अपनत्व की छांव – खुशी

राधा और मीना दो बहने थी।पिता राजेश और मां रजनी एक छोटा सा खुशहाल परिवार था।राजेश MR था और रजनी स्कूल में अध्यापिका।राधा और मीना दोनो आठवीं में पढ़ती थी।तभी एक सड़क दुर्घटना में उनके माता पिता का देहांत हो गया।उनकी दुनिया उजड़ गई।

मामा निरंजन और मामी लक्ष्मी, चाचा राकेश और चाची गरिमा सब आए।दादी जानकी चाहती थी दोनो पोतियां साथ रहे पर सबके अपने घर परिवार बच्चे थे।मामा निरंजन के तीन बच्चे थे रवि,मोहन और बेटी कृष्णा इसलिए वो राधा को अपने साथ ले गए।उधर चाचा राकेश के भी दो बच्चे थे वो भी चार बच्चों का भरण पोषण करने में असमर्थ थे। इसलिए वो मीना को ही सिर्फ साथ ले गए।

दोनो बहने एक दूसरे के बिना रहने की कल्पना से ही उदास हो रही थी।दादी भी दुखी थी पर बोली बेटा तुम्हारे भविष्य के लिए ऐसा करना पड़ेगा।घर किराए का था सारा सामान बेच दिया।बच्चों ने अपने सामन में मां पिताजी की निशानियां रख ली।pf aur graduity  का जो भी पैसा आया वो चाचा और मामा ने एक खाते में जमा करवा दिया ताकि वो बच्चों की शादी के काम आ सके।

राधा बैंगलोर तो मीना लखनऊ पहुंच गई।चाचा का घर बड़ा था।सरकारी नौकरी थी इसलिए वहीं से क्वार्टर मिला था।उनके बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते थे वहीं मीना का भी दाखिला हो गया।जिंदगी चल निकली बहनों की शुरू शुरू में रोज बात होती फिर धीरे धीरे कम होती होती गई। मीना को एक खुशहाल जीवन मिला क्योंकि दादी थी

और चाची भी मीना को बेटी की तरह ही रखती थी। क्योंकि चाचा जी के दो बेटे ही थे कृष्ण और मोहन तो मीना आने से उनकी बेटी की कमी पूरी हो गई।उधर मामा बैंगलोर में एक it कंपनी में थे।बैंगलोर महंगा शहर 3 बच्चे, किराए का घर  उस पर ये जिम्मेदारी ।राधा का एडमिशन वही के सरकारी स्कूल में करवा दिया गया जहां उसे भाषा की बहुत परेशानी हुई।

वो पढ़ाई कर पिछड़ गई।मामी सोते जागते ताने सुनाती घर के काम करवाती।उसकी जिंदगी नरक थी। जैसे तैसे बारहवीं पास की और  मामा ने उसके लिए लड़का देखना शुरू किया।उनके पड़ोस में रमेश का परिवार रहता था।वो मद्रासी था परिवार में पिता रमेश का देहांत हो चुका था।मां राजलक्ष्मी और बेटा सोमेन था सोमेन पिता का कारोबार संभालता था

बचपन से ही वो और राधा साथ पढ़ते थे उसे तभी से राधा पसंद थी।राजलक्ष्मी ने राधा का हाथ मांग लिया।मामा ने राधा की दादी से बात की दादी और चाचा मीना को लेकर शादी में आए और जो उसका हिस्सा था वो भी लाए और राधा की शादी निपट गई।राधा मीना से मिल कर बहुत खुश हुई

और  वो दोनों अपनी बाते करने लगी। मीना अपनी खुशी और चाचा चाची के बारे में बता रही थी और राधा मामी के व्यवहार के बारे में बहने सुख दुख की  बाते करती रही। राधा की विदाई कर मीना लखनऊ वापस आ गई। राधा अपनी ससुराल आ गई अगली सुबह वो जल्दी उठी और रसोई में आई बोली सासू जी क्या काम करना है बताइए।

राजलक्ष्मी बोली बेटी इधर आ यहां बैठ पहले तो सासूजी नहीं मां कहो।जी मां कोई काम बताइए मै कर दूंगी।राजलक्ष्मी बोली बेटी तुझे बचपन से देख रही हूँ।बहुत काम कर लिया तुमने अब आराम करो अभी नई नई शादी हुई है घूमो फिरो।अगले दिन दोनों बच्चे घूमने चले गए और राधा के मामा।

वो किराए का घर छोड़ दूसरी जगह चले गए क्योंकि राजलक्ष्मी जिस तरह राधा को रखती थी सब तुलना करते थे कि राजलक्ष्मी कितना प्यार करती हैं राधा को और उसकी मामी सारा दिन चिल्लाती थी। राजलक्ष्मी राधा को बहुत प्यार करती थी और राधा भी राजलक्ष्मी पर जन छिड़कती थी।

राधा अपनी मां का सा प्यार राजलक्ष्मी से पा रही थी।  राधा को फिर वही अपनत्व की छांव मिल रही थी जिससे वो वंचित हो गई थी।पति और सास दोनो उस पर जान छिड़कते थे।अब वो रोज मीना और दादी चाची से भी बात कर पाती।मामा भी उसे सुखी देख खुश थे और सोचते थे कि शायद अब मै बहन का कर्ज चुका पा रहा हूं शायद मुझे माफी मिल जाए क्योंकि मेरे घर में तो उसे वो प्यार सम्मान कुछ नहीं मिला।राधा तीज त्योहार पर मामा मामी से मिलने जाती

और गाहे बगाहे उनकी मदद भी कर आती। उधर मीना की शादी तय हो गई और राधा सपरिवार अपने चाचा के यहां आई ।चाची बोली बेटा यदि तीन बच्चों की जिम्मेदारी ना होती तो तुझे भी अपने पास ही रखती।राधा बोली चाची जो होना था वो हो गया

अब आगे बढ़ना चाहिए आज मै सुखी हु तो जो बीत गया उसका मुझे कोई दुख नहीं है।मीना की शादी धूम धाम से हुई और वो अपने घर चली गई।राधा भी दादी के पास कुछ दिन रुक कर घूम फिर कर वापस बैंगलोर लौटने लगी तभी चाचा जी ने उसे एक लिफाफा दिया बोले बेटा ये रखो ये तुम्हारे पिताजी का है आधा तुम्हारी शादी में दिया था

और आधा मीना का था परंतु मीना का कन्यादान और सब हमने किया और उसने उसने अपने हिस्से का पैसा जो भाई साहब का था और मैने और मां ने  तुम दोनों के विवाह के लिए रख दिया था वो पैसा वो तुम्हारे नाम कर गई है ताकि तुम्हे कोई परेशानी नहीं हो तुमने बहुत कष्ट उठाए है।

नहीं चाचा जी मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं अब मुझे अपनों के प्यार की छांव मिली है जिसमें मैं खुश हूं ये आप मीना को ही दे दीजियेगा।सोमेन आगे आया और बोला चाचा जी ये हमारा जिम्मेदारी है हम इसे सुख से रखेगा कभी कोई आंच नहीं आने देगा ये आप से वादा है और राधा और सोमेन अपने घर आ गए दो साल बाद राधा ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया उसकी सास और सोमेन ने सबको बुलाया सब राधा का सुख देख सुखी थे।

मीना और उसके पति विराज और  चाचा जी आए थे।मीना की गोद में उसकी प्यारी सी बेटी थी। आज दोनों बहने अपने अपने आंगन में अपनत्व की छांव में सुखी थी

और शायद उनके माता पिता भी उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे।बेटे का नाम करण हुआ और नाम रखा राजेश।मीना और राधा की आंखों में खुशी के आंसू थे।मामा मामी भी उन्हें आशीर्वाद दे रहे थे और कही मामी की आंखों में पश्चाताप था।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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