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क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है? कैसी मां हो आप? खुद तो बिना जिम्मेदारी के अकेली आराम से रही, आपको क्या पता कि ससुराल में मुझे कितना काम करना पड़ता है? मैंने रवि को कह दिया था कि मैं अब कुछ दिन बाद ही घर आऊंगी, परंतु आपको अपनी बेटी के ही मायके आने से परेशानी है?
निधि का लगातार बोलना जारी था माधवी जी निधि के लिए जूस लेकर आई और फिर उसे प्यार से समझाते हुए बोली। हां ,ससुराल में सारी जिम्मेदारी बहू की ही होती है, जो लड़की यह बात समझ जाएगी वही ससुराल में राज कर पाएगी। तुझे यहां पर मेरा अकेले रहकर कोई काम नहीं करना तो दिख जाता है परंतु किसी भी हारी बीमारी की कठिन परिस्थिति में मेरा अकेले जूझना नहीं दिखता। पापा की रिटायरमेंट के बाद जब तेरा हॉस्टल में फाइनल एग्जाम था तब मेरा भी पैर फिसलने से फ्रैक्चर हो गया था, तब कामवालियों के सहारे किस तरह से मैंने अपना समय काटा है यह केवल मैं ही जानती हूं , तेरे साथ जीवन में ऐसी स्थिति ना आए इसलिए ही मैं तुझे जाने को कह रही हूं। मैं किस अपराध बोध में जी रही हूं यह मैं तुझे बताती हूं उसके बाद में तेरी जो इच्छा हो तू वह फैसला कर लेना।
माधुरी जी ने निधि को बताया विवाह के बाद मेरा भी यही ख्याल था कि ससुराल में तेरे पापा के छोटे भाई और दोनों बहनों और घर का सारा काम मैं क्यों करूं? हालांकि मायके में भी सबसे बड़ी थी और अपनी छोटी दोनों बहनों और उसके बाद जब हमारे छोटा भाई हुआ तब तो मम्मी ने काम भी करना बंद ही कर दिया था यूं समझ सारे घर का काम मैं अकेली ही संभालती थी। विवाह होकर जब ससुराल में आई तो मुझे लगता था कि विवाह के बाद वह भी काम में ही क्यों बंधी रहूं ,मेरा मन होता था कि मैं तुम्हारे पापा के साथ घूमूं और मौज करूं। हालांकि तुम्हारे पापा मुझे बाजार वगैरा भी घूमाते थे परंतु घर में तुम्हारे पापा के सिवा सबका काम करना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। भले ही तुम्हारे पापा की दोनों बहने और भाई मुझे पहले बहुत प्यार करते थे पर मैं अपने व्यवहार से उन सब से कट गई थी और जब तुम्हारे चाचा और बूआ के विवाह होने के लिए लड़की देख रहे थे तो रोज-रोज के बढ़ते काम से तंग आकर मैंने तुम्हारे पापा को मना लिया था कि हम संयुक्त परिवार की बजाय अकेले घर में रहेंगे। अब मैं अधिकतर मायके जाती थी, मेरी बहने भी मेरे मायके जाने से खुश हो जाती थी क्योंकि मायके में मुझे अपना लगता था और मेरी बहनों को मेरे जाने के बाद घर के काम से मुक्ति मिल जाती थी। वहां बैठकर फुर्सत से सब मिलकर मेरे ससुराल की बुराइयां ही करते रहते थे। हालांकि ससुराल की बुराइयां करते हुए मैं मायके में काम ही कर रही होती थी। अब अलग होने के बाद जब भी तुम्हारे पापा कहीं टूर पर जाते तो मुझे मेरे मायके ही जाना पड़ता। माधवी जी ने बताया वह मायके में इतना काम करती थी कि परंतु फिर भी तेरे जन्म के समय ससुराल में तो तेरी बुआ की शादी थी इसलिए वहां पर मेरा रहना संभव नहीं था और मायके से भी दोनों बहनों नहीं आई थी क्योंकि उनके पेपर चल रहे थे। तुम्हारा जन्म के समय किसी तरह से मेरी मां ने निकलवाया परंतु वहां भी उन्हें अपने छोटे बेटे की ही चिंता रहती थी। समय के साथ मेरी दोनों बहनों की शादी हो गई और उन्होंने मेरी जैसी मूर्खता नहीं करी उन्होंने अपने ससुराल को ही अपना घर बनाया और जिन बातों के लिए मेरे ससुराल की बुराइयां की जाती थी वह सब काम आदर्शवादी बहू की जैसे मेरी बहने कर रही थी।
घर से निकाल कर हम तो तेरे पापा के साथ किराए के घर में ही आए थे और फिर अपना सारा सामान जुटाना , फ्लैट खरीदना, तेरी पढ़ाई विवाह यह सब कुछ अकेले इतना सरल भी तो ना था। उधर तेरी चाची ने खुशी-खुशी घर को संभाला तुम्हारी दोनों बूआएं तो मेरी भी सहायता करती थी, उन्होंने चाची की भी बहुत सहायता की। चाची के दोनों बच्चों के समय बुआओं ने तुम्हारी चाची को कोई काम भी करने नहीं दिया। हम जहां अपना फ्लैट बनाने, सजाने में लगे हुए थे वहां पर चाची ने उसे पैतृक घर को ही अपना घर बना लिया। हमारे तो रक्षाबंधन इत्यादि त्योहार पर भी क्योंकि मेरा घर मायके के पास ही था तो मैं अपने मायके ही चली जाती थी धीरे-धीरे बहनों ने राखी और टीका का सामान भी भेजना शुरू कर दिया था और हम सबसे कट चुके थे। आज मुझे तो अकेलापन लगता है तुम्हारी चाची के पास तो पूरा परिवार और पैतृक घर भी है। सासू मां (तुम्हारी दादी)की मृत्यु
के बाद तुम्हारी चाची ही उस घर का सर्वेसर्वा बन गई और ससुर जी (दादा जी) की लाडली बहू भी। उसकी हर बात मानी जाती थी।
मेरी केवल एक ही सोच कि ससुराल में सारी जिम्मेदारी मेरी ही है क्या? मुझे जिंदगी में सबसे कटवा कर अलग-अलग कर दिया। जिस तरह से हम अगली क्लास में जाने के लिए मेहनत करते हैं और पिछली क्लास को पास करते हैं इसी तरह से ही ससुराल में कर्तव्य निभाकर ही अधिकार को पाया जा सकता है। आज अगर तुम अपने कर्तव्य निभाने से छूट जाओगी तो समय तो बीत जाएगा और सबको तुम्हारे बिना काम करने की आदत हो जाएगी परंतु फिर तुम जीवन में अकेले अवसाद और अपराध बोध से ही घिरी रह जाओगी। मैं यह नहीं कहती कि तुम अपने आत्म सम्मान को भी खो दो और ससुराल में परेशान होती रहो। मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि जब तुम्हारे ससुराल में सब लोग इतने अच्छे हैं तो समय का इंतजार करो और अपने कर्तव्य का पालन करो आगे तुम्हारी इच्छा। मैं और तुम्हारी चाची उदाहरण स्वरूप तुम्हारे सामने हैं ही। हमें क्या फर्क पड़ता है हमारी तो तुम अकेली बेटी हो यहां रहोगी तो हमारे लिए तो अच्छा ही है परंतु कभी सोचा है हमारे बाद तुम कितनी अकेली पड़ जाओगी।
निधि को भी मम्मी की कही हुई सारी बातें समझ में आई और वह भी थोड़ी देर बैठकर उल्टे पांव अपने ससुराल वापस चली गई अपने ससुराल को अपना घर बनाने के लिए।
पाठकगण आपका इस विषय में क्या ख्याल है कृपया कमेंट में बतलाइए।
ससुराल में क्या सारी जिम्मेदारी बहू की ही है प्रतियोगिता के अंतर्गत।
मधु वशिष्ठ