कीचड़ उछालना – डोली पाठक 

रिटायरमेंट के बाद नर्मदेश्वर जी पत्नी समेत अपने पैतृक गांव में आकर बस गए… 

अपनी जिंदगी के लगभग आधे से अधिक दिन उन्होंने शहरी परिवेश में बिताया था अतः गांव के माहौल में उन्हें बड़ी समस्या होती थी… 

मसलन बिजली, पानी… 

नर्मदेश्वर जी को कभी-कभी वो सारे काम भी बेहद खटकते थे जो उन्होंने किए नहीं थे…. 

गांव में उनकी छवि एक संभ्रांत और सुशिक्षित व्यक्ति की थी..

गांव वाले उनका बेहद सम्मान किया करते थे… 

उनके घर की गृह सहायिका कजरी घर के सारे कामकाज तो करती हीं थीं साथ-ही-साथ उन दोनों बुजुर्ग दंपति की देखभाल भी किया करती थी…

कजरी के तीनों बच्चे भी उनका बेहद सम्मान किया करते थे…

कजरी का नर्मदेश्वर जी के घर आना-जाना और उनके साथ लगाव देख कर आस-पड़ोस वाले सौ बातें बनाया करते….

और कजरी के साथ उनका गलत संबंध भी बताया करते…

इस बात से अनभिज्ञ नर्मदेश्वर जी और कजरी अपने-अपने काम में लगे रहे…

नर्मदेश्वर जी कजरी के हर सुख-दुख में उसके साथ खड़े रहते थे…

नर्मदेश्वर जी की पत्नी शीला जी भी उसके और उसके परिवार का बड़ा हीं ध्यान रखा करती थीं…

दीपावली का समय था कजरी पूरे घर की साफ-सफाई में व्यस्त थी…

एक बड़े से स्टूल पर चढ़ कर वो उपर की गंदगी साफ कर रही थी…

तभी आंखों में कुछ गंदगी चला गया…

कुछ भी देख पाना तो दूर वो आंखें खोल भी नहीं पा रही थी….

नर्मदेश्वर जी ने उसे संभाल कर स्टूल से उतारा और अपनी बाहों का सहारा दे कर बेड पर लिटाया और आंखों में पानी का छींटा मारने लगे…

तभी उनके पड़ोस का एक लड़का आ गया…

बिना वस्तुस्थिति को समझें उसने 

बात का बतंगड़ बना दिया…

वाह ताऊजी वाह….

जो आपके बारे में सुना था वो बिल्कुल सच था कि आपका और कजरी का गलत संबंध है…

आप दुनिया के सामने तो बड़े संभ्रांत और सुशील बनते हैं परंतु पीठ पीछे ये सब….छी…छी…

मुझे तो आपके इस कुकृत्य पर शरम आ रही है…

 उस व्यक्ति के इस अचानक से हुई प्रतिक्रिया से नर्मदेश्वर जी हड़बड़ा गये और कजरी भी घबरा कर एक तरफ़ बैठ गई….

आनन-फानन में मुहल्ले के कुछ और लोग भी आ गये….

और नाना प्रकार की बातें बनाने लगे…

और नर्मदेश्वर जी को सफाई का मौका दिए बिना अनाप-शनाप बकने लगे…

शीला जी हक्की-बक्की सी ये सारा नजारा देख रही थीं…

हद तो तब हुई जब एक पड़ोसी ने नर्मदेश्वर जी का कालर पकड़ लिया और बकने लगा -क्यों जी आपको शर्म भी ना आई एक मजबूर महिला की मजबूरी का फायदा उठाते हुए….

अपनी उम्र की आधी उम्र की महिला के साथ ये सब करते हुए….

उसने तो बोलने की सारी हदें हीं पार कर दी…

नर्मदेश्वर जी को तो जैसे काठ मार गया था….

शीला जी ने तुरंत उनके बीच आकर उस व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा रसीद कर दिया…

और गुस्से में बिफरते हुए बोली –

शर्म लाज बेच खाया है क्या आपने??? 

शर्म नहीं आती एक शरीफ व्यक्ति पर कलंक लगाते हुए… 

आप सब जानते भी हैं कि शराफत क्या होती है??? 

एक शरीफ आदमी जब भी किसी मजबूर महिला की मदद करने का प्रयास किया तब इस समाज ने उन पर कीचड़ उछालने का प्रयत्न किया है… 

क्या एक स्त्री पुरुष के रिश्ते का सच केवल शारीरिक हीं होता है??? 

क्या कोई निःस्वार्थ भाव से किसी के साथ नहीं जुड़ सकता…. 

आप सबके मन में कजरी और इनके लिए एक पिता और पुत्री का भाव क्यों नहीं आया… 

क्या दो विपरीत लिंग के लोग एक-दूसरे से गलत संबंध के लिए हीं जुड़ते हैं??? 

अरे बंद किजीए इस तरह से किसी की साफ-सुथरी छवि पर कीचड़ उछालना और अपनी सोच को बदलिए…. 

आपकी इस घटिया सोच के कारण हीं आजकल लोग एक-दूसरे की मदद से भी कतराने लगे हैं…

शीला जी की बातें सुनकर वहां एकत्रित लोग बेहद शर्मिन्दा हुए और धीरे-धीरे वहां से खिसका गये… 

कजरी रोते-रोते शीला जी के गले लग गई।

डोली पाठक 

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