ममता की छाँव – उप्मा सक्सेना

दिल्ली का ट्रैफिक और सुबह को ऑफिस की भागम-भाग। तीन दिन पहले मेरा स्कूटर जरा सा संतुलन खो बैठा और नतीजा हेयर लाइन फ्रैक्चर। ऑफिस मे सभी ने भरपूर सहयोग किया।डाक्टर को दिखाना प्लास्टर चढवाना।

मुझे वर्क फ्राम होम की सुविधा भी मिल गयी थी ।तो छुट्टी की चिंता भी नही थी ।पर मम्मी पापा को बताया नही था।वो परेशान हो जाते।

पापा कभी भी ऑफिस से छुट्टी लेते ही नही।समय से दस मिनट पहले पहुँचते है और आने का कोई समय नही।जब काम पूरा हो जाए तभी उठेंगे।हर दूसरे साल बेस्ट एमप्लाई ऑफ द ईयर का अवार्ड लेते है।ऐसे मे उन्हे परेशान क्यों करूँ। 

अरे! मैने परिचय तो दिया ही नही।मेरा नाम कुशाग्र है।मेरठ से हूँ।  दिल्ली कोई खास दूर नही पर रोज आना जाना नही हो सकता है।मैने यहाँ एक मल्टी नेशनल कंपनी मे एच आर मैनेजर के रूप मे भार ग्रहण करा है।

दिल्ली मे अकेले लड़के को घर मिलने मे दिक्कत होती है।पर मेरी माँ ने सब व्यवस्था करवा दी।माँ हाउस वाइफ है पर सब मुश्किल चुटकियों मे हल करती है।

उनकी एक बचपन की दोस्त ने घर ढूंढ दिया।साझेदारी मे या पेंइग गेस्ट के रूप मे रहना मुझे पसंद नही।मै इकलौती संतान हूँ और किसी और के साथ ताल मेल बैठाना मेरे लिए टेढ़ी खीर है।

जिस घर मे मै रहता हूँ वहाँ माँ और तीन बेटियाँ रहती है।पति की मृत्यु सालो पहले हो गई थी।आन्टी हाउस वाइफ थी।पति की पैन्शन से ही घर चलता था।बेटियाँ बडी हो रही थी।पढ़ाई के खर्चे बढ़ रहे थे।ऊपर छत पर एक कमरा था जिसे किराए पर देना चाहती थी।बस एक कमरा और उससे लगा बाथरूम था।किचन नही था तो कोई परिवार नहीं रह सकता था और वो चाहती भी नही थी।जान पहचान का लड़का ही चाहिए था और वो मै मिल गया था।

सुबह का नाश्ता मै खुद तैयार कर लेता।ब्रेड बटर या सीरियल कुछ भी खा लेता।दोपहर में ऑफिस की कैन्टीन बढ़िया लंच देती।रात मे आन्टी दे देती थी।

मैने दो हाॅट केस ले रखे थे।रोज सुबह एक पकड़ा देता और शाम को पैक्ड हाॅट केस ले आता।आंटी कई बार आग्रह करती कि मै साथ मे गरमागरम खा लूँ पर मुझे अपना एकांत पसंद था।

अब इस हादसे ने सब उल्टफेर कर दिया।तीनो समय का खाना आंटी ही भेज रही थी।सुबह नाश्ता उनकी बड़ी बेटी कनुप्रिया दे जाती।उसका घर का नाम कनु था। वो कालेज मे बी ए सेकण्ड ईयर मे थी।मुझे नाश्ता देकर कालेज चली जाती और डेढ़ से दो के बीच आती तो लंच ले आती।

रात का खाना तनु या मनु ले आती।दोनो जुड़वा थी। ग्यारहवीं मे पढ़ रही थी।मै हाॅट केस मेज पर रखवा लेता और बाद मे आराम से खाता।

आंटी खाना बहुत अच्छा बनाती थी।

ये व्यवस्था देख मेरे साथ काम करने वाले सिद्धार्थ ने कहा,”अबे तू तो ठीक ही नही होगा।परियाँ  लग रखी है सेवा मे।”

मैने कहा,”इसीलिए जल्दी ठीक हूँगा नही तो आत्महत्या करनी पड़ेगी।”सिद्धार्थ हँसने लगा।

वो जानता था मै लड़की विरोधी हूँ। आपने सही सुना और मै कोई अकेला नही मेरे कई मित्र भी लड़की विरोधी है।

जहाँ देखो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और बेटों को बेरोजगार भूखा मार डालो। केवल साठ वर्ष के लोगो के आंकड़ा देखे हजार औरतो पर  आठ सौ पुरुष होगे।

दूसरा कनु को ही देख लो हाॅट केस लेकर आएगी।यूँ घबराई सी शक्ल बनाएगी कि मै मारने वाला हूँ या खामखां शरमा कर इतराकर बोलेगी माँ ने कहा है ………….फिर आँखे बड़ी बड़ी करके खोलेगी बंद करेगी।

ओफ मै बर्दाश्त नही कर सकता। 

आज क्या हुआ साढ़े नौ बज गए महरानी का पता नही।भूख तो ज्यादा नही लग रही थी पर दवा नाश्ते के आगे पीछे लेनी होती थी।

तभी दरवाजे पर खट खट हुई।

“आ जाओ कनु।”मैने गंभीर आवाज़ मे कहा।

दरवाजा खुला।आंटी अंदर आई।उनकी साँस बुरी तरह से उखड़ी हुई थी।

“बेटा कनु की परीक्षाएँ शुरू हो गई है तो वो जल्दी चली गई थी।नाश्ते मे थोडी देरी हो गई।”आंटी कहते कहते अंदर आ गई। 

अल्मारी से प्लेट ,चम्मच और गिलास निकाल लिया। एक कटोरी मे कुछ शोरबा सा डाला।बोली,”ये पाए का शोरबा है।इसको लेने से हड्डियाँ जल्दी जुड़ती है।गरम गरम पी ले।”

मुझे बिस्तर पर ही कटोरा पकड़ा, कमरे की झाड़ पोछ मे लग गई। मै थोड़ा असहज हो रहा था।

आंटी बोली,”मुझे पता है तुझे सफाई का कीड़ा है।पर नौकरानी नही लगानी।”कहकर हँसने लगी।

फिर मुझे एक गिलास बाॅरनविटा डला  गरम दूध फ्लास्क से डाल कर दिया।बोली ,”तूने दूध के लिए कनु को मना क्यो किया था?”

मैने कहा,”कनु ने मुझसे पूछा था क्या आप दूध पीते है? मैने मना कर दिया।”

“पाया का सूप भी मै कल से कह रही थी।देखते देखते तेरे एक्सीडेंट को चार दिन हो जाएगे।”बाते करते सैंडविच के साथ अदरक वाली चाय भी डाल कर दे दी।

मुझे दवा देकर सामान उठा रही थी कि मैने पाँच हजार दे दिए।एक के बजाए तीन टाइम खा रहा था।

अचानक उनकी आँखें छलक आई।कहने लगी,”शिवानी का बेटा है।मुझे तो किराया भी नही लेना चाहिए था।तेरी माँ के बहुत एहसान है मुझ पर।”

उन गीली आँखों को देखकर लगा कि माँ है।

मुझे जरा भी कुछ होता  तो मुझे माँ ही चाहिए थी।इस समय भी मै चाहता था बस माँ मेरे पास आ जाए। 

एक बार मै कालेज के फाइनल ईयर मे था।मामा की बेटी की शादी थी।नानी ने कहा अब तो बेटा बड़ा हो गया है।तू थोड़ा जल्दी आ जा मेरे सारे बच्चे एक साथ फिर से मेरे आंगन मे खेलेंगे। मै क्लास छोड़ना नहीं चाहता था। पापा भी इतनी छुट्टी नही लेते।मेरठ से मुरादाबाद जाना था।पापा ने माँ को बस पर चढ़ा दिया और मामा ने उतार लिया।

उसी दिन शाम को मुझे बुखार हो गया।अगले दिन पापा ऑफिस चले गए। शाम को आए तो मेरा बदन बुखार से तप रहा था ।शरीर पर दाने हो रहे थे।पापा मुझे डाक्टर के पास ले गए। उसने कहा,”ये तो चिकन पाॅक्स है।”

बुखार के लिए गोली दी और ठंडी पट्टी रखने को कहा।पापा बहुत तनाव मे आ गए। 

रात दो बजे मेरा बुखार एक सौ चार पर जा पहुँचा।पापा ने उसी समय माँ  को फोन किया।मै सुन रहा था।वो रो रहे थे।उन्होंने कहा,”शिवानी बस तुम आ जाओ।कुश को एक सौ चार बुखार हो गया है।”

माँ तुरंत मामा के बचपन के दोस्त के साथ गाड़ी से निकल पड़ी। डेढ़ घंटे मे ठीक वो मेरे पास थी।

माँ के आने के बाद बुखार देखा तो एक सौ तीन था।लेकिन फिर एक सौ दो से ऊपर नही गया। 

माँ को सब कुछ पता था क्या देना है क्या करना है।मेरी त्वचा का भी ध्यान रखा।एक भी दाग न आने दिया। 

मै कुछ ठीक हुआ तो माँ से खेद जताया कि जिंदगी मे शायद पहली बार तुम अपनी मम्मी के पास गई होगी ।मैने सब खराब कर दिया।

“अगर मै तेरी देखभाल न कर पाती तो मेरे लिए ये जिंदगी भर का दुख रहता।तुम दोनो के बिना वहाँ पर कोई मज़ा नही था।”माँ ने लाड़ से मुझें अपनी ओर खींचते हुए कहा।

आंटी की आँखों मे वही ममता भरा प्यार था।ये बूढ़ी आँखें भी जादू करती है।उन्हे पता था मुझे क्या खाना है क्या नही।उनके सामने मै सब कुछ बिना ना नुकुर के खा लेता।

दस दिन बाद डाक्टर मेरी प्रगति देख हैरान थे।डाक्टर अपने नुस्खे पर गर्व कर रहा था पर मै जानता था ये उन बूढ़ी आँखो का जादू है।

उप्मा सक्सेना

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