ये लो बहू ये सोने के कंगन अब तुम रखो,अब ये मेरे किस काम का है।बहू रिया ने खुशी खुशी हाथ फैलाए कंगन लेने को लेकिन कंगन पुष्पा जी हाथ में कंगन लिए हुए ही कहीं खो गई। मां मां कहां खो गई आप ये कंगन तो मुझे दे रही थी न , लेकिन ये तो आपके ही हाथ में रह गया। क्या हो गया आपको , कुछ नहीं बेटा बहुत सारी यादें जुड़ी हैं इस कंगन से उसी में खो गई थीं।
पुष्पा की शादी जब विजय से हुई थी तो वो बहुत सारे सपने लेकर ससुराल आई थी । जैसे ही वो ससुराल आई उसका बक्सा खोलकर चढ़ावे के जेवर निकाल लिए गए। पुष्पा देखती रह गई कुछ न बोल पाई । शादी के तीन दिन बाद जब मुंह दिखाई हुई तो पुष्पा मायके से मिला एक मात्र गले का सेट और कान के टाप्स पहने हुए थी।जो कोई घूंघट उठाता वो यही कहता क्या बस एक ही सेट मिला है
क्या बहू को मायके से , कोई कंगन वगैरह नहीं दीख रहा है , बहुत कम जेवर मिले हैं ।अब पुष्पा कैसे बताएं कि मायके ससुराल दोनों जगह का जेवर होता तभी तो ज्यादा दिखता है ।बस मायके के ही जेवर है ससुराल का तो कुछ है ही नहीं ।जो चढ़ाया था वो भी निकाल लिया। पिताजी ने तो अच्छा पैसा खर्च किया शादी में ,लेकिन ससुराल से सास ने कहा दिया कि घर गृहस्थी का सारा सामान और एक स्कूटर जरूर चाहिए
चाहे जेवर कम कर दो ।जेवर का क्या हमारा लड़का जब कमाएगा तो बनवा देगा । लेकिन अभी नई नई गृहस्थी है सब सामान चाहिए। पुराने समय में पचास साठ हजार में ही अच्छी शादी हो जाती थी ।अब सब सामान के साथ ढेर सारा जेवर भी देना मुमकिन नहीं था ।सो जेवर काट करके सामान दे दिया गया ।और यहां ससुराल से भी कोई जेवर नहीं दिखाई दे रहा है।इस लिए बस एक ही सेट में पुष्पा विदा होकर ससुराल चली आई।
लेकिन पुष्पा ने जब शादी के समय चढ़ावे में एक सुंदर सा सेट देखा ,और एक जोड़ी कंगन भी तो बहुत खुश हो गई कि चलो दो सेट तो है ही।और एक जोड़ी कंगन भी लेकिन ससुराल आते ही वो सेट और कगंन उसके बक्से से निकाल लिए गए ।बाद में पता चला कि वो सेट बड़ी जेठानी का था
उनसे लेकर चढ़ावे में भेजा गया था।जिसको उन्होंने पुष्पा के ससुराल आते ही ले लिया।और कंगन सास का था वो उन्होंने अपने पास रख लिया। आखिर घर में और भी तीन बहुएं थी तो किसी एक बहू को कंगन कैसे दे दिया जाता।नई नई शादी हो तो जेवर पहनने का शौक भी चरम पर होता है ।और फिर अपने पास न हो तो लालसा और भी बढ़ जाती है जेवर पहनने की ।
नई नई गृहस्थी थी और विजय का बड़े भाई के साथ पार्टनरशिप में बिजनेस था। किराए का मकान था रहने को।कमाई ज्यादा थी नहीं तो कहां जेवर बनवाने की आप उम्मीद कर सकते हैं।जब भी परिवार या रिश्तेदारी में कभी शादी व्याह हुआ तो सास से कई बार कंगन मांगे पहनने को पुष्पा ने लेकिन वो न मिले । कंगन पहनने की हसरत पुष्पा की हसरत ही बनकर रह गई।
इस बीच पुष्पा के दो बच्चे हो गये। जिम्मेदारी यां बढ़ती गई । किराए का मकान था सो कुछ अपना करने का विचार भी था मन में। पैसे ज्यादा नहीं थे तो जो कुछ भी मिलता था सारी जरूरतें उसी में पूरी करनी थी और थोड़ी बहुत बचत भी करनी थी। किसी तरह जोड़ तोड़ करके कहीं एक छोटा सा प्लाट खरीद लिया था। बनवाने को पैसे नहीं थे । पुष्पा सोचती ईश्वर ने इतना किया है तो आगे भी कोई न कोई रास्ता निकालेगा।इस बीच सास को ब्रेन हेमरेज हो गया अब सारे काम छोड़कर उनका इलाज करवाना था ।छै महीने तक सास का इलाज चलता रहा उसके बाद उनका देहांत हो गया।इस बीच जेवर बनवाने का या एक जोड़ी कंगन लेने का विचार कहीं अंदर ही दबकर रह गया था।
अब सास के न रहने पर उनका बक्सा खोला गया सभी के सामने । कुछ जेवर थे उनके पास उसका बंटवारा होना था। तीन जेठानियां थी पुष्पा के ।सास के पास कुछ जेवर बड़ी बहुओं के मायके से मिले हुए जेवर भी थे ।तो सभी जेठानियों ने अपने अपने मायके के जेवर पहले ले लिए। फिर जो सास का जेवर था उसका बंटवारा हुआ ।तो सास के बक्से से एक जोड़ी कंगन ,एक मांग टीका और एक गले की चेन दो अंगुठी एक जोड़ी कान के झूमके और कुछ चांदी के सामान निकले ।विजय की एक भांजीं थी जिसकी शादी अभी नहीं हुई थी तो सास के कहे अनुसार उसको भी कुछ जेवर देने थे।तो मांग टीका और झुमके भांजी के लिए रख दिए गए ।और बाकी सारे जेवर तौल करके बराबर बराबर सबमें बांट दिया गया।अब कंगन पुष्पा के हिस्से आया तो लेकिन एक ही हाथ का आया।एक कंगन जेठानी के हिस्से में आया।अब पुष्पा ने एक ही कंगन से संतोष कर लिया कि चलो एक ही हाथ में पहन लेंगे।
लेकिन,,,,,अब घर में कंगन रखा था तो चिंता लगी थी विजय ने उसको उठाकर लाकर में रख दिया।अब जब भी पुष्पा उस कंगन को विजय से मांगती वो टाल जाते।एक दिन पुष्पा ने कहा कंगन भारी है तो क्यों न उसको बदलवा कर दोनों हाथ के ले ले। मेरी कंगन पहनने की हसरत भी पूरी हो जाएगी बनवा तो सकते नहीं है नया क्यों कि अब तो जिम्मेदारी यां बहुत है।और न तो इतना पैसा है सोना दिन पर दिन चढ़ता ही चला जा रहा है। बच्चे बड़े हो रहे हैं पढ़ाई-लिखाई का खर्चा बढ रहा है । किसी तरह दो कमरों का मकान भी बनवा लिया था ।पर विजय टस से मस न हुए ।हर बार वो कंगन वाली बात टाल जाते थे।विजय को कंगन वाली बात टालते टालते इतना समय बीत गया कि बच्चे शादी लायक हो गए।अब कभी कंगन का जिक्र करने पर विजय कहते रखा रहने दो बिटिया की शादी में काम आएगा।और कंगन पहनने की हसरत पुष्पा की मन में ही रह गई।
समय ने कुछ ऐसा पलटा मारा कि करोना काल में करोना संक्रमित होकर विजय का देहांत हो गया।और पुष्पा भी 58 को पार कर चुकी थी। बेटा बेटी दोनों नौकरी कर रहे थे।बेटी को आफिस में एक सहकर्मी ने प्रपोज किया । इकलौती संतान था वो अपने मां बाप का ।बेटी ने मां को बताया कि हम दोनों शादी करना चाहते हैं ।समीर नाम है
उसका ।अच्छी खासी प्रापर्टी थी समीर के माता-पिता के पास ।उनको दहेज में कुछ नहीं चाहिए। बिना दहेज के ही शादी हो गई और बेटी अपने घर सुख से है उसे भी वो कंगन नहीं चाहिए था।वो पुष्पा जी के पास ही रखा रहा बेटी ने लेने से इंकार कर दिया । कहने लगी यहां तो बहुत है मम्मी अपने पास ही रखे रहो।
बेटी के शादी के तीन साल बाद बेटे की शादी की पुष्पा जी ने।और अब पुष्पा जी के जीवन से भी वसंत जा चुका था।विजय के न रहने पर सारे शौक श्रृंगार तो वैसे भी खत्म हो गए थे।अब क्या जेवर कपड़े पहनना और क्या शौक श्रृंगार करना।मन की हसरत तो मन में ही रह गई थी।तो पुष्पा ने सोचा जो कुछ मेरे साथ हुआ तो हुआ।अब समय रहते बहू को ही कंगन दे दूं तो अच्छा रहेगा ।जेवर बनवाना आजकल बहुत मुश्किल काम है ।जब समय बीत जाए तो कोई चीज देने का क्या मतलब है।अब तो वो मेरे किसी काम कि है नहीं तो कंगन हाथ में लेकर पुष्पा अपने अतीत में खो गई थी। कंगन बहू के साथ में पकड़ाते हुए बोली ले बेटा ये कंगन मैं तो नहीं पहन पाई अब तू इसे पहन , तुझे पहना देखकर ही मैं तसल्ली कर लूंगी। दिलासा दे दूंगी अपने आपको।अब ये मेरे किसी काम का नहीं है।
सही है दोस्तों हर चीज का एक समय सीमा होती है । यदि वो समय पर न हुई तो बेकार है । इसलिए जब जिस चीज का वक्त हो वो उस समय पूरा करने की कोशिश अवश्य करें। नहीं तो उम भर मन में एक मलाल रह जाता है । क्यों ठीक कहा न ?
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
31 अक्टूबर
#क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है