इंसानियत मर गई – शिव कुमारी शुक्ला 

आज निलेश के घर के सामने भीड़ इकट्ठी थी।घर के अंदर कोहराम मचा हुआ था।उसका दो वर्षीय पुत्र मामूली खांसी में ही चल बसा था। उसकी मां का क्रंदन लोगों के कलेजे को चीर रहा था।

बाहर लोगों में कानाफूसी का माहौल गर्म था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि खांसी की दवा देने पर बच्चे की मौत हो गई। किसी को इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।दवा तो ठीक करती है ना कि मौत देती है,इसी विश्वास के साथ हम सब दवा लेते हैं।हो ना हो निलेश को जरुर कुछ गलतफहमी हुई है कहीं दवा की जगह और कोई ग़लत जहरीली वस्तु धोखे से  तो नहीं दे दी।

कुछ ही देर में बच्चे को ले जाने की तैयारी कर ली गई। मां किसी भी तरह अपने प्राणों से प्यारे, आंखों के तारे बच्चे को गोद से छोड़ने को तैयार नहीं थी।वह उसे छाती से चिपकाए रो-रो कर कह रही थी कि मैंने स्वयं अपने बच्चे के प्राण ले लिये। मैंने अपने हाथों से दवा नहीं जहर दे दिया बच्चे को।

तब तक किसी ने पुलिस को खबर कर दी। पुलिस आ गई दवा की शीशी बतौर सैम्पल ले ली गई, और बच्चे के शव को अस्पताल ले गए। पुलिस केस बन गया था सो पोस्टमार्टम हुआ और रिपोर्ट आने पर जो खुलासा हुआ वह चौंकाने वाला था वास्तव में दवा के कारण ही उसकी मौत हुई थी उसमें कोई जहरीली वस्तु पाई गई थी । बच्चे के अंतिम संस्कार के बाद दोनों पति-पत्नी सूनी आंखों से बैठे अपने अतीत में खोए थे।

चलचित्र की रील की भांति उनका अतीत उनकी आंखों के सामने से गुजर रहा था।जब उनकी शादी हुई थी तब निलेश मात्र बाईस साल का था और माधवी इक्कीस की। निलेश नितांत अकेला था कारण बचपन में ही एक सड़क दुघर्टना में माता-पिता को खो चुका था। चाचा-चाची ने उसकी जिम्मेदारी तो लोक दिखावे के लिए ले ली किन्तु मन में यह सोच कर कि मुफ्त का नौकर मिल जाएगा काम के लिए।उस समय निलेश की उम्र बारह बर्ष रही होगी वह कक्षा सात में पढ़ रहा था। उसकी पढ़ाई छुड़ाकर चाची ने उसे घरेलू नौकर बना लिया।जैसा कि ऐसे बच्चों के साथ होता है पूरा दिन काम करने के बाद उसे भरपेट भोजन नहीं मिलता और ऊपर से ताने, मारपीट का दुःख झेलता पर क्या करता कहां जाता सो सब सहन कर रहा था एक दिन उसकी छोटी सी गल्ती के लिए चाची के साथ -साथ चाचा ने भी उसे बहुत मारा और उसके माता-पिता के लिए अपशब्द कहे।उस दिन उसका स्वाभिमान जाग गया और उसने घर छोड़ दिया।वह किसी तरह लोगों की मदद से अपने गांव पहुंच गया और यादों के सहारे अपने मकान को भी ढूंढ लिया जहां वह अपने माता-पिता के साथ रहता था।दो कमरे का छोटा सा कच्चा मकान था।अब उसके सामने समस्या थी कि गुजारे के लिए पैसे कहां से आएं सो उसने छोटे -मोटे काम करने शुरू कर दिए। फिर एक होटल पर काम पर लग गया। चार -पांच महिनों में ही उसने कुछ पैसा इकट्ठा कर घर के ही बाहर वाले कमरे में चाय की दुकान खोल ली साथ ही कुछ नमकीन,बिस्किट्स,टोस्ट रखता जो ग्राहकों  की मांग के अनुसार उन्हें देता। उसकी मेहनत एवं अच्छा व्यवहार रंग लाया और दुकान अच्छी चल पड़ी। फिर उसकी शादी माधवी से हो गई।

माधवी के पिता अक्सर आते जाते उसकी दुकान पर चाय पीते थे सो कभी-कभी पारिवारिक बातें भी हो जातीं थीं। लड़का उन्हें जुझारू, मेहनती, और ईमानदार लगा और वे अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव उसके समक्ष रख बैठे चूंकि उनके पास दहेज देने को धन नहीं था सो यह योग्य वर उन्हें जंच गया और इस तरह उनकी शादी हो गई।

वे खुश थे। माधवी को सिलाई आती थी सो वह सिलाई करके,फाल वगैरह लगा कर अतिरिक्त आय कर लेती थी।उनका जीवन खुशहाल था कमी थी तो बस एक कि वे छः साल बाद भी संतान सुख से वंचित थे बहुत इलाज कराया दोनों में ही कोई कमी नहीं थी। फिर निराश हो मन्दिरों में गुरुद्वारा में भी ढोक लगाई। साधुओं, तांत्रिकों के भी चक्कर काटे किन्तु कुछ हाथ नहीं लगा,तब वे निराश हो भगवान के भरोसे सब छोड़ बैठ गये। फिर एक चमत्कार की भांति उन्हें शादी के आंठवे साल में बच्चे का सुख मिला।वे अपनी किस्मत और भगवान को सराहते।समय पर बेटा हुआ किन्तु प्रसव के समय कुछ जटिलताओं के कारण डॉक्टर ने उन्हें दूसरा बच्चा न होने की चेतावनी भी दे दी कि अब वह दुबारा मां नहीं बन सकती।

वे एक ही संतान से खुश थे और प्यार से उसके लालन-पालन में जुटे थे। रोहित दो बर्ष का हो गया। कुछ दिनों से सर्दी अधिक होने की वजह से उसे जुकाम खांसी हो गया तो वे डॉक्टर को दिखाने गये। उसने खांसी के लिए जो सिरप लिखा उसे देते ही वह खामोश हो गया। उन्हें बिलखता छोड़ सदा के लिए दुनियां से चला गया।

तभी दूसरे मोहल्ले में भी दो बच्चों की मौत की खबर आई वही सिरप पीने से। फिर तो जैसे मौत की सुनामी आ गई।दो चार दस नहीं पूरे पच्चीस बच्चों की मौत हुई उसी सिरप की वजह से।सब न्यूज पेपर्स एवं 

टी वी न्यूज चैनल पर एक ही न्यूज आ रही थी बच्चों के मौत  की खबर। सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश और फिर राजस्थान में मौत हुई।सब अपनी अपनी गल्ती का ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ रहे थे। मंत्री हो या दवा कम्पनी का मालिक, दुकानदार हो या डॉक्टर सबकी मिलीभगत से ही यह ग़लत दवा का गोरखधंधा पनप रहा था किन्तु कोई भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करने को तैयार नहीं था। पैसों की हवस ने इंसान को इतना नीचे गिरा दिया कि वह बच्चों के जीवन से खिलवाड़ कर उठा।उसने यह भी नहीं सोचा कि वे अबोध बालक अभी जीवन जी भी नहीं पाए थे कि उन्हें काल का ग्रास बना दिया। किसलिए सिर्फ चंद रूपयों की खातिर, ताकि उनकी तिजोरी और भर जाए। डाक्टर को भगवान के बाद धरती पर भगवान का दर्जा दिया जाता है।बीमार पड़ने पर बड़ी ही आस भरी निगाहें डॉक्टर पर जम जाती हैं। डॉक्टर के पास पहुंचने पर लगता है अब कुछ चमत्कार होगा डॉक्टर दवा देंगे अच्छे हो जाएंगे।पर जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो किसके पास जाएं।यह जानते हुए भी कि दवा बच्चों की जान ले सकती है, कम्पनी से मिले मोटे कमीशन के दबाव में डॉक्टर दवा लिखते रहे। चंद ऐसे डॉक्टर जो अपने पेशे को बदनाम कर पैसा कमाने पर तुल जाते हैं वे अपने स्वयं से, अपने पेशे से और लोगों के जीवन से गद्दारी करते हैं। इन्हें तो आजीवन पेशे से दूर कर देना चाहिए इनकी प्रेक्टिस पर रोक लगा कर।पूरा सरकारी अमला अब कह रहा  है जांच हो रही है। जहां दवा बनती थी उस कम्पनी की हालत बहुत ही शोचनीय है ना हाइजिन का ध्यान रखा जा रहा था ना शुद्धता का ,तो इतने दिनों तक जांच क्यों नहीं की गई। हमेशा जांच हादसे के बाद ही क्यों होती है। पहले तो बड़े हादसे होने का इंतजार करते हैं, हादसा होने के बाद शोर मचता है। ये दोषी लोग अपने गिरेबान में झांक कर देखें, सोचें कि इतने घरों के चिराग बुझा कर अपने आप को माफ कर पाएंगे। किस-किस पर क्या बीती होगी जैसे ऊपर बताया निलेश का घर हमेशा के लिए बच्चे के साथ ही शांत हो गया। ऐसे ही अन्य परिवारों में कोई घर का  इकलौता चिराग होगा , कोई दो-तीन बहनों का भाई  होगा, कोई इकलौती नन्ही सी गुड़िया होगी अपने दादा-दादी की दुलारी।ये सब बड़ी ही आशा लेकर गये होंगे डॉक्टर के पास बच्चों को स्वस्थ करने की उम्मीद से किन्तु डॉक्टर ने क्या लिखा दवा के नाम पर जहर।उन माता-पिता की मनःस्थिति का सोचीए जो सोच रहे हैं काश हमें पता होता कि हम अपने ही हाथों से अपने बच्चे को दवा के नाम पर जहर पिला रहे हैं इससे तो अच्छा होता कि वो थोड़े दिन खांस लेते ,काढ़ा पिला देते तो आज हमारे लाल हमारे साथ तो होते।

कितने लोगों की बद्दुआ लेकर ये दोषी लोग चैन से जी सकेंगे।सोचो यदि आज तुम्हारे अपने बच्चों के साथ ऐसा हो तो कैसा लगेगा। 

निर्दोष बच्चों की जान लेने वाले, कितने ही माता-पिता की गोद सूनी करने वाले ये खूनी, गद्दार लोग क्या सभ्य समाज में रहने लायक हैं। आज जो इन्होंने बोया है कल वैसा ही काटेंगे। कर्मो का फल लौट कर आएगा जो इन्हें खून के आठ-आठ आंसू रुलाएगा उस समय यह ग़लत तरीके से कमाया पैसा काम नहीं आएगा।

इन लोगों की इंसानियत इतनी मर गई कि ये खून के प्यासे हो गये चंद रुपयों की खातिर।जब विधाता की लाठी इन पर पड़ेगी बिना आवाज किए तब यह पैसा किसी काम नहीं आएगा सब यहीं धरा रह जाएगा। आज इन्होंने अपने हाथ बच्चों के खून से रंगे है क्या यह दाग कभी मिट पायेगा।

शिव कुमारी शुक्ला 

जोधपुर राजस्थान 

11-10-25

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

लेखिका बोनस प्रोग्राम 

कहानी नम्बर दो

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