प्रशंसा –  संध्या त्रिपाठी

” प्रशंसा एक ऐसी औषधि है जो मृतप्राय हौसलों में एक नई जान फूंक देती है ” … ।  

बच्चों के व्हाट्सएप स्टेटस में पुरस्कार प्राप्त करते हुए अपना फोटो और नीचे कैप्शन में लिखा …” प्राउड ऑफ यू मम्मी ” देख कर सच में बहुत खुशी हुई…..!

मैंने भी तपाक से जवाब में लिख दिया… ” थैंक यू बेटा ”  और पप्पी वाला निशान बना दिया…!

मुझे ऑनलाइन देखकर बिटिया ने तुरंत फोन लगाया हालांकि वो कभी ऑफिस से फोन नहीं करती थी …पर न जाने क्यों मेरी प्रशंसा को आतुर थी …!

 ये सब कैसे कर लेती हैं आप …?

क्या बेटा …? जानते हुए भी कि वो किस विषय पर बात कर रही है… मैंने अनजान बनते हुए पूछा …। 

इस उम्र में भी इतना सम्मान मिल रहा है… पुरस्कार मिल रहे हैं …जो चीजें हमें करनी चाहिए और गर्व आपको करना चाहिए … वो आप कर रही हैं और गर्व हम बच्चे कर रहे हैं….।

वो क्या है ना बेटा… जैसे तू मेरी प्रशंसा कर मेरा हौसला बढ़ा रही है… बिल्कुल उसी तरह…. उस समय जब मैंने कॉलेज में अपनी प्रस्तुति दी थी……

वंश मोर की आवाज …. तालियों की गड़गड़ाहट ….आज भी मेरे कान में गूंजते हैं… जब भी मैं अकेली होती हूं …थकी होती हूं …निराशा होती हूं… बस फिर क्या… तालियों कि वो आवाज मुझे पेन डायरी उठाने पर मजबूर कर देते हैं… फिर बेटा मैं जब डायरी पेन उठा अपनी कल्पनाओं को शब्दों का जामा पहनाती हूं ना …तो बहुत खुशी मिलती है मुझे….!

हां मम्मी …तभी आप लिखते समय कभी मुस्कुराती हैं ..कभी भावुक हो जाती हैं… हां बेटा… मैं दिन दुनिया से बेखबर अपनी कल्पनाओं में इतनी डूब जाती हूं कि उसी के अनुरूप चेहरे के हाव भाव बदलते रहते हैं …सच में मेरे लिए वो समय बेहद सुखद होता है… और बदले में जब थोड़ी भी प्रशंसा मिलती है ना तो नए उत्साह स्फूर्ति से भर जाती हूं…!

       प्रशंसा से, करने वाला और पाने वाला दोनों को आनंद की अनुभूति होती है । कभी-कभी हमें लोगों की खूबियां पसंद तो आती है पर हम खुलकर प्रशंसा नहीं करते , इसके लिए बहुत बड़ा दिल होना चाहिए ।

        हमें बहुत से लोगों की बहुत सी चीजे पसंद होती हैं पर हम कभी खुलकर नहीं कहते , जरूरी नहीं की प्रशंसा सिर्फ बड़े-बड़े कामों की मिलनी चाहिए…..छोटी – मोटी अच्छी आदतों , व्यवहार , क्रियाकलापों की भी , की जानी चाहिए…। 

     अब प्रशंसा का एक तरीका ये भी था , एक बार ट्रेन में सफर के दौरान ऊपर बर्थ पर चढ़ने में बार-बार असमर्थ हो रही थी कई बार प्रयास के बाद पतिदेव की ओर देखकर बोली मुझसे नहीं हो पाएगा , पतिदेव ने कहा फिर से प्रयास करो……सामने बैठी महिला ये सब गतिविधि देख कर बोली , श्री राम जैसे पति मिले हैं आपको , ….कम शब्दों में पतिदेव की ऐसी प्रशंसा शायद उस महिला ने हमारे दिल में अमिट छाप छोड़ी…. जो  ताउम्र याद रहेगी । 

     सच मानिए …..” प्रशंसा और बेहतर बनने में , बनाने में उत्प्रेरक का कार्य करती है ” 

…… प्रशंसा से दोनों पक्षों का फायदा होता है….  प्रशंसा दिल से होती है अतः यह सच्ची और यौगिक तो होगी ही और हमेशा खूबियो की ओर इंगित करता है….। 

     प्रशंसा एक ऐसा उपहार है जिसमें देने वाला और पाने वाला दोनों पक्षों का कुछ भी व्यय नहीं होता वरन दोनों पक्षों को लाभ ही होता है ….जिसने प्रशंसा की होती है उसे प्रशंसा पाने वाला व्यक्ति कभी नहीं भूल पाता… उसकी हमेशा इज्जत करता है और प्रशंसा पाने वाला व्यक्ति भी प्रशंसा मिलने के बाद अपने कार्य के प्रति और सजग हो जाता है… ।

    किसी व्यक्ति को अच्छा महसूस करने , गर्व महसूस करने या मैं कुछ अच्छा कर रहा हूं का बोध कराने जैसे महत्वपूर्ण काम हम प्रशंसा कर, ….कर सकते हैं , फिर इसमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए ।

हां…. पर प्रशंसा झूठी,  दिखावटी या स्वार्थी नहीं होनी चाहिए…!

(स्वरचित, मौलिक , रचना)

✍️ संध्या त्रिपाठी

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