निरादर – मधु वशिष्ठ

इलेक्ट्रिक तंदूर में बनी हुई अपनी पसंद की भिंडी, रोस्टेड बैंगन, कम घी का इस्तेमाल करके भी कितने स्वाद लग रहे थे। नए फ्रिज में जमाई हुई आइसक्रीम, 4 बर्नर वाला चूल्हा, नए सामान से सजा हुआ पूरा घर और मुस्कुराती सी प्रिया,जब तक प्रिया उनके साथ रही, शायद ही कभी उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट देखी हो। रोज किसी न किसी कारण से उन दोनों में तनातनी हो ही जाती थी। थोड़ी देर बाद प्रिया ने मिक्स्ड फलों का जूस निकालकर भावना की को दिया तो आखिर उनके सब्र का बांध टूट ही गया और वह बोली बिना वजह के बिजली का बिल फूंकती हो, फल तो यूं भी खाए जा सकते हैं। उसी रौ में प्रिया ने भी जवाब दिया, अब यह घर तो मेरा ही है  ना? आदतन मुंह से  इन शब्दों के  निकलने के बाद प्रिया खुद भी घबरा गई। उसने सासू मां की बात काट कर फिर उनका निरादर किया है। अब  बात को संभालने के इरादे से प्रिया ने भावना जी को कहा मम्मी यह रायता चखकर देखो आपको अच्छा लगेगा  इसमें मैंने हींग का बघार भी लगाया है।

  आई आपको प्रिया और उसके परिवार से मिलते हैं।शादी में प्रिया अपने घर से लगभग सारा ही सामान लाई थी। जोकि भावना जी ने स्टोर रूम में ही रखवा दिया था। प्रिया की शादी निपटा कर भावना जी उज्जैन में अपने गुरु जी के आश्रम में सप्ताह भर रहने के लिए गई। वापस आकर देखा तो प्रिया ने नया फ्रिज नया गैस का चूल्हा और माइक्रोवेव इत्यादि लगभग अपनी सारी चीजें निकालकर रसोई को एकदम नया रूप दिया हुआ था। भावना जी की पुरानी चीजें स्टोर रूम में पहुंच चुकी थी। प्रिया विजयी मुस्कान लेकर भावना जी के पैर छूने को हुई। भावना जी तो अपना घर पहचान ही नहीं पा रही थी लगभग सब कुछ ही प्रिया ने अदल बदल कर दिया था।यह सब देख कर भावना जी आश्रम से आने के बाद जो शांति अपने मन के भीतर लाई थी वह लावा में परिवर्तित हो गई थी। जहां प्रिया मुस्कान बिखेरे अपनी तारीफ का इंतजार कर रही थी वही भावना जी उबल कर फूट पड़ी और चिल्लाते हुए बोली मेरे  घर में मेरी ही समान को तुमने मुझे बिना पूछे इस तरह से क्यों बदल दिया? फिर मैं गुस्से से बोली घर में मुझे किसी तरह का कोई बदलाव नहीं चाहिए। यह उनका अहम था या असुरक्षा की भावना या जाने क्या? नई नवेली प्रिया की आंखों से जो अश्रुधारा बही,  वहीं सारी रात नितिन के उसे मनाने की आवाज भावना जी के गुस्से की आग में घी का काम कर रही थी।

       उनकी ही घर में उनसे बिना पूछे कोई कुछ भी बदलाव कर सकता है यह बात तो उन्हें बहुत टीस रही थी। अपने ही घर में प्रिया की विरोध में कोई उनके साथ भी नहीं खड़ा हुआ यह बात तो उन्हें अपना निरादर प्रतीत हो रही थी।  अंततः उनके गुस्से के आगे सब को झुकना पड़ा और वही पुराना फ्रिज लगाया गया जिसका कि फ्रीजर लगभग खराब था। चार की जगह दो बर्नर वाला ही चूल्हा लगा। यहां तक की जूसर और माइक्रोवेव भी रसोई से गायब हो गए थे। बढ़ती दूरियों का अंत अंततः प्रिया और नितिन को घर छोड़कर किराए का मकान लेने में ही हुआ।सबको तो यही कहा गया नितिन को अपने दफ्तर आने-जाने में परेशानी होती थी इसलिए उसने अपने दफ्तर के पास ही घर ले लिया।  इधर घर में नितिन और प्रिया के जाने के बाद भावना जी के घर का सूनापन और भी ज्यादा बढ़ गया। बेटी अपने ससुराल की हो चुकी थी और एकलौती बहू भी घर छोड़ कर जा चुकी थी। फ्रिज भी लगभग अब पूर्ण रूप से जवाब दे चुका था। बच्चों के जाने के बाद वर्मा जी भी  चुप से हो गए थे और घर बेहद खाली खाली सा लगता था। दिन और रात इतने लंबे होंगे भावना जी ने सोचा भी ना था।

     प्रिया भी अपने नए घर में सारा नया सामान निकालकर  नितिन के साथ अकेले बेहद खुश थी। लेकिन बाद में नितिन की बढ़ती व्यस्तताएं और अक्सर शाम को उसका अपने माता-पिता से मिलने उस घर में जाना और देर से आना प्रिया को बेहद दुखी कर रहा था। यूं भी कुछ समय से अब उसे खाने में ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। नितिन , प्रिया के शिफ्ट होने के बाद भावना जी कभी भी उनसे मिलने उनके घर नहीं गई थी। वर्मा जी तो उनके घर चली भी जाते थे और नितिन  अक्सर अपने माता-पिता से मिलने आता ही रहता था। 

   कुछ समय से प्रिया की भी तबीयत खराब रहने लगी थी, वह मां बनने की राह पर थी। 

  अबकी  बार जब प्रिया अपने मायके गई थी तो उसकी भाभी और मां दोनों ने उससे यही पूछा था कि बच्चे के जन्म के समय तुम्हारे पास कौन रहेगा? तुम ही अपने ससुराल जाओगी क्या? भाभी के कहने का अंदेशा वह बड़ी अच्छी तरीके से समझ रही थी कि अपना इंतजाम वह स्वयं करें। ससुराल में इतना बड़ा घर होते हुए भी किराए के पैसे देना अब प्रिया को भी चुभ  रहा था। वही पैसे वह अपने बच्चे के लिए भी तो इकट्ठा कर सकती थी। शायद भावना जी सही ही कहती थी हर चीज की कदर करना सीखो। लेकिन———-?  जबसे नितिन ने भावना जी को प्रिया के मां बनने की खबर सुनाई तो भावना जी से भी रहा न गया ।वर्मा जी को लेकर वह सीधा प्रिया के पास पहुंची।प्रिया भावना जी को देखकर बहुत खुश थी और अब जब खाना खिलाते हुए गलती से आदतन उसके मुंह से निकले यह  घर तो मेरा ही है  ना? कहकर वह बेहद घबरा गई कि कहीं भावना जी को बुरा तो नहीं लगा। भावना जी ने प्रिया के चेहरे को देखा जो कि पीला पड़ चुका था, मुस्कुराते हुए भावना जी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा और तू भी तो मेरी बहू ही है ना!! अब मुझे तो छोटे बच्चे को खिलाने का काम करना है चल अब वापस अपने घर चल और अपने हिसाब से ही चला। मैं तो सिर्फ और सिर्फ अब नितिन के बच्चे को ही खिलाऊंगी। सुनकर प्रिया भावना जी से लिपट गई।दोनों की आंखों से अश्रु धारा बह रही थी कि तभी वर्मा जी की आवाज आई वह नितिन से कह रहे थे जल्द ही अपना सामान लेकर वापस घर आ जाओ। अब हम सब साथ ही रहेंगे और बहू का अच्छे से ख्याल रखना है। 

उसे दिन सब खुश थे और कुछ समय के बाद नितिन और प्रिया वापस उसे घर में आ गए थे। प्रिया के बेटा होने के बाद भावना जी तो अब खुशी-खुशी अपने पोते को ही खिलाती रहती थी घर में उन्होंने टांग अड़ाना बंद कर दिया था और प्रिया भी पूरी कोशिश करती थी कि उसके किसी भी कृत्य  से भावना जी का निरादर ना हो।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद हरियाणा। 

निरादर शब्द प्रतियोगिता के अंतर्गत लिखी गई कहानी

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