कीचड़ उछालना – लक्ष्मी त्यागी

बचपन में, हमारे बड़े कहा करते थे —“किसी पर कीचड़ उछालोगे, तो उसके छींटे अपने ऊपर भी पड़ेंगे।” किन्तु कुछ लोग भ्र्म में जीते हैं ,जैसे वो सही हैं ,और हमेशा ही ऐसे रहने वाले हैं किन्तु उन्हें सच्चाई का एहसास तब होता है जब उन पर स्वयं उस कीचड़ के छींटे पड़ते हैं।

 चारु शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल की अंग्रेज़ी की अध्यापिका थी। तेज़-तर्रार, आत्मविश्वासी और बेहद खूबसूरत,इस बात का उसे अभिमान भी था, स्कूल में हर कोई उसकी तारीफ किया करता था, लेकिन उसके अंदर एक कमजोरी थी—दूसरों से आगे निकलने की अंधी चाहत।

उसी स्कूल में नया शिक्षक आया —” रोहित वर्मा” जो भूगोल का अध्यापक था , शांत, सुलझा हुआ, और छात्रों का चहेता,उसका पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था ,सभी छात्र उसकी प्रशंसा किया करते थे , कुछ ही महीनों में वह सबका इतना प्रिय हो गया कि चारु को उसका बढ़ता प्रभाव खटकने लगा। धीरे-धीरे उसके मन में, रोहित के प्रति ईर्ष्या बढ़ने लगी।

एक दिन स्टाफ रूम में चारु ने अपनी दो सहकर्मियों के सामने कहा—“पता है, रोहित पर, पिछले स्कूल में  किसी छात्रा से ज़्यादा नज़दीकी की वजह से,केस चला था,उसका चरित्र ठीक नहीं है।  

सहकर्मियों ने उसे हैरानी से देखा -क्या “सच में ?”उन्होंने आश्चर्य से पूछा। 

“हाँ, मैंने सुना है, तभी तो वो अचानक ट्रांसफर लेकर यहाँ आया है,” चारु ने आधे सच, आधे झूठ में डूबी मुस्कान के साथ कहा।

ये गॉसिप स्कूल के गलियारों में’जंगल में आग की तरह फैल गई।” छात्र फुसफुसाने लगे, स्टाफ ने भी उससे दूरी बना ली। रोहित ने महसूस किया कि कुछ तो गड़बड़ है—लोगों की नज़रें,बदल रही हैं ,उनका व्यवहार बदल गया है। उनकी खामोश नजरें उसे बहुत कुछ कहती नजर आ रही थीं। 

कुछ ही दिनों में यह बात प्रिंसिपल तक पहुँच गयी, रोहित को बुलाया गया और उन्होंने ,उससे पूछा -रोहित !ये क्या चल रहा है ?

रोहित ने शांत स्वर में पूछा -क्या हुआ ?सर ! मुझसे कुछ गलत हुआ है,क्या ?

क्या तुम नहीं जानते ?स्कूल में तुम्हारे विरुद्ध क्या चर्चा चल रही है ?

नहीं ,  “सर, किन्तु मेरे प्रति अब लोगों का व्यवहार कुछ बदल गया है ,ये मैं कुछ दिनों से महसूस कर रहा हूँ। 

क्या तुम्हें कुछ भी मालूम नहीं है ,या अनजान बन रहे हो। 

अगर मैंने कुछ गलत किया है, तो बताइये !बिना बताये मैं कैसे जानूंगा ?

क्या तुम्हें पिछले स्कूल से निकाला गया था ,किसी लड़की के चक्कर में….. 

रोहित कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बोला -सर !ये आपसे किसने कहा ?आपके पास कोई सबूत है तो   दीजिए, आप ये कहकर ,मेरे सम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं।

रोहित के तेवर को देखकर प्रधानाध्यापक को लगा ,कहीं हम लोगों को कोई गलतफ़हमी तो नहीं हो गयी है ,तब प्रधानाध्यापक ने अपने तरीक़े जाँच आरम्भ की,किन्तु उसके विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं मिला। उल्टा, पिछले स्कूल से साफ़ रिकॉर्ड सामने आया। तब जाकर सच्चाई खुली -रोहित  निर्दोष है, और अफवाह की जड़ चारु थी।

प्रिंसिपल ने सख़्त स्वर में चारु से कहा – आप स्वयं एक शिक्षिका होकर ,आपने न सिर्फ़ एक शिक्षक की प्रतिष्ठा को दागदार किया है, बल्कि हमारे संस्थान की मर्यादा को भी चोट पहुंचाई है। हम ऐसे व्यक्ति पर भरोसा नहीं कर सकते।”उनकी बात सुनकर चारु निःशब्द रह गई।

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वही लोग जो कभी चारु की प्रशंसा किया करते थे, उससे कतराने लगे। छात्र उसकी बातों पर विश्वास नहीं करते थे। सोशल मीडिया पर भी किसी  ने लिखा—“किसी की छवि खराब करने से खुद का चरित्र ऊँचा नहीं हो जाता।”

एक दिन, उसकी मुलाकात रोहित से हुई, जब चारु सड़क किनारे, बारिश में,खड़ी थी। रोहित छाता लेकर आ गया और बोला -आइये !आपको छोड़ दूँ ,चारु चुपचाप उसके साथ आगे बढ़ी ,तब वो बोला -चारु जी ,मैं जानता हूँ, आप बहुत अच्छी हैं ,शुरू में ,मैं भी आपसे प्रभावित हो गया था ,किन्तु आपने जो मेरे साथ जो किया….   उसने बस इतना कहा—“चारु जी, आपने जो कीचड़ उछाला था, वो सूखकर अब मिट्टी बन चुका है… मगर याद रखिए, हर मिट्टी में बीज नहीं उगते, कुछ जगह बस गंध रह जाती है।”

चारु के पास कोई जवाब नहीं था,वो शर्मिंदगी महसूस कर रही थी ,उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था ,उसके आँसू बारिश में घुल गए। उसने महसूस किया—कभी-कभी जीतने की कोशिश में इंसान इतना गिर जाता है, कि सम्मान से फिर कभी नहीं उठ पाता। 

नैतिक ज्ञान -“किसी के चरित्र पर कीचड़ उछालने वाला व्यक्ति, खुद की पहचान भी गँवा बैठता है, क्योंकि कीचड़ में खड़े होकर कोई साफ़ नहीं रहता। 

                    ✍️ लक्ष्मी त्यागी

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