गाँव का नाम था मथेहड़ चारों ओर हरियाली, तालाबों के किनारे झूमती सरसों और दूर-दूर तक फैले मक्की के खेत। इस साल तो जैसे धरती माँ ने दिल खोलकर वरदान दिया था। खेतों में इतनी मक्की लहलहा रही थी कि सुनहरी बालियाँ सूरज की रोशनी में चमकतीं और पूरे गाँव को अपनी महक से भर देतीं। उन खेतों में सबसे सुंदर फसल कांता के खेत की थी। कांता गाँव की सबसे मेहनती औरत मानी जाती थी। सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जातीं चूल्हा जलाकर घर का काम निपटातीं और फिर अपने पति और बच्चों के साथ खेतों की ओर निकल जातीं।इस बार फसल ने मेहनत का पूरा फल दिया था। बाल बालियों से भरे भुट्टे देखकर कांता के चेहरे पर बरसों बाद सच्ची मुस्कान आई थी। उनके पति बंसीलाल बोले इस बार तो लगता है भगवान ने हमारी सुन ली कांता देखो कैसी मक्की हुई है कांता देवी ने आसमान की ओर देखा दोनों हाथ जोड़कर बोलीं हाँ ठाकुर जी बस यही फसल सही सलामत घर पहुँच जाए फिर आपके नाम के भोग लगाऊँगी।
दिन चढ़ आया। खेतों में चारों ओर काम चल रहा था बच्चे मक्की निकाल रहे थे, औरतें भुट्टे अलग कर रही थीं, मर्द बोरी में भर रहे थे। तभी दूर से एक महात्मा आ रहे थे। सफेद दाढ़ी, झोला कंधे पर, हाथ में कमंडल। उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी जैसे बरसों की तपस्या ने उन्हें मिट्टी से ऊपर उठा दिया हो।वो धीरे-धीरे खेतों की ओर बढ़े। बंसी तो खेत के दूसरे कोने में था लेकिन कांता ने उन्हें आते देखा। उन्होंने मुस्कुराकर कहा बाबा नमस्ते पधारिए धूप बहुत तेज है बैठ जाइए। महात्मा मुस्कुराए और बोले बेटी आशीर्वाद मैं तो भूखा यात्री हूँ कई दिनों से इस इलाके में हूँ। ज़रासी मक्की दे दो पेट भरने को भगवान तुम्हें दोगुना देगा।
कांता थोड़ी झिझकीं। पास में उनकी पड़ोसन सूखिया भी थी। उसने धीरे से कान में कहा देख बहन आज खेत में से कुछ भी मत देना। आज हमने देवी का प्रसाद नहीं चढ़ाया है। पहले पूजा होगी फिर कोई अन्न बाहर जाएगा वरना अपशकुन होगा। कांता ने सिर हिलाया और महात्मा से बोलीं बाबा जी आज नहींआज तो पीरजख का दिन है। देवीदेवता नाराज़ हो जाएँगे अगर हमने कुछ दिया तो। कल आइएगा तब भरपूर दे दूँगी।
महात्मा ने शांति से उसकी बात सुनी। उन्होंने कुछ नहीं कहा बस हल्की मुस्कान के साथ बोले बेटी जो दे न सके उसे भविष्य में लेने का भी अधिकार नहीं रहता। याद रखना भगवान कभी भूखा नहीं छोड़ता, पर उसकी परीक्षा में जो गिरता है उसे बहुत कुछ खोना पड़ता है। ये कहकर वो धीरे धीरे खेतों के पार चले गए। उनके जाते ही जैसे हवा का रुख बदल गया। आसमान में जो धूप थीवो अचानक धुंधलाने लगी। दूर पहाड़ों के पीछे से काले बादल उमड़ आए। हवा तेज़ हो गई, पेड़ झूमने लगे और देखते ही देखते बिजली चमकी एक गर्जन हुआ मानो आसमान ने धरती को झिड़क दिया हो।
गाँव के लोग भागकर अपने घरों की ओर दौड़े। कुछ ही मिनटों में झमाझम बारिश शुरू हो गई। इतनी तेज़ कि खेतों के रास्ते नालों में बदल गए। मक्की की सुनहरी फसल जो कुछ देर पहले गर्व से झूम रही थी अब पानी में डूब रही थी। भुट्टे मिट्टी में मिल गए खेतों में कीचड़ भर गया। कांता खड़ी देखती रह गईं उनके हाथ में जो भुट्टा था वह भी पानी में बह गया। उनके चेहरे से रंग उड़ गया। बंसी ने आकर सिर पर हाथ रखा कांता ये क्या हो गया । सब खत्म हो गया उस रात कोई सो नहीं सका। बिजली कट गई घरों में मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। बच्चे रो रहे थे औरतें बुदबुदा रही थीं ये महात्मा का अपमान था भगवान नाराज़ हो गए
सुबह जब सूरज निकला तो खेत की मिट्टी में सिर्फ बर्बादी थी। चारों ओर टूटे भुट्टे बहा पानी, और चुप्पी। कांता ने हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखा और आँसू बहने लगे। हे प्रभु ये क्या परीक्षा थी वो घर लौटीं तो दरवाज़े पर वही महात्मा खड़े थे। भीगे कपड़े, लेकिन चेहरा अब भी शांत। कांता घबरा गईं, उनके पैर कांपने लगे। बाबा मुझसे गलती हो गई माफ कर दो महात्मा ने हाथ उठाया और बोले बेटी मैं कोई श्राप देने नहीं आया था। ये तो तुम्हारे मन की कसौटी थी। जो इंसान दूसरों में भगवान नहीं देखता, उसके खेत चाहे सोने से भर जाएँ, वो भीतर से हमेशा खाली रहेगा।”
कांता रो पड़ीं। उनके आँसू मिट्टी में गिरते ही जैसे वो मिट्टी फिर से जीवंत हो उठी। महात्मा ने आगे कहा
अब से जब भी कोई भूखा तुम्हारे दरवाज़े आए, उसे देवता मानकर अन्न देना। याद रखना दान से खेत सूखते नहीं फलते हैं। वो ये कहकर आगे बढ़ गए। कुछ ही देर बाद गाँव के बच्चों ने देखा कि जहाँ-जहाँ महात्मा के पैर पड़े वहाँ छोटी-छोटी हरी कोपलें उग आईं।कुछ महीनों बाद वही खेत फिर से हरे हो गए। लेकिन इस बार कांता ने पहली मक्की के भुट्टे मंदिर में चढ़ाने से पहले गाँव के गरीबों में बाँटे। उनके चेहरे पर शांति थी जैसे अब उन्होंने सच्चे अर्थों में अन्न का धर्म समझ लिया था।
गाँव के बुज़ुर्ग कहते हैं मक्की की फसल उस साल जितनी सुंदर दोबारा कभी नहीं हुई लेकिन कांता के मन में जो बीज बोया गया विनम्रता और करुणा का वो कभी सूखा नहीं।कभी कभी भगवान साधु के रूप में हमारे दरवाज़े पर आता है। जो उसे पहचान लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। और जो नहीं पहचान पाता उसे अपनी भूल से सीखने का मौका मिलता है दान श्रद्धा और करुणा यही वो बीज हैं जो हर खेत को फलदायी बनाते हैं हर जीवन को सुंदर बनाते हैं।
के आर अमित
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश