आज अचानक रमेश के घर में कोहराम मच गया।शंभू चाचा की रोड दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
मैं भी देखने गया। दीपावली से पहले का धनतेरस ,उसकी तैयारी का सारा समान कल खरीद लाये थे।हार्ट एटैक भी एक साल पहले हुआ था मगर बायपास सर्जरी से सामान्य जीवन जी रहे थे।जो भी हो हमीदिया विद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य शंभू चाचा एक महान थे।उनके दोनों बच्चे अच्छी एम एन सी कंपनी में थे।
आखिर रमेश ने पिता की जान ले ली-ये उसके बड़े चाचा या ताऊ शंकर जी थे।
फिर तो रोना धोना और लाश को जलाने बड़ी मुश्किल से चार पांच लोग श्मशान घाट गये।
हमलोगों ने पुलिस अवरोध के बाद लाश का अंतिम संस्कार किया। दीवाली की तैयारी मातम में बदल गयी।
जब चाची ने रोते हुए बयान किया तो सच में –+
शंभू चाचा के दो बच्चे एक राहुल जो एम टेक ,एम बी ए करके प्राईवेट एम एन सी में मैनेजर हैं और बेटी राखी जो दो साल पहले लखनऊ में ब्याही है अभी बैंक में है।
दूसरी ओर बड़े भाई शंकर जी के तीन बच्चे -एक लड़का अमर जो डाक्टर है और परिवार के साथ बंगलौर में रहता है।दूसरी माया जो लखनऊ में व्याही है और राखी की बड़ी गोतनी है।छोटी ममता जो एम बी ए करके संयोगवश उसी कंपनी में नौकरी पा गयी जिसमें राहुल मैनेजर था।
फिर तो दोनो भाई बहन एक फ्लैट में रहने लगे और एक ही कार से आना जाना करते।
मगर यहीं ग़लती हो गई।
ज्यादा पढ़े लिखे आपसी रिश्तों को नहीं मानते और आपस में प्यार करने लगे। घरवालों ने समझा भाई बहन का प्यार है।बस—यहीं चूक हो गई।
आज भाई ने अपनी चचेरी बहन संग दिल्ली के अदालत में प्रेम विवाह कर लिया।फिर दोस्तों की उपस्थिति में अक्षरधाम मंदिर में बकायदा शादी कर ली ।
जब इतने से जी नहीं भरा तो दोनों ने यह आवेदन दे दिया कि उन्हें परिवार से खतरा है कारण पिताजी दहेज लेकर विवाह कराना चाहते थे।
फिर क्या था बागसेवनिया थाने का एक ए एस आई तुरंत तफ्तीश के लिए गया। फिर दोनों सगे भाई परिवार सहित थाना बुलाए गए।
वहां टी आई और सारे लोग असलियत जान भौचक्के रह गये।चचेरे भाई बहन आपस में शादी कर लिए वह भी ब्राह्मण परिवार में।
अब पूरी घटना जानकर सब तवाह थे।इधर मास्टर साहब शंभू बाबू को थाना से आते ही सीने में दर्द महसूस हुआ।तुरंत बंसल अस्पताल ले जाया गया। जहां बाइपास सर्जरी और इलाज से बड़ी मुश्किल से जान बची।
एक साल करीब इस घटना के हो गए थे और वे आज सुबह धनतेरस की खरीदारी के लिए बाइक से बाजार गये थे कि अचानक –+।लोग बताते हैं कि दुर्घटना हुई मगर गाड़ी में कोई चोट का निशान नहीं था।इनके शरीर पर भी कुछ नहीं था।
गुमसुम रहनेवाले सामाजिक अपमान नहीं झेल सके ,यहीं हाल बड़े भाई शंकर जी का भी है।सो बस अब और नहीं?हे भगवान यदि पढ़ें लिखे का मतलब संस्कार हीन होना है तो ऐसी औलाद से बेऔलाद अच्छी।
लेखक : परमादत्त झा
(यह घटना वास्तविक परंतु नाम व जगह काल्पनिक है।)
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(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)