रक्षिता की निगाह घड़ी पर गई, पूरे 10 बज चुके थे ।
वह अपनी मेंज से फाइल समेट जाने के लिए उठी तभी ओबेरॉय टीम लीडर ने आकर कहा…” रक्षिता तुम्हें जो प्रोजेक्ट मिला था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ
आज ही प्रोजेक्ट मैनेजर को भेजने की अंतिम तारीख है तुम अभी घर नहीं जा सकती”।
वैसे भी तुम सुबह जहां ऑफिस का समय 8:00 बजे है तुम 10:00 आती हो, देर रात रुक कर काम भी नहीं करना चाहती यह सब कैसे चलेगा?
रक्षिता ने नम्रता पूर्वक कहा..” सर प्रोजेक्ट में थोड़ा सा ही काम बाकी है मैं अभी किए देती हूं “
रक्षिता पुनः अपनी आंखें फाइल में गड़ा कंप्यूटर के
‘की बोर्ड’ पर उंगलियां दौड़ाने लगी।
लगभग 11:00 बजे काम पूरा कर हैंडोवर कर दिया।
जल्दी ऑटो लेकर घर आई।
घर पहुंचने ही देखा… रसोई के गंदे बर्तनो से सिंक भारा पड़ा था, गैस चूल्हा भी साफ नहीं था ।
पति विवेक बेड पर लेटे उंगलियों से मोबाइल पर रील स्ट्रॉल कर मुस्कुरा रहा था।
उसने एक नजर रक्षिता पर डाल बोला…’ यह भी कोई ऑफिस से आने का समय है?
पप्पू बेटा बिना कुछ खाए -पिए सो गया ।
अब तो रक्षिती का पारा चढ़ गया उसने कहा…” तुम ऑफिस से 5:00 बजे का आए हो और यहां मोबाइल पर रील इंस्टॉल कर रहे हो क्या मैगी भी बना नहीं सकते थे ? कम से कम पप्पू तो खाकर सोता ।
विवेक ने झिड़कते हुए कहा.. तुम तो घर में घुसते ही कलह करना शुरू कर देती हो’
क्या सभी घर की औरतें खाना नहीं बनाती अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करती ?
अब तो रक्षिता का दिमाग और खराब हो गया उसने चीखते हुए कहा… क्या मैंने ही घर की सारी जिम्मेदारी सिर पर उठा रखने का ठेका लिया है ।
घर बाहर दोनों की !
तुम्हारा काम है ऑफिस से जाकर आराम करना और कुछ नहीं !
तुम थक जाते हो !.. क्या मैं नहीं थकती?
रक्षिता का सिर दर्द से फटा जा रहा था 10 घंटे ऑफिस में ड्यूटी करने के बाद अभी घर की ड्यूटी बाकी थी।
किंतु वह कलह कर घर को सिर पर उठाने से अच्छा सिंक में पड़े बर्तन को धोने लगी,
नल से गिरते पानी की आवाज उसके सिंसकियों की आवाज को दबा रहे थे।
शायद वह समझ रही थी औरतो के लिए काम के बाद भी काम जरूरी है ।
रोटी बनाकर, रोटी कमाने की दोहरी जिम्मेदारी तो औरतों के ही हक में है।
क्योंकि यही पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता है जिसमें सदियों के बाद भी बदलाव नहीं हुआ।
समाप्त
स्वरचित
आराधना श्रीवास्तव