आज मालती जी की 50वीं सालगिरह थी। भारी भरकम साड़ी और गहने पहनी हुई इस उम्र में भी वह दुल्हन सी प्रतीत हो रही थीं। होटल में जाने के लिए सब बच्चे बाहर गाड़ी में दादू के साथ बैठे हुए दादी के आने की इंतजार कर रहे थे। तभी अचानक मालती जी को कुछ याद आया चेहरे पर मुस्कुराहट आई और उन्होंने अलमारी खोलकर दो सोने के कंगन निकाल कर पहन लिए।
जी हां इन दो कंगनों के बिना तो उनका सिंगार अधूरा ही था।
बाहर खड़े बच्चों की गाड़ियों के होर्न बजते ही जा रहे थे। मालती जी अपनी पुरानी यादों में खोई हुई थी। उनके घर में विवाह के समय केवल कांच की ही चूड़ियां पहनने की रीत थी, मायके में भी शादी का बहुत खर्च हो रहा था तो मां ने सोने के कंगन नहीं बनवाए थे अपितु उसके लिए सोने के कंगन ससुराल से आए थे। शादी ब्याह में उस समय हार चैन टीका, नथ की तो अनिवार्यता थी परंतु सोने के कंगन इत्यादि विलासिता के अंतर्गत आते थे और मध्यम वर्गीय परिवारों में इसकी अधिक आवश्यकता नहीं होती थी। ससुराल में आने के बाद सारे गहने सासू मां को दे दिए गए। उनको चढ़ाया गया ससुराल वाला सेट तो ननद रानी को विवाह में दे दिया गया। ननद रानी के विवाह के उपरांत कंगन टीका, नथ फिर सासू मां के पास में ही चला गया। देवर के विवाह के समय क्योंकि बारात दूर जानी थी इसलिए सुरक्षा के कारण से मालती को नकली ज्वेलरी ही पहनने के लिए कहा गया। भारी कंगन की जगह देवरानी को तो हाथों के लिए चार कड़े चढ़ाए गए थे परंतु फिर भी मालती को यह संतुष्टि थी कि उसके कंगन भले ही दो हैं पर मजबूत है।
कुछ समय बाद जब मायके में मालती जी के भाई का विवाह था तो उन्होंने सासू मां से जब गहने मांगे तब उन्हें पता चला कि उनके कंगन तुड़वा करके ही देवरानी जी के कड़े बने थे और देवर ने स्पष्ट रूप से अपनी पत्नी का एक भी गहना वापस करने से मना कर दिया था।
वर्मा जी को बहुत दुख तो हुआ था परंतु अपनी माता जी के सामने वह भी कुछ नहीं कह पाए और उन्होंने मालती को विश्वास दिलाया कि वह उन्हें भी कंगन दिलवा देंगे। वर्मा जी का विश्वास सतही नहीं था, कुछ समय बाद उन्होंने कहा कि माताजी से बात होने के उपरांत माताजी ने कुछ पैसे दिए हैं और तुम अब अपने दूसरे कंगन ले लो। मालती जी घर की किसी भी तरह की राजनीति से अनभिज्ञ थी, खुशी खुशी वह भी कंगन लेने गई तो उन्होंने इस बात का बहुत ख्याल रखा कि अब के बहुत भारी और महंगे कंगन नहीं खरीदें ,कहीं ऐसा ना हो कि उनके ससुराल में सब पर अतिरिक्त खर्च आ जाए। परिवार वैसे ही संयुक्त रहा और कुछ समय के बाद में ही वर्मा जी ने अपना काम अलग शुरू करा और वह संयुक्त परिवार से निकलकर वर्मा जी के दफ्तर के पास ही दूसरे किराए के मकान में आ गए थे। वर्मा जी अपना काम शुरू करना चाहते थे और उन्हें दूर-दूर तक घूमना भी होता था परंतु उनकी बाइक रोज खराब हो जाती थी। मालती हमेशा वर्मा जी को नई बाइक लेने के लिए कहती रहती थी उन्हें पता था कि वर्मा जी के पास में इतने पैसे हैं कि वह एक बाइक खरीद सके परंतु वर्मा जी बाइक ले ही नहीं रहे थे और रोजाना परेशान होते हुए ही घर आते थे।
एक दिन घर में सफाई करते हुए मालती को वर्मा जी की पासबुक दिखाई दी जिसमें कि उन्होंने देखा कि उनके अकाउंट में अब ज्यादा पैसे नहीं है। लगभग बाइक की ही अमाउंट का एक चेक उन्होंने सुनार के नाम पर काटा हुआ है , मालती जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके कंगन वर्मा जी ने अपने बाइक के पैसों से ही लिए हैं और अपनी पुरानी बाइक से ही काम चला रहे हैं।
मालती जी को यह जानकर बहुत दुख हुआ हालांकि कंगन पहनने की उनकी इच्छा थी पर इस तरह से पति को परेशान करके नहीं। मालती जी की बहन कीर्ति के घर में भी उनकी ननद का विवाह था और कीर्ति अपने लिए कंगन खरीदना चाहती थी। मालती जी ने अपने कंगन कीर्ति को उसी रेट पर बेच दिए और जीजा जी से नई बाइक लाने के लिए कहा। कुछ पैसे और भी लगे थे जो कि मालती ने अपनी सेविंग में से दीदी को दे दिए थे।
उस दिन जब वर्मा जी घर आए और मालती ने उन्हें बाइक की चाबी दी तो वर्मा जी कुछ बोल नहीं पाए। मालती ने वर्मा जी से कहा कोई बात नहीं समय के साथ कंगन तो खरीदे जा सकते हैं परंतु बाइक की तुमको ज्यादा जरूरत है इसलिए मैंने यह फैसला बिना तुमसे पूछे लिया क्योंकि तुम तो ऐसा करने नहीं देते।
जिस घर में भी ऐसा प्रेम और त्याग होगा लक्ष्मी माता का स्वत: ही उसे घर में आगमन हो ही जाता है। समय बदला उनके दो बेटे और एक बेटी हुए, वर्मा जी का काम बहुत अच्छा चला। पहले उन्होंने फ्लैट और फिर कोठी और अब पौश एरिया में उनकी तीन मंजिल कोठी थी। वर्मा जी ने बिजनेस बढ़ाने के साथ ही कुछ समय बाद मालती जी को सोने के नए कंगन लाकर पहनाए थे। उसके बाद उन्होंने बहुत गहने गाड़ियां खरीदी परंतु वह सोने के कंगन उनके लिए विशेष थे।
यही कारण था कि उन्होंने अपने बेटों के विवाह के समय इस बात का ख्याल रखा की बहू का एक भी गहना उन्हें न रखना पड़े उन्होंने दोनों बेटों को विवाह होते ही एक लौकर खुलवा दिया था और बहू के गहने बहू को ही सौंप दिए थे। आज अपनी 50वीं एनिवर्सरी पर नए कपड़े और नए गहने पहने हुए भी वह उन कंगनों को पहन कर अपनी पुरानी यादों में खो गई थी।
पाठकगण घर में कुछ गहने या कोई भी चीज प्रेम और त्यागका साक्षात रूप होते हैं आपको नहीं लगता क्या?
मधु वशिष्ठ फरीदाबाद हरियाणा।
सोने के कंगन विषय के अंतर्गत कहानी।