सुषमा का फोन बज रहा था ,इतनी रात गए किसका फोन होगा? सोचते हुए उसने उठाया!
राधा उसकी देवरानी का फोन था। “हेलो दीदि अम्मा जी की हालत बिल्कुल ठीक नहीं है, आप सबको बहुत याद कर रही है ।डॉक्टर ने जवाब दे दिया है। पता नहीं एक-दो दिन– -कहते-कहते राधा की आवाज रूंध गई।
“ठीक है, हम आते हैं कह कर सुषमा ने फोन बंद ही किया था कि, सुरेश जी, सुषमा के पति का फोन “सुषमा राजू का फोन आया था अम्मा की हालत- – “
“हां अभी -अभी मुझे भी राधा का फोन आया था,
“ मैं कल यहां का काम निपटा कर ही सीधे गांव पहुंचूंगा तुम्हारा क्या विचार है? सुरेश जी ने पूछा। “
“जाना तो पड़ेगा, वरना लोग कहेंगे देखो अंतिम समय भी नहीं-आये -”
“ठीक है तुम पहुंचो,” कह कर फोन कट हो गया।
अगली सुबह सुषमा ने अपनी दोनों बेटियों को अपनी बहन के घर भेज दिया ताकि उनकी स्कूल की छुट्टी ना हो, और वह अपने ससुराल जाने के लिए बस में बैठी।
रास्ते भर वह यही सोच रही थी पता नहीं सासु मां से मिल पाएगी या नहीं, और अगर देख भी पाई तो होश में होगी या नहीं। पता नहीं उसके पल्ले में कुछ आएगा भी या नहीं।
सुषमा दो-तीन घंटे में गांव पहुंच गई। राधा के साथ वह सासूमां के कमरे में गई।
अम्मा जी की आंखें बंद थी। राधा ने हाथ लगाकर आवाज दी। काफी मुश्किल से उन्होंने आंखें खोली।
“ कौन है? उन्होंने सुषमा को शायद पहचान ही नहीं !”अम्मा मैं सुषमा आपकी बड़ी बहू, सुषमा ने उनके पास जाकर कहां पर अम्मा जी कुछ बोली नहीं !
उन्होंने इशारे से राधा को बुलाकर कुछ कहां उसने उनके बिस्तर के नीचे रखी पोटली उनके हाथ में दे दी। उसमें उनके सोने के दो कंगन और सोने की चेन रखी थी। अम्मा ने चेन सुषमा के हाथ में रखकर कहां ‘सदा सुखी रहो’!
सुषमा कुछ असमंजस की स्थिति में थी तभी उन्होंने राधा को पास बुलाकर उसे कंगन देते हुए कहा इसका मान रखना बहू इतना कह कर उन्होंने आंखें मूंद ली।
रात में सुरेश जी भी आए
आते ही अम्मा जी के कमरे की और दौड़े। अम्मा ने बड़ी मुश्किल से आंखें खोल कर देखा और पहचानने की कोशिश की। उनके चेहरे पर एक मुस्कान आयी और उन्होंने आखरी सांस ली।
सुषमा बेटियों की स्कूल का बहाना कर 3 दिन में वापस आ गई। समय के नजाकत देख उस समय सुरेश जी ने कुछ कहा नहीं ।
तेरहवीं के बाद सुरेशजी शहर वापस आए।रात में सुरेश जी बोले “तुम्हें वहां रुकना चाहिए था!
बच्चियों को भी साथ ले जाती।
“ हां मम्मी हमें भी दादी को देखना था।”
“क्यों रुकना था? मेरी क्या जरूरत थी वहां? राधा थी तो सब देखने करने के लिए।”
“हां पर, तुम बड़ी बहू थी!”
सुरेश जी के इतना कहते ही सुषमा गुस्से में बड़बड़ाने लगी ‘हां कहने को तो मैं बड़ी बहू हूं पर मान मिला तो राधा को, सब उसी की पूंछ परख कर रहे थे। हम तो जैसे पराए थे।”
“ अरे वे लोग वहीं के रहने वाले हैं इसीलिए उन्हें सब जानते हैं।”
“ बाहर वालों की छोड़ो, जब घर वालों ने ही मान नहीं दिया,”सुषमा चिढ़ कर बोली।
किस मान-सम्मान की बात कर रही हो?’ अम्मा का सारा क्रिया कर्म तो मैंने ही किया! सुरेश जी बोले।
“ हां पर आपकी अम्मा ने सोने के कंगन तो राधा को ही पहनाएं ,जबकि मैं बड़ी बहू थी, तो उस पर मेरा हक बनता था।”
तुम्हे भी तो कुछ दिया होगा।’
“ हां यह कम वजन वाली चेनपकड़ा दी, पर वह सोने के कंगन! अम्मा जी ने ही कहा था कि यह कंगन उन्हें उनकी सास ने आखिरी वक्त में पहनाएं थे, उन्हें उनकी सास ने दिए थे। बड़ी बहू होने के नाते पीढ़ी दर पीढ़ी ये ‘सोने के कंगन’ बड़ी बहू का मान है, तो इस नाते कंगन की हकदार में थी पर्—-सुषमा गुस्से में आकर बोली
‘एक बात बताओ सुषमा !वो ‘सोने के कंगन’ याने बड़ी बहू का मान ,जिस मान-सम्मान की तुम बात कर रही हो उसे पाने के लिए तुमने क्या किया? मान सम्मान केवल बड़े होने भर से नहीं मिलता, उसके लिए तुमने अपनी जिम्मेदारी निभाई थी क्या? नहीं ना?
याद करो शुरू शुरू में हम लोग भी गांव में रहते थे, लेकिन तुम्हारी अम्मा से बनती नहीं थी तो, तुमने जिद करके यहां शहर में मुझे नौकरी ढूंढने के लिए मजबूर किया। उसके बाद कई बार अम्मा बाबूजी को मैंने बुलाया पर कभी भी तुमने उन्हें वह मान सम्मान नहीं दिया, तुम्हारा व्यवहार देखकर वे जल्दी ही वापस गांव लौट गए। जबकि राजू और राधा, राधा तो तुम्हारे ही उम्र की। वह भी नौकरी करती है ,पर उसने अम्मा के कहे अनुसार जैसा उससे बना सारे रीति रिवाज कुल की परंपराएं निभाई। अम्मा की विश्वासपात्र बनी,तो उस नाते कंगन की हकदार सच्चे अर्थों में वही थी। वहीं मान उसे मिला ।
सुषमा समझ गई, मान सम्मान केवल बड़े होने भर से नहीं बल्कि अपने व्यवहार से मिलता है और यहीं पर वह मत खा गई। और ‘सोने के कंगन’ से हाथ धो बैठी।
सोने का कंगन
लेखन–सौ प्रतिभा परांजपे