सोने का कंगन – मीनाक्षी गुप्ता

सरकारी स्कूल की टीचर संगीता जी का घर प्रेम और तालमेल से भरा था। बेटा अमन एक कंपनी में कार्यरत था, दो साल पहले आई बहू राशि ने घर की ज़िम्मेदारियाँ खुशी-खुशी संभाल ली थीं, और बेटी आंचल की शादी की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। संगीता जी का स्वभाव सरल था, और राशि भी उतनी ही प्यारी।

संगीता जी जब सुबह स्कूल के लिए निकलतीं, तो राशि घर का काम संभालती। दोपहर में जब वे सब लंच के लिए मिलते, तो एक खुशनुमा माहौल होता। शाम की चाय पर अक्सर राशि या आंचल, संगीता जी से उनके हाथ के बने कुछ पकवानों की फरमाइश करतीं, जिसे संगीता जी बड़े चाव से बनातीं। कभी राशि और अमन बाहर घूमने निकल जाते, तो कभी जिद करके संगीता जी, ससुर ललित जी और आंचल को भी साथ ले जातीं।

संगीता जी अपनी सबसे अच्छी सहेली और साथी टीचर प्रीति जी से यह सब बातें शेयर करती थीं। प्रीति जी, जो उम्र में संगीता जी से छोटी थीं, इन बातों से खुश नहीं होती थीं। वहीं, दूसरी सीनियर टीचर शशि जी का मत अलग था। वह संगीता जी से अक्सर कहती थीं, “संगीता, तुम्हारी बहू और बेटी का तालमेल देखकर बहुत अच्छा लगता है। ये छोटी-छोटी बातें, ये साथ बैठकर चाय की फरमाइश करना, यही तो रिश्तों में प्यार और अपनत्व बढ़ाता है। ऐसे ही घर खुशहाल रहते हैं।”

एक दिन स्टाफ रूम में संगीता जी ने प्रीति जी को बताया, “कल शाम को सबने साथ बैठकर एक फ़िल्म देखी। राशि का मन पिज़्ज़ा खाने का था, तो अमन ने सबके लिए पिज़्ज़ा मंगवा लिया। बाद में राशि कहने लगी, ‘मम्मी, पिज़्ज़ा तो खा लिया है, लेकिन सोने में अभी समय है, क्या पता रात को भूख लग जाए! क्यों न हम कुछ हल्का डिनर बना लें? आप बनाएंगी या मैं बना लूँ?’ मैंने कहा, कोई बात नहीं, मैं बना लेती हूँ। मैंने रात को हल्का दाल-चावल बना लिया था। फिर अमन और राशि थोड़ी देर के लिए नीचे टहलने चले गए।”

प्रीति जी का मुँह बन गया। “संगीता, तुम कितनी भोली हो!” वह बोलीं। “पिज़्ज़ा तो खुद में इतना हैवी होता है, उसे खाने के बाद किसे भूख लगती है? और अगर डिनर बनाना ही था, तो राशि को बनाने देती! तुमने क्यों बनाया? तुम्हारी बहू तुमसे ऐसे ही मीठा बोल बोलकर अपने काम करवाती रहती है।”

संगीता जी और शशि जी, दोनों मुस्कुराने लगीं।

संगीता जी ने प्यार से समझाया, “नहीं, प्रीति, राशि को थोड़ी भूख ज़्यादा लगती है। और अगर वो रात को ठीक से खाना नहीं खाती है, तो उसे सही से नींद भी नहीं आती है। और क्या हो गया मैंने बना लिया तो? आंचल भी तो आराम कर रही थी। और सिर्फ़ सादे दाल-चावल ही तो बनाने थे, उसमें क्या हो गया? जब मैंने बनाया, तो सभी लोगों ने थोड़ा-थोड़ा सा खा लिया था। अगर नहीं बनाते, तो फिर सब लोग भूखे रह जाते। जब तक अपना शरीर साथ दे रहा है तब तक बच्चों की मदद कर देते हैं आगे तो फिर सब कुछ इन्हीं को संभालना है।”

आंचल की शादी का समय नज़दीक आ रहा था, और घर में गहनों की शॉपिंग चल रही थी। एक दिन, संगीता जी ने अपने पुराने संदूक से अपनी पुश्तैनी ज्वेलरी निकाली। उसमें एक भारी और बेहद सुंदर सोने का कंगन था।

राशि की निगाहें उस कंगन पर टिक गईं। वह उसकी कारीगरी और पुरानेपन से बहुत प्रभावित हुई, पर उसने कुछ कहा नहीं। तभी आंचल उत्साह से बोल पड़ी, “माँ! यह कंगन मुझे बहुत पसंद है। प्लीज़, यह मुझे शादी में दे देना।”

यह सुनते ही राशि का चेहरा मुरझा गया।

राशि के चेहरे को देखकर अमन तुरंत बोल पड़ा, “मम्मी, यह कंगन तो राशि को मिलना चाहिए। यह पुश्तैनी निशानी है और अब इस घर की बहू का इस पर पहला हक़ है।”

भाई-बहन में हल्की-सी नोकझोंक होने लगी। संगीता जी ने मुस्कुराकर अपनी चीज़ें वापस रख दीं। संगीता जी को समझ आ गया था कि कंगन बेटी और बहू दोनों को भा गया है । अब संगीता जी असमंजस में पड़ गई कि यह कंगन किसको दे? 

अगले दिन स्कूल के स्टाफ रूम में यह चर्चा प्रीति जी और शशि जी के सामने आई।

प्रीति जी ने कहा, “इसमें सोचना क्या है? आंचल घर की बेटी है, उसकी शादी है। कंगन उसे ही मिलना चाहिए। बेटी का मन रखना पहली ज़िम्मेदारी है, बहू को तो वैसे भी सब कुछ मिलेगा।”

शशि जी ने शांत स्वर में कहा, “नहीं, संगीता। कंगन राशि को दो। बेटी पराई हो जाएगी और अपने घर चली जाएगी, लेकिन बहू हमेशा इस घर की नींव रहेगी। बहु को अगर कोई चीज पसंद आई और वह चीज बेटी को दे दी जाए तो बहू को बुरा लग जाएगा। बहू के मन में अगर गांठ पड़ गई, तो रिश्ता खराब हो जाएगा। याद रखना, नए रिश्ते को पुराने विश्वास की निशानी पहले मिलती है, तो वह पूरे परिवार को बांधे रखती है।”

संगीता जी दोनों की बातों के बीच फंसी थीं, लेकिन वह जानती थीं कि उन्हें क्या करना है।

संगीता जी ने अपनी ज्वेलरी में से वह पुश्तैनी कंगन और एक सुंदर, नया सोने का हार निकाला। उन्होंने दोनों को मेज पर रखा और राशि तथा आंचल से पूछा कि उनको दोनों चीजें कैसी लगी। राशि और आंचल दोनों ने हार की तारीफ की लेकिन फिर भी दोनों की निगाहें पुश्तैनी कंगन पर टिकी थीं।

एक गहरी साँस लेकर, संगीता जी ने कंगन उठाया और उसे मुस्कुराते हुए राशि के हाथों में पहना दिया। फिर उन्होंने हार आंचल को देते हुए कहा, “आंचल, यह तुम्हारी नई ज़िंदगी की शुरुआत है। इसे पहनना।”

आंचल हार लेकर बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। उसके चेहरे पर साफ़ नाराज़गी थी। संगीता जी जानती थीं कि यह पल कितना नाज़ुक है।

थोड़ी देर बाद, संगीता जी दबे पाँव आंचल के कमरे में गईं। आंचल बिस्तर पर लेटी थी, उसकी आँखें नम थीं।

संगीता जी: (प्यार से, माथे पर हाथ फेरते हुए) “मेरी बच्ची, क्या माँ के फ़ैसले से नाराज़ हो?”

आंचल: (आँसू पोंछते हुए, धीमे स्वर में) “नाराज़ नहीं हूँ, माँ। पर मुझे वो कंगन बहुत पसंद था। वो पुश्तैनी है तो क्या हुआ, मैं भी तो इस घर की बेटी हूं, तो उस पर मेरा भी हक़ हुआ..”

संगीता जी: (आंचल के पास बैठकर, हाथ थामते हुए) “हक़ तो तुम्हारा भी है, बेटा। पर कभी-कभी रिश्तों को बचाने के लिए हक़ से ज़्यादा त्याग की ज़रूरत होती है।”

“सोचो, जब तुम कल अपने घर जाओगी, तो वहाँ तुम्हें भी बहुत सारा प्यार, मान और अधिकार मिलेगा। लेकिन यह घर अब अमन और राशि का है, इसकी नींव अब उनके विश्वास पर टिकी है।”

“अगर यह कंगन तुम्हें मिलता, तो राशि के मन में यह बात हमेशा के लिए रह जाती कि ‘माँ ने बेटी को ज़्यादा महत्व दिया’। यह छोटी-सी गांठ धीरे-धीरे रिश्ते की मिठास कम कर देती। तुम्हारे और मेरे बीच का प्यार इतना पक्का है कि ये किसी कंगन का मोहताज नहीं है। पर बेटा, राशि और मेरे रिश्ते को इस विश्वास की ज़रूरत थी। यह कंगन मेरे तरफ से उसे यह भरोसा है कि मैं उसे बेटी से कम नहीं मानती।”

भविष्य में तुम्हारा मायका बना रहे, तुम्हारे भाई भाभी और तुम्हारे बीच प्रेम और स्नेह बना रहे उसके लिए ऐसा करना जरूरी था।

“तुम्हारी यह थोड़ी-सी नाराज़गी, इस घर के रिश्तों को जीवन भर की मजबूती देने वाली है। सिर्फ़ एक बेटी ही अपने माता-पिता के परिवार के लिए इतना बड़ा दिल रख सकती है। तुम्हारा यह त्याग सोने के कंगन से ज़्यादा कीमती है।”

आंचल भावुक हो गई और उसने अपनी माँ को गले लगा लिया। उसकी नाराज़गी अब समझदारी में बदल चुकी थी। संगीता जी भी अब निश्चिंत हो गईं थी।

कुछ देर बाद, दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक हुई और राशि अंदर आई, जिसके हाथों में पुश्तैनी सोने का कंगन था।

राशि: (आंचल के पास बैठकर, आँखों में नमी के साथ) “दीदी… माँ ने यह कंगन मुझे दिया है, और मैं बहुत ख़ुश हूँ। पर मुझे पता है यह आपको भी बहुत पसंद था। और दीदी… आप मेरी ननद नहीं, मेरी बहन हैं। आप जब भी चाहें, इसे पहन सकती हैं। यह हमेशा इस घर में ही रहेगा।”

राशि ने कंगन प्यार से आंचल के हाथों में रख दिया। आंचल भावुक हो गई और कंगन वापस राशि को देते हुए उसे गले लगा लिया।

आंचल: “तुम बहुत अच्छी हो, भाभी।”

संगीता जी दरवाज़े पर खड़ी यह दृश्य देख रही थीं। उनकी आँखों में संतोष और गर्व था। उनका निर्णय सही साबित हुआ था। उन्होंने सोने का कंगन देकर एक बहू का विश्वास जीता था, और बेटी को त्याग का मोल समझाकर दोनों का रिश्ता मजबूत कर दिया था।

शाम को, जब संगीता जी चाय बना रही थीं, तो राशि और आंचल किचन के काम में उनकी मदद कर रही थीं। राशि मुस्कुराते हुए आंचल से बोली, “दीदी, आज शाम को माँ के हाथ की स्पेशल चाय के साथ कुछ खाने की फरमाइश कर दें?”

आंचल तुरंत बोली, “नहीं, आज मम्मी के लिए हम कुछ बढ़िया सा बनाएँगे।”

यह कहते हुए राशि और आंचल दोनों हँसने लगीं।

संगीता जी हँस पड़ीं। बहू और बेटी का यह स्नेह और तालमेल देखकर, उन्हें लगा कि उनका घर सचमुच स्वर्ग है।

समाप्त 

©2025 सर्वाधिकार सुरक्षित (मीनाक्षी गुप्ता) 

error: Content is protected !!