने अपने आप को कमतर समझे मैं ऐसा थोड़े ही सहन कर सकता था। बातों ही बातों में रात हो गई। बस अब और इंतजार नहीं। कला को लेने के लिए राघव कला के साथ जब उसके मायके गया तो उसके माता-पिता भी हैरान थे लेकिन कला ने अपना सामान पैक करा और जाने की आज्ञा मांगी, हैरान से माता-पिता ने उसे विदा कर दिया। ससुराल में कला ने जब पैर छूकर सासू मां से माफी मांगी तो वह भी हैरान थीं लेकिन बहू के लौटने की खुशी भी थी।  घर आने के बाद दोनों ने कसम खाई कि अब एक दूसरे से कुछ भी छुपा कर कलह का वातावरण नहीं बनने देंगे।

कलह प्रतियोगिता के अंतर्गत लिखी कहानी

मधु वशिष्ठ

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