मां जी!दोपहर के 12:00 बज गए अभी तक ये आए नहीं•••?
घड़ी की सुइयां देखते हुए राधा अपनी सासू मां जानकी जी,जो दोपहर का खाना खा रही थीं से बोली।
12:00 बज गए क्या करना है? इतनी देर इंतजार किया है तो कुछ दे और सही!
अपनी अंतिम निवाले को खा उंगलियां चाटते हुए जानकी जी बोलीं।
खुद तो उंगलियां चाट-चाट कर खाना खा रही हैं और मुझे उनके इंतजार में भूखे रहने को बोल रही हैं! पता नहीं कब आएंगे?
कोर्ट- कचहरी का मामला है देर- सवेर तो होगी ही•• पर•• इन्हें क्या फर्क पड़ता है बेटे के लिए मुझे ही भूखा रखेंगी!
मन ही मन कूढते हुए राधा अपने बेडरूम में चली गई।
तभी अचानक वह बिस्तर पर से उठ, रसोई में प्लेट निकाल,नाश्ता खाने बैठी ।
वाह! क्या लजीज सब्जी बनाई हैं मां जी ने! वैसे सब्जी तो अच्छा बनाती है परंतु यहां खाना समय से नहीं हो पता! अब दोपहर के भोजन का समय है तो मैं नाश्ता कर रही हूं! वह भी सासू मां से चुपके-छुपाते ! खाना खाते-खाते मन ही मन राधा सोच रही थी कि तभी पानी लेने जानकी जी रसोई में पहुंचीं ।
हे राम! कैसी अल्हड़ है रे तु•• जो पति को खिलाएं बिना खा रही है?
वो मां जी! आप तो जानती है कि सुबह नाश्ता जल्दी खाने की आदत है•• मुझे भूख बर्दाश्त नहीं हो रही थी! इनका तो अब तक पता नहीं? इसलिए मैंने खा लिया!
हां-हां वो तो मैं देख रही हूं पर लोग क्या कहेंगे? बेटा भूखा है और बहू खाना खा रही है!
सर पीटते हुए जानकी जी पानी ले रसोई से चली गईं।
राधा एक बिंदास लड़की थी जिसे लोग क्या कहेंगे जैसे वाक्य से चिढ़ मचती थी।
अपने मां-बाप की इकलौती संतान तो थी ही साथ में पढ़ाई-लिखाई में भी काफी होशियार! मनोविज्ञान से उसने मास्टर डिग्री हासिल की तब उसके पिता मनोहर जी ने बड़े देख- सुनकर राधा के लिए रिश्ता ढूंढा।
शरद जो की पेशे से वकील था और जमीन-जायदाद वाला रईस घर का इकलौता चिराग!
दोनों की शादी के अभी 6 महीने ही हुए थे।
आज जानकी जी के मुंह से ऐसी बात सुनकर उसे बहुत बुरा लगा। उसी समय खाना छोड़ हाथ धो वह वापस अपने कमरे में आकर बैठ गई। तभी शरद को आता देख वह कुर्सी छोड़ खड़ी हो जाती है और उसके हाथ से कोट लती है।
बड़ी देर लगा दी आपने••?
हां आज केस की फाइनल सुनवाई थी सो टाइम लग गया!
तुम बताओ तुम्हारा चेहरा क्यों मुरझाया हुआ है ?खाना-वाना खाया या नहीं?
कमीज की बटन खोलते हुए शरद पूछा ।
वो •••फिर अचानक राधा चुप हो जाती है और शरद से कपड़े ले उसे धोने डाल रसोई में यह कह कर चली जाती है कि स्नान कर लीजिए•• मैं तब तक खाना परोसती हूं!
शरद और राधा दोनों इकट्ठे भोजन करते हैं।
शाम में जब रात का खाना बनाने राधा जानकी जी की मदद करने रसोई में गई तो अचानक से उसके पेट में दर्द हो उठा और देखते ही देखते वह उल्टी करने लगी।
शरद उसे कमरे में ले जाता है ।
क्या हुआ राधा अचानक तुम्हारी तबियत क्यों बिगड़ गई?
सहानुभूति पाते ही राधा रोने लगी। क्या हुआ बताओ तो सही?
राधा के बाल को सहलाते हुए शरद पूछा।
मुझे गैस हो गया होगा और कोई बात नहीं!
तुमने नाश्ता समय पर नहीं की होगी?
देखो मेरे इंतजार में मत बैठा करो•• मैं तो कचहरी में भी खा लेता हूं!
एक बार उसकेजी में आया की मां जी के बारे में बता दें पर शरद गरम- मिजाज के थे और मां जी से कहीं बहस ना कर बैठे ये सोच वह चुप बैठ गई ।
इधर जेठानी कलश जी (इनका आंगन एक था पर रहते अलग-अलग थे) राधा को उल्टी करते हुए देख,अपनी देवरानी जानकी जी से पूछी ।
अरे जानकी! कोई नई समाचार है क्या बहु की?
अरे नहीं जीजी! लगता है खाने का हिसाब नहीं रखा होगा तो उल्टियां हो गई।
जानकी जी पल्लू खींचते हुए अंदर चली आईं।
बहु खाना हिसाब से खाया कर देख हो गई ना तबीयत खराब ?
खाना तो इसने मेरे साथ ही खाया पर••शायद लेट खाया होगा इसलिए गैस बन गई! देखो राधा हमारे घर में तुम्हें कोई रोक-टोक नहीं तुम वैसे ही रहो जैसे अपने घर में रहती हो!
क्यों मां सही बोला ना?
बेटे की बात सुन,जानकी जी बिना कुछ बोले ही वहां से चली गईं ।
दूसरे ही दिन शाम के वक्त घर के आंगन में सभी बच्चे (राधा के रिश्ते में नंद और देवर लगते थे) अंताक्षरी खेल रहे थे।
सबको खेलता देखा राधा के मन में भी खेलने की ललक जगी और वह भी अंशु के साथ गाना गाने लगी। अरे वाह भाभी! आपकी आवाज तो बड़ी मधुर है चलिए आप अब हमारे टीम में शामिल हो जाइए••और खेलने में हमारा साथ दीजिए !
कलश जी की बेटी रीमा बोली।
नहीं भाभी! आप हमारे टीम में रहें अंशु की जिद को देखते हुए
मैं दोनों टीम में अपनी योगदान दूंगी!
कहते हुए वह बीच में बैठ सबके साथ खेलने लगी।
बहु चलो शरद तुम्हें बुला रहा है!
उसे खेलता देख जानकी जी ने राधा से बोला ।
जी मां जी !
अंदर आते ही
यह क्या तुम्हें थोड़ा भी ढंग नहीं? नई बहू हो और बैठ गई बीच आंगन में वह भी गाना गाने••? और हंसी तो ऐसी की पूरे घर में सुनाई पड़ रही थी! यह ससुराल है•• तेरा मायका नहीं!
राधा की सारी खुशी हवा हो गई।
वह चुप थी पर अंदर ही अंदर उसे घुटन महसूस होने लगी।
एक दिन सुबह उठते ही उसे चक्कर आ गया••शरद फौरन राधा को डॉक्टर के पास ले गया।
चेकअप के बाद:-
मुबारक हो वकील साहब! आप बाप बनने वाले हैं!
धन्यवाद डॉक्टर साहब!
आज शरद को सारी खुशियां मिल गई।
देखो राधा! अब तुम्हें अपने साथ-साथ हमारे आने वाले बच्चे का भी ध्यान रखना होगा और जो देख रहा हूं कि तुम खाने में लापरवाही कर रही हो ये सही नहीं ! समय से खाना खाओ तभी तुम स्वस्थ रहोगी!
आप टेंशन ना लीजिए मैं अपना ख्याल रखूंगी !
बच्चे की आने की खुशी पूरा घर मना रहा था! जानकी जी भी बहुत खुश थीं।
सास की खुशी देख राधा भी अपने ऊपर लगाए गए प्रतिबंध को भूल अपनी सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करने लगी।
एक दिन सुबह 10:00 बजे पति को खिलाने के बाद
मां जी !आप भी स्नान-ध्यान करके खाना खा लीजिए!
हां बहु•• तू खा ले! मैं थोड़ी देर के बाद खाऊंगी!
जेठानी से गप्पे लगाने के चक्कर में उन्होंने राधा को खाने को बोल दिया।
राधा नाश्ता करने बैठ गई और जब जानकी जी की गप्पे खत्म हुई तो राधा को खाता देख
बहू अब तुम बच्चे की मां बनने जा रही हो और इतनी सी भी अकल नहीं कि सास को बिना खिलाए खुद खा लिया?
राधा के मुंह का निवाला ना निगलते बन रहा था और ना फेंकते। बस आंखों में आंसू थे।
सास की रोक-टोक से वह पुनः उदास रहने लगी और इसका असर उसके सेहत पर साफ झलकने लगा। राधा क्या तुम्हें किसी चीज की यहां दिक्कत है जो तुम खुल कर बताना नहीं चाहती हो?
फिर थोड़ी देर रुक कर
अगर तुम्हारा दिल यहां नहीं लग रहा तो अपने घर जा सकती हो••! इस समय तुम्हारा खुश रहना ज्यादा जरूरी है! मैं आज ही तुम्हारे पापा को खबर किए देता हूं!
राधा ने हां में सिर हिलाया!
इस बार भी राधा जानकी जी के बारे में शरद से कुछ भी नहीं कहा।
रात में अचानक राधा के पेट में दर्द हुआ और देखते-देखते ब्लीडिंग चालू हो गई ।
फौरन उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया।
मिस्टर शरद!
राधा को देखकर ऐसा लगता है जैसे वह कोई मानसिक परेशानी से जूझ रही हो और ब्लीडिंग होने का कारण भी टेंशन ही है•• वैसे बच्चा बिल्कुल ठीक है आपको इन्हें फुल रेस्ट और पौष्टिक भोजन समय से देनी होगी। और देखिए इन्हें टेंशन से भी बचाना होगा!
फिर डॉक्टर आगे बोले
मैंने इनकी दिनचर्या के बारे में पूछा जो मुझे सही नहीं लगा कृपया खाने की रूटीन फॉलो करें !
धन्यवाद डॉक्टर साहब!
मैं ध्यान रखूंगा••!
घर पहुंचते ही शरद पूरी तरह से राधा पर ध्यान देने लग गया और उसे कंप्लीट रेस्ट करने को कहा। दो-तीन दिन तो जानकी जी मन मार कर रह गईं फिर चौथे दिन उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ तो
क्या शरद तू भी औरत के कमरे में ही घुसा रहता है? और यह क्या••? बिना तू खाये बहू को क्यों खिला रहा है ? क्या हमने बच्चे नहीं जने? सारा दिन काम करती थी तब जाकर मुझे नार्मल बच्चा हुआ!
ऐसे दिन भर हम बैठे नहीं रहते! अब जानकी जी की बात सुनते ही राधा संकुचित और असहज महसूस करने लग गई जिसे देख शरद को समझते देर ना लगी कि राधा जो एक हस्ती खिलखिलाती जिंदा दिली लड़की थी वह आजकल क्यों मुरझाई सी रहती है।
बस मां! इतनी #निरादर मत करो अपनी बहू की••!
इसे भी अपनी तरह से जीने का हक है हम कोई नहीं होते रोक-टोक करने वाले!
अपनी पुरानी रीति-रिवाज राधा पर थोपने की कोशिश मत कीजिए! इसके सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है साथ ही साथ बच्चे पर भी खतरा मंडरा रहा है! डॉक्टर ने इस समय से भोजन और पूर्ण रूप से आराम करने को बोला है•• मैं देख रहा हूं कि आप यह बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं!
शरद के इतना बोलने से जानकी जी राधा की तरफ देखने लगी ।
मां आप ऐसे राधा की तरफ मत देखें•• उसने मुझे आपके बारे में कुछ भी नहीं कहा वो तो मैं आपकी बात से ही समझ गया!
बेटा तू गलत समझ रहा है मैं तो उसे एक नॉर्मल डिलीवरी के लिए सही सुझाव दे रही थी!
नहीं मां यह आपने सही सुझाव नहीं दिया!
आपका समय कुछ और था और राधा के साथ का सिचुएशन कुछ और ही है!
आपको अगर इसके साथ प्रॉब्लम्स है तो मैं इसे इसके पापा के घर भिजवा देता हूं क्योंकि बच्चा और जच्चा के साथ मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता!
शरद के गर्म मिजाज को देखते हुए जानकी जी सकपका गईं और उन्होंने फौरन संभलते हुए बोला
ना बेटा! राधा कहीं नहीं जाएगी मैं भी कहां अपनी सास से सीखी बात इसपे थोपने की कोशिश की!
ये मेरी गलती है और अब मुझे ही इसमें सुधार लानी होगी कहते हुए उन्होंने राधा को गले लगा लिया। उन्हें अपने किए पर पश्चाताप था ।
दोस्तों राधा पति के सपोर्ट से मानसिक और शारीरिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होने लगी और समय आने पर उसने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया।
जानकी जी जैसी कई सास है जो बहू पर प्रतिबंध लगाने से पीछे नहीं हटती हमें ऐसे नहीं करना चाहिए वैसे नहीं करना चाहिए ! ऐसे मत चल वैसे मत बैठो इत्यादि।
ऐसे में उनमें भी डिजरिस्पेक्ट की भावना उत्पन्न हो जाती है।
इसमें ही कुछ बहुएं जो कड़ी मिजाज की होती है वह सासू मां से बदला लेती है और कुछ राधा की तरह संकुचित बहुएं जो सब कुछ घुट-घुट के पी जाती है और बाद में वह मानसिक और शारीरिक रूप से जूझती हैं।
जब तक आप बहू को बेटी नहीं समझेंगे तो बहू भी किसी सास को मां नहीं समझेगी।
इस कहानी के माध्यम से मैं यह कहना चाहती हूं कि हर सास और हर बहूं को एक-दूसरे के फिलिंग्स की कदर करनी चाहिए और रोक-टोक की दीवारें गिरा देनी चाहिए।
दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स कमेंट्स और शेयर जरूर कीजिएगा।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह