अपनत्व की छांव – परमा दत्त झा

आज सुबह सबेरे ममता अकचका गयी जब रात के तीन बजे श्वसुर जी इधर आते दीखे।उसका जी धक से रह गया।आज का जमाना खराब है,ऊपर से कितने श्वसुर —।

मगर वह बाथरूम जा रहे थे, अचानक रूके और बाहर से कंबल लाकर अच्छे से ओढ़ा दिया।फिर कछुआ छाप जला दिया और आस्ते से लाईट बंद कर बाहर निकल गये।

फिर सुबह आठ बजे इसकी निंद खुली तो श्वसुर जी चाय बनाते हुए मिले।चाय इसे भी एक कप दे दिया।

अरे पापा मैं बना लेती आप–वह सकुचाती हुई बोली।

कोई दिक्कत नहीं है,मैंने अपने लिए बनाया तो तुम्हारी भी बना दी।वे सहज भाव से बोले और तैयार होकर चले गये।

ममता के श्वसुर डा रामनरेश जी एक भौतिकी शास्त्र के जाने-माने विद्वान हैं और सेवा निवृत्त हुए दस साल से ज्यादा हो गये हैं मगर आज भी कोचिंग कक्षा लेने और प्रयोग में लगे हैं।इसके अलावे वे एक अतिथि प्रोफेसर भी हैं ,सो सुबह से रात तक लगे रहते हैं।इसकी सास करीब दस साल पहले गुजर गयी है।दोनों बाप बेटे रहते थे और इसका पति डा महेश एक डाक्टर है।यह भी बी एस सी पास है , करीब पांच साल पहले शादी हुई है और अभी एक बेटी की मां है।सो यह सपरिवार दिल्ली में रहती है जबकि श्वसुर  बेंगलुरु में पढ़ाते हैं और अकेले रहते हैं।इधर दस दिनों से सेमिनार में दिल्ली आये हैं और अभी बेटे के घर में रूके हैं।

इसने परिवार का जो रूप देखा उसमें श्वसुर को भयानक देखा।मगर यहां पासा उल्टा है। बिल्कुल नहीं बोलनेवाले डा साहब झट अपना काम करते हैं।आज रात मां बेटी सो रही थी और ठंढी भी लग रही थी वहीं पापा चुपचाप कंबल ओढ़ा दिया।सुबह चाय बनाकर पिला दिया और अभी शाम में बाहर से मिठाई और बाकी चीजें उठा लाये थे।

पापा आप -यह कुछ बोल नहीं पायी।

पापा मंद मंद मुस्कुराते अपने कमरे में चले गए और कपड़े बदलकर टेबुल पर बैठ गए।

आज सबकुछ ठीक था।यह खुशी से रो रही थी सो पति ने पूछा -क्या हुआ ? कुछ गड़बड़ है?

पापा ने-वह हकलाती हुई बोली।

पापा ने क्या किया,बताओ तो मैं उनसे बात करूं।-पति पुनः बोले।

अरे पापा ने मुझे अपनापन सिखाया है। प्यार क्या होता है,अपनापन किसे कहते हैं यह मैंने यहीं पापा से सीखा।-वह सुबकते हुए बोली।

आज रात तीन बजे पापा बाथरूम जाने उठे तो मैं ठंड से कांपती सो रही थी,वे चुपचाप कंबल मां बेटी को ओढ़ा दिया, फिर कछुआ छाप को जलाकर चले गये।

अब क्या करें?सुबह सबेरे चाय भी पिलाई थी‌।बताओ मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए उल्टे वे–।वह सुबकते हुए बोली।

कोई बात नहीं पापा से बात करता हूं।

अरे पागल क्या बात करोगे?#अपनत्व की छांव महसूस की जाती है।ऐसा पापा भगवान सबको दे।यूं आर ग्रेट पापा।-वह जल्दी से चाय बनाने भाग गयी।

#दिनांक-28-10-2025

#कुल शब्द -कम से कम 700

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है)

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