नीना का ससुराल लोकल ही था सो जब मन में आए मायके आ धमकतीऔर साधिकार अपनी फरमाइशें मम्मी मनीषा जी के सामने रखती। बेटी के मोह में वे उसकी सारी इच्छाएं पूरी करतीं। अपने ससुराल में वह ना तो ढंग से काम करती और ना ही उसका व्यवहार अन्य सदस्यों से सौहार्दपूर्ण था।बस अपनी मनमानी करती।उसका आए दिन मायके जाना किसी को पसंद नहीं था किन्तु वह किसी की नहीं सुनती बस उठाया पर्स और चल दी।ना तो समय का ध्यान रखती बस जाना है तो जाना है ।
यदि ससुराल में खाना मनपसंद नहीं बना तो चल देती मायके।आते ही मम्मी बहुत भूख लगी है जल्दी से कुछ अच्छा बना दो खाने के लिए।
मम्मी काम निपटा कर आराम कर रहीं होतीं पर उसे कुछ मतलब नहीं। मम्मी उठकर उसे कुछ मनपसंद बना कर देतीं।अब तक तो ठीक था अब उसके भाई अनय की शादी हो गई और उसका वही रवैया था बस अंतर इतना था कि अब वह गुंजा भाभी से बनाने को बोलती। नहीं बनाने पर या देर होने पर मां से शिकायत लगाती। पापा अनिल जी उसे हमेशा समझाने का प्रयास करते किन्तु वह उनसे भी उलझ जाती। क्या पापा अब मेरा इस घर में अधिकार नहीं है। क्या मैं यहां आ नहीं सकती, मुझे आने के लिए परमिशन की जरुरत पड़ेगी।तब अनिल जी पत्नी से कहते तुम्हारे ज्यादा लाड़-प्यार ने इसे बिगाड़ कर रख दिया, कुछ समझाओ।
अनिल जी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे और मनीषा जी गृहिणी। उनके दो बच्चे बेटा अनय और छोटी बेटी नीना थी। नीना अनय से चार बर्ष छोटी थी। वह बचपन से ही चुलबुली, ईर्ष्यालु एवं अपनी बात मनवाने वाली थी ।उसे हमेशा लगता मम्मी-पापा भाई को ज्यादा प्यार करते हैं। जबकि वह छोटी थी और बेटी सबको प्यारी थी किन्तु वह बात -बात पर भाई से झगडा करती पर सब उसका बचपना समझ अनदेखा कर देते। किन्तु बड़े होने पर भी उसका स्वभाव नहीं बदला। पढ़ाई पूरी होते ही पहले उसकी शादी कर दी।अब तक वह स्वयं दो बच्चों की मां बन चुकी थी किन्तु उसका रवैया नहीं बदला।
अनय की शादी के बाद सास बहू का मेल उसे फूटी आंख नहीं सुहाता।वह सोचती कैसे गुंजा भाभी को परेशान किया जाए।
चाय नाश्ते का काम निपटा कर पापा बेटे के काम पर जाने के बाद गुंजा अपने कमरे में जाकर लैपटॉप पर कुछ काम करने लगी और मनीषा जी धुले कपड़ों की तह लगा रहीं थीं कि तभी डोरवेल बजी। मनीषा जी ने दरवाजा खोला तो देखा नीना दोनों बच्चों के साथ खड़ी थी।
गुंजा को बाहर ना देख बोली मम्मी आप काम में लगी हो और वह महारानी क्या अभी भी आराम कर रहीं हैं।
नहीं बेटा अभी गई है कमरे में चाय नाश्ता निपटा कर।
तो आप कपड़े क्यों तह कर रही हो वह महारानी नहीं कर सकती क्या। मैं फिर कह रही हूं मम्मी डोर खींच कर रखो नहीं तो पछताओगी।
तभी गुंजा भी कमरे से बाहर आई पैर छू बोली दीदी कैसी हैं।
कैसी हैं, ननद कब से आई बैठी है तुम्हें तो चाय पानी भी पूछने की फुर्सत नहीं है। बनाओगी भी या यहीं खड़ी रहोगी।
हां दीदी अभी लाई।वह बच्चों के लिए
वार्नविटा वाला दूध, और गुंजा एवं मम्मी के लिए चाय बना लाई।
ये क्या भाभी टोस्ट, बिस्किट्स, नमकीन कोई अच्छा सा नाश्ता नहीं बना सकतीं थीं क्या।
आप जो बताओगी वहीं बना दूंगी, बताईए।
आप मेरे लिए तो गर्मा गर्म पकौड़े और बच्चों के लिए मेगी बना दें।
गुंजा किचन में जाकर बनाने लगी। बना ही रही थी कि नीना की आवाज आई भाभी कितनी देर लग रही है।
बस अभी लाई।
पकौड़े खा कर कम क्रिस्पी बने हैं ये क्या भाभी आपने मन से नहीं बनाये। बच्चे तो मेगी खाकर खेलने लगे। गुंजा भी नहाने चली गई। तभी नीना बोली मम्मी आज तो खाने में कुछ अच्छा बनवा दो। क्यों ना दाल बाटी चूरमा हो जाए।
बेटी के मोह में फंसी मां ने दाल बाटी बनाने की तैयारी शुरू कर दी। किचन में आकर नीना बोली मम्मी आप क्यों लग गईं उस महारानी को आराम करने के लिए लाए हैं क्या। बनाएगी वही आप चलो किचन से । मैं आई हूं तो मेरे पास बैठो।
ठहर बेटा दाल गला दूं।
जैसे ही गुंजा बाहर आई मम्मी बोली गुंजा मैंने दाल गला दी है कुकर चढ़ा देऔर बाटी का आटा लगा कर बाटी बना ले।
वह चुप खड़ी रही। तभी नीना का स्वर उभरा यह क्या , क्यों खड़ी हैं बनाने की इच्छा नहीं है क्या।
नहीं दीदी वो बाटी का आटा लगाना नहीं आता मम्मी जी बता दें तो मैं लगा लूं।
मायके से यह भी सीखकर नहीं आईं नीना कटु स्वर में बोली।
गुंजा को यह सुन बुरा तो बहुत लगा पर चुप रही। मम्मी जी आप आटा लगाना बता दें फिर मैं कर लूंगी कभी बनाई नहीं हैं तो अंदाजा नहीं है।
चल दाल चढ़ा मैं आती हूं।
उसके जाते ही नीना बोली मम्मी आपने भाभी को बहुत सिर चढ़ा रखा है कैसे पटर -पटर सामने से बोलती हैं।
कुछ दिन बीते कि नीना का फोन आया मम्मी क्या कर रही हो कब से फोन मिला रही हूं उठातीं क्यों नहीं।
वो बेटा मैं किचन में थी सो सुन नहीं पाई।
किचन में क्या कर रहीं थीं और वो महारानी क्या आराम फरमा रही है
नहीं बेटा रात से उसे बहुत बुखार है।
मम्मी आप बहुत भोली हो काम से बचने का सब नाटक है समझती नहीं आप।
चल बता कैसे फोन किया।
मम्मी मैं आज शापिंग करने जाऊंगी सो बच्चों को छोड़ जाऊंगी और खाना खाकर निकलूंगी खाना बनवा लेना।
पुत्री मोह में फंसी मनीषा जी स्वयं तो बेटी से परेशान थीं हीं अब उनके मस्तिष्क पर बार-बार भड़काने से असर होने लगा ।अब उनका व्यवहार बहू के प्रति दिनों सख्त होने लगा। उसके काम में मीन मेख निकालना,उस पर बात बात पर चिल्लाना, मायके वालों को कोसना,कम दहेज लाने का ताना मारना रोज का काम हो गया। बेटी ने उनका इतना ब्रेनवाश किया कि वे एक कठोर सास बन गईं। कहते हैं कि बार-बार रगड़ने से रस्सी भी पत्थर पर अपना निशान बना देती है सो मनीषा जी की भी वही हालत थी बेटी के बहकावे में आकर बहू से संबंध दिनों दिन खराब होने लगे।
गुंजा भी कब तक सहन करती उसके सब्र का बांध भी टूट चुका था।उसने अपने पति अनय को साफ बोल दिया अब वह और यहां नहीं रह सकती। अगर अलग रहते हो तो ठीक वर्ना मैं अपने मायके चली जाऊंगी।
इस बीच अनिल जी बार-बार अपनी पत्नी मनीषा जी को समझाते रहे कि बेटी के मोह में अंधी होकर तुम सही ग़लत में भेद करना भूल गई । अभी वक्त रहते तुम नहीं सम्हालीं तो बाद में पछताओगी परन्तु उन पर कोई असर नहीं हुआ,जो बेटी कहती वही सच लगता।
आखिर वही हुआ। बेटे-बहू अलग हो गए। बेटी का आना बदस्तूर जारी रहा। उम्र बढ़ने से वे अब उसकी खातिरदारी पूरी नहीं कर पातीं तो वह उन पर भी चिल्लाती
, उल्टा -सीधा बोलती ।
ऐसे ही दिन कट रहे थे कि एक दिन वे बाथरूम में फिसल गईं। पैर में फ्रैक्चर होने से बेडरेस्ट पर आ गईं।अब उन्हें सम्हालने वाला कोई नहीं था। बेटी देखने आती एकाध घंटा रूक चली जाती ।धीरे -धीरे आना कम कर दिया।जब उन्होंने उससे कुछ दिन रुकने को कहा तो बोली मम्मी मेरी ससुराल में कौन सम्हालेगा यदि मैं यहां रुक जाऊंगी असली घर तो वही है मेरा उसे मुझे ही तो सम्हालना है। असल में बात तो यह थी कि अब उसे यहां काम करना पड़ता था जो वह नहीं करना चाहती थी।
उसकी बात सुन मनीषा जी के आंसू निकल गए और अनिल जी से बोलीं तुम सही थे मैंने पुत्री मोह में अपनी हीरे जैसी बहू की कद्र नहीं की मैं तो जा नहीं सकती एक बार तुम उसे ले आओ मैं उससे माफी मांग लूं तो मेरे दिल का बोझ उतर जाए।
जैसे ही अनिल जी ने अनय को बताया कि मां बेडरेस्ट पर हैं दोनों दौड़े चले आए और मां की सेवा में लग गए। गुंजा ने स्वयं वहीं रहकर उन्हें सम्हालने का फैसला कर लिया यह देख मनीषा जी बार-बार अपने किए की उससे माफी मांगतीं।
तब गुंजा बोली मम्मी जीआप बड़े हो मुझसे माफ़ी मांग मुझे अपराधबोध ना कराएं। आपसे मुझे कोई शिकायत नहीं यह सब तो दीदी का किया धरा था।
हां बेटा मैं उसकी बातों में आ गई और तुम्हारे साथ गलत व्यवहार कर बैठी। जबकि मैं उसे बचपन से जानती थी कि वह स्वभाव से ईर्ष्यालु एवं स्वार्थी हैं फिर भी पुत्री मोह में फंस गई।अब वह ही नहीं तू भी मेरी बेटी है कह गुंजा को गले लगा लिया।
शिव कुमारी शुक्ला
जोधपुर राजस्थान
स्वरचित एवं अप्रकाशित
लेखिका बोनस प्रोग्राम
कहानी संख्या 6